माय नेम इज केजरीवाल - 'दिल्ली के मालिक हम हैं, न कि नौकरशाह'
दिल्ली में गेस्ट टीचर की नौकरी पक्की करने के लेकर मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल फिर आमने सामने हैं. केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली के असली बॉस वही हैं. मगर बात इतनी ही नहीं है.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने पुराने फॉर्म में लौट आये हैं. काफी दिनों से सोशल मीडिया पर लोग हैरान थे कि वो खामोश क्यों हैं? अब उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है, वो एक बार फिर से आक्रामक मोड में नजर आ रहे हैं. दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल का वही रूप दिखा जिसके लिए वो जाने जाते रहे हैं. विरोधियों को उन्होंने खूब खरी खोटी सुनायी और मर्यादा की भी परवाह नहीं की.
दरअसल, केजरीवाल अतिथि शिक्षकों की नौकरी पक्की करने के लिए आगे आये हैं, लेकिन उपराज्यपाल उनकी राह में हमेशा की तरह रोड़ा बन कर खड़े गये हैं. वैसे ये ऐसा मुद्दा उठाया है जिस पर विपक्षी बीजेपी भी बैकफुट पर नजर आ रही है, लेकिन केजरीवाल के निशाने पर उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी उप राज्यपाल ही हैं. जंग पुरानी है, भले ही एलजी का नाम बदला हुआ है - अनिल बैजल.
मैं हूं मुख्यमंत्री...
गेस्ट टीचर का मामला 'शिक्षा' से 'जुड़ा' है या सर्विस से? दिल्ली के मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के बीच ताजा तकरार का मसला यही है. दिल्ली में करीब 17 हजार गेस्ट टीचर हैं. दिल्ली सरकार ने इनमें से करीब 15 हजार की नौकरी पक्की कर देने का मसौदा तैयार किया. केजरीवाल सरकार ने पहले घोषणा की और फिर 4 अक्टूबर को ध्वनि मत से ये बिल पास भी कर दिया. नियम के अनुसार अब इस बिल पर उपराज्यपाल की मंजूरी मिलना जरूरी है.
बिल पर बवाल तभी शुरू हो गया जब इसके विधानसभा में पेश होने से एक दिन पहले उपराज्यपाल अनिल बैजल की ओर से एक बयान जारी किया गया. बयान में केजरीवाल सरकार को बिल पर पुनर्विचार करने की सलाह दी गयी और कहा गया कि ये मामला उनके या दिल्ली विधानसभा के दायरे में नहीं आता.
सुन रहा है ना तू...
केजरीवाल का कहना है कि अतिति शिक्षकों की फाइल इधर से उधर आती जाती रही लेकिन उसे एक बार भी मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम को नहीं दिखाया गया. मुख्यमंत्री का आरोप है कि पूछे जाने पर सुनने को मिलता है कि एलजी यानी उपराज्यपाल ने फाइल दिखाने से मना किया है. इसके साथ ही केजरीवाल गुस्से में आपे से बाहर हो गये. केजरीवाल ने शाहरुख खान की फिल्म माय नेम इज खान की स्टाइल में डायलॉग भी बोला.
केजरीवाल का सवाल था - फाइलों में क्या गोपनीय बातें हैं, जो हमें नहीं दिखाई जा सकतीं? हमारे साथ ऐसा बर्ताव क्यों किया जा रहा है? क्या हम आतंकवादी हैं?
फिर बोले, "मैं दिल्ली का चुना हुआ मुख्यमंत्री हूं, मैं आतंकवादी नहीं हूं." यही बात उन्होंने मनीष सिसोदिया के संदर्भ में भी कही.
सिसोदिया ने भी साफ तौर पर कहा - "हम एलजी से सहमत नहीं हैं कि ये बिल सर्विसेज के अंडर आता है. एजुकेशन का मतलब सिर्फ स्कूल बनाना नहीं है."
केजरीवाल ने एक ही तीर से सारे निशाने साधने की भी कोशिश की - "दिल्ली के मालिक हम हैं, न कि नौकरशाह." केजरीवाल की इस बात पर आम आदमी पार्टी के विधायकों ने मेज थपथपाकर उनका स्वागत किया. बाद में सिसोदिया ने एक ट्वीट भी किया.
