रोहतगी का इस्तीफा और उसके पीछे की हकीकत
भारत में अभी तक 14 अटॉर्नी जनरल हुए हैं. इनमें से 12वें एटॉर्नी जरनल मिलन के बनर्जी की 2009 में पद पर रहते हुए मृत्यु के बाद पद खाली हुआ. इनके अलावा आठवें एजी जी रामास्वामी ने घोटाले के आरोपों के बाद 1991 में पद से इस्तीफा दे दिया था.
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पिछले दिनों नरेंद्र मोदी सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार मुकुल रोहतगी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इंग्लैंड के लिए रवाना होने के पहले दिए गए इस्तीफे उन्होंने लिखा, 'मैं अब फिर से अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस करना चाहता हूं.'
रोहतगी अपने पीछे एक गंभीर चुप्पी भी छोड़ गए है. हमारे संविधान के मुताबिक अटॉर्नी जनरलों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. लेकिन वे अनिवार्य रूप से प्रधान मंत्री के ही प्रतिनिधि होते हैं. अभी तक किसी महिला को इस पद पर नियुक्त नहीं किया गया है. सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार की नियुक्ति में राजनीति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. वे न्यायिक प्रक्रियाओं में सरकार के हितों की रक्षा करते हैं और सरकार के गिरने के बाद ही इस्तीफा देते हैं.
भारत में अभी तक 14 अटॉर्नी जनरल हुए हैं. इनमें से 12वें एटॉर्नी जरनल मिलन के बनर्जी की 2009 में पद पर रहते हुए मृत्यु के बाद पद खाली हुआ. इनके अलावा आठवें एजी जी रामास्वामी ने घोटाले के आरोपों के बाद 1991 में पद से इस्तीफा दे दिया था. इन दोनों के अलावा बाकी सारे लॉ ऑफिसरों ने अपना टर्म पूरा किया और राजनीतिक चक्र के अनुसार आए और गए.
इसके पहले मुकुल रोहतगी, वाजपेयी सरकार में पांच साल कानून अधिकारी के रूप में काम कर चुके थे. यही नहीं रोहतगी ने 2002 के दंगों और फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात सरकार का प्रतिनिधत्व सुप्रीम कोर्ट में किया था. रोहतगी प्रधान मंत्री और उनके मंत्रिमंडल के करीबी हैं. इस बात की तस्दीक खुद रोहतगी ने भी की थी- 'सरकार के साथ मेरे अच्छे संबंध हैं.'
नाक की लड़ाई
सुप्रीम कोर्ट के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक ये तो होना ही था. रोहतगी एक स्वतंत्र विचारधारा वाले व्यक्ति हैं. कुछ लोगों ने 3 जून को रोहतगी के कार्यकाल को बढ़ाने के तरीके पर भी संदेह जाहिर किया था. 29 मई से प्रधान मंत्री मोदी जर्मनी, स्पेन और रूस के दौरे पर निकल गए थे. इसी बीच कैबिनेट की अप्वाइंटमेंट कमिटि ने सॉलिसिटर जनरल और पांच अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के कार्यकाल को एड-हॉक बेसिस पर 'अगले आदेश तक' बढ़ाने का फैसला कर लिया.
इस पर किसी ने सवाल खड़ा किया कि आखिर प्रधान मंत्री ने विदेश यात्रा पर जाने के पहले हस्ताक्षर क्यों नहीं किया. कुछ लोगों का कहना है: 'सरकारें ऐसे ही काम करती हैं.' लेकिन फिर भी अटकलों का बाजार गर्म है. एजी रोहतगी के विरुद्ध सबसे बड़ा प्वाइंट है 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के मुद्दे पर न्यायपालिका और सरकार के बीच चला एक साल लंबा संघर्ष. इस मुद्दे पर सरकार की हार रोहतगी के लिए कलंक सरीखा है.
कुछ लोगों का मानना है कि मई में पाकिस्तान के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुलभूषण जाधव मामले पर उन्हें नजरअंदाज कर हरीश साल्वे को भारत की कमान सौंप देने से ये मामला ईगो और इज्जत का भी हो. आखिर मोदी सरकार के कानूनी सलाहकार होने के बावजूद उन्हें क्यों बाईपास किया गया. जबकि ये सभी को पता है कि साल्वे और रोहतगी एक दुसरे के प्रतिद्वंदी हैं और देश के शीर्ष 10 सबसे प्रभावशाली (और सबसे महंगे) वकीलों में दोनों का नाम आता है.
ऐसी अटकलें भी हैं कि रोहतगी ऐसे इंसान हैं ही नहीं जो सरकार का 'रबर स्टैम्प' बनकर रहे. देश के सबसे पहले और सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले अटॉर्नी जनरल एम सी सीतलवाड ना सिर्फ कानुन की नजर में बल्कि साहस के भी आइकॉन थे. एमसी सीतलवाड (1950-1963) सबसे लंबे समय तक एजी के पद पर रहे हैं. सीतलवाड ने अपने कार्यकाल में भ्रष्ट मंत्रियों पर कार्यवाही के लिए खुद तात्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ खड़े होने में भी परहेज नहीं किया था. यहां तक की उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने की धमकी भी दे दी थी. सीतलवाड की साफगोई और निडरता के दिन चले गए.
कांग्रेस के सांसदों ने इस बात पर भी सवाल उठाए कि आखिर एजी, वापस वकालत कैसे कर सकता है? लेकिन एजी का प्रोफाइल अब बदल गया है- चाहे इमरजेंसी के दौरान प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में नीरेन डे की बात हो या फिर प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के अंतर्गत गोपाल वहानवती. वैसे अब बात पैसों की भी है. सीतलवाड के समय एक सुनवाई के लिए अधिकतम फीस 1,600 रुपये होती थी. अब वो दिन चले गए. आज लॉ ऑफिसरों को एक सुनवाई या प्रतिदिन के लिए 16,000 रुपये की फीस मिलती है, जो काफी नहीं है. खासकर तब जब आज के समय में हॉट-शॉट वकीलों की फीस हर सुनवाई के 10 लाख रुपये से 1 करोड़ के बीच की फीस वसूल करते हैं.
इस बीच अटॉर्नी जनरल के पद के लिए साल्वे के नाम की चर्चा हो रही है. हालांकि साल्वे के करीबी सूत्रों ने संकेत दिया है कि साल्वे ने इस प्रपोजल से इनकार कर दिया है. तो अटॉर्नी जनरल के पद के लिए अन्य नाम हैं संविधान कानून विशेषज्ञ केके वेणुगोपाल, वरिष्ठ वकील अरविंद दातार, गुजरात के एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी और सॉलिसिटर जनरल रणजीत कुमार.
अब सरकार को अपने हितों की रक्षा करने के लिए देश के सबसे तेजतर्रार वकील की ही जरुरत है.
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