गडकरी ने कोविड की कमान संभाली तो जो क्रेडिट कमायी है वो भी गवां देंगे!
नितिन गडकरी (Nitin Gadakri) को कोविड 19 की कमान सौंप देने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को सुब्रह्मण्यन स्वामी (Subramanian Swamy) की सलाह कुछ कुछ वैसी ही है जैसे सियासत की सूली पर चढ़ाने की सिफारिश हो.
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नितिन गडकरी (Nitin Gadakri) रह रह कर ट्विटर पर ट्रेंड करने लगते हैं - एक बार फिर ऐसा हो रहा है. ध्यान देने वाली बात ये है कि 2014 के बाद से नितिन गडकरी तभी चर्चा में आते हैं जब मोदी-शाह किसी न किसी मसले को लेकर या तो बचाव की मुद्रा में होते हैं या निशाने पर आ जाते हैं.
कोरोना संकट के दौर में सोशल मीडिया पर बहुत सारे लोग नितिन गडकरी के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए कहने लगे हैं कि स्वास्थ्य मंत्री बन कर वो देश को कोविड जैसी महामारी के भंवर में फंसे लोगों को बड़े आराम से उबार सकते हैं.
सवाल है कि नितिन गडकरी को स्वास्थ्य मंत्री बनाने की सलाहियतों का ये सिलसिला किसने शुरू किया - और खबर ये उड़ी कहां से है?
कोविड टास्क की कमान सौंपने को लेकर बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यन स्वामी (Subramanian Swamy) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को एक नेक सलाह तो दी है, लेकिन उसमें नितिन गडकरी को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया जाये, ऐसी कोई बात नहीं है - बल्कि सवाल जवाब में तो सुब्रह्मण्यन स्वामी ने ये उम्मीद जतायी है कि नितिन गडकरी के मोर्चे पर आ जाने से डॉक्टर हर्षवर्धन को काफी मदद मिलेगी.
हाल फिलहाल कोविड संकट में कभी ऑक्सीजन तो कभी जरूरी दवाइयों की किल्लत को लेकर नितिन गडकरी की तरफ से बड़े ही राहत भरे आश्वासन दिये गये हैं - खासकर रेमडेसिविर के प्रोडक्शन को लेकर. ऑक्सीजन प्लांट को लेकर भी.
मान भी लीजिये कि अगर नितिन गडकरी को कोविड टास्क संभालने की जिम्मेदारी दे दी जाये, या फिर स्वास्थ्य मंत्री ही बना दिया जाये तो क्या वो देश को कोरोना संकट से उबार पाने में सफल हो पाएंगे - या अपने मंत्रालय के कामकाज की वजह से अब तक जो नाम कमा रखे हैं वो भी गवां देंगे?
ये स्वामी के 'मन की बात' है, या संघ की?
पहली बार आयुष मंत्रालय की तरफ से सवाल उठाये जाने और उत्तराखंड के सक्षम अधिकारी के परमिशन के बगैर ही कोरोनिल लॉन्च कर विवादों में फंसे स्वामी रामदेव काफी दिन तक शांत रहे, फिर पूरी तैयारी के साथ आये. फरवरी, 2021 में जब रामदेव कोरोनिल लॉन्च करने मीडिया के सामने आये तो उनके दायें स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन और बायें नितिन गडकरी खड़े थे - ऐसा लगा जैसे रामदेव एक ऐसे सुरक्षा कवच के साथ सामने आये हों कि किसी के भी मन में कोई शक शुबहा न रह जाये. कोरोनिल को लेकर लंबे चौड़े दावे भी किये गये. न भी किये गये होते तो दो केंद्रीय मंत्रियों की मंच पर मौजूदगी ही सबसे बड़ा सर्टिफिकेट का काम कर रही थी - लेकिन अफसोस, कुछ ही देर बाद WHO की तरफ से रामदेव के दावों की हवा निकाल दी गयी.
