अमित शाह के बिहार दौरे से पहले नीतीश ने अपने लोगों को अलर्ट क्यों किया?
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के एनडीए छोड़ देने के बाद 2024 को लेकर बीजेपी की चुनौतियां अचानक बढ़ गयी हैं. ऐसे में अमित शाह (Amit Shah) के बिहार दौरे (Bihar Politics) को लेकर जेडीयू नेता का चिंतित होना और अपने लोगों को अलर्ट करना थोड़ा अजीब लगता है.
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बिहार में सत्ता समीकरण (Bihar Politics) बदल जाने के बाद अमित शाह (Amit Shah) पहली बार बिहार के दौरे पर जा रहे हैं. जाहिर है बीजेपी के लिए अब बिहार भी पश्चिम बंगाल जैसी ही चुनौती बन गया है - लेकिन हैरानी की बात ये है कि नीतीश कुमार उनके दौरे को लेकर खासे चिंतित लग रहे हैं.
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की चिंता ये नहीं लगती कि अमित शाह विपक्षी दलों के नेताओं के संभावित बड़े जमावड़े के ठीक पहले हो रही है. अमित शाह 23 सितंबर को दो दिन के सीमांचल दौरे पर जा रहे हैं. नीतीश कुमार जिस रैली में चीफ गेस्ट नजर आने वाले हैं वो हरियाणा के फतेहाबाद में 25 सितंबर को हो रही है. ये रैली चौधरी देवी लाल की जयंती पर INLD नेता ओम प्रकाश चौटाला करा रहे हैं.
अमित शाह ने रैली के लिए जो इलाका चुना है वो आरजेडी का गढ़ माना जाता है. AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी का भी अक्सर सीमांचल पर ही जोर देखा गया है - मुस्लिम बहुल इलाका होने की वजह से भी सीमांचल को लेकर नीतीश कुमार की चिंता और बीजेपी की दिलचस्पी समझना आसान हो जाता है.
अभी अप्रैल, 2022 की ही तो बात है. अमित शाह बीजेपी के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने जा रहे थे. तब प्रोटोकॉल तोड़ कर नीतीश कुमार अमित शाह से मिलने एयरपोर्ट ही पहुंच गये थे. अमित शाह और नीतीश कुमार की बंद कमरे में कुछ देर तक मीटिंग भी हुई थी - और साथ में बिहार बीजेपी अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल भी थे.
नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने के करीब दस दिन पहले ही बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बिहार दौरे पर गये हुए थे - और विचारधारा को लेकर उनका एक बयान काफी चर्चित भी रहा. जेपी नड्डा ने कहा था एक दिन वो भी आएगा जब अपनी विचारधारा के कारण बीजेपी बचेगी - और सारे क्षेत्रीय दल खत्म हो जाएंगे. हो सकता है, नीतीश कुमार ने जेपी नड्डा के बयान में जेडीयू का भविष्य देखा हो बर्बाद होने से पहले पाला बदल लेने का उनका फैसला मजबूत हो गया हो.
अब राजनीतिक राहें बदल चुकी हैं. अमित शाह के दौरे को लेकर नीतीश कुमार कह रहे हैं कि कुछ न कुछ कोशिश कर सकते हैं किसी न किसी इलाके में झगड़ा पैदा हो जाये - और इसलिए लोगों को अलर्ट रहना होगा. मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए नीतीश कुमार ने अपने लोगों को सलाह दी कि कोई झगड़ा करना चाहे तो भी मत करिये. नीतीश कुमार ने आशंका जतायी, कोशिश होगी कि समाज में टकराव पैदा हो, हम कहेंगे कि टकराव न हो.
चुनावों से पहले जब भी अमित शाह के दौरे होते हैं, बीजेपी के राजनीतिक विरोध पहले से ही तोड़ फोड़ को लेकर सशंकित रहते हैं. देखा भी गया है कि किसी न किसी राजनीतिक दल की तरफ कोई न कोई विकेट गिरता ही है. ये सब चीजें तो नीतीश कुमार ने भी करीब से देखा ही है. नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन का बड़ा हिस्सा तो बीजेपी के साथ ही गुजरा है.
अमित शाह के सामने बिहार में सबसे बड़ी चुनौती तो अभी 2024 के आम चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की है. ऐसे में नीतीश कुमार को अमित शाह के दौरे से किस बात की फिक्र हो रही है?
अमित शाह का बिहार दौरा
23 सितंबर को अमित शाह पूर्णिया में बीजेपी की एक रैली में हिस्सा लेने वाले हैं. अगले दिन 24 सितंबर को किशनगंज में भी बीजेपी की तरफ से एक सार्वजनिक सभा आयोजित की गयी है. सीमांचल में पूर्णिया और किशनगंज के अलावा अररिया और कटिहार लोक सभा क्षेत्र भी आते हैं - असदुद्दीन ओवैसी के इस इलाके में दिलचस्पी होने की वजह है इलाके का मुस्लिम बहुल होना.
अमित शाह का सीमांचल दौरा बीजेपी के मिशन बिहार की शुरुआत है
अमित शाह की रैली का किसी मुस्लिम बहुल इलाके में होना ही नीतीश कुमार की आशंकाओं को जन्म दे रहा है. बीजेपी काफी पहले से ही सीमांचल के इलाके में रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों की बढ़ती आबादी को मुद्दा बनाती रही है.
जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ हुआ करते थे तब भी CAA और NRC जैसे मुद्दों पर अक्सर टकराव देखने को मिलता रहा. अमित शाह से बातचीत के आधार पर बीजेपी के कई नेता समय समय पर दावा करते रहे हैं कि कोविड का दौर खत्म हो जाने के बाद केंद्र सरकार इसे निश्चित तौर पर लागू करेगी.
