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Updated: 20 सितम्बर, 2016 08:18 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कलियुग में वनवास छह साल का ही होता है. अमर सिंह को भी समाजवादी पार्टी से छह साल के लिए ही निकाला गया था. जैसे ही सजा पूरी हुई वो मुलायम के दिल से लपक कर दल में हाजिर हो गये.

मुलायम ने अमर को वही पद और प्रतिष्ठा 'अपने हाथों' मुहैया कराई है जिस पर रहते उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया - नियुक्ति पत्र टाइप कराने की बजाए हाथ से लिख कर थमाया है.

बाहरी की एंट्री

क्या मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच 'बाहरी' की एंट्री हो गयी है?

समाजवादी पार्टी में हुए ताजा बवाल के बीच अखिलेश यादव ने कहा था कि झगड़ा परिवार में नहीं बल्कि सरकार में है - और इस झगड़े में उन्होंने 'बाहरी' शख्स की भूमिका का जिक्र किया था.

अखिलेश के संकेतों को समझने की कोशिश हुई तो ज्यादातर लोगों के शक की सूई अमर सिंह पर ही जाकर ठहरी. माना जा रहा था कि अमर सिंह के दिल में बने रहने की वजह सिर्फ आजम खां या रामगोपाल यादव नहीं बल्कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे. अखिलेश के कारण ही अमर सिंह को दल में एंट्री नहीं मिल पा रही थी. राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता बचाए रखने की मुलायम की मजबूरी जैसी भी हो लेकिन अखिलेश उन बातों को नहीं भुला पा रहे थे जो अमर सिंह ने पार्टी से निकाले जाने के बाद घूम घूम कहे थे. जो शख्स मुलायम के सारे राज तक खोल डालने की बात करे उसे भला अखिलेश कैसे भुला देते.

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बातों बातों में अखिलेश ने मीडिया के एक सवाल के जवाब में संकेत देने की भी कोशिश की थी, "दिल और दल में कौन बड़ा है, इसका फैसला आप लोग कर लें."

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छह साल का वनवास... खत्म!

हालांकि, अखिलेश के बाहरी हस्तक्षेप की बात पर भी अमर सिंह का जवाब शुगर-कोटेड ही रहा, "अखिलेश मेरे बेटे जैसे हैं." वैसे इन बातों का अखिलेश पर कोई असर नहीं हुआ. अखिलेश ने पूरे जोर के साथ कहा कि वो खुद और नेताजी के बीच में किसी बाहरी को नहीं आने देंगे.

हाथों-हाथ

अखिलेश की बातों को पूरी तरह दरकिनार करते हुए मुलायम सिंह ने अमर सिंह को हाथों-हाथ लिया है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि मुलायम ने अमरि सिंह को नियुक्ति पत्र भी हाथ से लिख कर दिया है - टाइप कराकर नहीं.

नियुक्ति पत्र का मजमून भी देख लीजिए - "प्रिय अमर सिंह, आपको समाजवादी पार्टी महामंत्री नियुक्त किया जाता है. मुझे आशा है आप आने वाले वक्त में उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव और समाजवादी पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे."

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दिल से दल में तत्काल प्रभाव से ट्रांसफर किया जाता है...

विरोध-ए-आजम

भले ही अखिलेश का विरोध तार्किक और राम गोपाल का शालीन और सोफियाना रहा हो लेकिन अमर की बात जब भी चली आजम खां आपे से बाहर नजर आए.

एक बार आजम से अमर सिंह के सैफई दौरे को सवाल हुआ तो बोले, "अब आंधी-तूफान के साथ कीड़े मकोड़े तो आ ही जाते हैं." आजम की इस बात पर भी अमर ने हर नेता की तरह उन्हें भी अपना दोस्त बताया.

लेकिन अमर सिंह की दोस्ती के नाम पर आजम आग बबूला हो गये, "हमने उनसे दलाली का कोई पैसा नहीं लिया है, तो हमसे कोई दोस्ती भी नहीं है."

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पिछले साल जब अमर सिंह की मुलाकातों का जिक्र आया तो भी आजम ने कहा कि वो राज्य सभा की सीट के लिए नेताजी पर डोरे डाल रहे हैं. बाद में बात सच भी हो गई - अमर सिंह उत्तर प्रदेश से राज्य सभा भी पहुंच गये.

समाजवादी पार्टी की हालिया उठापटक को जब अखिलेश की बातों से जोड़ा गया तो साफ हो गया कि बाहरी कोई और नहीं अमर सिंह ही हैं. दीपक सिंघल को मुख्य सचिव बनवाने से लेकर उनकी बर्खास्तगी के हालात तक असली कड़ी अमर सिंह ही नजर आए.

आजम की तो छोड़िए, क्या शिवपाल का इतना दबदबा हो गया है कि अखिलेश की बातें मायने नहीं रखतीं? या ये भी नेताजी की स्क्रिप्ट का ही शेष भाग है.

शिवपाल से अमर सिंह की करीबी की बात तो जग जाहिर है. याद कीजिए जब राम गोपाल यादव के जन्म दिन पर शिवपाल नाराज होकर चले गये तो अमर सिंह ही उन्हें मनाने गये और कामयाब भी रहे. उस दिन शिवपाल और अखिलेश की बातों में तल्खी और नोक-झोंक जैसी तस्वीर भी उभरती नजर आई. शिवपाल ने समाजवाद की समझ को लेकर अखिलेश पर तंज कसा तो जवाबी भाषण में अखिलेश ने बता दिया कि उन्हें समाजवाद की बेहतर समझ है, फिर भी वो मुलायमवाद में यकीन रखते हैं. बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन लाख टके का सवाल ये है कि आखिर अखिलेश और नेताजी के बीच बाहरी अमर सिंह की घुसपैठ को किस रूप में देखा जाए?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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