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Updated: 15 अगस्त, 2021 10:50 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' - स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 14 अगस्त को अब हर साल इसी नाम से मनाया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने स्वयं ट्वीट कर के ये जानकारी शेयर की है.

प्रधानमंत्री मोदी का ये बयान पब्लिक डोमेन में आने के साथ ही रिएक्शन भी शुरू हो गये - और हाथ के हाथ लोग पाकिस्तान के नेशनल डे पर इमरान खान को दी गयी बधायी याद दिलाने लगे.

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तो सीधे सीधे आरोप जड़ दिया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नजदीक आने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विभाजन को याद करने लगे हैं.

चुनावों को याद करें और 2019 के आम चुनाव से पहले की बातें छोड़ भी दें तो शायद ही कोई चुनाव बीता हो जिसमें पाकिस्तान के नाम पर सियासी नोक झोंक न हुई हो. आम चुनाव में तो बीजेपी नेतृत्व के निशाने पर पूरा विपक्ष ही रहा और फोकस कांग्रेस पर हुआ करता था. कांग्रेस को हुए नुकसान में एक बड़ी वजह ये भी रही.

पश्चिम बंगाल से पहले हुए बिहार चुनाव में तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का इल्जाम रहा कि कांग्रेस के नेता पाकिस्तान की तारीफ करते हैं - बोले, 'कुछ लोगों को कश्मीर से धारा 370 हटाने पर बहुत पीड़ा हुई है. कांग्रेस के राहुल गांधी और ओवैसी को इतनी पीड़ा हुई कि वे बार बार इसका विरोध करते रहे.'

योगी आदित्यनाथ के बयान पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने याद दिलाया कि 2015 के चुनाव बीजेपी नेता अमित शाह ने कहा था कि अगर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे. बिहार से पहले दिल्ली चुनाव में तो हिंदू-मुस्लिम और कश्मीर-पाकिस्तान का शोर तो कुछ ज्यादा ही सुनाई दिया और ये बीजेपी पर भारी भी पड़ा. आम आदमी पार्टी छोड़ कर बीजेपी के टिकट पर मॉडल टाउन सीट से उम्मीदवार कपिल मिश्रा ने तो दिल्ली विधानसभा चुनाव को सीधे-सीधे भारत बनाम पाकिस्तान का मुकाबला ही बता डाला था - बीजेपी की कौन कहे, कपिल मिश्रा खुद भी अपनी सीट से हार गये. बीजेपी ने ये संकेत दो दे ही दिया है कि यूपी चुनाव में श्मशान-कब्रिस्तान 2.0 होने वाला है - लेकिन क्या प्रधानमंत्री की नयी घोषणा का यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वास्तव में यूपी चुनाव (UP Election 2022) में कोई फायदा उठा पाएंगे?

आजादी के जश्न से पहले बंटवारे के दर्द को याद कीजिये

22 मार्च 2021 को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के पीएम इमरान खान को पत्र लिख कर बाकायदा पाकिस्तान नेशनल डे की बधाई दी थी. पत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा था कि पड़ोसी देशों में भरोसे का रिश्ता होना चाहिये. आतंकवाद की कोई जगह नहीं है और भारत पाकिस्तान से दोस्ताना संबंध चाहता है. पाकिस्तान के नेशलन डे से दो दिन पहले ही 20 मार्च को पाकिस्तनी प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी बेगम कोरोना पॉजिटिव पाये गये थे - और तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना की थी.

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर लिखा कि 14 अगस्त को लोगों के संघर्षों और बलिदान की याद में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा... बंटवारे के दर्द को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता...

दरअसल, 22 मार्च को ही 1940 में एक अलग मुल्क के तौर पर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव पास किया था और उसी दौरान पाकिस्तान के प्रस्तावित नक्शे को भी मंजूरी दी गयी थी.

प्रधानमंत्री मोदी के भारत-पाक विभाजन की विभीषिका की याद दिलाने की आलोचना भी इसीलिए हो रही है क्योंकि दोनों बातें आपस में ही विरोधाभासी हैं - आखिर कैसे एक साथ पाकिस्तान को नेशनल डे की बधाई दी जा सकती है और ठीक उसी के आधार पर हुई बंटवारे को विभीषिका के तौर पर स्मृति दिवस मनाया जा सकता है?

narendra modi, yogi adityanathयूपी चुनाव जीतने के लिए बीजेपी को पाकिस्तान जैसे कीवर्ड की जरूरत है भी क्या?

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि बीजेपी के 'विभाजनकारी छल-कपट' की पोल अब खुल चुकी है और अब वो देश को नहीं बरगला सकते. सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री मोदी का 14 अगस्त 2015 का एक ट्वीट भी शेयर किया है जिसमें वो पाकिस्तान को स्वतंत्रता दिवस की बधाई दे रहे हैं.

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा तो आगे बढ़ कर दावा ही कर रहे हैं, ‘इनके वैचारिक पूर्वजों और मुस्लिम लीग ने मिलकर जो माहौल बनाया था उस वजह से बंटवारा हुआ - इन्हें पहले माफी मांगनी चाहिये.’

