जांच एजेंसियों की कार्रवाई पर नीतीश कुमार पूरी तरह विपक्ष के साथ क्यों नहीं हैं
विपक्षी नेताओं (Opposition Leaders) के खिलाफ जांच एजेंसियों की कार्रवाई के मामले में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का रुख काफी रहस्यमय नजर आ रहा है - क्या ये बीजेपी (BJP) के साथ विकल्प खुले रखने का संकेत है? या विपक्षी खेमे में दबाव बनाने की कोई खास रणनीति?
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बिहार में तो नहीं, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) विपक्षी खेमे में हैं. अब तक तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ही नीतीश कुमार पाला बदलते रहे हैं, लेकिन कुछ दिनों से एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में हाथ आजमा रहे हैं - अलग अलग मामलों में उनके अलग स्टैंड से ये समझना मुश्किल हो रहा है कि वास्तव में उनका कोई एक स्टैंड है क्या?
और ये सस्पेंस किसी और ने नहीं बनाया है. ऐसा खुद नीतीश कुमार ही कर रहे हैं. और ये कोई नयी बात भी नहीं है. अक्सर ही वो चुप्पी साध लेते हैं. लेकिन जब किसी मुद्दे पर कुछ बोलना होता है, तो बिना पूछे ही बोल भी देते हैं - विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के तूफानी अभियान के बीच नीतीश कुमार के एक फैसले ने कई सारे सवाल खड़े कर दिये हैं.
जहां तक विपक्षी दलों (Opposition Leaders) के नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों के एक्शन की बात है, तो प्रवर्तन निदेशालय ने मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया है. और लालू प्रसाद यादव से जुड़े कई ठिकानों पर ईडी के अफसर जांच पड़ताल कर रहे हैं - जिसमें लालू यादव की बेटियों, रिश्तेदारों के घर और करीबियों के यहां छापेमारी हुई है.
दिल्ली सरकार की शराब नीति के मामले में ईडी ने बीआरएस एमएलसी के. कविता को भी समन दे रखा है. कविता तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी हैं - और दिल्ली में भूख हड़ताल कर रही हैं.
भूख हड़ताल तो कविता महिला आरक्षण को लेकर कर रही हैं, लेकिन ये अपने तरीके का शक्ति प्रदर्शन भी लगता है क्योंकि अभी तो सिर पर ईडी की तलवार लटक रही है. महिला आरक्षण को लेकर कविता ने सोनिया गांधी के पहल की भी तारीफ की थी, लेकिन उनके समर्थन में भूख हड़ताल में शामिल 12 राजनीतिक दलों में कांग्रेस नहीं शामिल है.
जंतर मंतर पर कविता की भूख हड़ताल में उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति के सपोर्ट में आम आदमी पार्टी, उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना, अकाली दल, पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, जेडीयू, एनसीपी, सीपीआई, सीपीएम, समाजवादी पार्टी, आरएलडी के नेताओं के साथ साथ कपिल सिब्बल भी पहले से ही समर्थन जता चुके हैं.
पेशी को लेकर मिले बुलावे को कविता ईडी नहीं बल्कि मोदी का समन बता रही हैं, 'दो मार्च को हमने एलान किया... महिला आरक्षण विधेयक को लेकर भूख हड़ताल करेंगे. 9 मार्च को मुझे ईडी ने समन किया.'
कविता का कहना है कि ईडी अधिकारियों से दो रिक्वेस्ट की थी. एक पेशी के लिए 16 मार्च की तारीख दी जाये, और पूछताछ घर पर हो. ईडी ने एक दिन की ही मोहलत दी और 11 की तारीख फाइनल कर दी, लेकिन पूछताछ के लिए दफ्तर जाना ही होगा.
कविता के साथ भूख हड़ताल में तो जेडीयू शामिल है, लेकिन मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजी गयी विपक्षी दलों की चिट्ठी पर न तो नीतीश कुमार न ही किसी जेडीयू नेता ने ही हस्ताक्षर किया है.
ये पूछे जाने पर जेडीयू अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह का कहना है कि पत्र को लेकर किसी ने उनसे संपर्क ही नहीं किया था. ललन सिंह ने लालू यादव और राबड़ी देवी से हुई पूछताछ को लेकर भी जेडीयू का पक्ष रखा है - लेकिन नीतीश कुमार बिलकुल चुप हैं.
और ये खामोशी ही उनके ताजा रुख पर सवालिया निशान है. नीतीश कुमार के ताजा स्टैंड को लेकर ये समझना मुश्किल हो रहा है कि वो पूरी तरह बीजेपी (BJP) के खिलाफ हैं भी या नहीं?
अब तो ये समझना भी मुश्किल हो रहा है कि नीतीश कुमार पूरी तरह एजेंसियों के एक्शन के खिलाफ हैं या नहीं? नीतीश कुमार पूरी तरह लालू यादव के साथ हैं या नहीं? नीतीश कुमार पूरी तरह कांग्रेस के साथ हैं या नहीं?
ऐसे में ये समझना तो और भी मुश्किल हो रहा है कि नीतीश कुमार आखिर कहां खड़े हैं - विपक्षी खेमे की बात हो तो नीतीश कुमार की ताजा लोकेशन क्या है?
नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है?
महागठबंधन में दोबारा लौटने के बाद नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रहे थे. दिल्ली में एक बार विपक्षी दलों के कुछ नेताओं के साथ मिले भी, लेकिन उसके बाद कभी बात आगे बढ़ती नहीं दिखी.
