नीतीश बस 'सत्ता कुमार' हैं, फिर चाहे भाजपा का साथ लेना पड़े या RJD का
बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने भाजपा (BJP) से गठबंधन तोड़ दिया है. और अब आरजेडी (RJD) और कांग्रेस (Congress) के समर्थन से सरकार बनाएंगे. देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश कुमार का ये फैसला जेडीयू (JDU) के लिए फायदेमंद साबित होता है या नुकसानदेह?
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इस लेख में बात राजनीति वाले प्रदेश की. अब आप कहेंगे कि ये क्या बात हुई. राजनीति तो देश के हर राज्य में जोर-शोर से होती है. आपकी बात बिल्कुल सही है लेकिन राजनीतिक उठापठक के लिए कौन से प्रदेश को सबसे ऊपर माना जा सकता है? हो सकता है इस सवाल से भी आपके मन में 2-3 राज्य के नाम घूमेंगे, तो सवाल आसान कर देता हूं. कहां के लोगों के बारे में मशहूर है कि पॉलिटिक्स या राजनीति-शास्त्र की सबसे ज्यादा समझ उन्हें होती है? चलिए जवाब मैं दे देता हूं आप अपनी सहमति कमेंट करके बता दीजिये – मेरा जवाब है – वो प्रदेश है बिहार !!!
प्रतियोगी परीक्षाओं में बिहार के स्टूडेंट्स भी सोशल स्टडीज और उसमें भी पॉलिटिकल साइंस में कुछ ज्यादा ही तेज माने जाते हैं. मतलब ये कि बिहार में राजनैतिक ज्ञान कूट-कूटकर भरा होता है. ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री हैं नीतीश कुमार. जो करीब-करीब 17 साल से बिहार की पॉलिटिक्स के चाणक्य बनकर बैठे हुए हैं.. ये और बात है कि बीच में उनको लगभग 9 महीने के लिए सत्ता से अलग होना पड़ा था. लेकिन, 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश ने चुनाव से पहले ही RJD और कांग्रेस के साथ महागठबंधन कर लिए था और फिर खुद सीएम बने और लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव बने थे डिप्टी सीएम. हालांकि, इस महागठबंधन से नीतीश का मोहभंग हो गया था. और, 2017 में बीजेपी से नाता फिर से जुड़ गया था.
अब आता है हमारे इस लेख का मुद्दा, पिछले कुछ समय के डेवलपमेंट्स जो इशारा कर रहे थे, वो अब अंजाम तक पहुंच गए हैं. नीतीश कुमार एक बार फिर लालटेन की रौशनी से चमकेंगे यानी उन्होंने RJD का हाथ फिर से थाम लिया है.
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के पेट में दांत की कहावत यूं ही मशहूर नही है.
राजनीतिक पंडित बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों से नीतीश का बीजेपी से टकराव चल रहा था. आशंका जताई जा रही थी कि हो सकता है कि 11 अगस्त से पहले JDU और NDA की सरकार गिर जाए और नई सरकार RJD के तेजस्वी यादव के साथ मिलकर बना लें नीतीश कुमार. अब आप सोचेंगे कि 11 अगस्त में ऐसी क्या खास बात है? देखिये, जब दुनिया में कई जगह पंडितों की निकाली तारीख पर शपथ लिए जाने या सरकार बनाए जाने का चलन हो चुका है तो फिर ये तो भारत है. राजनीतिक पंडितों के अलावा यहां पंडितों की भी बड़ी सुनी जाती है और 12 अगस्त से खरमास शुरू हो रहा है. यानी ऐसा महीना जिसमें आमतौर पर लोग कोई शुभ काम नहीं करते. तो, नीतीश कुमार भी चाहते हैं कि उससे पहले ही नई सरकार बना ली जाए.
लेकिन बात ये आती है कि ऐसा सोचने के पीछे लोगों के क्या कारण हैं? जानकार मानते हैं कि मामला तो पिछले कुछ महीनों से चल रहा है. लेकिन, करीब महीने भर का घटनाक्रम यही कहता है कि नीतीश और बीजेपी के बीच कुछ तो गड़बड़ है. बीते एक महीने में 4 बार ऐसा हुआ है, जब नीतीश कुमार ने बीजेपी से किनारा किया.
नीतीश की बीजेपी से दूरी!
- 17 जुलाई को गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में तिरंगे को लेकर सभी मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाई गई, लेकिन नीतीश नहीं आए.
- 22 जुलाई को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के विदाई भोज में आमंत्रित किया गया, लेकिन नीतीश नहीं आए. यहां मैं आपको ये भी बताता चलूं कि नीतीश के मुख्यमंत्री रहते रामनाथ कोविंद बिहार के राज्यपाल भी रहे हैं. फिर भी उनके विदाई भोज में न जाना नीतीश की बीजेपी से बेरुखी नहीं तो और क्या है?
- 25 जुलाई को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया गया, लेकिन नीतीश नहीं आए.
