प्रशांत किशोर चुनाव मैनेज करेंगे ममता बनर्जी का, फायदा कराएंगे नीतीश कुमार का
ममता बनर्जी की परीक्षा की घड़ी तो बाद में आएगी, पहले तो नीतीश कुमार का ही पेपर होना है - क्योंकि बिहार में 2020 और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 में होंगे. नीतीश जिस तरह PK का बचाव कर रहे हैं वो दिलचस्प है.
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आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की सरकार बनवाने के बाद PK यानी प्रशांत किशोर अब ममता बनर्जी के मददगार बनने जा रहे हैं. प्रशांत किशोर फिलहाल नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में उपाध्यक्ष हैं और TMC के लिए 2021 में चुनाव कैंपेन की हामी भरी है. गौर करने वाली बात ये भी है कि लोक सभा चुनाव 2019 के दौरान जेडीयू ने प्रशांत किशोर को चुनाव कार्यों से दूर ही रखा था. खुद पीके ने ही ये बात ट्वीट करके बतायी भी थी.
2016 के विधानसभा चुनाव से पहले भी ममता बनर्जी की ओर से प्रशांत किशोर की सेवा लेने की बात सुनी गयी थी - लेकिन बात बन नहीं पायी. ये तभी का वाकया है जब बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार की लड़ाई में प्रशांत किशोर ने बीजेपी को रोक दिया था. तब तो नेताओं की नजर में प्रशांत किशोर चुनावी वैतरणी पार कराने वाले एक मात्र मसीहा नजर आ रहे थे.
जेडीयू उपाध्यक्ष रहते ही प्रशांत किशोर आंध्र प्रदेश में YSR Congress के लिए चुनाव प्रबंधन का काम कर रहे थे, लेकिन वही काम जब वो ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के लिए करने जा रहे हैं तो बवाल शुरू हो गया है.
सवाल है कि प्रशांत किशोर के चुनाव प्रबंधन से किसी को गुरेज है या ये काम वो किसके लिए करते हैं उससे? किसके लिए करते हैं से आशय है कि जिस किसी के लिए प्रशांत किशोर काम करना चाहते हैं वो मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में किस जगह खड़ा है - सारी बातें इसी पर निर्भर करती हैं.
PK पर नीतीश कुमार की गुगली
बीजेपी के राजनीतिक विस्तार और बढ़ते दबदबे से जितनी मुश्किल ममता बनर्जी महसूस कर रही होंगी, नीतीश कुमार की पीड़ा भी कम नहीं होगी. फर्क सिर्फ इतना है कि नीतीश कुमार इस बार हैं और ममता बनर्जी उस पार.
आम चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 में 18 सीटें जीत कर ममता बनर्जी की नींद हराम कर रखी है. मिली तो ममता को भी 22 सीटें हैं लेकिन 2014 में इनकी संख्या 34 रही जबकि बीजेपी के पास तक केवल दो सीटें ही थीं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर की 6 जून को मुलाकात हुई थी. बताते हैं कि प्रशांत किशोर TMC सांसद अभिषेक बनर्जी के साथ सचिवालय गये - और ममता बनर्जी के साथ उनकी मीटिंग करीब 90 मिनट तक चली. तभी से चर्चा है कि 2021 में ममता बनर्जी की हैट्रिक पारी में प्रशांत किशोर मददगार बनने जा रहे हैं.
मालूम नहीं क्यों नीतीश कुमार तो यही बताये हैं कि प्रशांत किशोर को जेडीयू में उपाध्यक्ष बनाया भी उन्होंने अमित शाह के कहने पर ही! दिलचस्प बात ये भी है कि प्रशांत किशोर के पश्चिम बंगाल के अगले विधानसभा चुनाव में काम करने से दिक्कत भी बीजेपी को ही है. वैसे बीजेपी ऊपरी तौर पर जाहिर नहीं कर रही है, हो सकता है अंदर ही अंदर नीतीश कुमार को घेरने की तैयारी चल रही हो.
BJP महासचिव और पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय की नजर में अमित शाह की तुलना में प्रशांत किशोर बहुत छोटे चुनाव रणनीतिकार हैं. कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, 'जहां तक चुनावी रणनीति का सवाल है, भाजपा प्रमुख उस कॉलेज के प्रिसिंपल हैं जिसमें प्रशांत किशोर अभी तक छात्र हैं.' ध्यान रहे ये छात्र ही चार साल पहले प्रिंसिपल साहब को चुनावी मैदान में शिकस्त दे चुका है. ये भी सही है कि उससे पहले नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने में भी प्रशांत किशोर का अहम योगदान रहा है.