स्वामी रामदेव के कोरोनिल के समर्थन में डॉक्टर हर्षवर्धन के साथ खड़े होकर नितिन गडकरी ने पहले ही साफ कर दिया है कि कोरोना वायरस को लेकर वो कुछ अलग नहीं सोचते.
सुब्रह्मण्यन स्वामी को बीजेपी में बड़े ही कारगर सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. ये भी कह सकते हैं कि चूंकि दोनों का मकसद कॉमन होता है, लिहाजा सुब्रह्मण्यन स्वामी वैसे ही काम को अंजाम देते हैं जिसमें बीजेपी का भी फायदा छिपा होता है. कांग्रेस नेतृत्व पर नकेल कसने में वो काफी हद तक सफल रहे हैं. उनकी कानूनी सक्रियता ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को कानूनी मुश्किलों में काफी उलझाये रखा है. ऐसे और भी कई काम हैं जो सुब्रह्मण्यन स्वामी शौकिया तौर पर करते हैं और उसका सीधा फायदा कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप से बीजेपी और संघ उठाते रहते हैं.
महत्वाकांक्षा तो सभी नेता की होती है. सुब्रह्मण्यन स्वामी काबिल भी हैं और महत्वाकांक्षी भी. कई बार तो लगा कि वो देश के वित्त मंत्री बनना चाहते हैं - लेकिन मौजूदा नेतृत्व को वो चलते फिरते आरडीएक्स जैसे ही लगते हैं. जैसे कोई जेसीबी मशीन हों जो कब किसकी इमारत जमींदोज करने में लग जायें - कोई कल्पना भी नहीं कर सकता.
हिंदुत्व को लेकर सुब्रह्मण्यन स्वामी की अच्छी खासी फॉलोविंग भी है - और ये आरएसएस का फेवरेट होने के लिए अपनेआप में काफी महत्वपूर्ण है. ये ठीक है कि स्वामी के बयान कई बार मोदी सरकार के लिए भी मुश्किलों का सबब बन जाता है, लेकिन ये भी है कि ज्यादातर विवादित बयान में बीजेपी विरोधी ही निशाने पर नजर आते हैं.
नितिन गडकरी नागपुर से तो आते ही हैं, आरएसएस के दुलरुवा भी समझे जाते हैं. संघ प्रमुख मोहन भागवत की महती कृपा के साथ साथ अपार स्नेह भी हासिल है. 2019 के चुनावों से पहले वो काफी एक्टिव भी थे. इतने एक्टिव कि दिल्ली से कुछ नेताओं ने नागपुर जाकर उनको उनकी हदें समझाने की कोशिश करनी पड़ी थी. तब तो कभी कभी ऐसा माहौल बनाने की कोशिश हुई कि अगर एनडीए में बीजेपी की सीटें कम आ जायें और नरेंद्र मोदी के नाम पर सहमति न बन पाये तो नितिन गडकरी को प्रधानमंत्री भी बनाया जा सकता है. खैर, नतीजों ने ऐसे सभी कयासों के साथ साथ ऐसे सपने देखने वालों को भी एक झटके में ही चारों खाने चित्त कर दिया.
उससे पहले भी गडकरी की टिप्पणियों ने काफी सुर्खियां बटोरी थी. जैसे 2015 में बिहार चुनाव के नतीजे आने पर मार्गदर्शक मंडल में सुगबुगाहट देखने को मिली और एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाये गये - और कहा गया कि जिम्मेदारी किसी एक को लेनी चाहिये न कि सामूहिक जिम्मेदारी के नाम पर जिम्मेदार व्यक्ति को बचाने की कोशिश होनी चाहिये.
2018 में जब बीजेपी ने तीन राज्यों - मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता गंवा दिया तो नितिन गडकरी का एक बयान काफी चर्चित रहा था - सफलता के कई पिता होते हैं, लेकिन असफलता का कोई माई-बाप नहीं होता.
