नेहरू से नफरत भूल जाएंगे जब जयललिता के प्रति स्टालिन का सम्मान देखेंगे
देश भर में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और कांग्रेस नेता एक पोस्टर से नेहरू की तस्वीर (Nehru Photo) नदारद होने को लेकर संघ-बीजेपी पर हमला बोल चुके हैं - और तमिलनाडु में एमके स्टालिन (MK Stalin) राजनीतिक दुश्मनी भुलाने की मिसाल पेश कर रहे हैं.
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नेहरू के बिना देश की राजनीति नीरस हो जाती है, जैसे 'जंगलराज' के जिक्र हुए बगैर बिहार में कोई भी चुनाव - और ताजा विवाद नेहरू की तस्वीर (Nehru Photo) के बगैर बने आजादी के अमृत महोत्सव के पोस्टर को लेकर हो रहा है. नया विवाद ICHR यानी भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद के डिटिलट पोस्टर से जुड़ा है. आईसीएचआर ने ये पोस्टर देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में चल रहे आजादी के अमृत महोत्सव के लिए बनाया गया है.
जिस पोस्टर को लेकर विवाद हो रहा है उसमें महात्मा गांधी, भीमराव आंबेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाष बोस, राजेंद्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय, भगत सिंह और विनायक दामोदर सावरकर को स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में दिखाया गया है - लेकिन वहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर नहीं लगी है.
नेहरू की तस्वीर न होने को लेकर भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की तरफ से सफाई भी पेश की गयी है, जिसे कांग्रेस नेता तो हास्यास्पद बता रहे हैं आम लोगों को भी हजम नहीं हो रहा है.
पोस्टर को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ साथ कांग्रेस के कई नेताओं ने भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद को खूब भला बुरा कहा है, लेकिन सबके निशाने पर केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और उसके नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ही लग रहे हैं.
और उसकी पहली वजह तो यही है कि बीजेपी नेतृत्व देश की ज्यादातर समस्याओं के लिए नेहरू को ही जिम्मेदार बताता आया है. हद तो तब हो जाती है जब देश में व्याप्त मौजूदा महंगाई के लिए भी बीजेपी का कोई नेता नेहरू को ही जिम्मेदार बताने लगता है.
विपरीत विचारधारा होने की वजह से ऐसे टकराव स्वाभाविक लगते हैं, लेकिन कई बार चीजें एक तर्कसंगत दायरे से बाहर जाती नजर आती हैं और उसमें बीजेपी के 'कांग्रेस मुक्त भारत' वाले जुमले को हकीकत में भी अमलीजामा पहनाने की कोशिश लगती है - जिसमें निशानियों को मिटाने ज्यादातर कवायद ही नजर आती है.
पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र तक राजनीतिक दुश्मनी सड़क पर उतर आयी लगती है, लेकिन ऐसी गलाकाट राजनीति के लिए जो जमीन करीब पांच दशक तक कुख्यात रही, वहां बदलाव की बयार बहने लगी है.
भले ही ममता बनर्जी के भतीजे को जांच एजेंसियों के नोटिस मिल रहे हों. भले ही उद्धव ठाकरे की सरकार में पुलिस केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के हाथ की थाली हटाकर कस्टडी में ले लेती हो. भले ही नारायण राणे, शिवसेना नेतृत्व के पुराने राज उगलने की धमकी दे रहे हों - लेकिन तमिलनाडु की मौजूदा सरकार के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (MK Stalin) अपनी पूर्ववर्ती जे. जयललिता के सम्मान में कोई कमी नहीं आने दे रहे हैं - अगर राहुल गांधी नेहरू के प्रति नफरत को नजरअंदाज कर चुनावों में अपने गठबंधन पार्टनर डीएमके नेता का ये रुख जरा गौर से देखें तो काफी सुकून मिलेगा.
उफ ये पोस्टर पॉलिटिक्स!
कांग्रेस और बीजेपी की लड़ाई अक्सर ही सावरकर बनाम नेहरू पर जाकर फोकस हो जाती है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी आवाज में पूरी ताकत झोंक कर कहते हैं, 'मैं सावरकर नहीं हूं' - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि अगर जवाहरलाल नेहरू की जगह सरदार वल्लभ भाई पटेल पहले प्रधानमंत्री बने होते तो आज देश की तस्वीर और ही होती.
अब तक तो प्रधानमंत्री मोदी तकरीबन हर मौके पर दावा किया करते थे कि पिछले 70 साल में कुछ हुआ ही नहीं और जो हुआ 'कांग्रेस शासन के पापों का प्रायश्चित करना पड़ रहा है', अब राहुल गांधी का दावा है कि देश ने आजादी के बाद से लेकर सात साल पहले तक जो कमाई की थी, मोदी सरकार उसे बेचने में जुट गयी है. राहुल गांधी का ये रिएक्शन केंद्र सरकार के मोनेटाइजेशन प्रोग्राम को लेकर है - और बीजेपी की तरफ से सवाल उठाया जा रहा है कि राहुल गांधी को मोनेटाइजेशन की समझ तक नहीं है.
कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि केंद्र की बीजेपी सरकार के दबाव में ICHR ने इस पोस्टर में नेहरू को जगह नहीं दी है.
जहां तक आजादी के अमृत महोत्सव वाले पोस्टर में नेहरू की तस्वीर शामिल न किये जाने का मामला है, करीब करीब वैसा ही है जैसे हाल ही में पुलिस सेवा के लिए हुए एक इम्तिहान में पश्चिम बंगाल हिंसा पर राय मांगी गयी थी. ममता बनर्जी और रणदीप सुरजेवाला का आरोप था कि यूपीएससी जैसा संस्थान केंद्र की बीजेपी सरकार के दबाव में ऐसा कर रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, ICHR के डायरेक्टर (शोध और प्रशासन) ओमजी उपाध्याय ने अपनी तरह से तस्वीर साफ करने की कोशिश की है. कहा भी है कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में जवाहर लाल नेहरू के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
ओमजी उपाध्याय का दावा है कि उनकी टीम ने आजादी के अमृत महोत्सव के लिए छह पोस्टर तैयार किये हैं और सभी पोस्टर वेबसाइट पर स्क्रॉल होने थे, लेकिन कुछ तकनीकी मुश्किलों के चलते साइट पर एक ही पोस्टर दिखायी दे रहा है. तकनीकी टीम काम कर रही है और जल्द ही सारे पोस्टर दिखायी पड़ेंगे. आईसीएचआर निदेशक के मुताबिक, पोस्टरों में से एक पर नेहरू की तस्वीर प्रमुखता से दिखायी देगी.
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आईसीएचआर की सफाई पर कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम का कहना है, '75वें स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाने के लिए पहले डिजिटल पोस्टर में जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर न लगाने का आईसीएचआर सदस्य सचिव का स्पष्टीकरण हास्यास्पद है.'
लगे हाथे संघ और बीजेपी नेताओं मोदी-शाह को टारगेट करते हुए चिंदबरम कहते हैं, 'घृणा और पूर्वाग्रह के आगे झुकने के बाद, बेहतर ये होगा कि वे अपना मुंह बंद ही रखें.'
राजनीति अपनी जगह है लेकिन सफाई वास्तव में हास्यास्पद है आसानी से जब गले के नीचे नहीं उतर रही तो हजम कहां से होगी. वेबसाइट पर जो तकनीकी खराबी का हवाला दिया जा रहा है उसकी वजह से किसी इमेज का दिखायी देना प्रभावित हो सकता है. ये भी हो सकता है कि कुछ पोस्टर न दिखायी दें - लेकिन अगर एक भी पोस्टर दिखायी दे रहा है और उसमें नेहरू की तस्वीर गायब है तो दलील पर भी मंशा हावी लगती है. वैसे भी जब एक ही तस्वीर पर नेहरू को प्रमुखता से दिखाया गया है और बाकियों में नहीं, फिर तो बात ही खत्म हो जाती है.
ट्विटर पर तो नहीं, लेकिन फेसबुक पर एक पोस्ट में जवाहरलाल नेहरू की कुछ तस्वीरें पोस्ट करते हुए राहुल गांधी ने लिखा है, 'देश के प्यारे पंडित नेहरू को लोगों के दिलों से कैसे निकालोगे?'
मुद्दा ये भी तो तस्वीरों का ही है!
पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस ने वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर पर कड़ी आपत्ति जतायी थी. पार्टी शिकायत लेकर चुनाव आयोग तक पहुंच गयी. चुनाव आयोग ने शिकायत की जांच पड़ताल में ममता बनर्जी की पार्टी की शिकायत को सही पाया और आदेश जारी किया - चुनाव वाले राज्यों में आचार संहिता लागू रहने तक मोदी की तस्वीर वाले वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट नहीं बांटे जाएंगे.
कुछ दिन बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने यहां दिये जाने वाले वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री मोदी की जगह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तस्वीर छापने का आदेश जारी कर दिया - ममता बनर्जी तो जब भी ये मुद्दा उठाती हैं पूछती हैं कि यूपी में दिये जाने वाले सर्टिफिकेट पर योगी आदित्यनाथ की तस्वीर क्यों नहीं होनी चाहिये.
