Covid के इलाज के लिए 5 बेहद जरूरी दवाएं, जिन्हें वर्तमान में पाना टेढ़ी खीर!
Covid की इस दूसरी लहर के दौर में वो 5 दवाएं जो मरीज के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं लेकिन जिन्हें पाने के लिए आम से लेकर खास तक हर व्यक्ति को एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगाना पड़ रहा है. तो आइए जानें कि क्या वाक़ई कोरोना को काबू करने का सामर्थ्य रखती हैं ये दवाएं.
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देश युद्ध लड़ रहा है. युद्ध किसी पड़ोसी दुश्मन देश से नहीं है. युद्ध एक ऐसे वायरस से है जिसके आकार, प्रकार से साइंटिस्ट तक अनभिज्ञ हैं. जी हां बात हो रही है कोरोना वायरस की. एक ऐसे समय में जब दुनिया के कई मुल्कों से कोरोना भागने ही वाला है, भारत कोरोना वायरस या ये कहें कि कोविड 19 की दूसरी वेव का दंश झेल रहा है. हालात बेकाबू हैं. बात यदि मरीजों की हो तो, न तो उन्हें अस्पताल में बेड और इलाज ही मिल रहा है और न ही वो ऑक्सीजन के अलावा ज़रूरी दवाइयों का इंतेज़ाम कर पा रहे हैं. भारत मे कोरोना वायरस के मद्देनजर स्थिति किस हद तक विकराल है इसका अंदाजा इस बीमारी से हुई मौतों के ग्राफ को देखकर बड़ी ही आसानी से लगाया जा सकता है. बात मौतों की हुई है तो हमारे लिए भी ये बताना बहुत ज़रूरी है कि इस लेख को लिखे जाने तक पूरे विश्व में जहां 32,16,383 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं तो वहीं भारत में ये संख्या 2,18,959 है. जैसे कयास लगाए जा रहे हैं माना जा रहा है जैसे जैसे दिन आगे बढ़ेंगे स्थिति और ज्यादा विभत्स होगी.
भविष्य में क्या होता है? स्थिति किस हद तक पेचीदा होती है इसपर अभी किसी तरह का वक्तव्य देना अभी जल्दबाजी है लेकिन बात अगर वर्तमान की हो तो जहां एक तरफ लोग किसी अपने के लिए प्लाज्मा और ऑक्सीजन जैसी चीजें जुटा रहे हैं तो वहीं ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या है जिन्होंने कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए दी जा रही दवाइयों को हासिल करने के लिए एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगा दिया है.
कोविड के इलाज की तमाम दवाएं ऐसी हैं जिनके न मिलने से मरीजों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है
तो आइए जानें कि Covid 19 की इस दूसरी लहर में वो 5 दवाएं कौन सी हैं? जिन्हें डॉक्टर पर्चे पर लिख रहे हैं और जिन्हें पाने के लिए आम से लेकर खास तक हर व्यक्ति को कठोर संघर्ष करना पड़ रहा है.
रेमेडिसविर (Remdesivir)
बात भारत में कोविड की दूसरी लहर की चली है. ऐसे में यदि हम रेमेडिसविर का जिक्र न करें तो बात काफी हद तक अधूरी रह जाती है. चाहे सरकारी और प्राइवेट मेडिकल स्टोर के बाहर कतारों में खड़े तीमारदार हों या फिर सोशल मीडिया पर मदद मुहैया कराने वाले पोस्ट देश के हर दूसरे उस व्यक्ति को जो कोविड की गिरफ्त में है और अस्पताल या होम आइसोलेशन में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहा है उसे रेमेडिसविर की 6 डोज की दरकार है. बाजार का एक नियम है और वो ये है कि बाजार डिमांड और सप्लाई पर चलता है.
