'सबका प्रयास' के PM मोदी के आह्वान में 'स्वच्छता अभियान' जैसा ही संदेश है!
केंद्र में सत्ता संभालने के सात साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने स्वतंत्रता दिवस (Independence Day Speech) के मौके पर अपने स्लोगन 'सबका साथ, सबका विकास' में एक नया शब्द जोड़ा है - जो 'स्वच्छता अभियान' (Swachchhta Abhiyan) जैसा ही मैसेज लिये है.
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75वें स्वतंत्रता दिवस (Independence Day Speech) के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने लाल किले के प्राचीर से देश की बेटियों, नौजवानों और किसानों को लेकर कई अहम बातें कहीं - 88 मिनट के अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने सबसे ज्यादा बार तो देश का ही नाम लिया - भारत, लेकिन उसके बाद जिन शब्दों की बारंबारता देखी गयी, वे थे - 29 बार किसान, 11 बार कोरोना और तीन बार आत्मनिर्भर.
15 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने अपना तीसरा लंबा भाषण दिया. अब तक मोदी का सबसे छोटा भाषण पहला ही रहा है 2014 वाला - 65 मिनट. मोदी ने सबसे लंबा भाषण प्रधानमंत्री बनने के दो साल बाद दिया था - 2016 में 94 मिनट तक.
प्रधानमंत्री मोदी ने अब एक नया स्लोगन भी दिया है - 'यही समय है, सही समय है.' प्रधानमंत्री मोदी नये स्लोगन को खुद ही एक्सप्लेन भी किया है, '21वीं सदी में भारत के सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने से कोई भी बाधा रोक नहीं सकती... हमारी ताकत हमारी जीवटता है... हमारी ताकत हमारी एकजुटता है... हमारी प्राणशक्ति, राष्ट्र प्रथम, सदैव प्रथम की भावना है... ये समय है साझा सपने देखने का... ये समय है साझा संकल्प करने का है... ये समझ है साझा प्रयत्न करने का - और यही समय है हम विजय की ओर बढ़ चलें.'
2014 में प्रधानमंत्री मोदी जिस स्लोगन के साथ सत्ता में आये थे, 7 साल के शासन में उसमें वो दो महत्वपूर्ण शब्द जोड़ चुके हैं - और आपको ये भी याद होगा कि कैसे सत्ता संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की स्थापना के साथ ही देश भर में स्वच्छता अभियान शुरू किया था.
'सबका साथ, सबका विकास' - प्रधानमंत्री मोदी ने इसी नारे के साथ केंद्र की सत्ता संभाली थी और पांच साल बाद जब अवाम के मैंडेट के लिए नये सिरे से मैदान में उतरे तो एक नया शब्द जोड़ दिया था 'सबका विश्वास'. पहले के मुकाबले ज्यादा बहुमत के साथ चुनाव जीतने के बाद से प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के तमाम नेता ये नार बार बार दोहराते रहे हैं, लेकिन अब इसमें एक और अहम शप्द का इजाफा हो गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने फेवरेट स्लोगन को नया विस्तार देते हुए जो शब्द जोड़ा है, वो है - 'सबका प्रयास.'
क्या आपको भी 'सबका प्रयास' में 'स्वच्छता अभियान' (Swachchhta Abhiyan) जैसा ही संदेश सुनायी दे रहा है - आइये समझने की कोशिश करते हैं.
'सबका प्रयास' में जोर किस पर है
लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्लोगन सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास में सबका प्रयास जोड़ते हुए कहा कि इसी संकल्प के साथ हम अपने सारे लक्ष्यों को पूरा करेंगे.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'मैं भविष्यदृष्टा नहीं हूं... मैं कर्म के फल पर विश्वास रखता हूं... मेरा विश्वास देश के युवाओं पर है... मेरा विश्वास देश की बहनों-बेटियों, देश के किसानों, देश के प्रोफेशनल्स पर है - ये 'कैन डू जेनेरेशन' है... ये हर लक्ष्य हासिल कर सकती है.'
स्लोगन में 'सबका प्रयास' जोड़ने के मकसद को प्रधानमंत्री मोदी की इन बातों से समझी जा सकती है, 'जिन संकल्पों का बीड़ा आज देश ने उठाया है... पूरा करने के लिए देश के हर जन को उनसे जुड़ना होगा - हर देशवासी को इसे ओन (OWN) करना होगा.'
प्रधानमंत्री ने कहा, 'अगले 25 साल में हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना है जहां दुनिया का हर आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर हो... हम किसी ने कम न हों... लेकिन देशवासियों का ये संकल्प तब तक अधूरा है जब तक संकल्प के साथ परिश्रम और पराक्रम की पराकाष्ठा न हो - हमे देश को भी बदलना होगा और हमें एक नागरिक के नाते अपनेआप को भी बदलना होगा.'