प्रशांत किशोर का तो पूरा बचाव कर रहे हैं नीतीश कुमार
प्रशांत किशोर के ममता बनर्जी के लिए काम करने को लेकर नीतीश कुमार ने एक तरीके से बचाव ही किया है. ये भी कह सकते हैं कि इस मामले में खुद पल्ला झाड़ लिया है. प्रशांत किशोर को लेकर पूछे जाने पर नीतीश कुमार ने बड़ा ही गोलमोल जवाब दिया है. कह दिया है कि वो खुद ही बताएंगे - 'पूछा जाएगा तो बताना ही पड़ेगा.'
नीतीश ने कहा, 'उनके नेतृत्व में एक संगठन काम कर रहा है. उनकी कंपनी जो काम करती है, उसके बारे में वही जानते हैं. लेकिन मैं साफ कर देना चाहता हूं उनके काम का हमारी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है.'
PK और ममता बनर्जी के साथ होने से नीतीश का फायदा
ममता बनर्जी और प्रशांत किशोर की मीटिंग के बावजूद नीतीश कुमार चुनाव कैंपेन के काम को अलग करके देखते हैं - और समझाते भी हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के पूछने पर नीतीश कुमार कहते हैं, चुनाव रणनीति को लेकर जो समझौता हुआ है वो I-PAC और तृणमूल कांग्रेस के बीच हुआ है. नीतीश खुद ही बताते हैं, प्रशांत किशोर I-PAC की भूमिका 'मार्गदर्शक' भर हैं और उन्होंने समझौते पर दस्तखत नहीं किया हैं.
ये पूछे जाने पर कि चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर जेडीयू की जगह जगहनमोहन के चुनाव प्रचार में व्यस्त रहे, नीतीश बोले, 'जेडीयू कार्यकर्ताओं की पार्टी है और वो किसी एक व्यक्ति या किसी एक नेता पर निर्भर नहीं है.'
किसी और को इस बात से कोई शिकायत नहीं रही जब जेडीयू उपाध्यक्ष रहते हुए प्रशांत किशोर आंध्र प्रदेश में YSR Congress के नेता जगनमोहन रेड्डी के लिए चुनाव प्रचार करते रहे. किसी को तब भी को ऐतराज नहीं रहा जब चुनाव कैंपेन को लेकर सलाह-मशविरे के लिए प्रशांत किशोर शिवसेना नेताओं उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे से मिले - और बातचीत की. दिक्कत तो तब शुरू हुई जब पीके ने ममता बनर्जी के लिए काम करने की हामी भर दी.
जगनमोहन रेड्डी बाहर से बीजेपी को सपोर्ट कर रहे हैं तो ठाकरे परिवार एनडीए का हिस्सा ही है - जब विरोधी खेमे की ममता बनर्जी के लिए एनडीए पार्टनर जेडीयू से जुड़े प्रशांत किशोर काम करेंगे तो कैसे हजम होगा.
जेडीयू में रहते हुए पीके का ममता बनर्जी के लिए काम करना बीजेपी को कतई गवारा नहीं होगा, ये बात नीतीश कुमार भी जानते हैं और प्रशांत किशोर भी. फिर भी प्रशांत किशोर सरेआम ऐसा करने जा रहे हैं और नीतीश कुमार ने न तो कोई सख्ती दिखायी है, न ही नाराजगी. फिर क्या समझा जाये? लगता तो ऐसा ही है कि नीतीश कुमार को भी इससे कोई ऐतराज होने की जगह एक तरह से सहमति ही है.
ममता के इम्तिहान की घड़ी तो बाद में आएगी, पहले तो नीतीश कुमार का ही पेपर होने वाला है - 2020 में. पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2021 में होंगे. 2015 में नीतीश कुमार महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़े थे - और एक बार फिर गाड़ी घूमते फिरते नये सिरे से ऑफर और ग्रीन सिग्नल तक पहुंच चुकी है.
