बीजेपी के निशाने पर नीतीश कुमार, नज़र में तेजस्वी यादव!
बिहार की राजनीति के लीड रोल में तीन किरदार हैं - नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव और बीजेपी नेतृत्व. पटना और दिल्ली के बीच डिप्टी सीएम सुशील मोदी पुल बने हुए हैं - ऐसे में एक नजर तेजस्वी यादव पर भी है.
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बिहार की राजनीति का अंक गणित अब बीज गणित की तरफ बढ़ चुका है, जिसमें सियासी प्रमेय सिद्ध करने में हर किरदार पूरे जी जान से जुटा हुआ है. बीजेपी नेतृत्व तो अपने मिशन में तो लगा ही है, नीतीश कुमार सरवाइवल के संकट से उबरने की जीत तोड़ कोशिश कर रहे हैं. आम चुनाव में बहुत बुरी हार के बाद तेजस्वी यादव भी हर नफे-नुकसान को तजबीज रहे हैं - और सही मौके का इंतजार कर रहे हैं.
बिहार में चमकी बुखार का संकट अपनी जगह है, लेकिन परदे के पीछे राजनीतिक उठापटक चालू है - और माना जा रहा है कि जल्द ही बड़ी उलटफेर देखने को भी मिल सकती है.
बीजेपी नेता और डिप्टी सीएम सुशील मोदी के ट्विटर टाइमलाइन को देखें तो साफ है कि वो नीतीश कुमार को घेरने की कोशिश तो कर ही रहे हैं - तेजस्वी यादव पर भी उनकी कड़ी नजर है. खास बात ये है कि तेजस्वी यादव पर सुशील मोदी के तीखे हमले के 24 घंटे के भीतर ही आरजेडी नेता लौट भी आये हैं.
बिहार का राजनीतिक प्रमेय
बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं. अगर सुशील मोदी की नजर अपने पूर्ववर्ती डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर है, तो उनके निशाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं. अब सुशील मोदी जो कुछ भी कर रहे हैं, जाहिर है उसके पीछे बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का ही दिमाग चल रहा होगा.
सुशील मोदी नेता बीजेपी के जरूर हैं, लेकिन नीतीश कुमार के साथ उनकी गहरी दोस्ती है. भले ही दोनों की राजनीति सत्ता के दो अलग अलग छोर पर हो, फिर भी साथ में च्यूड़ा-दही और खिचड़ी खाने का मौका नहीं छोड़ते. नीतीश कुमार के प्रति सुशील मोदी का ये भाव उनकी सलाहियत में भी कूट कूट कर भरा होता है.
पाइथागोरस के प्रमेय की तरह बिहार की राजनीति में भी ABC एक त्रिभुज बन रहा है - और त्रिभुज के तीनों छोर पर जमे तीनों किरदार अपने अपने हिसाब से पूरा जोर लगा रहे हैं. एक छोर पर JDU है तो दूसरी छोर पर RJD - एक तीसरा छोर भी है जहां BJP है.
बिहार की राजनीति का ये त्रिभुज ऊपर से तो बराबर नजर आता है, लेकिन कई बार इसमें सम-द्विबाहु त्रिभुज जैसा भी प्रतीत होने लगता है. समझने वाली बात ये है कि त्रिभुज की छोटी भुजा पटना में है तो लंबी भुजाएं दिल्ली से कंट्रोल हो रही लगती हैं.
बिहार की राजनीति में किसी बड़े उलटफेर की संभावना जतायी जा रही है
बिहार के प्रमेय और पाइथागोरस वाले में फर्क बस इतना है कि न तो यहां बायें पक्ष के बराबर दायां पक्ष होना है - और न ही कभी इति सिद्धम् की नौबत आनी है.
पटना की राजनीतिक हलचल, मीडिया रिपोर्ट और सत्ता के गलियारों की चर्चा को सुनने और समझने पर मौजूदा राजनीति में ये तीन ऐंगल साफ दिखायी देते हैं.
1. नीतीश कुमार किस जुगाड़ में जुटे हैं हैं : मोदी कैबिनेट 2.0 और बिहार मंत्रिमंडल विस्तार के बीच जो भी वाकये हुए हैं वे घोर राजनीति के उत्पाद हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह बिहार में भी बीजेपी के विस्तार में जुटे हुए हैं - और नीतीश कुमार हर हमले के बचाव की काट ढूंढ रहे हैं. दोनों कैबिनेट के इर्द गिर्द की घटनाओं पर गौर करने पर दोनों ही तरफ हद से ज्यादा तल्खी नजर आती है.
