नितिन पटेल को बीजेपी मना भी ले तो क्या, चुनौती तो ये अमित शाह को ही है
फिलहाल ऐसा तो नहीं लगता कि नितिन पटेल वो रास्ता अख्तियार करेंगे जो कभी वाघेला ने किया था, लेकिन ये तो माना ही जा सकता है कि विरोधी पक्ष के लिए वो बीजेपी की कमजोर कड़ी हैं - और अमित शाह के लिए ये छोटी चुनौती तो नहीं ही है.
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बीजेपी और कांग्रेस में शह-मात के खेल का नया दौर शुरू हो गया है. जैसा मेघालय में चल रहा है, वैसा ही खेल गुजरात में भी दिखाई दे रहा है. गुजरात में तो 'वाघेला पार्ट - 2' जैसे हालात पैदा हो गये हैं. एक तरफ नाराज नितिन पटेल को बीजेपी मनाने में लगी है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के नाम पर हार्दिक पटेल उन्हें बड़े ऑफर दे रहे हैं.
नितिन पटेल की नाराजगी
गुजरात में जिस तरह के संकट की आशंका से बीजेपी जूझ रही है, मेघालय में कांग्रेस उससे बड़ा नुकसान उठा चुकी है. 60 सीटों वाली मेघालय विधानसभा में कांग्रेस के 30 सदस्य थे जिनमें से अब तक छह इस्तीफा दे चुके हैं - और अब कांग्रेस के केवल 24 विधायक बचे हैं. मेघालय में अगले ही साल चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस के लिए चिंता की बात ये है कि इस्तीफा देने वालों राज्य के डिप्टी सीएम आर लिंगदोह भी शामिल हैं. इन सभी के अलावा यूनाइटेड डेमोक्रैटिक पार्टी के एक विधायक और दो निर्दलीयों ने भी इस्तीफा दे दिया है. लिंगदोह ने तो यहां तक ऐलान कर दिया है कि इस्तीफा देने वाले सभी आठ विधायक नेशनल पीपल्स पार्टी ज्वाइन करने जा रहे हैं, जो एनडीए का हिस्सा है. संकेत साफ है.
नितिन पटेल ने अपनाया बाकी तेवर...
गुजरात में नितिन पटेल की नाराजगी भी गैरवाजिब नहीं है, हां, पार्टी नेतृत्व की पसंद और नापसंद वाले सियासी समीकरणों की बात अलग है. 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात छोड़ने के बाद से ही वो सूबे के सीएम की कुर्सी के दावेदार माने जाते रहे हैं. तब भी उन्हें किनारे कर आनंदीबेन पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया गया. जब आनंदीबेन ने इस्तीफा दिया और नितिन पटेल कुर्सी पर बैठने की तैयारी कर रहे थे तभी उन्हें फिर से धक्का देकर अमित शाह के करीबी विजय रुपाणी को सीएम बना दिया गया.
जिस पाटीदार आंदोलन ने बीजेपी को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया, उसमें भी बातचीत में नितिन पटेल ने बड़ी भूमिका निभाई. गुजरात दंगों के बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें शिकस्त जरूर झेलनी पड़ी थी, लेकिन बीजेपी में उनका कद वैसे ही बरकरार रहा. नितिन पटेल को जमीन से जुड़ा हुआ नेता माना जाता है और वो 1995 से सरकार में मंत्री रहे हैं. हाल के चुनाव में भी नाराज पाटीदारों के सामने बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा वही बने रहे.
नितिन पटेल इसलिए नाराज हैं क्योंकि उनके कद के हिसाब से कैबिनेट में जगह नहीं दी गयी है. नाराजगी की सबसे बड़ी वजह है कि शहरी विकास, वित्त, पेट्रो-केमिकल्स और टाउन प्लानिंग जैसे विभाग जो पिछली सरकार में उनके पास थे, अब छीन लिये गये हैं. वित्त विभाग सौरभ पटेल को दे दिया गया है जो पहले भी वित्त मंत्री रह चुके हैं.
मनाने की कवायद
बताते हैं कि नितिन पटेल सरकारी गाड़ी तक का इस्तेमाल नहीं कर रहे. कैबिनेट की बैठक पांच बजे शुरू होने वाली थी लेकिन वो चार घंटे बाद पहुंचे. वो भी तब जब खुद मुख्यमंत्री विजय रुपाणी उन्हें मनाने गये. इस दौरान राज्य बीजेपी अध्यक्ष जीतू वाघाणी भी मौजूद रहे.
नितिन पटेल को मनाने की जो कवायद हो रही है उसमें उनके लिए मुख्यमंत्री के बराबर का भव्य चैम्बर भी तैयार किया जा रहा है. गोल्डन कॉम्प्लेक्स की तीसरी मंजिल पर सीएम विजय रुपाणी का चैम्बर है और दूसरी मंजिल पर वैसा ही चैम्बर नितिन पटेल के लिए बनाया जा रहा है.
दरअसल, बीजेपी के सामने 1996 जैसी स्थिति पैदा होने की आशंका नजर आ रही है. तब शंकरसिंह वाघेला ने बगावत कर राष्ट्रीय जनता पार्टी बना ली और कांग्रेस की मदद से मुख्यमंत्री बन गये और साल भर कुर्सी भी संभाली. बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गये लेकिन नाराज होकर इसी साल जुलाई में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और जन विकल्प मोर्चा बनाया. वाघेला का मोर्चा चुनाव में भी उतरा था लेकिन उसे सिफर ही हासिल हुआ.
बीजेपी और कांग्रेस में राज्य सभा चुनाव के वक्त खूब खींचतान मची थी और डर के मारे कांग्रेस ने अपने 46 विधायकों को कर्नाटक ले जाकर एक रिजॉर्ट में ठहरा दिया. फिलहाल बीजेपी के सामने भी तकरीबन वैसी ही स्थिति पैदा हो गयी है, लेकिन मुश्किल ये है कि अभी वो विधायकों को बचाने के लिए कांग्रेस वाला तरीका भी नहीं अपना सकती.
अभी चर्चा है कि बीजेपी एक दर्जन से ज्यादा पाटीदार विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं. मीडिया रिपोर्ट में कांग्रेस की ओर से पाटीदार नेता परेश धानाणी इस डील में काफी सक्रिय बताये जा रहे हैं. इस बीच वडोदरा से विधायक राजेंद्र त्रिवेदी ने भी बागी रुख अख्तियार कर लिया है और 10 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ने की धमकी दे डाली है. त्रिवेदी वडोदरा से किसी को भी मंत्री न बनाये जाने पर बेहद गुस्से में हैं.
अव्वल तो नितिन पटेल वाघेला के रास्ते जाएंगे नहीं और बीजेपी भी देर सवेर उन्हें मना ही लेगी, लेकिन इसे समझा क्या जाये? ये तो अमित शाह के लिए सीधे सीधे चुनौती ही लगती है, आखिर मंत्रियों के विभाग फाइनल तो उन्हीं के मुहर लगाने के बाद हुए हैं - उसके खिलाफ नितिन पटेल के बागी तेवर बता रहे हैं कि बीजेपी बहुत कुछ ठीक नहीं चल रहा है.
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