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Updated: 02 नवम्बर, 2020 01:09 PM
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मुंगेर हिंसा (Munger violence) के लिए एसपी लिपि सिंह (SP Lipi Singh) और डीएम राजेश मीणा को चुनाव आयोग ने हटा दिया है. आयोग ने नये डीएम-एसपी तैनात कर दिये हैं. इलाके की पुलिस चौकी के प्रभारी और थाने के एसएचओ को भी लाइनहाजिर कर दिया गया है. आयोग ने कमिश्नर से सात दिन में जांच कर पूरी रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है.

बावजूद इसके कि पूरी निगरानी और सारी देख रेख चुनाव आयोग कर रहा है, निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके करीबी माने जाने वाले जेडीयू नेता आरसीपी सिंह पूरे विपक्ष के निशाने पर हैं - बेगूसराय में आरसीपी सिंह लोगों के गुस्से को झेलना पड़ा. लोग घटना के लिए जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे. असल में, मुंगेर के लोगों की मांग है कि फायरिंग में युवक की मौत के लिए एसपी और डीएम के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाया जाये.

चुनाव प्रचार के दौरान अपने 15 साल के कार्यकाल को श्रेष्ठ बताने के मकसद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बार बार जंगलराज का जिक्र करते हैं. शायद यही वजह है कि मुंगेर की घटना की अंग्रेजी हुकूमत के वक्त के जालियांवाला बाग हत्याकांड की संज्ञा दी जाने लगी है - विपक्ष के नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव तो पूछ रहे हैं कि एसपी को जनरल डायर बनने की अनुमति किसने दी? जाहिर है तेजस्वी यादव के निशाने पर नीतीश कुमार और जेडीयू नेता आरसीपी सिंह ही हैं.

मुंगेर हिंसा के लिए जिम्मेदार कौन?

मुंगेर हिंसा ने महज कुछ ही घंटों का ब्रेक लिया था. तभी तो शांतिपूर्ण तरीके से वोटिंग हो पायी. मतदान की प्रक्रिया भी उन दो अधिकारियों की निगरानी में ही संपन्न हुई जिन्हें हिंसा के लिए जिम्मेदार मानते हुए चुनाव आयोग ने हटा दिया है - हालांकि, चुनाव आयोग के फैसले पर भी ये सवाल उठ रहा है कि एक्शन देर से क्यों लिया गया?

चुनाव आयोग के देर से एक्शन लेने पर सवाल उठाना तब ज्यादा सटीक लगता जब वोटिंग के दौरान भी हिंसा हुई होती. मगर, ऐसा नहीं कुछ नहीं हुआ. भारी संख्या में सुरक्षा बलों की मौजूदगी में मतदान शांतिपूर्ण तरीके से ही कराया गया. हालांकि, सच ये भी है कि सुरक्षा बलों के चले जाने के बाद हिंसक भीड़ फिर से सड़क पर उतर आयी और जहां जहां संभव हुआ उपद्रव किया.

सैकड़ों की तादाद में सड़क पर उतर आये युवकों ने एसपी ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया. पुलिस कार्यालय के बोर्ड को उखाड़ फेंका गया. फिर वे प्रदर्शनकारी पूरब सराय थाने पहुंचे और सरकारी गाड़ी को आग के हवाले कर दिया. हालात काबू में तो बताये जा रहे हैं लेकिन इलाके में तनाव बना हुआ है. डीआईजी मनु महाराज ने मोर्चा संभालते हुए मुंगेर में पुलिस के जवानों के साथ फ्लैग मार्च भी किया है. नये एसपी और डीएम को हेलीकॉप्टर से भेजा गया और वे अपने कामकाज संभाल चुके हैं.

nitish kumar and munger violenceमुंगेर हिंसा के लिए नीतीश कुमार कितने जिम्मेदार?

चुनाव आयोग की दलील है कि चूंकि हिंसा के अगले दिन ही चुनाव था, इसलिए अफसरों को वोटिंग के बाद हटाने का फैसला हुआ. फैसला गलत तब जरूर लगता जब वोटिंग के दौरान भी वैसी ही हिंसा हुई होती.

अगर चुनाव आयोग हिंसा के तत्काल बाद जिले के अफसरों के खिलाफ एक्शन लेता तो हो सकता है चुनाव भी टाल देने पड़ते और फिर किसी और दिन कराये जा सकते थे. चुनाव के वक्त आयोग के हाथ में ही पूरी प्रशासनिक व्यवस्था होती है. निष्पक्ष और शांतिपूर्वक मतदान कराना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी होती है.

जिले का प्रशासनिक अधिकारी यानी डीएम ही चुनाव के दौरान निर्वाचन अधिकारी होता है. निर्वाचन अधिकारी चुनाव के दौरान आयोग को रिपोर्ट करता है और आदेश भी मानता है. निर्वाचन अधिकारी की मदद के लिए ही पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात रहते हैं - और उनकी मदद से वो कानून व्यवस्था लागू करता है.