नीतीश कुमार घिरे जरूर हैं, लेकिन सरवाइवल किट अभी पूरी तरह खाली नहीं समझा जाना चाहिये
बाद में हरियाणा के नेता ओमप्रकाश चौटाला की तरफ से बुलायी गयी विपक्षी दलों की एक रैली में शामिल हुए और अपनी बातें कही - और तभी लालू यादव के साथ 10, जनपथ जाकर सोनिया गांधी से भी मुलाकात की, लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ.
अखिलेश यादव को यूपी में महागठबंधन का नेता और तेजस्वी यादव को बिहार में महागठबंधन का नेता भी घोषित कर दिये, लेकिन राहुल गांधी ने क्षेत्रीय दलों के खिलाफ जो अभियान शुरू किया उसके बाद तो सब बिखरे ही नजर आने लगे - और नीतीश कुमार के सामने ज्यादातर रास्ते बंद नजर आने लगे.
मौजूदा माहौल में अरविंद केजरीवाल के समर्थन में नीतीश कुमार का स्टैंड सभी राजनीतिक दलों के लिए संदेश लिया हुआ लगता है - और इसीलिए कुछ सवाल भी हैं.
1. नीतीश कुमार ने दस्तखत क्यों नहीं किया: मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई की कार्रवाई को लेकर विपक्षी दलों के नेताओं वाले पत्र पर नीतीश कुमार ने दस्तखत नहीं किया, जबकि उनकी ही सरकार में डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने किया है. जेडीयू अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने पार्टी का पक्ष जरूर रखा है, लेकिन नीतीश कुमार चुप रह कर हमेशा की तरह संदेह का पूरा लाभ लेने के चक्कर में लगते हैं.
2. किसी के साथ हैं भी या नहीं: नीतीश का ये कदम लालू यादव का साथ न देना है? अरविंद केजरीवाल के साथ खड़ा नहीं होना है? कांग्रेस का साथ देना है? या फिर बीजेपी विरोध से बचना है?
3. क्या लालू परिवार के लिए चेतावनी है: क्या नीतीश कुमार के इस स्टैंड में लालू यादव के लिए ये मैसेज है कि अगर वो उनकी जड़ें खोदी जाएंगी... और सुधाकर सिंह जैसे नेताओं पर लगाम नहीं कसा जाएगा, तो वो ऐसे ही खेल खेलते रहेंगे.
4. क्या ये नीतीश कुमार की प्रेशर पॉलिटिक्स है: नीतीश कुमार की तरफ से क्या ये अरविंद केजरीवाल, केसीआर और अखिलेश यादव के लिए कोई खास संदेश है? अगर ये नेता अलग रास्ता बनाएंगे तो उनके पास भी विकल्प खत्म नहीं हुए हैं, क्या यही समझाने की कोशिश है?
5. कांग्रेस नेतृत्व को भी धमका रहे हैं क्या: पटना और पूर्णिया रैली, दोनों ही मंचों से नीतीश कुमार कांग्रेस को संदेश भेज चुके हैं. तो क्या ये कदम बताने की कोशिश है कि अगर कांग्रेस भी उनकी बातें नहीं सुनेगी तो वो आगे वो नये रणनीति पर काम शुरू कर देंगे.
लालू और नीतीश कितने पास, कितने दूर?
‘नौकरी के बदले जमीन घोटाला’ को लेकर सीबीआई ने नये सिरे से जांच पड़ताल तेज कर दी है. नीतीश कुमार तो चुप हैं, लेकिन जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह आरजेडी के स्टैंड को सही ठहरा रहे हैं, और पूछ रहे हैं कि जब दो बार सीबीआई केस को क्लोज कर चुकी है, तो नये सबूत कहां से मिल गये?
मामला 14 साल पुराना है. बात तभी की है जब 2004 से 2009 तक लालू यादव केंद्र सरकार में रेल मंत्री रहे. आरोप है कि रेल मंत्री रहते लोगों को रेलवे में नौकरी दिये जाने के एवज में पलॉट तोहफे के तौर पर लिये गये.
हाल फिलहाल नीतीश कुमार का रंग ढंग एक बार फिर 2017 की तरह महसूस किया जाने लगा है. तभी तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई ने एक केस दर्ज किया था. नीतीश कुमार चाहते थे कि तेजस्वी यादव इस्तीफा दे दें, लेकिन लालू यादव इसके लिए तैयार नहीं हुए.
अपने बचाव में तेजस्वी यादव ने आईआरसीटीसी घोटाला केस को फर्जी बताते हुए कहा था कि ये तब का मामला है जब उनकी मूंछें भी नहीं आयी थीं. तेजस्वी यादव के इस्तीफा न देने को मुद्दा बनाते हुए नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को एक झटके में पैदल कर दिया.
लेकिन अगस्त, 2022 में जब नीतीश कमार ने फिर से एनडीए छोड़ दिया और महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन गये तो सवाल उठा, तेजस्वी यादव के मामले में उनके पुराने स्टैंड को लेकर - नीतीश यादव बोले, इतने दिन हो गये और कुछ पता तो नहीं लगा पाये!
तेजस्वी यादव कहते हैं कि लालू यादव को राजनीतिक साजिश में फंसा दिया गया है, और नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की बात करते हैं - लालू परिवार के खिलाफ फिलहाल जो हो रहा है, वो सब नीतीश कुमार के सिद्धांतों के खिलाफ आता है.
नीतीश कुमार भी कह चुके हैं कि मर जाएंगे लेकिन वो बीजेपी में कभी नहीं जाएंगे. अमित शाह ने भी अपनी तरह से साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार भविष्य में कभी बीजेपी के साथ नहीं होंगे. लेकिन कल क्या हो, किसे पता? कसमें, वादे, प्यार, वफा सब बातें हैं बातों का क्या?
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