माना जा रहा है कि बीजेपी की रणनीतिक चालों में उलझ चुके नीतीश कुमार अपने दम पर अस्तित्व बचाने की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं. नीतीश कुमार फिलहाल बीजेपी को तो कोई नुकसान पहुंचा नहीं सकते, इसलिए उनके आदमी आरजेडी की शिकार में जुटे बताये जा रहे हैं. वैसे तो आरजेडी की ओर से नीतीश कुमार के प्रति चुनाव बाद नरमी दिखायी जाने लगी है, लेकिन जेडीयू नेता इस बार कच्चे सौदे के लिए तैयार नहीं हैं. जो भी हो पक्का होना चाहिये.
नीतीश कुमार की टीम आरजेडी विधायकों के संपर्क में बतायी जा रही है. आरजेडी के वे विधायक जो पार्टी सत्ता से काफी दूर देख रहे हैं वे सॉफ्ट टारगेट हो सकते हैं - और नजर उन्हीं पर बतायी जा रही है. वैसे पार्टी तोड़ने का भी अब दो-तिहाई वाला चलन शुरू हो चुका है ताकि दल बदल कानून से बचा जा सके. अगर नीतीश की टीम इस मिशन में कामयाब हो जाती है तो एक बार भी बीजेपी को झटका देकर जेडीयू आगे तक पारी खेल सकते हैं.
2. BJP क्या चाहती है : ऐसा भी नहीं कि ये सब नीतीश कुमार की टीम ही कर रही है. सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक बीजेपी के लोग भी उतनी ही शिद्दत से आरजेडी विधायकों के शिकार में जुटे हैं. बस हत्थे चढ़ने की देर है.
दरअसल, बीजेपी की राजनीति में अब लालू परिवार नहीं, सिर्फ नीतीश कुमार ही कांटा बने हुए हैं. बीजेपी के लोग विधायकों के साथ साथ आरजेडी नेतृत्व के संपर्क में भी बताये जा रहे हैं. बीजेपी को मौका तभी मिल सकता है जब तेजस्वी यादव बाहर से सपोर्ट को तैयार हो जायें और मुख्यमंत्री बीजेपी का हो. तेजस्वी यादव तो वैसे भी नीतीश कुमार से हिसाब चुकता करने का मौका खोज रहे हैं. अगर ये मुमकिन हुआ तो नीतीश कुमार के सामने मुश्किलों का अंबार होगा.
3. तेजस्वी के हिस्से में क्या आएगा : मौके की नजाकत तो समझते हुए तेजस्वी यादव भी मोर्चे पर डट गये हैं - लेकिन उनकी हालत भी कर्नाटक के एचडी कुमारस्वामी जैसी है. बीजेपी कुमारस्वामी की ही तरह तेजस्वी को भी मुख्यमंत्री बनाने से रही. वैसे तो बीजेपी के पास इंदिरा गांधी जैसा भी मौका है जब कांग्रेस नेता ने चौधरी चरण सिंह को सपोर्ट कर मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया था.
अब सवाल ये है कि सिर्फ नीतीश कुमार को सत्ता से हटाकर बीजेपी की सरकार बनवाने के लिए तेजस्वी यादव इतने पापड़ तो बेलेंगे नहीं. फिर सौदेबाजी कहां हो पाएगी?
जिस तरह के हालात हैं, उसमें एक ही इलाका खाली बचता है - प्रतिपक्ष की राजनीति. प्रतिपक्ष की राजनीति तो वैसे भी तेजस्वी यादव फिलहाल कर ही रहे हैं. बेशक, तेजस्वी यादव प्रतिपक्ष की राजनीति कर रहे हैं, लेकिन मुश्किलों का अंबार भी तो लगा है. सूत्रों के हवाले से वस्तुस्थिति जो समझ आ रही है उसमें तेजस्वी के हिस्से में राजनीति तो विपक्ष की ही है, लेकिन मुश्किलें थोड़ी कम हो सकती हैं.
सुशासन बाबू सुन रहे हैं न आप!
बिहार विधानसभा का सत्र शुरू होने के बाद सुशील मोदी ने जहां तेजस्वी यादव को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की, वहीं नीतीश कुमार को आलाकमान की मन की बात के साथ नसीहत देना भी नहीं भूले. सत्र शुरू होने से पहले सुशील मोदी ने एक 2-इन-1 ट्वीट भी किया जिसमें नीतीश कुमार को सलाह के साथ ही अमित शाह के लिए संदेश भी था - टास्क पूरा हुआ.
