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Updated: 13 अक्टूबर, 2015 07:12 PM
नयनतारा सहगल
नयनतारा सहगल
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सेवा में,

श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,

अध्यक्ष, साहित्य कला अकादमी, नई दिल्ली

प्रिय तिवारी जी,

आपको ये पत्र लिख ही हूं 7 अक्टूबर को इंडियन एक्सप्रेस को मेरे बारे में दी गई आपकी टिप्पणी के जवाब में- 'उनकी पुरस्कार विजेता पुस्तक का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है. उन्होंने उससे मुनाफा कमाया. अब वो पुरस्कार की राशि वापस भी कर सकती हैं. लेकिन पुरस्कार से मिली विश्वसनीयता और ख्याति का क्या?'

मैं इस पुरस्कार का बहुत सम्मान करती हूं, लेकिन मेरी 'विश्वसनीयता' एक पेशेवर लेखिका के रूप में 1986 से कई दशकों पहले ही बन चुकी थी, और मुझे वर्षों तक देश-विदेश में ख्याति और पहचान मिली. आपने 'मुनाफे' का जिक्र किया है. 1986 में पुरस्कार की राशि शायद रु. 25,000 रही होगी, लेकिन रू.50,000 से ज़्य़ादा तो नहीं होगी. अपना पुरस्कार लौटा चुके अशोक वाजपेयी से विमर्श करने के बाद मैं एक लाख रुपए का चेक संलग्न कर रही हूं.  

इतने सारे लेखक जो अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं और अकादमी के पद से इस्तीफा दे रहे हैं, उससे ये साफ हो जाता है कि हम सबमें कितनी पीड़ा है कि आप लेखकों की हत्या, उनको दी गई धमकियों, असहमति और बहस पर मंडराते हुए खतरे पर चुप रहे हैं. अभिव्यक्ति की संवतंत्रता के हमारे संवैधानिक अधिकार की रक्षा करने की जिम्मेदारी से क्या साहित्य कला अकादमी ने मुंह मोड़ लिया है?

 

 

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लेखक

नयनतारा सहगल नयनतारा सहगल @nayantara-sahgal

लेखिका सुप्रसिद्ध लेखिका हैं

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