जैसा हाल रेमेडिसविर को लेकर है इसकी डिमांड तो बहुत ज्यादा है लेकिन इस डिमांड के मुकाबले सप्लाई बहुत कम है. स्थिति जब ऐसी हो तो कालाबाजारी का होना स्वाभाविक है. कई मामले ऐसे आए हैं जहां लोगों ने रेमेडिसविर का एक इंजेक्शन जोकि 2500 के अंदर है 70-70 हज़ार रुपए देकर खरीदा है. भले ही आज रेमेडिसविर को लेकर ज़बरदस्त प्रोपोगेंडा हो लेकिन हमारे लिए ये समझना भी अतिआवश्यक है कि कोविड में रेमेडिसविर का उपयोग क्या है?
बताते चलें कि एंटीवायरल ड्रग, रेमेडिसविर का इंजेक्शन कोविड-19 से पीड़ित रोगियों के लक्षणों को कम करने में प्रभावी हो सकता है. वहीं कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि रेमेडिसविर कोई जीवनरक्षक दवा नहीं है और इसका अनावश्यक उपयोग नुकसानदायक भी हो सकता है.
रेमेडिसविर को लेकर एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि ये गिलियड (यूएस) द्वारा निर्मित एक पेटेंट एंटीवायरल दवा है, जिसे शुरू में वायरल हेपेटाइटिस और रेस्पोरेटरी सिंक्रोटीलियल वायरस (आरएसवी) के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जाता था. कोरोना के मामले में शुरुआती दौर में देखा गया कि इससे लोगों को फायदा पहुंचा इसी लिए ये दवा आज दूर के सुहावने ढोल हो गई और भारत मे कालाबाजारी की भेंट चढ़ गई.
टोसिलीजुमैब (Tocilizumab)
रेमेडिसविर से भी बदतर हालत अगर आज किसी दवाई को लेकर है तो वो शायद टोसिलीजुमैब ही है. बताते चलें कि आए रोज ही कोविड के अंतर्गत लेवल 1 और लेवल 2 में भर्ती कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या बढ़ रही है. तमाम डॉक्टर और हॉस्पिटल ऐसे हैं जो इस बात को दोहरा रहे हैं कि उनका मरीज तभी बच सकता है जब उसे टोसिलीजुमैब के इंजेक्शन दिए जाएं. डॉक्टर्स का ये कहना भर था कालाबाजारियों के हौसलों को पंख मिल गए.
टोसिलीजुमैब वो इंजेक्शन जिसकी 400 एमजी डोज का प्रिंट मूल्य करीब 40,000 रुपए था आज सवा लाख के से डेढ़ लाख के करीब है. मरीज तक ओरिजिनल इंजेक्शन पहुंचे इसकी भी कोई विशेष गारंटी नहीं है.
बात यदि इस इंजेक्शन की हो तो इस इंजेक्शन का इस्तेमाल रूमेटाइड अर्थराइटिस में प्रयोग किया जाता है. लेकिन भारत में कोविड के गंभीर मरीजों को ये इंजेक्शन डॉक्टर्स द्वारा बताया जा रहा है. जिसे हासिल करने के लिए लोग न केवल मुंहमांगी कीमतें देने को तैयार हैं बल्कि जिसके लिए लोग एक शहर से दूसरे शहर दौड़ रहे हैं.
डेक्सामेथासोन (Dexamethasone)
जैसा कि बताया जा चुका है कोविड की इस दूसरी वेव के बीच कालाबाजारी धड़ल्ले से अपनी गतिविधियों को जारी रखे हुए हैं और मजबूर लोगों को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं हम उस इंजेक्शन के बारे में ज़रूर बताना चाहेंगे जो इन मुश्किल हालात में गरीब जनता के लिए डूबते को तिनके का सहारा है. जिस इंजेक्शन की बात हम कर रहे हैं उसका नाम डेक्सामेथासोन है जिसे रेमेडिसविर और टोसिलीजुमैब के सब्स्टीट्यूट के रूप में देखा जा सकता है.
