मोदी सरकार 2.0 में अल्पसंख्यकों पर वो बात पिछले 5 साल में छूट गई थी!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के अल्पसंख्यकों (minorities) को साथ लेकर चलने की बात पर खास जोर दिया है. संकेत साफ है नयी पारी में सबको साथ लेकर चलने पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा, ताकि NDA का भविष्य उज्ज्वल रहे.
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प्रचंड जनादेश हासिल करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा संकेत दिया है. जनादेश को जाति और धर्म की राजनीति के खिलाफ बता चुके प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि देश के लोगों बड़ी जिम्मेदारी दी है और उसे सबको मिल कर निर्वहन करना है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि गरीबों की ही तरह इस देश में अल्पसंख्यकों के साथ छल हुआ है और उसे खत्म करना है. साथ ही, प्रधानमंत्री ने अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की बात कही है. बीते दिनों में गौरक्षकों के हमलों को लेकर भी प्रधानमंत्री ने कई बार बयान दिये थे - लेकिन ताजा इशारा ये है कि अब सिर्फ बातें ही नहीं होंगी बल्कि उन पर अमल भी होगा.
NDA का नेता चुने जाने के बाद चुन कर आये सदस्यों को प्रधानमंत्री मोदी ने कई तरह की सलाहियत और नसीहत दी. प्रधानमंत्री मोदी ने नये सदस्यों को समझाने की कोशिश की कि जैसे भी मुमकिन हो वो मीडिया के झांसे में आने से तो बचें ही, दिल्ली के दलालों से भी बचने की कोशिश करें और वीआईपी कल्चर से दूर रह कर सेवा भाव का आदत डाल लें.
सबका साथ, सबका विकास, 'सबका विश्वास'
आम चुनाव के नतीजों के दिन 23 मई को गोंडा जिले के एक मुस्लिम परिवार में बच्चे का जन्म हुआ. घर में आई खुशी की खबर जब मेहनाज ने फोन पर दुबई में रह रहे शौहर को को बताया तो दूसरी छोर से जो बात सुनने को मिली वो अपनेआप में नायाब रही - "नरेंद्र मोदी आये हैं क्या?"
फिर क्या था मां मेहनाज ने बेटे का नाम 'नरेंद्र दामोदरदास मोदी' रखने का फैसला किया और इसके लिए पति के साथ साथ पूरे परिवार को मनाया. आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक मेहनाज ने बच्चे के नामकरण का शपथपत्र बनवा कर जिलाधिकारी कार्यालय में जमा भी करा दिया है. मेहनाज के लिए मोदी की जीत और बच्चे के जन्म से घर की खुशी दोगुनी हो गयी है.
'नरेंद्र मोदी आये हैं क्या?'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर से चुन कर आये बीजेपी सांसदों को संबोधित करते हुए कहा कि पांच साल तक गरीबों के लिए सरकार चलायी गयी और अब ये सरकार गरीबों ने ही बनायी है.
कांग्रेस शासन में 'गरीबी हटाओ' के नारे की ओर इशारा करते हुए मोदी ने कहा, 'देश में गरीब एक राजनीतिक संवाद-विवाद का विषय रहा... एक फैशन का हिस्सा बन गया... भ्रमजाल में रहा. पांच साल के कार्यकाल में हम कह सकते हैं कि हमने गरीबों के साथ जो छल चल रहा था, उस छल में हमने छेद किया है और सीधे गरीब के पास पहुंचे हैं.'
गरीबों के जिक्र में ही प्रधानमंत्री मोदी ने देश के अल्पसंख्यकों को भी जोड़ दिया. प्रधानमंत्री ने कहा, 'गरीबों के जैसे ही अल्पसंख्यकों के साथ भी छल किया गया... उन्हें डराकर रखा गया... अच्छा होता उनका विकास होता. उन्हें केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया.'
1857 की क्रांति में हर कौम की हिस्सेदारी का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने जो बात कही वो बेहद अहम है और उसके मायने समझने होंगे - 'हमें उनका विश्वास जीतना है.'
प्रधानमंत्री ने कहा, 'संविधान को साक्षी मानकर हम संकल्प लें कि देश के सभी वर्गों को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है... पंथ-जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.'
2014 के अपने स्लोगन 'सबका साथ, सबका विकास' को आगे बढ़ाते हुए मोदी ने नया मंत्र भी दिया है - 'सबका साथ, सबका विकास और अब सबका विश्वास ये हमारा मंत्र है.'
भारतीय मतदाता किसी के प्रभाव में नहीं आता
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान देश भ्रमण के दौरान लगा कि ये चुनाव अभियान नहीं था बल्कि एक प्रकार से तीर्थयात्रा थी. मोदी ने कहा, 'मेरे जीवन के कई पड़ाव रहे, इसलिए मैं इन चीजों को भली-भांति समझता हूं, मैंने इतने चुनाव देखे, हार-जीत सब देखे, लेकिन मैं कह सकता हूं कि मेरे जीवन में 2019 का चुनाव एक प्रकार की तीर्थयात्रा थी.'
बीजेपी सांसदों के मेजें थपथपाने के बीच मोदी ने एक दिलचस्प बात भी कही, '2014 के मुकाबले हमारा वोट शेयर 25 फीसदी बढ़ा... अमेरिका के चुनाव में ट्रंप को जितने वोट मिले थे उतना हमारा इंक्रीमेंट हैं... 17 राज्यों के मतदाताओं ने 50 फीसदी से ज्यादा वोट दिया.'