लेकिन अब तमिलनाडु में जो हो रहा है वो देश में सकारात्मक राजनीति का बेहतरीन नमूना लगता है. हुआ ये कि तमिलनाडु के स्कूली छात्रों के बीच 65 लाख स्कूल बैग मुफ्त में बांटे जाने थे - और राजनीतक तौर पर मुश्किल ये आ रही थी कि सभी स्कूल बैग पर एआईएडीएमके की नेता रहीं जयललिता और पूर्व मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी की तस्वीरें छपी हुई हैं.
आम तौर पर राजनीतिक प्रैक्टिस तो यही रही है कि सत्ता बदलते ही पुरानी तस्वीरें बदल दी जाती हैं. सरकारी दफ्तरों से लेकर जहां कहीं भी सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार हुआ करता है. चूंकि ये स्कूल बैग पहले ही छपवाये गये थे लिहाजा तत्कालीन मुख्यमंत्री की तस्वीर लगी हुई थी.
जब डीएमके नेताओं और कार्यकर्ताओं की तरफ से मौजूदा सरकार के शिक्षा मंत्री के पास शिकायतें दर्ज करायी जाने लगी तो वो समस्या के समाधान के लिए मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पास गये - लेकिन अपने नेता का जबाव सुन कर वो भी हैरान रह गये.
बताते हैं कि एमके स्टालिन ने शिक्षा मंत्री को कहा कि जो तस्वीरें लगी हैं, उनके साथ ही स्कूल बैग छात्रों में बांट दिये जायें और जो पैसा तस्वीरें बदलने में खर्च होता उसे छात्रों के लिए दूसरी कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किया जाये - ऐसा करके एमके स्टालिन ने 13 करोड़ रुपया बर्बाद होने से बचा लिया और स्कूली छात्रों के लिए इस मद से दूसरी योजनाएं तैयार करने के लिए कहा है.
एमके स्टालिन की ये सदाशयता देख कर विपक्ष के नेता भी अभिभूत हो रहे हैं - और हर कोई डीएमके नेता की तारीफ करते नहीं थक रहा है. ऐसा भी नहीं कि ये कोई पहला मौका है जब एमके स्टालिन ने राजनीतिक विरोधी जयललिता के प्रति ऐसा सम्मान प्रकट किया हो.
अभी एमके स्टालिन के मुख्यमंत्री बने कुछ ही दिन हुए थे कि AIADMK के ट्विटर हैंडल से 22 सेकंड का एक वीडियो शेयर किया गया -वीडियो में कुछ लोग अम्मा कैंटीन पर लगे जयललिता के नाम वाले बोर्ड और पोस्टर हटाते देखे गये.
जब ये चीज एमके स्टालिन को बतायी गयी तो अपने कार्यकर्ताओं का बचाव करने की जगह वो पुलिस को कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिया - और पार्टी की तरफ से भी हुड़दंग करने वाले डीएमके कार्यकर्ताओं के खिलाफ एक्शन लिया गया था.
हैरानी तो सबको तब हुई जब अम्मा कैंटीन में मुख्यमंत्री स्टालिन के आदेश पर डीएमके कार्यकर्ताओं को फिर से बोर्ड लगाते देखा गया - तमिलनाडु के अति हिंसक राजनीतिक इतिहास में ये बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट था. 2013 में मुख्यमंत्री रहते जयललिता ने गरीबों को सस्ता खाना उपलब्ध कराने के मकसद से 'अम्मा कैंटीन' योजना की शुरुआत की थी. वैसे तो बदलाव की नींव तभी दिखायी पड़ गयी थी जब एआईएडीएमके नेता ई. पलानीसामी ने विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ट्विटर पर डीएमके नेता एमके स्टालिन को जीत की बधायी दी. प्रतिक्रिया भी बड़ी सुखद रही और उसमें करीब 50 सालों से राजनीति कड़वाहट, दुश्मनी और हिंसा से भरे माहौल का कोई असर भी नहीं नजर आया.
एमके स्टालिन ने शुक्रिया के साथ डीएमके नेता पलानीसामी से सहयोग मांगा और कहा कि लोकतंत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष का संगम है - तभी ये साफ हो गया था कि पलानिस्वामी और स्टालिन मिलकर तमिलनाडु की राजनीति को पुराने दौर से कहीं आगे ले जाने की कोशिश करने वाले हैं. वैसे भी दोनों नेताओं में करुणानिधि और एमजी रामचंद्रन या फिर बाद के दिनों करुणानिधि और जयललिता के बीच निभायी गयी राजनीतिक दुश्मनी जैसी कोई कड़वाहट तो है नहीं.
लेकिन एक तस्वीर को लेकर हो रहे विवाद के बीच ही देश की राजनीति की दूसरी तस्वीर ज्यादा दिलचस्प लगती है - और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने एक बार फिर जो नजीर पेश की है वो बार बार काबिल-ए-तारीफ है.
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