Another powerful line by @ArvindKejriwal in @DelhiAssembly - ''ब्यूरोक्रेसी से नहीं चलता देश, डेमोक्रेसी से चलता है...'' pic.twitter.com/nicsqTnJo6
— Manish Sisodia (@msisodia) October 4, 2017
फिर भूले मर्यादा
बिल पर बहस के दौरान विपक्ष के नेता विजेंदर गुप्ता ने सरकार को घेरने की कोशिश की. गुप्ता ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार का मकसद गेस्ट अध्यापकों को नियमित करना नहीं है, वो सिर्फ इस मुद्दे पर राजनीति करना चाहती है. विजेंदर गुप्ता का कहना रहा कि बिल पेश करने से पहले नियमों का ठीक से पालन नहीं किया गया.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक सदन में केजरीवाल ने उपराज्यपाल की गरिमा का भी ख्याल नहीं रखा. उपराज्यपाल का नाम तो उन्होंने नहीं लिया लेकिन बिल को लेकर एलजी को टारगेट करते हुए बोले - ‘तू पास करता क्यों नहीं?’
सियासी मुस्कान के भी मायने होते हैं...
बिल को लेकर केजरीवाल उपराज्यपाल से बेहद खफा नजर आये. कहते रहे - एलजी साहब हैं. बड़े आदमी हैं. कहते हैं कि ये सेवा से जुड़ा मामला है, जो उनकी सरकार के अधीन नहीं आता, जबकि ये शिक्षा से जुड़ा मामला है, जो अधीन आता है.
एक बार तो केजरीवाल ने ललकारते हुए कहा, "अधिकारियों के पीछे रहकर राजनीति करना बंद करें. मर्द के बच्चे हैं तो सामने आकर राजनीति करें."
विजेंदर गुप्ता के साथ साथ बीजेपी विधायक मनजिंदर सिंह सिरसा ने भी इस मुद्दे पर उल्टे सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि सरकार अगर संवैधानिक औपचारिकताएं पूरी कर ये बिल सदन रखी होती तो ये पास हो जाता और शिक्षकों के घर जश्न का माहौल होता. आरोप भी जड़ दिया कि सरकार की नीयत ही साफ नहीं है कि अतिथि शिक्षक नियमित हो पायें.
असली बॉस कौन?
दिल्ली सरकार का असली मुखिया कौन है, इस पर अब भी अदालत के फैसले का इंतजार है. दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इस मामले की सुनवाई इसी महीने 10 अक्टूबर से सु्प्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ करने जा रही है. दिल्ली हाई कोर्ट ने 2016 में साफ कर दिया था कि उपराज्यपाल ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं और राजधानी के शासन में उनका फैसला अंतिम माना जाएगा.
दिल्ली सरकार की याचिका में कहा गया है कि उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करने के लिए बाध्य हैं. दलील है कि सरकार दिल्ली की जनता द्वारा चुनी गयी है.
बीजेपी का कहना है कि नियमों का पालन कर बिल तैयार किया गया होता तो पास हो जाता. केजरीवाल का कहना है कि अतिथि शिक्षकों की भलाई के लिए अगर आम आदमी पार्टी और बीजेपी मिल जाएं तो हफ्ते भर में सबकी नौकरी पक्की हो सकती है. उपराज्यपाल कह रहे हैं कि उनके पास ऐसा अधिकार ही नहीं है.
तो क्या मकसद हंगामा करना ही है? बीजेपी को मालूम है कि मामला अतिथि अध्यापकों का है जिस पर वो बहुत सवाल भी नहीं खड़ी कर सकती. मुश्किल ये भी है कि बीजेपी भला आप की सरकार को इतना बड़ा क्रेडिट कैसे लेने दे. यही वजह है कि सरकार को घेरने के लिए वो इधर उधर बातें घुमा रही है.
केजरीवाल और उनकी टीम जानती है कि अतिथि शिक्षकों का मामला ऐसा है जिस पर लड़ कर वो फिर से हीरो बन सकते हैं. लेकिन ये सब इतना आसान तो है नहीं. सुप्रीम कोर्ट से फैसला आये बगैर फिलहाल तो कुछ भी नहीं होने वाला.
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