'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास'
प्रधानमंत्री मोदी ने यही समझाने की कोशिश की कि हर देश की विकास यात्रा में एक वक्त ऐसा आता है जब वो देश खुद को नए सिरे से परिभाषित करता है और खुद को नये संकल्पों के साथ आगे बढ़ाता है.
मोदी ने समझाया, भारत की विकास यात्रा में भी आज वो समय आ गया है - 'सही समय है, यही समय है', और यहां से शुरू होकर अगले 25 साल की यात्रा नये भारत के सृजन का अमृतकाल है - अमृतकाल में हमारे संकल्पों की सिद्धि, हमें आजादी के 100 साल तक ले जाएगी.'
प्रधानमंत्री ने बताया कि क्यों बेवजह कानूनों की जकड़न से मुक्ति ईज ऑफ लिविंग और ईज ऑफ डूइंग बिजनस के लिए जरूरी है - 'देश को ये प्रयास करना होगा कि लोगों को अनावश्यक कानूनों और प्रक्रिया के जाल से निकाला जाये.' प्रधानमंत्री ने अपडेट किया कि सरकार ने ऐसे 15 हजार से ज्यादा कम्प्लाएंसेज को हाल ही में खत्म किया है.
देखा जाये तो 'स्वच्छता अभियान' को भी प्रधानमंत्री मोदी ने एक 'सबका प्रयास' मुहिम के तौर पर लॉन्च किया जो जनांदोलन का रूप ले ले. ये अभी शुरू करने के बाद काफी दिनों तक प्रधानमंत्री कई लोगों को नॉमिनेट करते रहे, फिर उनकी जिम्मेदारी उसे आगे बढ़ाने की रही - और इस तरह स्वच्छता अभियान आगे बढ़ता गया.
स्वच्छता अभियान में तो शशि थरूर जैसे विपक्ष के नेताओं ने तारीफ भी की थी और बढ़ चढ़ कर हिस्सा भी लिया था, लेकिन प्रधानमंत्री के स्लोगन में नया एड-ऑन कांग्रेस को रास नहीं आ रहा है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सबका प्रयास जोड़ने को बकवास बताया है.
Sabka Saath, Sabka Vishwaas, Sabka Prayas — aur inka Bakwaas
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 15, 2021
वैसे तब स्वच्छता अभियान पर भी कटाक्ष करते हुए जयराम रमेश ने कहा था, हाथ में झाडू ले लेने से भारत साफ नहीं होगा - सफाई के लिए एक संस्कृति पैदा करनी होगी. राजनीतिक मजबूरी या विपक्ष के हक की बात अलग है और इस हिसाब से जयराम रमेश ने अपनी बात कही है, लेकिन देश के लिए जनांदोलन और उसमें भागीदारी के लिए जनता का आह्वान और प्रोत्साहन निहायत ही जरूरी होता है - लेकिन तभी जब उसके पीछे कोई हिडेन एजेंडा न हो.
ऐसे आह्वान को 1961 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के भाषण से जोड़ कर देखा जाता है, जिसमें सरकार अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पाने की कोशिश में सारा दारोमदार दूसरों पर मढ़ते हुए नजर आता है.
अमेरिकी नागरिकों को देश के प्रति सक्रिय होने की नसीहत देते हुए कैनेडी ने कहा था, 'ये मत पूछो कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, बल्कि ये पूछो कि आप खुद अपने मुल्क के लिए क्या कर सकते हैं?'
केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार भी कई मौकों पर यही आइडिया अप्लाई करती नजर आयी है - खास कर तब जब कोविड 19 से मुकाबले के लिए लॉकडाउन हटाने और दूसरी लहर में लागू करने की जरूरत महसूस हो रही थी.
ये जो सिस्टम है...
गवर्नेंस में ऐसे कदम विकेंद्रीकरण की परिधि में आते हैं और ये तो अच्छी बात है कि सबको काम करने का मौका मिले. चीजें जो भी हों, सभी के प्रयास से हों - लेकिन ध्यान रहे ये सिर्फ दूसरों पर जिम्मेदारी थोपने के मकसद से तो कतई नहीं होना चाहिये.
देश में कोरोनावायरस के प्रकोप के शुरुआती दौर में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले 21 दिन के लिए संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की और फिर धीरे धीरे बढ़ाया जाता रहा. फिर एक दौर ऐसा आया जब केंद्र सरकार खुद को सिर्फ गाइडलाइन जारी करने तक समेटने लगी और सारी चीजें राज्य सरकारों पर छोड़ दी गयीं - कोविड 19 की दूसरी लहर में तो लगा जैसे केंद्र सरकार ने सारा दारोमदार राज्य सरकारों पर ही छोड़ रखा हो.