आरजेडी नेता राबड़ी देवी ने महागठबंधन में नीतीश कुमार की एंट्री पर जो ऐतराज भरी पाबंदी लगायी थी, उसे हटा लिया है. राबड़ी देवी का अब कहना है कि अगर जेडीयू महागठबंधन में आने की पहल करता है तो स्वागत है. हालांकि, ये हृदय परिवर्तन बिहार चुनाव में 2014 में मायावती जैसा हाल हो जाने पर मुमकिन हो पाया है. वरना राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव तो लालू प्रसाद की किताब प्रकाशित होने के बाद हद से ज्यादा हमलावर हो गये थे. शांत भी तब हुए जब प्रशांत किशोर ने सख्त लहजे में सारा पोल खोल देने की ओर इशारा किया.
तब काफी चर्चा रही कि नीतीश कुमार के संदेश के साथ प्रशांत किशोर कई बार लालू प्रसाद और फिर तेजस्वी यादव से भी मिले. मुलाकात का मकसद साफ था - नीतीश कुमार एनडीए छोड़ कर महागठबंधन में लौटना चाहते थे. बात नहीं बनी क्योंकि राबड़ी देवी नीतीश कुमार को लेकर बेहद गुस्से में थीं और तेजस्वी यादव को भी आम चुनाव में सारी सीटें जीत लेने का अंदाजा था.
देखा जाये तो नोटबंदी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीतीश कुमार के सपोर्ट से ममता बनर्जी खासी खफा रहीं. ममता बनर्जी ने तो पटना जाकर रैली भी की और उसमें लालू प्रसाद ने भरपूर मदद भी की. लालू प्रसाद ने उस रैली में राबड़ी देवी सहित आरजेडी के कई वरिष्ठ नेताओं को भेज दिया था. जब नीतीश कुमार एनडीए में शामिल हो गये तो विपक्षी खेमे से पूरी तरह कट गये - लेकिन जब घुटन होने लगी तो लौटने की जुगत में जुट गये.
नीतीश कुमार को मालूम है कि आम चुनाव में तो बीजेपी ने बिहार में जेडीयू के साथ आधी सीटें बांट ली - क्योंकि तब उसके लिए रिस्क लेना संभव न था - अब तो पांच साल के लिए कोई चिंता वाली बात है ही नहीं है. फिर तो विधानसभा चुनाव में बीजेपी सख्ती से बारगेन करेगी - वैसे भी उसकी नजर सीएम की कुर्सी पर पहले से ही है.
देखा जाये तो ममता बनर्जी और नीतीश कुमार दोनों ही के सामने अपनी अपनी कुर्सी बचाने की चुनौती है - और पीके इसी के तो एक्सपर्ट हैं. नीतीश कुमार के सामने फिलहाल दो विकल्प हैं. एक, महागठबंधन में उनकी वापसी हो जाये. ऐसा हुआ तो सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, सिर्फ एक बार और शपथ लेना पड़ेगा. बाकी चीजें वैसे ही रहेंगी सिर्फ डिप्टी सीएम का नाम सुशील मोदी से बदल कर फिर से तेजस्वी यादव हो सकता है. आरजेडी और जेडीयू दोनों को इस वक्त एक दूसरे की सबसे ज्यादा जरूरत है.
नीतीश के लिए दूसरा विकल्प ये है कि वो एनडीए में ही बने रहें और विधानसभा सीटों पर अच्छी डील के लिए दबाव बनायें. मुमकिन है बीजेपी प्रशांत किशोर को लेकर नीतीश कुमार पर दबाव डालेगी. अगर एनडीए में रहना हुआ तो जैसे चुनावों से दूर रखा पीके के लिए जेडीयू में कोई और रास्ता निकाल लिया जाएगा. नीतीश कुमार के लिए बीजेपी का और मजबूत न होना ही फायदेमंद है. ऐसा तभी हो पाएगा जब नीतीश कुमार का भी दबदबा बना रहे और ममता बनर्जी बीजेपी को जहां पहुंची है वहां से पीछे नहीं धकेल सकें तो वहीं रोक दें.
जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक से भी नीतीश कुमार ने बीजेपी को अपने भविष्य के स्टैंड के रूझान देने लगे हैं. तय हुआ है कि बिहार में तो बीजेपी के साथ जेडीयू का एनडीए में गठबंधन बना रहेगा - लेकिन हरियाणा, झारखंड और दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों में नीतीश की पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी. अकेले चुनाव लड़ने का मतलब तो बीजेपी के खिलाफ ही हुआ - समझदार बीजेपी नेतृत्व के लिए समझदार नीतीश कुमार का एक इशारा काफी ही समझा जाना चाहिये.
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