- 7 अगस्त को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नीति आयोग की बैठक में बुलाया गया, लेकिन नीतीश नहीं आए.
इतने महत्वपूर्ण अवसर और नीतीश कुमार गायब रहे इसके पीछे की कहानी क्या है?
पॉलिटिक्स के गढ़ बिहार में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है और पारा बढ़ाने वाले हैं खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. 5 अगस्त की शाम की शाम को जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा ने अपनी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को अकूत दौलत बनाने के मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किया. पत्र में लिखा गया – 'आप अच्छी तरह से जानते हैं कि हमारे माननीय मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति के साथ काम कर रहे हैं और वे अपने लंबे राजनीतिक करियर में बेदाग रहे हैं.'
जेडीयू कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि आरसीपी सिंह और उनके परिवार के सदस्यों के नाम पर 2013 और 2022 के बीच आय से अधिक संपत्ति अर्जित की गई. इसके बाद आरसीपी सिंह ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. जेडीयू ने भी आरसीपी सिंह का इस्तीफा तत्काल कबूल कर लिया. इस दौरान आरसीपी सिंह ने यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार सात जन्म तक प्रधानमंत्री नहीं बने रह सकते हैं.
बिहार के राजनीतिक गलियारे में ये बात लगभग सभी जानते हैं कि आरसीपी सिंह के बीजेपी नेताओं के साथ काफी अच्छे रिश्ते हैं. कहा तो यहां तक जाता था कि वो जनता दल यूनाइटेड में बीजेपी के आदमी के तौर पर काम करते थे. शायद यही वजह है कि पिछले साल जब नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तो आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की मर्जी के बिना केंद्र में मंत्री बन गए.
सूत्रों के मुताबिक, जब नीतीश कुमार ने अपनी ही पार्टी के नेता आरसीपी सिंह की नजदीकी बीजेपी संग बढ़ती देखी तो उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ और तीसरी बार राज्यसभा भेजने की आरसीपी सिंह की अर्जी नामंजूर कर दी थी जिसके बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद नीतीश और आरसीपी सिंह के बीच दूरियां बढ़ती गईं. मतलब ये कि नीतीश 'खेल' समझ चुके थे कि बीजेपी आरसीपी सिंह का इस्तेमाल उनको कमजोर करने के लिए कर रही है. इसके बाद बिहार की राजनीति के चाणक्य नीतीश ने अपनी अगली चाल चली और अपनी ही पार्टी के आरसीपी सिंह पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया जिसके चलते आरसीपी सिंह को पार्टी से इस्तीफा देना पड़ा और नीतीश ने एक कांटा दूर कर दिया.
इस बीच, एक और डेवलपमेंट हुआ. जेडीयू ने मोदी सरकार में दो केन्द्रीय मंत्री पद की मांग की थी, जिसे बीजेपी ने खारिज कर दिया था. खिसियाये हुए नीतीश की जेडीयू ने रविवार को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में शामिल न होने का फैसला किया. रविवार 7 अगस्त को ही जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि 'कुछ लोग बिहार में एक बार फिर से 2020 के चिराग पासवान मॉडल का इस्तेमाल करना चाहते थे. लेकिन, नीतीश कुमार ने इस षड्यंत्र को पकड़ लिया. आरसीपी सिंह का तन भले ही जनता दल यूनाइटेड में था, लेकिन उनका मन कहीं और था.' माना जा रहा है कि ललन सिंह का इशारा बीजेपी की तरफ था.
सवाल ये भी उठे कि अगर नीतीश कुमार बीजेपी से नाता तोड़ेंगे तो क्या RJD का दामन थाम पाएंगे. तो इसका जवाब कुछ ख़बरों के मुताबिक ये था कि पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय जनता दल भी नीतीश को लेकर अपने रुख में नरम हो गया है और अपने सभी प्रवक्ताओं को निर्देश दिया है कि उनके खिलाफ बयानबाजी न की जाए. माना जा रहा था कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक-दूसरे के संपर्क में हैं और दोनों 11 अगस्त से पहले बिहार में सरकार बनाने की कोशिश कर सकते हैं.
बीजेपी को भी इस बात का एहसास था कि नीतीश बीजेपी को छोड़ आरजेडी के साथ सरकार बना सकते हैं और इसी वजह से पिछले दिनों पटना में जब बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी तो बीजेपी के तरफ से बयान दिया गया था कि वो 2024 का लोकसभा चुनाव और 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश के साथ में लड़ेगी. माना जा रहा था कि बीजेपी अपने तरफ से ये मैसेज देना चाहती है कि अगर नीतीश कुमार आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना लेते हैं तो बीजेपी कह सकती है कि नीतीश कुमार ने उन्हें धोखा दिया.
क्या होगा ये राज तो अब खुल गया है. लेकिन, 'सत्ता कुमार' नीतीश ने जो पत्ते बिहार में फेंके हैं, वो राजनीतिक खेल को कौन सी दिशा देंगे, ये आने वाला वक्त बताएगा. क्योंकि, अब चाल बीजेपी की है.
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