नीतीश कुमार और लालू यादव की फ्रेंडली-फाइट कहां तक जाने वाली है?
समाधान यात्रा के रूट में मुस्लिम वोटर (Muslim Voter) पर फोकस से नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की मंशा कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाने जैसी लग रही है - आखिर ये लालू यादव (Lalu Yadav) के वोट बैंक में सेंध की कोशिश नहीं तो और क्या है?
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के खिलाफ एक एक करके कई आरजेडी नेताओं का आक्रामक रुख देखने को मिल रहा है. तेजस्वी यादव का बयान आने के बाद भी सुधाकर सिंह के रवैये में कोई कमी नहीं आ रही है - और आरजेडी से ऐसी कई आवाजें नीतीश कुमार के खिलाफ उठने लगी हैं.
नीतीश कुमार ये तो नहीं कह सकते कि उनके सांकेतिक बयान के बाद भी आरजेडी नेतृत्व की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी. सुधाकर सिंह को तेजस्वी यादव दोबारा चेतावनी दे चुके हैं, लेकिन ये बीजेपी के हाथों में न खेलने वाले अंदाज में ही दी जा रही चेतावनी है.
जेडीयू की तरफ से सवाल उठाया जा रहा है कि चेतावनी देना तो ठीक है, लेकिन नीतीश कुमार को शिखंडी कह देने वाले सुधाकर सिंह के खिलाफ एक्शन कब तक होगा? एक तरह से जेडीयू के सीनियर नेता उपेंद्र कुशवाहा ने आरजेडी नेतृत्व को अल्टीमेटम देने की भी कोशिश की है. लहजा थोड़ा नरम जरूर देखा गया है. उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि 14 जनवरी तक सुधाकर सिंह के खिलाफ कोई न कोई एक्शन जरूर होगा.
नीतीश कुमार की लड़ाई लड़ने के साथ साथ उपेंद्र कुशवाहा अपनी राजनीतिक जमीन भी मजबूत करने की कोशिश में हैं, लेकिन कुछ बीजेपी नेताओं से उनके संपर्क को लेकर बिहार की राजनीति तरह तरह की बातें भी चल रही हैं. ऐसी चर्चा भी चल पड़ी है कि उपेंद्र कुशवाहा फिर से बीजेपी के साथ एनडीए में जा सकते हैं. वैसे भी कुछ दिनों से ये देखने को मिला है कि एनडीए में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा में से कोई एक ही रहता है.
एक तरफ उपेंद्र कुशवाहा को बिहार में डिप्टी सीएम बनाये जाने की भी चर्चा चल रही है, और दूसरी तरफ उनका चूड़ा-दही भोज भी हॉट टॉपिक बना हुआ है. बड़ी वजह ये है कि एक ही दिन यानी 14 जनवरी को ही उपेंद्र कुशवाहा और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव दोनों ही ने दही-चूड़ा खाने खिलाने का कार्यक्रम रखा है - ऐसे में नीतीश कुमार क्या स्टैंड देखना भी दिलचस्प होगा.
रही बात सुधाकर सिंह जैसे नेताओं के खिलाफ एक्शन लेने की तो, सुना है कि फैसला आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव (Lalu Yadav) लेने वाले हैं. लालू यादव के लौटने का कार्यक्रम तो मार्च, 2023 तक है, लेकिन ये तो सबको पता है कि वो जहां भी रहते हैं चौबीस घंटे बिहार की राजनीति पर उनकी नजर रहती ही है. रांची से लेकर दिल्ली तक - और अभी सिंगापुर से आरजेडी का हर फैसले की मंजूरी लालू यादव से लेनी ही पड़ती है.
लेकिन ऐसा भी तो नहीं है कि सुधाकर सिंह बगैर लालू यादव और तेजस्वी यादव से शह मिले नीतीश कुमार पर हमलावर बने रहें? जाहिर है नीतीश कुमार तो ये सब समझ ही रहे होंगे, लिहाजा अपनी तरफ से वो भी कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं.