ये भी देखने को मिल चुका है कि कोविड 19 के प्रकोप की पराकाष्ठा चल रही थी तो राजनीतिक नेतृत्व की जगह सरकारी सिस्टम को दोषी ठहराया जाने लगा था. ये सच है कि किसी भी काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए एक सिस्टम की जरूरत होती है और ये सिस्टम ही है जो अक्सर ऑटोमेशन मोड में चलता भी है और चीजों को चलाता भी है - लेकिन ये भी महत्वपूर्ण होता है कि सिस्टम बनाया किसने है?
सिस्टम तो सभ्यता के विकास के साथ ही बनता गया होगा, लेकिन भारत में तो आजादी के बाद से सिस्टम में आमूल चूल बदलाव हुआ होगा. सत्ता परिवर्तन के बाद भी राजनीतिक नेतृत्व अपने हिसाब से सिस्टम में हेर फेर करता है और उसे ऐसा बनाता है कि जो नीतियां तय की जायें जमीन पर उनको अमलीजामा भी उसी तरीके से पहनाया जाये - अब अगर सिस्टम की उपलब्धियों के लिए क्रेडिट ली जा सकती है तो क्या उसी सिस्टम की गलतियों के लिए राजनीतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी नहीं बनती?
15 अगस्त के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पहले वाले दौर में सरकार खुद ड्राइविंग सीट पर बैठती थी लेकिन अब ये आधुनिक देश की जरूरत नहीं है, लिहाजा देश के नागरिकों के जीवन में सरकार का दखल जितना हो सके कम किया जाना चाहिये.
बहुत अच्छी बात है, बशर्ते ऊपर से नीचे तक इसे इमानदारी से लागू भी किया जाये - सिर्फ भाषण से तो काम नहीं चलने वाला. ऐसे कैसे चलेगा कि जब ऑक्सीजन के लिए लोग सड़कों पर मारे मारे फिर रहे हों और कोई देखने वाला न हो. उसी ऑक्सीजन के लिए कोई शिकायत करने की हिमाकत करे तो उसे एनएसए में बुक किये जाने का फरमान जारी कर दिया जाये - और जब चुनाव नजदीक आयें तो प्रधानमंत्री मोदी मंच से घोषणा कर दें कि योगी आदित्यनाथ जैसा तो कोई नहीं, जिसने कोरोना वायरस के संकट काल में सारी चीजें अच्छे से संभाल लीं. अगर सब कुछ ठीक ही तो दिल्ली से अरविंद शर्मा को बनारस में हालात को काबू करने के लिए क्यों भेजा गया. क्यों बीजेपी एमएलसी अरविंद शर्मा मुख्यमंत्री के बजाय सीधे पीएमओ के संपर्क में रहा करते थे? क्यों तब बनारस मॉडल की जोर शोर से चर्चा की जाती रही - और चुनाव के वक्त योगी आदित्यनाथ को क्लीन चिट दे दी गयी?
अभी अभी ओबीसी बिल में संशोधन कर राज्यों को अधिकार दे दिये गये हैं. ये भी तो सबका प्रयास की कैटेगरी में ही आता है, लेकिन विडंबना देखिये कि राज्य सरकारें पिछड़ी जातियों की सूची तो तैयार कर सकती हैं, लेकिन उनको ये नहीं मालूम कि किसकी कितनी हिस्सेदारी बनती है. अब राजनीति भी इसी बात पर हो रही है कि जातीय जनगणना करायी जाये - अब समझ लीजिये किसे कितना प्रयास करने की छूट हासिल है.
सबका साथ और सबका विकास के जरिये ये बताने और जताने की कोशिश रही कि किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. बीच बीच में जब भी धार्मिक आधार पर भेदभाव को लेकर बीजेपी पर सवाल उठते हैं, नेता यही स्लोगन दोहरा देते हैं.
धीरे धीरे महसूस किया गया कि सिर्फ साथ और विकास नाकाफी साबित हो रहा है तो उसके साथ विश्वास जोड़ दिया गया - और ये मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में खुद को अलग थलग समझने वाले तबके का विश्वास हासिल करने और उसे भरोसा दिलाने की कोशिश रही.
और अब सबका प्रयास सुन कर तो ऐसा ही लगता है जैसे समझाने की कोशिश वैसी ही हो जैसा फिल्म मांझी: द माउंटेनमैन में लीड रोल में नवाजुद्दीन सिद्दीकी का एक डायलाग रहा, '...भगवान के भरोसे मत बैठिये, का पता भगवान हमरे भरोसे बैठा हो?'
जैसे स्वच्छता अभियान सबके प्रयास से संभव हुआ, जैसे कोरोना पर विजय सबके प्रयास से संभव हुआ, ठीक वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्लोगन में नये एड-ऑन फीचर 'सबका प्रयास' में भी आजादी के जश्न के बीच मोहम्मद रफी की आवाज में फिल्म हकीकत के एक गीत की गूंज सुनायी दे रही है - 'अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों...'
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