लोकसभा चुनाव की सफलता बिहार विधानसभा चुनाव में कहीं बवाल न कर दे
बिहार की राजनीति में अब भूचाल आ गया है. 2019 लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी को बिहार में जीत का कारण माना जा रहा है, लेकिन नीतीश कुमार अपने सिर जीत का सेहरा बांध रहे हैं. अब 2020 विधानसभा चुनाव की लड़ाई और दिलचस्प हो गई है.
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बिहार के एनडीए में कोई दरार नहीं है, बल्कि यह आपसी वर्चस्व की लडाई है और ये अंदरूनी लडाई चलती रहेगी जबतक कि 2020 का विधानसभा चुनाव नही हो जाता. इस टक्कर को समझने के लिए 2019 के लोकसभा परिणाम पर ध्यान देना होगा. बिहार में एनडीए को अप्रत्याशित सफलता मिली, 40 में से 39 सीटें. ये किसी करिश्मे से कम नहीं है. लेकिन यह हुआ कैसे? बीजेपी इसकी वजह नरेंद्र मोदी का चेहरा मानती है, लेकिन जेडीयू इसे पूरी तरह से सच नहीं मानती. खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बयान दे चुके हैं कि किसी एक के चेहरे पर यह सफलता नहीं मिली है.
लोकसभा का विधानसभा के हिसाब से विशलेषण करें तो पाएंगे कि जेडीयू और बीजेपी ने 17-17 की बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन विधानसभा की नजर से देखें तो बीजेपी 96 विधानसभा और जेडीयू 94 विधानसभा सीटों पर अपने प्रतिद्वंदियों से आगे रहीं. 6 लोकसभा सीट पर लड़ने वाली रामविलास की पार्टी 36 सीटों पर आगे रही है. यानि बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों में से एनडीए 225 सीटों पर आगे थी. केवल 18 सीटों पर महागठबंधन को बढ़त मिली. एनडीए को मिली इस बम्पर सफलता ने ही आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मुश्किलें पैदा की हैं. कहा जा रहा है कि यही वजह है कि केंद्र में सरकार बनते ही बवाल शुरू हो गया. बीजेपी को लगता है कि वो बिहार में एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरी है.
बिहार में एनडीए 2005 से सत्ता में है केवल 2015 में 20 महीने के लिए महागठबंधन की सरकार आई जरूर लेकिन उसके बाद फिर से एनडीए की सरकार है. इनमें से 9 महीने जीतनराम मांझी के काल को छोड़ दिया जाये तो पूरे काल तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे हैं. इसमें गौर करने वाली बात ये है कि इस काल में एनडीए का स्वरूप बिहार में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर बनाया. लेकिन 2020 विधानसभा में ये पहली बार होगा जब एनडीए में रामविलास की पार्टी बीजेपी और जेडीयू के साथ मिलकर विधानसभा का चुनाव लड़ेगी.
नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में जो हलचल पैदा की है वो 2020 विधानसभा चुनाव का नतीजा बदल सकती है.
बिहार में निर्विवाद रूप से नीतीश कुमार एनडीए के नेता रहे हैं. बिहार के बंटवारे के बाद 2005 फरवरी में जब पहली बार चुनाव हुए उसमें जेडीयू 138 सीटों पर और बीजेपी 103 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. हांलाकि, उस चुनाव में सत्ता की चाभी तब अलग चुनाव लड़ रहे रामविलास पासवान के पास थी, जिनके 178 में से 29 विधायक जीते थे और उन्होंने मुस्लिम को मुख्यमंत्री बनने के नाम को किसी समर्थन नहीं दिया. सरकार नहीं बनी लिहाजा 2005 के अक्टूबर में फिर चुनाव हुए जिसमें जेडीयू 139 सीटों पर चुनाव लड़ कर 88 सीट जीती और बीजेपी 102 सीटों पर लड़कर 55 सीटें जीती. पहली बार बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी. अलग चुनाव लड़ रहे पासवान की पार्टी ने 203 सीटों पर चुनाव लडकर 10 सीटें ही जीत पाई थी.
2010 का विधानसभा चुनाव बड़ा ही दिलचस्प था. पिछले 5 सालों में बेहतरीन काम को लेकर बीजेपी और जेडीयू का आत्मविश्वास काफी प्रबल था. लेकिन सत्ता से 2005 में बेदखल हुई आरजेडी की भी तैयारी कम नहीं थी. किसी कीमत पर सत्ता पाने के लिए लालू प्रसाद यादव ने रामविलास पासवान से गठबंधन किया. लेकिन जब चुनाव हुए तो एनडीए को भारी सफलता मिली और आरजेडी गठबंधन का सुपड़ा साफ हो गया. जेडीयू ने 141 सीटें लड़कर 115 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी ने 102 सीटों में से 91 पर विजय हासिल कर पाई. आरजेडी और एलजेपी को कुल मिलाकर 25 सीटें मिली. यानि 243 में से 206 सीटें एनडीए गठबंधन ने जीतीं.
जैसे पहले ही कहा गया कि बड़ी सफलता कभी-कभी सिरदर्द साबित होती है. यही 2019 में हो रहा है और ठीक यही स्थिति 2010 में भी थी. जिस प्रकार बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ये सोचने लगी है कि वो बिहार में बिना जेडीयू के पासवान की मदद से सरकार बना सकती है. ठीक उसी प्रकार की सोच 2010 जेडीयू की थी. और उसका परिणाम ये हुआ कि जेडीयू 2013 में एनडीए से अलग हो गई. इस बीच 2014 का लोकसभा चुनाव हुए और बीजेपी की केंद्र में सरकार बनी और वो बिहार में भी मजबूत हो गई. जबकि जेडीयू लोकसभा में सिर्फ दो सीट लेकर फिसिड्डी साबित हुई. अब 2019 में दोनों के बीच मुकाबला बराबरी का है. इसमें किसका पलड़ा भारी होगा यह जोर आजमाइश पर टिका है और वही जोर आजमाइश एनडीए में दरार के रूप में देखी जा रही है.
हालांकि, 2014 में गच्चा खाने के बाद नीतीश कुमार ने किसी योद्धा की तरह फाईट बैक करते हुए 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया, जिसमें कांग्रेस भी शामिल हुई. इस बार मामला यहां भी बराबरी का रहा लेकिन नेतृत्व नीतीश कुमार का था. जेडीयू और आरजेडी 101-101 सीटों पर चुनाव लड़े जबकि कांग्रेस 41 सीटों पर. नतिजा ये रहा कि जेडीयू को 71 सीटें आरेजडी को 80 तथा कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं. बिहार में एक फिर नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने. लेकिन ये महागठबंधन की सरकार 20 महीने बाद भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर दम तोड़ गई, फिर नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर एनडीए की सरकार बनाई जो अभी चल रही है.
बीजेपी केंद्रीय मंत्रिमंडल में सहयोगी दलों के रूप में जेडीयू को सांकेतिक रूप से शामिल करने की चाल को नीतीश कुमार ने ना सिर्फ नाकाम किया बल्कि ठीक उसके बाद बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार में केवल जेडीयू के मंत्रियों को शामिल करके संकेत देने की कोशिश की अब आगे-आगे देखिए होता है क्या.
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