अभी तो ऐसा लगता है जैसे नीतीश कुमार और लालू यादव कोई फ्रेंडली मैच खेल रहे हों. ये फ्रेंडली मैच बीजेपी को गफलत में रखने के लिए भी हो सकता है - और एक दूसरे के खिलाफ वास्तव में परदे के पीछे चल रही लड़ाई भी हो सकती है.
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा की शुरुआत और शुरुआती दौर के रूट मैप तो ऐसे ही इशारे कर रहे हैं जैसे निशाने पर बीजेपी नहीं बल्कि महागठबंधन में प्रमुख पार्टनर राष्ट्रीय जनता दल ही हो - कम से कम नीतीश कुमार की मुस्लिम वोटर (Muslim Voter) पर नजर तो ऐसा ही इशारा कर रहा है.
मुस्लिमों पर मेहरबान क्यों हैं नीतीश कुमार?
समाधान यात्रा पर निकलने से पहले नीतीश कुमार की मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवियों के साथ मुख्यमंत्री आवास पर बंद कमरे में हुई मुलाकात काफी चर्चित रही. तब ऐसा लगा था कि बीजेपी के साथ रह कर मुस्लिम वोटर की नजर में धूमिल हुई अपनी छवि को बदलने की कोशिश हो रही है.
क्या नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच फिर से शीत युद्ध शुरू हो चुका है?
नीतीश कुमार ने असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं से बचने की सलाह दी थी, इसलिए मुस्लिम नेताओं से उनकी मुलाकात को अगले आम चुनाव की तैयारियों का हिस्सा समझा गया. तब नीतीश कुमार ने मुस्लिम समुदाय के लोगों से 2024 से पहले बीजेपी के सक्रिय होने और सांप्रदायिक सद्भाव खराब करने की भी आशंका जतायी थी. ऐसी ही आशंका नीतीश कुमार ने तब भी जतायी थी, जब उनके महागठबंधन में चले जाने के बाद केंद्रीय मंत्री अमित शाह पहली बार बिहार का दौरा करने वाले थे.
समाधान यात्रा के शुरू होने के दो दिन बाद ही नीतीश कुमार सीतामढ़ी और शिवहर के दौरे पर थे. सीतामढ़ी कलेक्ट्रेट में वो सरकारी योजनाओं की समीक्षा कर रहे थे, तभी आफताब आलम नाम का एक युवक केरोसिन तेल लेकर पहुंच गया. आफताब ने नीतीश कुमार के सामने ही अचानक एक झटके में अपने ऊपर केरोसिन तेल डाल लिया और आग लगा कर आत्मदाह की कोशिश की, लेकिन सुरक्षाकर्मियों की तत्परता से कोई अनहोनी घटना नहीं हो सकी.
फिर पुलिस ने पकड़ लिया और वो युवक लगातार चिल्लाता रहा, 'मेरे भाई का मर्डर हुआ है... मेरा भाई मारा गया था.'
किसी युवक का मुख्यमंत्री के सामने इंसाफ के लिए ऐसा आत्मघाती कदम उठाना कोई नयी चीज नहीं थी. वो मुस्लिम भी हो सकता था, और किसी और समुदाय का भी. इंसाफ पाने के लिए लोगों को जब कोई उपाय नहीं सूझता तो ऐसे आखिरी रास्ते अख्तियार करने का फैसला कर लेते हैं.
पहले तो ये शक हुआ कि ये कोई हिंदू-मुस्लिम का मामला तो नहीं है, और ऐसा कदम उठा कर सांप्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश हो रही हो - और तभी मालूम पड़ा कि वहां आस पास की आबादी मुस्लिम बहुल ही है. मतलब ये कि वहां कोई हिंदू-मुस्लिम टकराव जैसे बात नहीं थी.
लेकिन इस मुस्लिम कड़ी को आगे बढ़ायें तो मालूम पड़ता है कि नीतीश कुमार ने समाधान यात्रा पर निकलने से पहले मुख्यमंत्री आवास पर जो बैठक की थी, वो सिर्फ 2024 ही नहीं, उसके पहले आरजेडी नेतृत्व पर दबाव बनाने की कोशिश ही लगती है.
