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Updated: 26 मई, 2018 10:11 AM
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26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र में सत्ता संभाली थी - और अब मोदी सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं. चार साल पहले मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का जो नारा दिया था वो कर्नाटक में प्रवेश तो कर गया लेकिन मिशन अधूरा रहा.

बीजेपी ने कर्नाटक को आधा-कांग्रेस-मुक्त तो कर दिया, लेकिन खुद की खूब फजीहत करा ली. ऊपर से सारे सियासी विरोधियों को एकजुट होने का बड़ा प्लेटफॉर्म भी दे दिया. कर्नाटक को बीजेपी भुलाने की कोशिश करे तो भी उसका सीधा असर कैराना में दिखने लगा है - लड़ाई बीजेपी बनाम सारा विपक्ष हो चुकी है. एक सर्वे तो ये भी बता रहा है कि 2019 में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान यूपी में ही होगा.

क्या होगा अगर अभी चुनाव हो?

Mood of the nation यानी देश का मिजाज कैसा है? क्या लोग मोदी सरकार के कामकाज से खुश हैं? क्या देश मोदी सरकार को 2019 में दोबारा मौका देने के लिए तैयार है? इंडिया टुडे के ताजा सर्वे में इन्हीं सवालों को समझने की कोशिश की गयी है. इंडिया टुडे के लिए ये सर्वे किया है सीएसडीएस और लोकनीति ने.

amit shah, narendra modiकांग्रेस मुक्त भारत मिशन अधूरा...

2014 में बीजेपी ने 'अबकी बार मोदी सरकार' नारे के साथ दिल्ली की सत्ता का सफर तय किया. चार साल तक मोदी सरकार 'सबका साथ, सबका विकास' नारे के साथ चलती रही. इस स्लोगन के सिद्धांत और व्यवहार में जो भी फर्क हो उस पर अलग से बहस की जा सकती है.

2019 के लिए बीजेपी ने नया नारा गढ़ लिया है - 'साफ नीयत सही विकास, 2019 में फिर मोदी सरकार.'

सर्वे के मुताबिक अभी चुनाव कराये जाने पर एनडीए को 274 सीटें मिलने की संभावना है. बहुमत के आंकड़े से सिर्फ दो सीट ज्यादा. खास बात ये है कि फिलहाल लोक सभा में बीजेपी के अपने सांसदों की संख्या भी 272 ही है, जिनमें एक स्पीकर भी हैं.

2014 में एनडीए को 323 सीटें मिली थीं जिसमें बीजेपी की 282 रहीं. इसी तरह यूपीए के हिस्से 60 सीटें आ पायी थीं जिनमें कांग्रेस की 44 रहीं. चार साल में कांग्रेस चार और सीटें हासिल कर 48 हो चुकी है. नया चुनाव होने पर यूपीए को 164 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है.

मोदी के मुकाबले राहुल कहां?

राहुल गांधी दोहरा चुके हैं कि 2019 में हालात माकूल हुए तो वो प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे. सर्वे के आंकड़े अभी ऐसा कोई मजबूत इशारा तो नहीं करते लेकिन इतना जरूर है कि लोगों की धारणा उनके बारे में बदल रही है.

rahul gandhiलोकप्रियता तो बढ़ी मगर मोदी से काफी पीछे

2014 में राहुल गांधी कांग्रेस उपाध्यक्ष थे और तब 16 फीसदी लोग उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखने को तैयार थे. तब तक राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री पद को लेकर खुल कर कभी इच्छा नहीं जतायी थी. प्रधानमंत्री पद क्या तब उनके कांग्रेस की कमान संभालने को लेकर भी संशय की स्थिति बनी रहती रही.

राहुल गांधी ने गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस की कमान संभाल ली. राहुल के अध्यक्ष बन जाने के बाद अब 24 फीसदी लोग उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.

इस मामले में राहुल के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में हल्की की सी गिरावट दर्ज की गयी है. चार साल बाद इस लिहाज से मोदी की लोकप्रियता में दो फीसदी की कमी आयी है - 2014 में ये 36 फीसदी रही लेकिन अब 34 फीसदी हो गयी है. देखा जाये तो राहुल के मुकाबले अब भी 10 फीसदी ज्यादा है.

कर्नाटक के बाद क्या?

कर्नाटक के जमावड़े के बाद विपक्ष की एकजुटता की रिपोर्ट तो सबसे पहले कैराना के नतीजे से मालूम हो जाएगा. देखना होगा नतीजे फूलपुर और गोरखपुर जैसे होते हैं या फिर उनका उल्टा.

मूड ऑफ द नेशन पोल में यूपी में एनडीए का वोट शेयर 2014 के 43 फीसदी से घट कर 35 तक पहुंच सकता है. दूसरी तरफ यूपीए के खाते में इजाफा हो सकता है - 2014 में यूपीए का जो वोट शेयर 8 फीसदी रहा वो अब 12 फीसदी तक पहुंच चुका है.

sonia, maya, rahulयूपी में यूपीए को बड़ा फायदा

आम चुनाव से पहले इस साल के आखिर में चार राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं. इन में तीन राज्य ऐसे हैं जहां बीजेपी की सरकार है. जाहिर है बीजेपी के सामने सत्ता विरोधी फैक्टर भी होगा.

सर्वे बताता है कि राजस्थान में बीजेपी का वोट शेयर 2014 के 45 फीसदी के मुकाबले घटकर कर 39 फीसदी पहुंच रहा है. दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट शेयर 2014 में 33 फीसदी से बढ़कर अब 44 फीसदी हो जाने का अंदाजा है.

मध्य प्रदेश का हाल भी राजस्थान जैसा ही लग रहा है. 2014 में मध्य प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर 54 फीसदी रहा जो अब गिर कर 40 फीसदी हो सकता है. कांग्रेस का वोट शेयर 2014 के 35 फीसदी के मुकाबले इस बार 50 फीसदी होने की संभावना है.

कुल मिलाकर देखा जाये तो एनडीए की सरकार सत्ता में वापसी में तो कामयाब हो जाएगी, लेकिन पहले वाली बात नहीं रहेगी. वो बात जिसमें सबसे बड़ा विरोधी दल होने के बावजूद कांग्रेस को प्रतिपक्ष के नेता पद से मरहूम रहना पड़ा.

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