सुषमा स्वराज की विरासत संभालने के लिए S Jaishankar से बेहतर कोई नहीं हो सकता था!
नए विदेश मंत्री S Jaishankar को सुषमा स्वराज की जगह लेने के लिए चुना गया है. मोदी सरकार का ये फैसला बिलकुल सही है, लेकिन नए विदेश मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती विदेश नीति के साथ-साथ कुछ और ही है..
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नरेंद्र मोदी सरकार के नए मंत्रियों की लिस्ट में जिस सर्प्राइज की बात हो रही थी वो मिल गया है. Subrahmanyam Jaishankar जिन्हें S Jaishankar के नाम से भी जाना जाता है वो अब भारत के नए विदेश मंत्री बन चुके हैं. Sushma Swaraj की जगह विदेश मंत्री का कार्यभार संभालने वाले सुब्रमणयम जयशंकर के सामने कई चैलेंज आएंगे. सुब्रमणय जयशंकर को एक काबिल राजनयिक के तौर पर जाना जाता है. पर एक कैबिनेट मिनिस्टर के तौर पर उनका पोर्टफोलियो बेहद आकर्षक रहने वाला है. कैबिनेट मंत्री के तौर पर Modi Sarkar 2 में उनकी नियुक्ति ये साबित करती है कि वो काबिल होने के साथ-साथ मोदी के भरोसेमंद आदमी भी हैं. उन्हें क्राइसिस मैनेजमेंट के लिए जाना जाता है. वो देश के सबसे लंबे समय तक रहने वाले विदेश सचिव रहे हैं. यहां उनके अनुभव की जरूरत बहुत है क्योंकि US-China Trade War के चलते लगभग सभी देशों पर उसका असर पड़ रहा है.
एस जयशंकर को राजनीतिक विरासत अपने पिता K Subrahmanyam से मिली है जिनकी गिनती देश के सबसे अच्छे कूटनीतिक विश्लेषकों में होती है. परिवार में दो भाई भी हैं. एस सुब्रमणयम जो एक जाने माने इतिहासकार हैं और एस विजय कुमार जो भारत के ग्रामीण विकास सचिव रह चुके हैं. मोदी सरकार का भरोसा उनपर कितना है ये इसी बात से समझा जा सकता है कि सरकार बनने के महज आठ महीने के भीतर ही मोदी सरकार ने साल 2015 में तत्कालीन विदेश सचिव सुजाता सिंह को पद से हटाकर एस जयशंकर को नियुक्त किया था. इस मामले को लेकर विवाद भी हुआ था क्योंकि सुजाता यूपीए सरकार के समय से इस पद पर थीं.
मोदी सरकार के JNU से पढ़े हुए मंत्रियों की लिस्ट में एस जयशंकर का नाम भी शामिल है. वो दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से M.Phil और राजनीतिक विज्ञान में एमए कर चुके हैं साथ ही अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में JNU से पीएचडी भी की है. जयशंकर की पत्नी क्रोयो जापान से हैं. किसी भी देश के विदेश मंत्री को अगर कई भाषाएं आती हैं तो ये बेहतर होता है, जयशंकर को अंग्रेजी और हिंदी के अलावा, तमिल, जापानी, हंगैरियन, मैंड्रियन और रशियन भाषा भी आती है. विदेशी राजनयिकों से वार्तालाप करते समय ये काबिलियत अच्छी हो सकती है.
सुषमा स्वराज की विरासत संभालने के लिए इनसे बेहतर मंत्री नहीं मिल सकता था.
विदेश मंत्रालय की मुश्किलें जिन्हें सुधारेंगे S Jaishankar...
विदेश मंत्रालय भारत के सबसे अहम मंत्रालयों में से एक है. न सिर्फ अमेरिका और चीन की ट्रेड वॉर बल्कि ईरान पर लगे सैंक्शन जिसके कारण भारत ने ईरान से तेल का आयात कम कर दिया है और साथ ही साथ सीमावर्ती मुद्दों को लेकर भी ये समय बहुत गंभीर बना हुआ है. पाकिस्तान से राजनयिक रिश्ते बेहद खराब हो चुके हैं. ऐसे में विदेश मंत्रालय के सामने कड़ी चुनौतियां हैं.
जयशंकर का अनुभव उन्हें इस काम के लिए उपयुक्त बनाता है. जयशंकर चीन और अमेरिका में सबसे लंबे समय तक राजनयिक के तौर पर रह चुके हैं. वॉशिंगटन के साथ कई अहम मुद्दे सुलझा चुके हैं. इसमें सिविल न्यूक्लियर डील और देवियानी खोब्रागडे वाला केस भी शामिल है. दोनों ही मामलों में एस जयशंकर की सूझ-बूझ काफी काम आई है. अमेरिका के साथ उनका रिश्ता 1980 के दशक का ही है. 1981 से ही वो अमेरिका में किसी न किसी पद पर मौजूद हैं. 1985 में वो पहले ऐसे भारतीय सेक्रेटरी बने जो वॉशिंगटन में भारतीय दूतावास में राजनीतिक मुद्दे देखते थे.
