करतारपुर के जरिए सिद्धू नई पॉलिटिकल लाइन पर
नवजोत सिद्धू अपने करियर के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. खुद डूबती कांग्रेस ने भी सिद्धू से मुंह मोड़ लिया है - तो क्या अपने लिए कोई नयी राजनीतिक राह चुन रहे हैं - आखिर पाकिस्तान पर वो इतने फोकस क्यों हो गये हैं?
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नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर सुर्खियों में हाजिर हैं. वजह कोई नयी नहीं बल्कि फिर से पाकिस्तान जाने का इरादा ही है. असल में एक बार फिर सिद्धू को पाकिस्तान से न्योता आया है - और सरहद पार जाने के लिए सिद्धू ने विदेश मंत्रालय से अनुमति मांगी है. Kartarpur corridor का उद्घाटन होना है जिसे लेकर सरहद के दोनों तरफ तैयारियां चल रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करतारपुर 8 नवंबर पर भारत में करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन करने वाले हैं.
पाकिस्तान में ये कार्यक्रम 9 नवंबर को होना है और सिद्धू को उसी का बुलावा मिला है - सिद्धू की तरफ से कह दिया गया है कि इजाजत मिली तो वो खुशी खुशी पाकिस्तान जरूर जाएंगे. नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान के प्रति इस कदर प्रेम की वजह क्या हो सकती है? आखिर क्यों चौतरफा हमले झेलने के बावजूद सिद्धू एक बार फिर पाकिस्तान जाने को लेकर खुद को चर्चा में ले आये हैं?
सिद्धू को फिर पाकिस्तान से बुलावा
इमरान खान से क्रिकेट के जमाने की दोस्ती नवजोत सिंह सिद्धू पर कहर बन कर टूट पड़ी जब वो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. इमरान खान के बुलावे पर नवजोत सिंह सिद्धू इस्लामाबाद गये और एक ऐसी हरकत कर डाली जो हर भारतीय को बहुत ही बुरी लगी. तब से लेकर अब तक सिद्धू उस एक ही वाकये का खामियाजा किसी न किसी रूप में भुगतते आ रहे हैं. वैसे किसी और ने नहीं, बल्कि खुद सिद्धू ने ही अपने बयानों से अपनी राजनीति के पाकिस्तानी पक्ष को चर्चा में रखा हुआ है.
नवजोत सिंह सिद्धू ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को पत्र लिख कर पाकिस्तान यात्रा की अनुमति मांगी है. सिद्धू ने विदेश मंत्री के साथ साथ पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी एक चिट्ठी लिखी है.
विदेश मंत्री को लिखे पत्र में सिद्धू ने लिखा है, 'एक सिख होने के नाते अपने महान गुरु बाबा नानक के प्रति श्रद्धा समर्पित करने का सम्मान मिलना और अपनी जड़ों से जुड़ने का एक ऐतिहासिक मौका है. इस खास अवसर पर पाकिस्तान यात्रा के लिए मुझे इजाजत दी जाये.'
सिद्धू की राजनीति को तिनके की तलाश है...
पंजाब के मुख्यमंत्री से भी सिद्धू की गुजारिश है, 'आपको ध्यान दिलाना चाहता हूं कि पाकिस्तान सरकार ने मुझे श्री करतारपुर साहिब कॉरिडोर के कार्यक्रम में बुलाया है. इसलिए मुझे इस मौके पर पाकिस्तान जाने की अनुमति प्रदान की जाये.'
सिद्धू इमरान खान के शपथग्रहण के मौके पर पाकिस्तान गये थे और तभी उनके पाकिस्तानी आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के साथ गले मिलने की तस्वीर वायरल हो गयी - फिर तो बीजेपी ने सिद्धू से सफाई मांग डाली और सोशल मीडिया पर सिद्धू को ट्रोल किया जाने लगा.
फिर भी सिद्धू ने अफसोस जताने की जगह बार बार खुद को सही साबित करने की कोशिश की. नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस नेतृत्व भी सिद्धू से दूरी बनाने लगा - और आखिरकार सिद्धू को अमरिंदर कैबिनेट को अलविदा करना पड़ा.