पश्चिम बंगाल में जब पार्थ चटर्जी गिरफ्तार किये गये थे उसी दौरान विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिल कर दागी नेताओं की एक लंबी सूची सौंपी थी - और उसी मुलाकात के बाद बताया कि अमित शाह ने उनको आश्वस्त किया है कि कोविड के टीकाकरण का कार्यक्रम पूरा हो जाने के बाद नागरिकता संशोधन कानून लागू किया जाएगा.
पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान भी ये कानून लागू करने को लेकर खूब बातें होती रहीं, लेकिन कुछ सोच समझ कर ही केंद्र सरकार ने आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया होगा. जैसे पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजे आने के बाद बीजेपी ने माना कि मुस्लिम वोटों के एकजुट हो जाने के चलते हार का मुंह देखना पड़ा, बिहार में भी अब बीजेपी को ऐसी आशंका सताने लगी होगी.
वैसे भी नीतीश कुमार के नये साथी आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी तो अपने पिता लालू यादव के ही मुस्लिम-यादव समीकरण की ही राजनीति कर रहे हैं. 2019 में तो आरजेडी के हाथ कुछ भी नहीं लगा था, लेकिन अगर 2024 के लिए बीजेपी की तरफ से एहतियाती इंतजाम नहीं किये गये तो मामला गंभीर रूप ले सकता है.
रैलियों के अलावा अमित शाह अधिकारियों के साथ भी मीटिंग करेंगे. बीजेपी की तरफ से बिहार में पीएफआई और एसडीपीआई नेटवर्क का खतरा बढ़ने की आशंका पहले से ही जतायी जा रही है - और एनआईए की छापेमारी भी हुई है - वैसे बदले राजनीतिक हालात में माना जा रहा है कि अमित शाह 2024 को ध्यान में रखते हुए मिशन बिहार शुरू करने ही जा रहे हैं.
इलाके में बीजेपी कमजोर है: 2019 के चुनाव में ये किशनगंज लोक सभा सीट ही रही जो एनडीए के हाथ नहीं आ सकी. हालांकि, ये सीट जेडीयू के हिस्से आयी थी, लेकिन कांग्रेस के डॉक्टर मोहम्मद जावेद ने जीत दर्ज करा दी थी.
विधानसभा की बात करें तो एक एमएलसी को छोड़ दें तो बीजेपी का पत्ता पहले से ही साफ है. किशनगंज की चार में से तीन सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार विधायक बने थे, जो अब तेजस्वी यादव का नेतृत्व स्वीकार कर चुके हैं - और एक विधानसभा सीट कांग्रेस के पास है.
केंद्र शासित क्षेत्र बनाये जाने की चर्चा: अमित शाह के दौरे से पहले सीमांचल क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने की भी काफी चर्चा रही है. कहा जा रहा है कि बिहार और पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों को मिला कर सीमांचल जैसा कोई केंद्र शासित क्षेत्र बनाया जा सकता है.
बीजेपी के ऐसे इलाकों में पीएफआई नेटवर्क, रोहिंग्या और बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ का मुद्दा उठाती रही है, इसीलिए केंद्र शासित क्षेत्र बनाये जाने को लेकर लोग चर्चा करने लगे हैं, लेकिन बीजेपी नेता सैयद शाहनवाज हुसैन ने ऐसी सारी संभावनाओं को सिरे से खारिज कर दिया है.
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन का कहना है, ‘ये दुष्प्रचार है कि सीमावर्ती इलाके को यूनियन टेरिटरी बनाया जाएगा... ये पूरी तरह से गलत और निराधार है चर्चा है. बीजेपी और केंद्र सरकार का ऐसा कोई भी इरादा नहीं है.’
बिहार में बीजेपी का बड़ा टारगेट
अभी 6 सितंबर को ही अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मोदी सरकार के 25 मंत्रियों के साथ 2019 में हारी हुई सीटों पर तैयारियों की समीक्षा की है. बीजेपी ने देश भर की ऐसी 144 लोक सभा सीटों की लिस्ट तैयार की है जहां 2019 में उसके उम्मीदवार दूसरे या तीसरे स्थान पर रह गये थे.
अब बीजेपी नेतृत्व 2024 के हिसाब से ये सीटें जीतने की तैयारी कर रहा है. ऐसी दो से पांच सीटों के लिए केंद्रीय मंत्रियों की ड्यूटी लगायी गयी थी. मंत्रियों को इलाके में 48 घंटे गुजारने को कहा गया था. मंत्रियों को बीजेपी नेतृत्व की तरफ से इलाके की जमीनी हालत का आकलन और बीजेपी की स्थिति पर फीडबैक जुटाने का टास्क दिया गया था.
बिहार में एनडीए ने 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी. एनडीए के हाथ से फिसली किशनगंज सीट पहले तो जेडीयू के हिस्से की रही, लेकिन नीतीश कुमार के चले जाने के बाद अब तो सभी सीटों पर चुनाव की तैयारी बीजेपी अपने लिए ही करेगी.
बताते हैं कि अमित शाह ने नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ देने के बाद 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के 16 लोक सभा सांसद हैं. कांग्रेस के एक सांसद को छोड़ दें तो अब एनडीए के हिस्से में कुल 23 सीटें बचती हैं. बिहार में बचे हुए एनडीए में अब बीजेपी के अलावा चिराग पासवान और उनकी लोक जनशक्ति पार्टी भी शामिल है. चूंकि चिराग पासवान को लेकर नीतीश कुमार को ही आपत्ति रही, इसलिए अब लगता है कि उनके भी अच्छे दिन आ सकते हैं. हां, जैसा प्रदर्शन चिराग पासवान ने 2020 के विधानसभा चुनावों में किया था, आगे भी जारी रखना होगा.
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