सुरेश प्रभु की 'नैतिकता' का रेल हादसों पर असर
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने तो राजनाथ सिंह के उस फॉर्मूले को फेल कर दिया कि एनडीए में इस्तीफे नहीं होते. सुरेश प्रभु तो बहुत ऊपर निकले. सुरेश प्रभु ने न सिर्फ रेल हादसों की नैतिक जिम्मेदारी ली, बल्कि प्रधानमंत्री से मिल कर इस्तीफे की पेशकश भी कर दी.
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जिस ट्विटर अकाउंट से अब तक बच्चों को दूध मुहैया कराने और बीमार को एंबुलेंस उपलब्ध कराये जाने की जानकारी मिलती रही - अब वहीं से नैतिकता की बात भी सामने आयी है. हफ्ते भर में दो-दो रेल हादसों पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने दुख जताया है और हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की है.
सीधा सा सवाल ये है कि क्या सुरेश प्रभु के इस्तीफा दे देने भर से रेल हादसे रुक जाएंगे?
रेल हादसों की नैतिक जिम्मेदारी
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये हैं. अपने ट्विटर टाइमलाइन पर सुरेश प्रभु ने कैफियत एक्सप्रेस के हादसे की वजह और घायल मुसाफिरों के बारे में बताया है. सुरेश प्रभु ने कहा है कि वो खुद पूरे मामले की निगरानी कर रहे हैं.
A dumper hit the locomotive of the Kaifiyat Express,resulting in derailment of coaches 1/ https://t.co/8EgmiW0gMO
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
Some passengers have received Injuries and have been shifted to nearby hospitals.I am personally monitoring situation,rescue operations 2/
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
Have directed senior officers to reach the site immediately 3/
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
I am extremely pained by the unfortunate accidents, injuries to passengers and loss of precious lives. It has caused me deep anguish (4/5)
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
सुरेश प्रभु ने ये भी कहा है कि बीते तीन साल में रेलवे की बेहतरी के लिए अपने स्तर पर जितना भी हो सका किया है. उन्होंने बताया कि रेलवे में सुधार के तमाम उपाय किये जा रहे हैं.
In less than three years as Minister, I have devoted my blood and sweat for the betterment of the Railways (1/5)
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
Undr leadership of PM, tried 2 overcome decades of neglect thru systemic reforms in all areas leading 2 unprecedented investment& milestones
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
New India envisioned by PM deserves a Rlys which is efficient and modern. I promise that is the path, on which Rlys is progressing now (3/5)
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
इस कड़ी के आखिरी ट्वीट में सुरेश प्रभु ने इस सिलसिले में प्रधानमंत्री से मुलाकात का भी जिक्र किया है.
सुरेश प्रभु का इस्तीफा क्यों जरूरी नहीं है?
एक बार इस्तीफे की बात पर मोदी सरकार के सबसे सीनियर मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि इस्तीफे यूपीए सरकार में होते थे, ये एनडीए सरकार है - इसमें इस्तीफा नहीं होता. बाद के दिनों में देखा भी गया कि वास्तव में राजनाथ सिंह ने तत्व की बात कही थी.
लेकिन सुरेश प्रभु तो इन सबसे बहुत ऊपर निकले. सुरेश प्रभु ने न सिर्फ रेल हादसों की नैतिक जिम्मेदारी ली, बल्कि प्रधानमंत्री से मिल कर इस्तीफे की पेशकश भी कर दी.
I met the Hon'ble Prime Minister @narendramodi taking full moral responsibility. Hon’ble PM has asked me to wait. (5/5)
— Suresh Prabhu (@sureshpprabhu) August 23, 2017
तारीफ करनी होगी सुरेश प्रभु की. जिस तरीके से मुंबई से बुलाकर उन्हें प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी में शामिल कराया और उसी दिन मंत्री पद की शपथ दिलायी उसके पीछे सुरेश प्रभु की काबिलियत और शख्सियत ही रही. सुरेश प्रभु ने हादसों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए जो मिसाल पेश की है वो सच में बेमिसाल है.
प्रभु की पेशकश नेताओं के लिए आईना है...
सुरेश प्रभु के इस्तीफे की पेशकश यूपी की योगी सरकार के लिए तो आईना ही है. जिस तरीके से गोरखपुर अस्पताल में 60 से ज्यादा मौत के बाद योगी सरकार के दो-दो मंत्रियों ने गैरजिम्मेदाराना रवैया दिखाया वो सबके सामने है. वैसे खुद योगी आदित्यनाथ ने भी मामले पर लीपापोती में कोई कसर बाकी न रखी. योगी ने जिस तरह राहुल गांधी के दौरे पर रिएक्ट किया वो भी मंत्रियों की हरकत से थोड़ा भी अलग नहीं था. क्या राहुल गांधी का दलितों के घर जाकर लंच और डिनर करना और अस्पताल में बैमौत मारे गये मासूमों के मां-बाप से मिलना एक जैसा ही रहा. योगी आदित्यनाथ का राहुल गांधी की उस यात्रा के लिए पिकनिक बताना खुद में हास्यास्पद रहा. उम्मीद की जानी चाहिये कि बीजेपी ही नहीं दूसरे दलों के नेता भी सुरेश प्रभु से प्रेरणा लेंगे और तमाम गुणा-गणित के बीच कभी कभी नैतिकता के सवालों पर भी गौर करेंगे.
बुलेट ट्रेन की बात और है, लेकिन क्या रेलवे में सुरेश प्रभु के मंत्री होने से कोई फर्क नहीं पड़ा है? क्या रेल मंत्री के रूप में सुरेश प्रभु का कार्यकाल उनके पहले के मंत्रियों के मुकाबले कहीं नहीं टिकता? क्या सुरेश प्रभु के इस्तीफे के बाद संभावित फेरबदल में जो भी नया नेता मंत्री बन कर आएगा वो हमेशा के लिए रेल हादसे रोक देगा? व्यक्ति बदल जाने से परिस्थितियां रातों रात नहीं बदल जातीं? बाकी लोगों को ही नहीं, प्रधानमंत्री को भी प्रभु की पेशकश पर विचार करते वक्त इन बातों पर गौर करना चाहिये.
वैसे जो ट्विटर पर प्रभु से इस्तीफा मांग रहे थे, वही अब भावुक हैं. कुछ लोगों ने प्रभु से इस्तीफा न देने को भी कहा है. कई का मत है कि प्रभु ने रेलवे में जो बदलाव लाए हैं, वे अभूतपूर्व हैं और इस मुहिम को जारी रखने के लिए उनका मंत्रालय में बना रहना जरूरी है. बहरहाल, प्रभु ने 'नैतिकता' वाला ट्वीट करके इस्तीफे की बहस को नई दिशा दे दी है. ऐसे में जो लोग पहले आक्रामक थे, अब वे सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी से सवाल कर रहे हैं- 'क्या वे प्रभु को जाने देंगे ?'
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