कांग्रेस नेतृत्व की बेरूखी सिद्धू को ले डूबी है
इमरान खान से दोस्ती और जनरल बाजवा से गले मिलने के बाद सिद्धू की बनी राष्ट्र विरोधी छवि के चलते हाल के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस नेताओं ने पहले ही विरोध शुरू कर दिया था. हरियाणा कांग्रेस के नेताओं की दलील रही कि लोकसभा चुनाव के दौरान रोहतक में सिद्धू की रैली में पाक विरोधी नारे और एक महिला का चप्पल फेंकना भी कांग्रेस की हार का बड़ा कारण रहा.
कांग्रेस में नवजोत सिंह सिद्धू की आखिरी बार चर्चा दिल्ली PCC अध्यक्ष को लेकर हुई थी. अब तो वहां भी सिद्धू के लिए रास्ता बंद हो चुका है. सुभाष चोपड़ा फिर से दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बन चुके हैं और कीर्ति आजाद को चुनाव अभियान समिति का प्रभारी बना दिया गया है. पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह कैबिनेट से इस्तीफे के बाद से नवजोत सिंह सिद्धू की राजनीतिक की कोई चर्चा नहीं होती.
जुलाई, 2019 में सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. अगले ही दिन ट्वीट कर बताया कि बतौर मंत्री मिला बंगला भी वो सरकार को सुपुर्द कर रहे हैं. फिर कुछ दिन बाद सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर ने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा कर दी.
ये बात अलग है कि ट्विटर पर सिद्धू ने कवर फोटो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ वाली लगा रखी है. प्रोफाइल में तो सिर्फ दोनों भाई बहन ही नजर आ रहे हैं - सिद्धू ने खुद को ही अलग कर लिया है.
यादों को संजोये रखने की ये अदा भी कातिल है!
कांग्रेस में किनारे लग चुके नवजोत सिंह सिद्धू के लिए बीजेपी में लौटने के रास्ते तो पहले से ही बंद पड़े हैं. पंजाब चुनाव के वक्त आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के साथ उनकी बातचीत जरूर हुई लेकिन डील पक्की नहीं हो पायी.
देखा जाये तो पंजाब में सिद्धू कैप्टन अमरिंद सिंह के खिलाफ यूं ही नहीं जंग छेड़े हुए थे. ऐसा लग रहा था जैसे राहुल गांधी सिद्धू के जरिये पंजाब कांग्रेस पर कैप्टन अमरिंदर की पकड़ कमजोर करना चाह रहे थे. तभी सिद्धू का पाकिस्तान प्रेम और कैप्टन का खुला विरोध उलटा पड़ने लगा. सिद्धू ने एक चुनावी सीजन में कह डाला था कि उनके कैप्टन तो राहुल गांधी हैं, न कि अमरिंदर सिंह. सिद्धू ने अपनी परेशानियों को लेकर राहुल गांधी से मुलाकात की कोशिश भी कि लेकिन तब तक वो खुद ही कुर्सी छोड़ कर चलते बने. बाद में सिद्धू की अहमद पटेल और प्रियंका गांधी के सामने पेशी हुई. न कुछ होना था, न कुछ हो पाया.
कपिल शर्मा शो को लेकर सिद्धू ने एक बार कहा था कि राजनीति से घर नहीं चलता इसलिए घर चलाने के लिए ये सब करना पड़ता है. कपिल शर्मा शो से पहले ही आउट हो चुके सिद्धू के लिए काफी मुश्किल वक्त चल रहा है. घर चलाने के इंतजाम तो बंद हो ही चुके हैं, राजनीति के भी रास्ते बंद ही नजर आ रहे हैं.
जब सत्ता चली जाती है तो विपक्ष की राजनीति का ही स्कोप बचता है. कांग्रेस तो फिलहाल इसी दौर से गुजर रही है, लेकिन घटते जनसमर्थन के चलते वो भी भारी पड़ रहा है. सिद्धू की बदकिस्मती कहिये कि उनके डूबते राजनीतिक करियर को तो डूबते कांग्रेस का भी सहारा नहीं मिल पा रहा है.
हो सकता है सिद्धू ने पाकिस्तान केंद्रित राजनीति में ही किस्मत आजमाने का फैसला किया हो - तभी तो तमाम विरोधों के बावजूद वो फिर से पाकिस्तान जाने को बेकरार हो चले हैं.
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