अब तो समझ लेना चाहिये कि चुनाव प्रचार खत्म करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी केदारनाथ क्यों गये थे - दरअसल, वो तीर्थयात्रा की पूर्णाहुति रही. है कि नहीं?
आचार्य विनोबा भावे को याद करते हुए मोदी बोले, 'विनोबा भावे कहते थे कि चुनाव बांट देता है. दीवार खड़ी कर देता है, लेकिन 2019 के चुनाव ने सभी दीवारें गिरा दी हैं. इस चुनाव ने दिलों को जोड़ने काम किया है. ये चुनाव सामाजिक एकता का आंदोलन बन गया है.'
बीजेपी नेताओं को वीआईपी कल्चर से दूर रहते हुए सेवा भावना विकसित करने की अपील करते हुए मोदी ने कहा, 'भारत के लोकतंत्र को हमें समझना होगा... भारत का मतदाता, भारत के नागरिक के नीर, क्षीर, विवेक को किसी मापदंड से मापा नहीं जा सकता है... हम कह सकते हैं सत्ता का रुतबा भारत के मतदाता को कभी प्रभावित नहीं करता है. सत्ताभाव भारत का मतदाता कभी स्वीकार नहीं करता है.'
मोदी ने आगे कहा, 'हम न हमारी हैसियत से जीतकर आते हैं, न कोई वर्ग हमें जिताता है, न मोदी हमें जिताता है. हमें सिर्फ देश की जनता जिताती है. हम जो कुछ भी हैं मोदी के कारण नहीं, जनता जनार्दन के कारण हैं. हम यहां अपनी योग्यता के कारण नहीं हैं, जनता जनार्दन के कारण हैं.'
कुछ भी बोल देते हो!
प्रधानमंत्री मोदी ने देश के बड़बोले नेताओं को भी इशारों इशारों में ढेरों सलाह दी. ऐसे नेताओं को भी नसीहत देने की कोशिश की जिन्होंने वोट मांगने के दौरान लोगों को धमकाने वाली वाली बयानबाजी की. मोदी की बात से इशारा मेनका गांधी और साक्षी महाराज जैसे नेताओं की ओर लग रहा था. मोदी ने कहा, 'जनप्रतिनिधियों से मेरा आग्रह रहेगा है कि मानवीय संवेदनाओं के साथ अब हमारा कोई पराया नहीं रह सकता है. इसकी ताकत बहुत बड़ी होती है. दिलों को जीतने की कोशिश करेंगे.'
मोदी के भाषण में बार बार भविष्य के रोड मैप के भी संकेत देखने को मिले, 'जो हमारे साथ थे उनके लिए भी हैं. जनप्रतिनिधि के लिए कोई भेद भाव की सीमा रेखा नहीं होती. जो हमारे साथ थे, हम उनके लिए भी हैं, जो भविष्य में हमारे साथ होंगे हम उनके लिए भी हैं.'
मोदी ने बड़बोले नेताओं को भी समझाने की कोशिश की, 'सुबह सुबह उठ कर कुछ लोग राष्ट्र के नाम संदेश देने को तैयार मिलते हैं. ऐसे छह लोगों को मीडिया के लोग चुन लेते हैं.
मोदी ने आगाह भी किया, 'बड़बोलेपन में लोग कुछ भी बोल देते हैं... कैमरा देखते ही कुछ भी - और मीडिया की दुकान 48 घंटे तक चलती रहती है.' लालकृष्ण आडवाणी की एक सलाह का भी जिक्र किया कि कैसे उन्होंने 'छपास' और 'दिखास' से बचने की सलाह दी थी. आशय अखबार में छपने और टीवी पर दिखने से था.
आखिर में मोदी ने कहा कि ये सब इसलिए बता दिया कि कभी कोई फंसे तो उन्हें ये पछतावा न हो कि पहले से बताया नहीं था.
मीडिया को भी अलग से टारगेट करते हुए मोदी ने कहा, 'देश में बहुत से नरेंद्र मोदी बन गये हैं जिन्होंने मंत्रिमंडल बना दिया है. ये जो मीडिया वाले नाम चला रहे हैं ये सरासर अफवाह फैलाने के लिए कर रहे हैं... अखबार के पन्नों ने मंत्री नहीं बनते... न मंत्री पद जाते हैं.'
आखिरी सलाह, मोदी बोले, 'कृपा करके दिल्ली के सेवाभावी लोगों से सेवामुक्त रहिये... और वीआईपी कल्चर से बचें.'
एक इंटरव्यू की चर्चा करते हुए मोदी ने कहा, 'मैंने कभी कहा था कि मोदी ही मोदी का चैलेंजर है. इस बार मोदी ने मोदी को चैलेंज किया और 2014 के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए.' साफ है मोदी अब देश के समकालीन नेताओं से नहीं बल्कि खुद को वाजपेयी और नेहरू की कतार में खड़ा होने की कवायद में जुट गये हैं - लेकिन 'सबका साथ, सबका विकास' की बातें बहुत हो चुकी है और अब सबसे बड़ा चैलेंज है 'सबका विश्वास' जीतना.
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