होने को तो इंजेक्शन की कीमत 10 रुपए और गोली की कीमत 2 रुपए है मगर ये सस्ती दवा कालाबाजारियों की आंख का कांटा बन गई है और तमाम बड़े/ छोटे शहरों में मेडिकल स्टोर से इसे हटा दिया गया है.
तमाम डॉक्टर्स दवा को कोरोना मरीजों के लिए लाभकारी बता रहे हैं. न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में हाल ही प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक डेक्सामेथासोन सांस संबंधी बीमारियों के उपचार में रामबाण है.
आइटोलीजुमैब (Itolizumab)
जैसे ही ये खबर मेन स्ट्रीम मीडिया से होते हुए सोशल मीडिया पर आई कि वर्तमान समय की सबसे महंगी कोविड की दवाओं में शामिल टोसिलीजुमैब कालाबाजारियों के हत्थे चढ़ गई है और उन कीमतों पर बिक रही है जहां शायद ही कोई इसे खरीद पाए इस महंगी दवा यानी टोसिलीजुमैब का सब्स्टीट्यूट खोजा जाने लगा. खोज को विराम तब लगा जब लोगों को आइटोलीजुमैब के बारे में पता लगा.
आइटोलीजुमैब मोनोक्लोनल एंटीबाडी है जो टोसिलीजुमैब के मुकाबले कहीं सस्ता है. बताते चलें कि दवा का जब फेज 2 ट्रायल हुआ तभी ये बात साबित हो गयी थी कि कोविड की चुनौतियों से लड़ने के लिए आइटोलीजुमैब रामबाण है. भले ही आइटोलीजुमैब का इंजेक्शन टोसिलीजुमैब के मुकाबले सस्ता हो लेकिन इसे भी हासिल करना इतना आसान नहीं है.
इस इंजेक्शन के लिए भी जनता को मोटी कीमत चुकानी पड़ रही है. अभी बीते दिनों ही कई ऐसे भी मामले प्रकाश में आए हैं जहां पुलिस ने कालाबाजारियों को कैश और नकली दवाओं के साथ गिरफ्तार किया और उन्हें जेल भेज दिया.
एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin)
अब इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य. इस आपदा के वक़्त मरीज के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वो है उन दवाओं की किल्लत जिनका इस्तेमाल कोविड की रोकथाम के लिए किया जा रहा है. ऐसी ही एक दवा है एजिथ्रोमाइसिन. चाहे लोग अस्पतालों में भर्ती हों या फिर होम आइसोलेशन में रह रहे हों सरकारी से लेकर प्राइवेट तक चिकित्सा जगत से जुड़े लोगों द्वारा इस दवा का इस्तेमाल कोरोना की इस दूसरी वेव में धड़ल्ले से किया जा रहा है.
एजिथ्रोमाइसिन कोरोना की सबसे प्रभावी दवाओं में से एक है इसलिए इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है और चूंकि बीते कुछ दिनों में दवा की डिमांड काफी तेज हुई है इसलिए बाजारों में इसकी शॉर्टेज हो गई है. खुदरा दुकानदारों से लेकर होल सेलर तक दवा की पूर्ति करने में नाकाम हैं. चाहे वो बिहार और उत्तर प्रदेश हों या फिर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली लोग इस दवा को खोजते हुए दर दर भटकने को मजबूर हैं.
बाकी जैसी डिमांड है इस दवा का भी कालाबाजारियों की नजर में आना स्वाभाविक था. वर्तमान में कई स्टॉकिस्ट इस दवा को प्रिंट रेट से ज्यादा चौगुने दाम में मेडिकल स्टोर वालों को बेच रहे हैं. ख़ुद सोचिये स्थिति जब ऐसी होगी तो मेडिकल स्टोर में बैठा वो दुकानदार जो इस दवा को ख़ुद चार गुनी कीमत पर खरीद रहा है वो इसे काउंटर के उस पार खड़े व्यक्ति को कितने में देगा?
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