धरतीपुत्र, मुल्ला मुलायम, नेताजी... मुलायम सिंह यादव को कैसे मिले ये नाम, जानिए
समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संरक्षक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. राजनीति में मुलायम सिंह को धरतीपुत्र, नेताजी, मुल्ला मुलायम जैसे कई नामों से जाना जाता था. वहीं, उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए थे, जो विवादित भी रहे थे. आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ किस्से...
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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उनके बेटे अखिलेश यादव ने उनके निधन की जानकारी ट्वीट के जरिये दी. 10 बार विधायक और 7 बार लोकसभा सांसद चुने गए मुलायम सिंह यादव को यूपी की सियासत में एमवाई समीकरण का जनक कहा जाता था. मुलायम ने अपने राजनीतिक विरोधियों को कई बार धूल चटाई. मुलायम सिंह यादव को धरतीपुत्र, नेताजी, मुल्ला मुलायम जैसे कई नामों से जाना जाता था. आइए जानते हैं इन नामों के पीछे जुड़े किस्सों के बारे में...
मुलायम सिंह यादव यूपी से लेकर केंद्र की राजनीति तक में सक्रिय रहे.
सर्वहारा राजनीति ने बनाया 'धरतीपुत्र'
मुलायम सिंह यादव को हमेशा जमीन से जुड़ा नेता कहा जाता रहा. और, इसी खासियत ने उन्हें 'धरतीपुत्र' का खिताब दिलाया. मुलायम सिंह यादव ने महज 14 साल की उम्र में राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर नहर रेट आंदोलन में हिस्सा लिया था. साधारण से किसान परिवार से आने वाले मुलायम उन दिनों पहलवानी करते थे. और, उसी दौरान उन्हें चौधरी नत्थू सिंह यादव के रूप में अपना राजनीतिक गुरु मिला. वैसे, राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह यादव शिक्षक थे. उन्होंने सभी जातियों को बच्चों को बिना भेदभाव के पढ़ाया.
सामाजिक कार्यों में रुचि रखने वाले मुलायम सिंह यादव ने शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा. उनके गुरू चौधरी नत्थू सिंह यादव ने ही 1967 में युवा मुलायम सिंह यादव को जसवंत नगर की सीट से अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. और, विधायक बनने के बाद उन्होंने जातीय छूआछूत के खिलाफ मुखरता से अपनी आवाज बुलंद की. मुलायम सिंह यादव ने अनुसूचित जातियों के लिए सीटें आरक्षित करवाई थीं. समाजवादी विचारधारा के चलते लोगों ने मुलायम सिंह यादव को 'धरतीपुत्र' कहना शुरू कर दिया.
साधारण शिक्षक से ऐसे बने 'नेताजी'
मुलायम सिंह यादव उन दिग्गज जमीनी नेताओं के तौर पर पहचान रखते थे, जिन्होंने अपने दम पर राजनीति में अपना मुकाम हासिल किया. मुलायम को यूपी की राजनीति में पिछड़ी जातियों के नेता के तौर पर पहचान मिली. और, मुलायम ने पहलवानी के अखाड़े में सीखे गए अपने सियासी दांवों से विरोधियों को पस्त कर दिया. राजनीति में आने से पहले कुश्ती करने वाले पहलवान मुलायम सिंह यादव को साइकिल से चलने की आदत थी. कहा जाता है कि सैफई समेत आसपास के कई गांवों के लोगों को नेताजी उनके नाम से जानते थे. जिस तरह से एक शिक्षक अपने शिष्यों के नाम कभी नहीं भूलता है. उसी तरह नेताजी भी अपने एक-एक कार्यकर्ता को उसके नाम से जानते थे. 1992 में समाजवादी पार्टी के बनने से पहले मुलायम कई सियासी दलों में रहे और इसी दौरान उन्हें नेताजी के तौर पर संबोधन मिला. मुलायम सिंह यादव के समाजवादी पार्टी के साथ ही विपक्षी दलों भी नेताजी ही कहते थे.
कारसेवकों पर गोलियां चलीं और बन गए 'मुल्ला मुलायम'
90 के दशक में श्रीराम जन्मभूमि का आंदोलन जोरों पर था. भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने देश में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की अलख जगा दी थी. उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. मुलायम ने ऐलान कर दिया था कि उनके रहते बाबरी मस्जिद को कुछ नहीं होगा. और, कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता है. लेकिन, 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या में कारसेवकों की भारी भीड़ जमा हो गई. कारसेवकों की अनियंत्रिण भीड़ बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने लगी. जिसके बाद सीएम मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का सख्त फैसला लिया. इस फायरिंग में एक दर्जन से ज्यादा कारसेवकों की मौत हो गई थी.