क्योंकि अमेरिका में दोबारा चुनाव होने हैं और अमेरिका-भारत के रिश्ते और व्यापार को लेकर नए सिरे से बात हो सकती है ऐसे में जयशंकर की काबिलियत काम आ सकती है. यही हाल चीन के साथ भी है. डोकलाम विवाद के बाद सुषमा स्वराज की जगह दूसरे मंत्री को ऐसा ही बनना था जो ये सब संभाल सके.
वो इंडो-जापान व्यापारिक रिश्तों को भी जयशंकर ने ही संभाला है. ये उस समय की बात है जब पोखरण 2 के कारण रिश्तों में खराबी आ गई थी. साथ ही, इंडो सिंगापुर आर्थिक रिश्तों को संभालने में भी जयशंकर का बहुत बड़ा हाथ रहा है.
जयशंकर पहले ऐसे विदेश सचिव रहे हैं जो मोदी के साथ हिंद महासागर देशों, कनाडा, साउथ कोरिया, अफ्रीका, वेस्ट एशिया, साउथईस्ट एशिया आदि जा चुके हैं. पीएम मोदी जयशंकर पर भरोसा भी करते हैं और अच्छा व्यवहार भी रखा है. 2012 में जब मोदी गुजरात के चीफ मिनिस्टर के तौर पर चीन गए थे तब उनकी जयशंकर से पहली मुलाकात हुई थी. जयशंकर ने उस समय कई चीनी दिग्गजों से मोदी की मीटिंग सेट की थी ये तब था जब मोदी जाने-माने वर्ल्ड लीडर नहीं थे. जयशंकर को अपने काम के लिए पद्मश्री अवॉर्ड भी मिल चुका है.
S Jaishankar की सबसे बड़ी चुनौती तो अपने नागरिकों में विश्वास जगाने की है...
S Jaishankar का जो पोर्टफोलियो है उससे उन्हें विदेशी रिश्ते स्थापित करने में बहुत मुश्किलें नहीं होंगी. अनुभव कहीं न कहीं तो काम आएगा ही. सबसे ज्यादा मुश्किल होगी सुषमा स्वराज की विरासत को संभालने में. सुषमा स्वराज वो महिला हैं जिन्होंने कई लोगों को ये बताया कि विदेश मंत्रालय का आखिर काम क्या होता है. अकेली ऐसी महिला जिसकी एक ट्वीट से भी पाकिस्तान के मंत्रियों के कान खड़े हो जाते थे.
उन्हें सुषमा स्वराज की तरह देश का मंत्री बनना होगा जो एक ट्वीट करने पर भी किसी भी देश में रह रहे भारतीय नागरिक (NRI) को मुश्किल से निकालने का काम करती थीं. किसी को समस्या नहीं होने देती थीं और विदेश में रह रहे भारतीय भी ये जानते थे कि उन्हें सुषमा स्वराज से बेहतर कोई नहीं मिल सकता. विदेश में रहने वाली भारतीय नागरिक भी स्वराज पर पूरा भरोसा करते थे. जिन्हें पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं की भी उतनी ही चिंता होती थी. एस जयशंकर के लिए ये काम सबसे ज्यादा मुश्किल होगा.
We will truly miss you @SushmaSwaraj ma’am. What an amazing political journey! #Respect #Inspiration pic.twitter.com/MTQltAvHRO
— Gautam Tandon (@TheGautamTandon) May 30, 2019
एक ऐसी मंत्री जो पद छोड़ने पर भी ट्विटर पर ट्रेंड करने लगती है. एक ऐसी मंत्री जो एक ट्वीट करने पर भी हरकत में आ जाती थी, एक ऐसी मंत्री जिसने देश के रिश्ते अन्य देशों से सुधारने में बेहद अहम किरदार निभाया है. ये है सुषमा स्वराज की शख्सियत जिसे Organisation of Islamic Cooperation (OIC) में बतौर चीफ गेस्ट बुलाया जाता है.
सुषमा स्वराज मोदी सरकार का चेहरा थीं और वो अपने दबंग व्यक्तित्व के साथ सरल काम करने के तरीके के लिए जानी जाती थीं. देश-विदेश के कई दिग्गज उनकी इज्जत करते थे. कई लोग तो ऐसे हैं जिन्हें विदेश मंत्रालय का मतलब सुषमा स्वराज ही लगता था. एस जयशंकर के सामने सबसे बड़ी दिक्कत उसी विरासत को संभालने की होगी.
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