बतातें हैं कि नीतीश कुमार की समाधान यात्रा के आरंभिक पड़ावों के आस पास की आबादी भी मुस्लिम बहुल ही है. नीतीश कुमार ने 4 जनवरी को वाल्मीकि नगर का कार्यक्रम बनाया था, अगले दिन 5 जनवरी को पश्चिम चंपारण के बेतिया इलाके में समाधान यात्रा पहुंची थी. और वैसे ही 6 जनवरी को शिवहर और सीतामढ़ी में, 7 जनवरी को वैशाली और 8 जनवरी को सिवान पहुंचे थे - सिवान के बारे में तो सबको पता है, बाहुबली आरजेडी नेता शहाबुद्दीन का गढ़ रहा है. शहाबुद्दीन का गढ़ होने का मतलब इलाके के लोगों के लालू यादव और तेजस्वी यादव के समर्थक होने की गारंटी है.
लेकिन ये सिवान का ही मामला नहीं है, शुरुआती पांचों पड़ावों के इर्द गिर्द मुस्लिम आबादी ही चुनावों में निर्णायक भूमिका में होती है. समाधान यात्रा पर निकलने से पहले एक और खास बात पर ध्यान दिया गया था. नीतीश कुमार ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ हुई बैठक से जेडीयू के मुस्लिम नेताओं को दूर रखा था.
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा में वैसे तो अफसरों का ही बोलबाला होता है, लेकिन कुछ नेता भी होते हैं. नेता से मतलब यहां मंत्रियों से ही है. नीतीश की समाधान यात्रा में बाकी मंत्री तो बदलते रहते हैं, लेकिन एक मंत्री को पहले पांचों पड़ावों में मौके पर मौजूद पाया गया है - और वो मंत्री हैं, जमा खान.
जमा खान चुनाव तो बीएसपी के टिकट पर जीते थे, लेकिन बाद में नीतीश कुमार ने उनको जेडीयू का विधायक बना दिया - और फिर अपनी सरकार में मंत्री भी बना लिया. नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोटर तक अपनी पैठ बनाने के लिए जमा खान को ड्यूटी पर लगा रखा है.
क्या दोनों तरफ से प्रेशर पॉलिटिक्स चल रही है?
नीतीश कुमार के अब तक के राजनीतिक जीवन में सबसे ज्यादा घिरा हुआ देखा जा रहा है. 2020 के चुनाव तक नीतीश कुमार बीजेपी और आरजेडी दोनों को झांसे में रखे हुए थे. बीजेपी की अपनी मजबूरी थी कि उसके पास बिहार में कायदे का कोई नेता नहीं था, और किसी भी सूरत में वो नीतीश कुमार को नाराज नहीं करना चाहती थी. लेकिन जिस बात का डर था, नीतीश कुमार ने तो वही कर दिया.
बीजेपी में दोबारा जाने से पहले नीतीश कुमार ऐसी ही प्रेशर पॉलिटिक्स आरजेडी के खिलाफ अपनाये हुए थे, और एक दिन खेल भी कर ही दिया. लेकिन ये सब बार बार और लगातार तो चलता नहीं. अब नीतीश कुमार के पास बीजेपी में जाने का ऑप्शन बचा भी नहीं है. अगर अपनी तरफ से नीतीश कुमार प्रयास भी करें तो बीजेपी को कोई बहुत बड़ा स्कोप न दिखायी दे तो फिर से साथ आने की बहुत ही कम संभावना है.
जनाधार मजबूत होने और विधायकों की तादाद ज्यादा होने से आरजेडी नेतृत्व नीतीश कुमार पर हावी होने लगा है, फिर तो नीतीश कुमार के सामने ऐसे ही उपाय बचते हैं कि वो जैसे भी संभव हो अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश करें - और हर हाल में कुर्सी पर पकड़ बनाये रखें.
पहले तो बिहार आरजेडी अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने नीतीश कुमार को कुर्सी छोड़ने के लिए दवाब बनाना शुरू किया था, अब उनके बेटे सुधाकर सिंह तो जैसे टूट ही पड़े हैं. जितना भला-बुरा कह सकते हैं, कहे जा रहे हैं. अब तक ऐसा कुछ भी नहीं समझ में आया है जिससे लगे कि लालू यादव और तेजस्वी यादव अपने नेताओं को नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ बोलने से वाकई मना कर रहे हैं.
भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तेजस्वी यादव एक बार डपट दें और आरजेडी का कोई नेता अपनी हरकतों से बाज न आये. और सिर्फ सुधाकर सिंह ही क्यों, विजय कुमार मंडल और शिवानंद तिवारी जैसे नेता भी तो नीतीश कुमार को घेर ही रहे हैं. विजय कुमार मंडल थोड़ा नरम जरूर पड़े हैं, और शिवानंद तिवारी अभी सुधाकर सिंह की तरह उग्र नहीं हुए हैं - लेकिन मकसद तो सबका एक जैसा ही लग रहा है.
और नीतीश कुमार भी अपनी तरफ से अपने खिलाफ चल रही चीजों को न्यूट्रलाइज करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. तेजस्वी यादव को 2025 के लिए महागठबंधन का नेता घोषित करना अगर राहत की सांस लेने जैसा प्रयास रहा तो समाधान यात्रा के जरिये मुस्लिम समुदाय तक पहुंचने की कोशिश लालू परिवार को दबाव में लेने के लिए ही तो लगती है.
नीतीश कुमार अपने सारे एक्शन प्लान काफी सोच समझ कर और भविष्य पर नजर रखते हुए बनाते रहे हैं. हो सकता है समाधान यात्रा में लोगों से दूरी दिखाने की भी ऐसी ही कोशिश रही हो. कहने को तो वो अफसरों तक ही सीमित रहते हैं, लेकिन अगर कुछ लोग वहां मिलने के लिए आ गये तो मना तो करेंगे नहीं.
अगर नीतीश कुमार ऐसे प्लान नहीं किये होते तो उनकी सभाओं में मुस्लिम समुदाय की भी भीड़ नजर आती - और तब लालू यादव के सीधे सीधे कान खड़े हो जाते. अभी तो वो विकास योजनाओं की समीक्षा के बहाने दौरा कर रहे हैं, और इस पर तो आरजेडी की तरफ से आपत्ति जताने का बहाना भी नहीं है.
उपेंद्र कुशवाहा डिप्टी सीएम बनेंगे क्या?
बिहार के मीडिया में आयी कुछ रिपोर्ट में उपेंद्र कुशवाहा को डिप्टी सीएम बनाये जाने की काफी चर्चा हो रही है - और खास बात ये है कि उपेंद्र कुशवाहा भी ऐसी बातों को हवा दे देते हैं.
पूछे जाने पर उपेंद्र कुशवाहा का कहना होता है कि ये तो नीतीश कुमार पर ही है कि किस मंत्री बनाते हैं और किसे डिप्टी सीएम. ऐसी बातें और कुछ इशारे करें या न करें इकरार और इनकार में उलझाने के लिए तो काफी होती ही हैं.
वैसे भी उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू में अपनी पार्टी के विलय के बाद अब तक कुछ मिला तो है नहीं, ऐसे में उनका हक तो बनता ही है - लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार अपने बूते उपेंद्र कुशवाहा को बिहार का डिप्टी सीएम बना पाएंगे? सिर्फ लव-कुश समीकरण साधने की कवायद भर नहीं, इसे भी नीतीश कुमार की तरफ से दबाव की राजनीति का हिस्सा ही समझा जा रहा है.
मंत्री बनाने की बात और है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को तेजस्वी यादव की बराबरी में खड़ा कर दिया तो क्या ये लालू यादव को मंजूर होगा? ऐसा हुआ तो सीधे सीधे तेजस्वी यादव का कद घट जाएगा.
अब ये उपेंद्र कुशवाहा की किस्मत जाने, वो डिप्टी सीएम बनते हैं या नहीं. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा के नाम पर नीतीश कुमार की राजनीति तो चल ही पड़ी है - सवाल ये है कि क्या मुस्लिम वोटर के बीच नीतीश कुमार घुसपैठ में कामयाब हो पाएंगे? और सवाल ये भी है कि क्या लालू यादव ऐसा होने देंगे?
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