पुलवामा आतंकी हमले के बाद जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की गिरफ्तारी, उनकी सिक्युरिटी वापस लेना और टेरर फंडिंग जैसे मामलों में कड़ी पूछताछ का असर है कि 30 साल में पहली बार भारत के गृहमंत्री की कश्मीर यात्रा पर किसी अलगाववादी संगठन ने घाटी में बंद का आह्वान करने की जुर्रत.... pic.twitter.com/Ri7uuITpP5
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) June 27, 2019
नीतीश कुमार को सुशील मोदी का मैसेज भी साफ था - 'हाल के संसदीय चुनाव में कश्मीर से धारा 370 को हटाने और अलगाववाद पर कड़े रुख के लिए जनादेश मिला है. ऐसे में इस मुद्दे पर परंपरागत नरम रुख रखने वाले दलों को भी पुनर्विचार करना चाहिए. कश्मीर नीति की पहली सफलता के लिए गृह मंत्री अमित शाह को बधाई.'
वैसे सुशील मोदी के हमले के अगले ही दिन तेजस्वी यादव पटना लौट आये हैं - और बता भी दिया है कि वो मेडिकल लीव पर थे. राहुल गांधी की तरह छुट्टी मनाने नहीं गये थे.
तेजस्वी यादव लौट आये हैं
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव चुनाव नतीजों के बाद से लापता थे - विपक्ष की ओर से बार बार उनकी गैरहाजिरी पर सवाल पूछे जा रहे थे. नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने तो सत्र के दौरान तेजस्वी यादव की अनुपस्थिति को सदन की अवमानना तक बता डाले थे.
तेजस्वी यादव के इस व्यवहार को गैरजिम्मेदाराना बताते हुए सुशील मोदी ने ट्विटर पर लिखा भी, 'पता ही नहीं चल रहा है कि वे वर्ल्ड कप देखने लंदन गए हैं, दिल्ली में बैठकर चमकी बुखार पर नजर रख रहे हैं या कौन-सा ऐसा काम कर रहे हैं, जिसके लिए लोकतंत्र में इतनी रहस्यमय गोपनीयता की जरूरत पड़ती है?' लगे हाथ सुशील मोदी ने आरजेडी से वैकल्पिक इंतजाम की भी मांग कर डाली थी.
बिहार विधान मंडल का सत्र प्रारम्भ होने पर भी मुख्य विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव की सदन में मौजूदगी के बारे में अनिश्चय बना रहना सदन की अवमानना करने जैसा गैरजिम्मेदाराना व्यवहार है।
पता ही नहीं चल रहा है कि वे वर्ल्ड कप देखने लंदन गए हैं, दिल्ली में बैठकर चमकी..... pic.twitter.com/xUPLfzx4A1
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) June 28, 2019
तेजस्वी यादव के लगातार बिहार के पॉलिटिकल स्क्रीन से गायब रहने के सवाल पर राबड़ी देवी को भी गुस्सा आ गया, 'तेजस्वी के बारे में इतनी चिंता क्यों है? वह अपना काम करके जल्द आ रहे हैं.'
हालांकि, राबड़ी देवी की ओर से जल्द ही पॉलिटिकल जवाब भी सुनने को मिल गया, 'वो आपके घर में हैं.' शायद राबड़ी समझाने की कोशिश कर रही थीं कि तेजस्वी यादव लोगों के बीच ही हैं. लोगों के घरों में. लोगों के दिल में. दस्तक देने के साथ ही तेजस्वी यादव ने भी ट्विटर के जरिये अपनी मौजूदगी दर्ज करायी है - बताया है कि काफी दिनों से उन्हें इलाज करना था, लेकिन मौका नहीं मिल रहा था. अपने बारे में जानकारी के साथ साथ तेजस्वी यादव ने सुशील मोदी को जवाब भी दिया है.
Friends! For last few weeks I was busy undergoing treatment for my long delayed ligament & ACL injury. However, I’m amused to see political opponents as well as a section of media cooking up spicy stories.
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) June 29, 2019
तेजस्वी यादव ने मौके पर लौट कर सुशील मोदी की शिकायत भी दूर कर दी है और राजनीति भी चालू है. कौन किसकी बाजी पलट देता है और कौन बाजी मार लेता है, इसके लिए करीब डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है - ब्रेकिंग न्यूज बहुत जल्द आने वाली है!
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