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Updated: 21 अप्रिल, 2016 08:07 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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किसी मामले में अगर राजनीति घुस जाए तो क्या से क्या हो सकता है, इसका एक उदाहरण मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस में हुए ब्लास्ट की जांच की कहानी है. मामले का सच अब कांग्रेस बनाम बीजेपी की जमीन पर दम तोड़ता नजर आ रहा है. और इस मामले में माध्यम बन रहा है NIA, जिसे आतंक के खिलाफ लड़ाई के लिए खड़ा किया गया था.

असीमानंद के कबूलनामे से अब तक

करीब छह साल पहले जब 2010 में स्वामी असीमानंद ने दिल्ली की एक अदालत में स्वीकार किया कि मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस और अजमेर में हुए ब्लास्ट के लिए RSS और कुछ दूसरे छोटे हिंदू दल जिम्मेदार थे तो खूब हंगामा मचा. पहली बार लगा कि भारत में 'भगवा आतंक' जैसा कुछ मौजूद है. उस वक्त मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस कर रही थी. 2011 में आगे की जांच का जिम्मा मुंबई हमले के बाद 2009 में अस्तित्व में आई राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया. जांच तब भी भगवा आतंक की दिशा में ही थी लेकिन 2014 के चुनाव के बाद चीजें बदलनी शुरू हो गईं.

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एक के बाद एक गवाहों के पलटने का सिलसिला शुरू हुआ और अब आलम ये है कि जांच की पूरी दिशा ही बदलती नजर आ रही है. पिछले ही हफ्ते NIA ने कोर्ट में कहा कि वह फिलहाल मालेगांव ब्लास्ट के बाद गिरफ्तार किए गए 9 मुस्लिम युवकों को आरोपों से मुक्त करने के खिलाफ है. सुनवाई के दौरान तब नौ आरोपियों में से पांच कोर्ट में मौजूद थे. एक को पेशी से छूट दी गई थी जबकि दो 2006 में मुंबई लोकल में हुए ब्लास्ट में दोषी करार दिए जा चुके हैं. वहीं एक आरोपी की मौत हो चुकी है. गौरतलब है कि एनडीए के सत्ता में आने से पहले NIA का इस मामले पर वर्जन कुछ और था.

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 मालेगांव ब्लास्ट (फाइल फोटो)

मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस या अजमेर ब्लास्ट में किसका हाथ था? क्या वाकई 'भगवा आतंक' का वजूद है या फिर यूपीए सरकार के दौरान इसे ऐसे ही बिना किसी तथ्य के तब हवा दी गई? और अगर वाकई उस समय ठोस सबूत और गवाह मौजूद थे तो वे आज कहां हैं? जाहिर है अब सवालों के घेरे में NIA की जांच भी है क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले और बाद की जांच में स्पष्ट विरोधाभास नजर आता है. तभी मालेगांव ब्लास्ट से जुड़ी फाइलों के गायब होने की खबर आती है तो वहीं केंद्र सरकार की ओर से सफाई भी आ रही है. गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू को कहना पड़ा कि सरकार की ओर से NIA पर कोई दबाव नहीं है.

फाइलों को गुम कौन कर रहा है?

ये सच में हैरान करने वाली बात है. कोर्ट के रिकॉर्ड में आ चुके दस्तावेज भला कैसे गायब हो सकते हैं. बताया जा रहा है कि इसमें कुछ गवाहों के बयान दर्ज थे. लेकिन अगर ये नहीं हैं तो अब और आसानी से केस और गवाहों को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है. ऐसा कौन कर रहा है? एनआईए पर एक आरोप ये भी लग रहा है कि जानबूझकर जांच की गति धीरे की गई है. ये तब भी था जब यूपीए की सरकार थी और अब भी है. शायद, इसलिए NIA की ओर से इस केस में अब तक कोई चार्जशीट दायर नहीं हो सकी है.

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तो क्या सभी जांच चल पड़ी इशरत केस की राह पर?

इशरत जहां एनकाउंटर मामले से जुड़े कई अहम खुलासे हाल ही में हुए. पता चल रहा है कि यूपीए के शासन में उस मामले में कुछ छेड़छाड़ की गई. तो इसका मतलब यूपीए के शासन में सभी आतंकी मामलों को राजनीतिक चश्‍मे से डील किया गया? तो अब बीजेपी सरकार क्या कर रही है? इशरत एनकाउंटर मामले में जो बातें सामने आई है, उससे एक मौका तो मोदी सरकार को मिल ही गया है कि वो ऐसे दूसरे मामलों को भी एक ग्रे रंग दे दे.

...लेकिन इन सबके बीच कोई समझौता एक्सप्रेस और मालेगांव में जिन 100 से ज्यादा लोगों की जान गई, उनकी बात कोई क्यों नहीं कर रहा? क्या किसी मामले में किसी को फंसाने और बचाने की कवायद भर ही हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है...

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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