चुनाव के कारण इलाके में धारा 144 पहले से लगी हुई थी और उसी दौरान प्रतिमा विसर्जन के लिए पहले से अनुमति ली गयी होगी. ऐसे मौकों पर ऐसे काम बड़े ही चुनौतीपूर्ण साबित होते हैं. धार्मिक मामला होने के चलते हालात बड़े नाजुक होते हैं. जिस तरीके से हिंसा भड़की है पुलिस की लापरवाही जरूर लगती है. पुलिस ने एहतियाती उपाय पुख्ता नहीं किये थे. वरना, पहले से धारा 144 लागू हो, अगले ही दिन चुनाव होने हो तो इतने बड़े पैमाने पर हिंसा को मौका कैसे मिल सकता है?

तत्कालीन एसपी लिपि सिंह का कहना रहा कि फायरिंग में जो मौत हुई है वो पुलिस नहीं बल्कि असामाजिक तत्वों की गोली लगने से मौत हुई है. पुलिस को आत्मरक्षा में कदम उठाना पड़ा है. लिपि सिंह के मुताबिक 20 पुलिसवाले भी जख्मी हुए हैं और बताते हैं कि उनमें 7 थाना प्रभारी हैं. अगर ऐसा है तो ये हिंसा और उपद्रव कोई मामूली घटना तो नहीं है.

सवाल उठ रहे हैं कि मुंगेर हिंसा के लिए कौन जिम्मेदार है? जन अधिकार पार्टी के नेता और पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव पूछ रहे हैं, 'मुंगेर की एसपी लिपि सिंह जनरल डायर है तो नरसंहार का मुख्य साजिशकर्ता लार्ड चेम्सफोर्ड कौन है? दुर्गा जी के विसर्जन को गए युवाओं का हत्यारा कौन? नीतीश, नरेंद्र मोदी या बीजेपी-जेडीयू?'

नीतीश कुमार के खिलाफ पहले से ही आक्रामक बने हुए चिराग पासवान कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री अब जनरल डायर की भूमिका निभा रहे हैं? हिंसा में नाबालिग के घायल होने की घटना पर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी संज्ञान लिया है और पुलिस से जवाब तलब किया है.

सीपीआई नेता कन्हैया कुमार का भी सवाल है कि प्रशासन को एक्शन लेने में वक्त क्यों लगा? सवाल ये भी है कि प्रशासनिक जिम्मेदारी किसकी है - चुनाव आयोग की या मुख्यमंत्री की? अगर जिम्मेदारी चुनाव आयोग की है तो मुख्यमंत्री जिम्मेदार कैसे?

हिंसा के लिए नीतीश कुमार जिम्मेदार कैसे?

कांग्रेस मुंगेर हिंसा को लेकर बीजेपी की चुप्पी पर भी सवाल खड़े कर रही है. मार्च, 2018 में दरभंगा की घटना में प्रशासनिक कार्रवाई के लिए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सहित तमाम बीजेपी नेता सवाल उठाते रहे. 2016 के भागलपुर हिंसा को लेकर भी बीजेपी नेता हमलावर देखे गये थे, लेकिन मुंगेर की घटना पर कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ जो जेडीयू नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह निशाने पर आये हैं वो आईएएस अधिकारी और राजनीति में आने से पहले बिहार में प्रधान सचिव रह चुके हैं. असल में मुंगेर की एसपी रहीं लिपि सिंह, आरसीपी सिंह की बेटी हैं और उनके पति भी बिहार में बांका के जिलाधिकारी हैं. हिंसा के राजनीतिक बवाल में तब्दील होने की बड़ी वजह भी यही है.

सोशल मीडिया पर कुछ लोग क्रोनोलॉजी समझा रहे हैं. मुंगेर हिंसा के लिए लिपि सिंह के साथ उनके पिता जेडीयू नेता आरसीपी सिंह और फिर उनसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जोड़ कर जिम्मेदारी भी लगे हाथ तय कर दे रहे हैं.

समझाने वाले ये भी कह रहे हैं कि इसे चुनाव आयोग की प्रशासनिक जिम्मेदारी के चश्मे से न देखें क्योंकि वो बेटी तो आरसीपी सिंह की ही हैं - गजब हाल है. मतलब, ये समझाने की कोशिश हो रही है कि लिपि सिंह ने पिता के प्रभाव में ऐसा किया होगा. कहीं ये समझाने की कोशिश तो नहीं हो रही है कि चूंकि कमान चुनाव आयोग के हाथ में है इसलिए नीतीश कुमार सीधे सीधे कुछ नहीं कह सकते इसलिए परोक्ष तरीका अपनाया होगा. हद होती है समझाईश की भी. मूर्ति विसर्जन थाने के स्तर पर ही निपट जाता है. नाजुक परिस्थितियों में बाहरी फोर्स भी बुला ली जाती है. जब अगले ही दिन चुनाव होने वाले हों तो वैसे भी पूरा इलाका पहरे और निगरानी में ही होगा. थाने स्तर पर बेकाबू भीड़ नहीं संभल सकी - और हालात गंभीर होते चले गये.

प्रभारी पुलिस अफसर होने के नाते लिपि सिंह के खिलाफ एक्शन हुआ ही है, उससे न तो आरसीपी सिंह बचा पाते न ही नीतीश कुमार - आगे भी लिपि सिंह को खुद ही अपने किये की भरपाई करनी होगी.

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