सवाल ये है कि नितिन गडकरी को कोविड की कमान देने का संदेश स्वामी के मन की बात है या संघ की?
नितिन गडकरी क्यों फेल हो सकते हैं
अभी कोविड की दूसरी लहर ने पहले से ही तबाही मचा रखी है - और तीसरी लहर को लेकर वैज्ञानिक संकेत देने लगे हैं. हालांकि, अभी ये साफ नहीं है कि तीसरी लहर दूसरी से खतरनाक होगी या नहीं?
नितिन गडकरी को लेकर ताजा चर्चा सुब्रह्मण्यन स्वामी के एक ट्वीट से शुरू हुई है - जिसमें वो PMO को ही निकम्मा बता डाले हैं - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नितिन गडकरी को कोविड टास्क की कमान सौंप देने की सिफारिश कर रहे हैं. सुब्रह्मण्यन स्वामी की दलील है कि जैसे देश मुगलों और अंग्रेजी हुकूमत के बावजूद आगे बढ़ता रहा, वैसे ही कोरोना वायरस के बाद भी बना रहेगा.
India will survive Coronavirus Pandemic as it did Islamic invaders and British Imperialists. We could face one more wave that targets children unless strict precautions now are taken. Modi should therefore delegate the conduct of this war to Gadkari. Relying on PMO is useless
— Subramanian Swamy (@Swamy39) May 5, 2021
सुब्रह्मण्यन स्वामी के इस ट्वीट के बाद लोगों ने उनसे सवाल भी किये हैं. एक सवाल है कि नितिन गडकरी ही क्यों? जवाब में स्वामी ने गडकरी के बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड का हवाल दिया है. जब हर्षवर्धन को लेकर सवाल पूछा गया है तो स्वामी का कहना है कि उनको काम करने के लिए फ्री हैंड नहीं मिला है. जब बात नितिन गडकरी के हर्षवर्धन को रिप्लेस करने और उनकी क्षमता पर सवाल खड़े होने की होती है, तो स्वामी स्पष्ट भी करते हैं कि गडकरी के आ जाने से हर्षवर्धन के लिए काम करना आसान होगा. मतलब, वो ये नहीं कहते कि हर्षवर्धन को हटाकर नितिन गडकरी को स्वास्थ्य मंत्रालय सौंप दिया जाये - जबकि ट्विटर पर ट्रेंड तो ऐसा ही समझा रहा था.
अब समझने वाली बात ये है कि अगर सुब्रह्मण्यन स्वामी की सलाह मान कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नये सिरे से कोई कोविड टास्क फोर्स बनाकर उसकी जिम्मेदारी नितिन गडकरी को सौंप देते हैं तो क्या सब ठीक हो जाएगा?
ये समझना भी मुश्किल नहीं है कि जब कोरोना से मची तबाही पर फोकस होने की जगह बीजेपी नेतृत्व चुनावी रैलियों को तरजीह देता हो. कोरोना संकट में ऑक्सीजन से लेकर जरूरी दवाइयों के लिए चारों तरफ चीख-पुकार मची हो और मोदी-शाह दोनों ही पश्चिम बंगाल की रैलियों में पहुंच कर भारी भीड़ देख कर खुशी का खुल कर इजहार करते हों, तो नितिन गडकरी भला क्या नया कर लेंगे? अगर नितिन गडकरी बीजेपी अध्यक्ष होते तो भी थोड़ी देर के लिए सोचा जा सकता था, लेकिन अभी तो उनको भी उसी लाइन पर चलना होगा जो मोदी-शाह ने जेपी नड्डा के लिए तय कर रखा है.