बंटवारे की याद दिलाने से चुनावों में कितना फायदा

कुछ पुराने वाकयों को एक साथ जोड़ कर देखने पर कांग्रेस का आरोप महज राजनीतिक विरोध एक नमूना भी नहीं लगता. जून, 2021 में ही पंजाब में एक मुस्लिम आबादी बहुल इलाके को नये जिले में तब्दील किया गया था - मलेरकोटला. नया जिला बना तो पंजाब में था, लेकिन ये बात यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बिलकुल रास नहीं आयी.

योगी आदित्यनाथ ने मलेरकोटला को अलग जिला बनाये जाने में पाकिस्तान की झलक देख ली थी. बताया भी था कि ये वैसे ही है जैसे मुस्लिम आबादी को आधार बनाकर भारत से अलग पाकिस्तान बनाया गया.

जैसे एक मुस्लिम मुल्क, ठीक वैसे ही एक मुस्लिम जिला!

योगी आदित्यनाथ के बयान पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया जतायी थी और पंजाब को छोड़ कर अपने सूबे के शासन पर ध्यान देने की सलाह दी थी.

हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने एक सवाल के जवाब में मुलायम सिंह यादव को 'अब्बाजान' कह कर संबोधित कर एक नये विवाद को ही हवा दे दी - योगी आदित्यनाथ के हिसाब से देखें तो वो अपने वोट बैंक को समाजवादी पार्टी के नेता की 'मुल्ला मुलायम' वाली मुस्लिम परस्त छवि की याद दिलाने की कोशिश कर रहे थे. ये तो देखा ही गया है कि चुनावों से पहले मुलायम सिंह यादव अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने की घटना का बड़े ही राजनीतिक गर्व के साथ याद दिलाने की कोशिश करते रहे हैं, ताकि उनको पहले की ही तरह मुस्लिम समुदाय की सहानुभूति मिलती रहे.

वैसे भी बंटवारे की विभीषिका की याद दिलाना बीजेपी के राष्ट्रवाद के एजेंडे को काफी सूट करता है क्योंकि हिंदुत्व की राजनीति चमकाने के लिए तो अयोध्या में राम मंदिर निर्माण चल ही रहा है, जिसे योगी आदित्यनाथ बीजेपी के चुनावी वादे पूरे करने जैसा पेश करने लगे हैं.

उत्तर प्रदेश का मामला थोड़ा अलग है, खासकर राजनीतिक हिसाब और जातीय समीकरणों की वजह से, लेकिन 2019 के आम चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों को ध्यान से देखें तो लगता नहीं कि राष्ट्रीय मुद्दों से बीजेपी को कोई फायदा हो रहा है.

आम चुनाव के बाद बीजेपी साफ तौर पर सिर्फ दो विधानसभा चुनाव ही जीत सकी है - बिहार और असम. सरकार तो बीजेपी की हरियाणा में भी बन ही गयी थी, लेकिन गठबंधन का जुगाड़ कैसे हुआ किसी से छिपा नहीं है. महाराष्ट्र में बीजेपी इतनी सीटें नहीं जीत पायी थी कि उसके बगैर सरकार बनाने की कोई हिमाकत न कर सके. बल्कि शिवसेना के साथ बीजेपी के गठबंधन टूटने में एक अहम भूमिका सीटों की कम संख्या भी रही.

झारखंड और दिल्ली में भी बीजेपी ने अपनी तरफ से उठा नहीं रखा, लेकिन पश्चिम बंगाल में तो सारी ताकत और तिकड़म भिड़ा देने का भी कोई फायदा नहीं हुआ. फिर भी बीजेपी नेतृत्व की राय नहीं बदली है कि विधानसभा चुनाव, अपवादों को छोड़ कर, राष्ट्रीय एजेंडे के साथ नहीं जीते जा सकते.

और हां, जितना कश्मीर, पाकिस्तान और आतंकवाद का शोर दिल्ली विधानसभा चुनावों में मचाया गया - जरा सा भी फायदा मिला क्या?

सिर्फ कपिल मिश्रा की ही कौन कहे, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा में तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पाकिस्तान परस्त और आतंकवादी साबित करने की जैसे होड़ ही मची रही, लेकिन कोई चुनावी फायदा भी मिला क्या?

अरविंद केजरीवाल ने तो वोटिंग के ठीक पहले यहां तक बोल दिया कि अगर दिल्ली के लोग आतंकवादी मानते हैं तो मतदान वाले दिन बीजेपी को वोट दे दें - और दिल्लीवालों ने एक बार फिर सारा प्यार अरविंद केजरीवाल पर उड़ेल दिया बीजेपी बस देखती रह गयी. तभी तो चुनाव नतीजे आने के बाद मंच से अरविंद केजरीवाल को इजहार का मौका भी मिल गया - दिल्लीवालों... आई लव यू!

कोई शक नहीं कि अगले आम चुनाव के पहले 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विभाजन विभीषिका दिवस मनाये जाने की घोषणा करते तो ज्यादा मुफीद होता - ये भी हो सकता है कि ये तब भी फायदेमंद साबित हो, लेकिन तात्कालिक तौर पर योगी आदित्यनाथ भी इसके लाभार्थी हो पाएंगे, शक शुबहे खत्म नहीं हो पा रहे हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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