मुलायम सिंह यादव पर आरोप लगे कि उन्होंने मस्जिद बचाने के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवा दीं. और, उनकी छवि एक हिंदू विरोधी नेता की बन गई. हिंदूवादी संगठनों ने मुलायम के गोली चलवाने वाले आदेश के सहारे उनका नामकरण 'मुल्ला मुलायम' कर दिया. और, उनकी छवि एक मुस्लिम परस्त नेता की बन गई. लंबे समय तक मुलायम सिंह अपनी इस छवि से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते रहे. 2013 में मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि उन्हें कारसेवकों पर गोली चलवाने का अफसोस रहेगा. लेकिन, इसके बावजूद मुलायम अपनी इस छवि से बाहर नहीं निकल पाए.
नकलचियों को सरकारी 'कानूनी'
1991 में उत्तर प्रदेश के सीएम कल्याण सिंह ने यूपी बोर्ड की 10 वीं और 12 वीं की परीक्षाओं में नकल रोकने के लिए 'नकल अध्यादेश' लागू किया था. जिसके तहत नकल करना और कराना दोनों को अपराध घोषित कर दिया गया था. इस अध्यादेश को इतनी सख्ती से लागू किया गया था कि 1992 की हाईस्कूल में 14.70 फीसदी और इंटर में 30.30 फीसदी नतीजा ही आया था. लेकिन, सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने इसका जमकर विरोध किया. 1993 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने 'नकल अध्यादेश' को सियासी मुद्दा बनाते हुए बसपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था.
गठबंधन सरकार बनने के बाद मुलायम सिंह यादव ने बाकायदा मंच से अपने राजनीतिक मुद्दे को पूरा किया था. कहा जाता है कि मुलायम ने मंच पर ही फाइल मंगाकर नकल अध्यादेश को रद्द किया था. कहना गलत नहीं होगा कि मुलायम ने नकल को गैर-कानूनी से कानूनी बना दिया था. वैसे, लोग आज तक गर्व से कहते हैं कि हमने कल्याण सिंह के शासन में परीक्षा पास की थी. क्योंकि, उस दौरान सख्ती के चलते करीब 17 फीसदी छात्रों ने परीक्षा बीच में ही छोड़ दी थी. वैसे, मुलायम सिंह के इस फैसले को लेकर बहुत से लोग उनसे खफा भी हुए थे.
स्कूलों में अंग्रेजी कर दी थी 'बैन'
पहली बार सीएम बने मुलायम सिंह यादव लोकलुभावन राजनीति के लिए जाने जाते थे. नकल का समर्थन करने वाले मुलायम का अंग्रेजी से भी जमकर बैर रहा. 1990 में मुलायम सिंह यादव ने अंग्रेजी को एक अभिषाप बताने के साथ कहा था कि इसकी वजह से लोगों में भ्रष्टाचार बढ़ रहा है. नेताजी ने उदाहरण दिया था कि गांव के लोग अंग्रेजी में पढ़े-लिखे शहरी लोगों की तुलना में कम भ्रष्टाचारी होते हैं. मार्च, 1990 में मुलायम सिंह यादव ने सरकारी कामकाज में अंग्रेजी के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. यह मामला तब और बिगड़ गया था, जब इस फैसले को उनके अंग्रेजी विरोध की पहली सीढ़ी के तौर पर देखा गया.
दरअसल, इस आदेश के बाद संभावना बढ़ गई कि यूपी के करीब 1500 अंग्रेजी माध्यमों के पब्लिक और मिशनरीज स्कूलों को बंद करने का काम तेजी से किया जाने वाला है. और, कुछ ही दिनों में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने स्कूलों में अंग्रेजी को बैन करने का आदेश भी निकाल दिया. हालांकि, भारी दबाव के बाद ये फैसला वापस ले लिया गया. समाजवादी पार्टी के नेता का अंग्रेजी विरोध खत्म नहीं हुआ. 2009 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बाकायदा अपने घोषणापत्र में अंग्रेजी और कंप्यूटर की शिक्षा को खत्म करने ऐलान किया था.
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