जब चुनाव खत्म हो जाने के बाद भी विरोधी दल की एक राज्य सरकार को कोरोना संकट में मदद की जगह हिंसा के कुछ मामलों को लेकर घेरने में भी पूरी ऊर्जा जाया कर दी जाती हो. जब पश्चिम बंगाल की हिंसा पर प्रधानमंत्री चिंता जताते हों और उसे लेकर राज्यपाल जगदीप धनखड़ से बात करते हों - लेकिन कोरोना संकट को लेकर अब तक मुख्यमंत्रियों से सिर्फ दो मीटिंग हुई हो, वैसे में नितिन गडकरी भला कौन सी तीर मार लेंगे?
जब सुब्रह्मण्यन स्वामी मानते हैं कि डॉक्टर हर्षवर्धन को काम करने के लिए फ्री हैंड नहीं मिला, तो कैसे पहले से ही मान कर चल रहे हैं कि नितिन गडकरी को कोरोना संकट से लोगों को निजात दिलाने में पूरी छूट मिल जाएगी?
बिहार में तो तख्तापलट में डेढ़ साल लग गये थे. कर्नाटक में करीब सवा साल लगे. मध्य प्रदेश में भी तकरीबन सवा साल लग ही गये - राजस्थान और महाराष्ट्र के बारे में सोचें तो उस हिसाब से मियाद भी खत्म हो चुकी है - लेकिन पश्चिम बंगाल में अभी से पूरी ताकत झोंक दी गयी है.
अभी मुख्यमंत्री ने शपथ ली नहीं और उस पर हिंसा के लिए जिम्मेदारी थोप दी जा रही है. क्या पश्चिम बंगाल के डीजीपी चुनावों के नतीजे आते ही ममता बनर्जी को रिपोर्ट करने लगे थे - उनकी तो नियुक्ति चुनाव आयोग ने ही की थी, लेकिन ममता बनर्जी की खामोशी में जेपी नड्डा उनकी मिलीभगत खोज ले रहे हैं. तभी तो गवर्नर जगदीफ धनखड़ की नसीहत सुनते ही ममता बनर्जी फूट पड़ती हैं और खड़े खड़े वहीं के वहीं सुना भी देती हैं.
मौत कोई भी हो - कैसे भी हो अच्छी नहीं होती. चाहे वो हिंसा की वजह से हो या फिर कोरोना वायरस की वजह से. वक्त पर इलाज न मिलने से हो, या ऑक्सीजन न मिलने से - हर मौत चिंता की बात होनी चाहिये.
प्रधानमंत्री मोदी को क्यों पश्चिम बंगाल की 17 मौतों की इतनी ज्यादा चिंता होती है - और देश भर में 24 घंटे के अंतराल में कोविड 19 से 3780 मौतों की कोई फिक्र ही नहीं लगती?
जब लॉकडाउन किसी भी सूरत में न लागू करने पर जोर हो. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि लॉकडाउन आखिरी विकल्प होना चाहिये. ये ज्ञान भी तब आया है जब न जाने कितने प्रवासी मजदूर सड़क पर जान गंवा बैठे और कई दिनों तक पूरे देश में अफरातफरी का माहौल बना रहा.
जरा सोचिये. यूपी में पंचायत चुनावों के जैसे नतीजे आये हैं, बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटेंगे या कोरोना की मुश्किलों से लोगों को निजात दिलाने में उनका मन लगेगा भला.
जो लॉकडाउन लागू करने के इलाहाबाद के आदेश के खिलाफ यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गयी थी वही काम अब अलग तरीके से किया जा रहा है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो सिर्फ पांच शहरों की बात की थी. अगर आदेश पर अमल हुआ होता तो स्थिति पर काफी हद तक काबू पा लिया गया होता, लेकिन अब पूरे उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन है - और वो भी कभी दो दिन तो कभी तीन दिन के लिये बढ़ाया जा रहा है. या तो मामला समझ में नहीं आ रहा है या फिर लोगों की परवाह ही नहीं है. सामान्य समझ तो यही बनती है - भला ऐसे माहौल में नितिन गडकरी चाह कर भी क्या कर लेंगे?
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