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Updated: 27 अक्टूबर, 2018 03:34 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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बिहार में एनडीए के दो बड़े घटक दलों- भाजपा और जेडीयू के बीच सीटों को लेकर समझौता हो गया. इसकी घोषणा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने करते हुए कहा कि दोनों पार्टियां सामान सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं.

कह सकते हैं कि नीतीश कुमार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर भारी पड़े, क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार को बड़े भाई की भूमिका की बात उनकी पार्टी कहती रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू मात्र 2 सीटों पर ही जीत हासिल कर पायी थी. तब जेडीयू एनडीए का घटक दल नहीं था. वहीं 2014 के चुनाव में 40 सीटों में से 31 पर एनडीए ने सफलता पाई थी जिसमें 22 सीटें भाजपा, 6 सीटें रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और 3 राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी को मिली थीं.

nitish kumar amit shahदोनों पार्टियां सामान सीटों पर चुनाव लड़ेंगी

अगर पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी 7 तथा केन्द्रीय राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी 4 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. अगर लोकसभा की 40 सीटों में से इनकी 11 सीटों को निकाल दिया जाए तो 29 सीटें ही बचती हैं. ऐसे में भाजपा और जेडीयू के खाते में करीब करीब 15 सीटें ही बचती हैं.

एनडीए के दूसरे दलों में नाराज़गी

लेकिन सीटों के इस फॉर्मूले से एनडीए के दूसरे दलों की नाराज़गी भी खुलकर सामने आने लगी है. जैसे आरएलएसपी के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने राजद के नेता तेजस्वी यादव से मुलाकात की है. इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए का साथ छोड़कर राजद से तालमेल बैठा सकते है.

कुछ दिन पहले लोक जनशक्ति पार्टी ने 7 सीटें पाने के लिए अपना दावा किया था. पिछले लोकसभा चुनाव में पासवान की पार्टी 7 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. यही नहीं राजद का दावा है कि तेजस्वी ने चिराग पासवान से भी मुलाकात की है.

नीतीश कुमार की बल्ले-बल्ले

इस सीट समझौते से नीतीश कुमार काफी खुश हो सकते हैं क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में इनकी पार्टी को केवल 2 सीटों पर ही सफलता हासिल हुई थी. लेकिन इस बार करीब 15 सीटों पर उम्मीदवारी का मौका है और गठबंधन का फायदा उठाते हुए आनेवाले 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी सीटों में काफी इज़ाफ़ा कर सकते हैं. नीतीश कुमार अगर सम्मानजनक सीटें जीतने में कामयाब होते हैं और भाजपा केंद्र में सरकार बनाने के लायक सीटें नहीं ला पाती है, ऐसे में नीतीश कुमार पाला बदलकर प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के दावेदार भी हो सकते हैं. नीतीश कुमार पहले भी भाजपा से नाता तोड़ चुके हैं.

nitish kumar amit shahइस करार से फायदे में नीतीश कुमार

भाजपा को नुकसान

पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की 40 सीटों में से भाजपा ने 29 पर उम्मीदवार खड़े किए थे जिसमें 22 सीटों पर विजयी हुई थी. अब सवाल ये कि अगर इसके खाते में 15 ही सीटें आती हैं तो इनके बाकी जीते हुए 7 सांसदों का क्या होगा? क्या वो बगावत पर उतारू नहीं होंगे? आखिर भाजपा इतनी कम सीटों पर समझौता क्यों कर रही है? भाजपा को मालूम है कि उसके कुछ सांसदों का फीडबैक अच्छा नहीं है और ऐसे में उसे कुछ सांसदों के टिकट काटने ही थे. दूसरा उसके दो सांसद कीर्ति आजाद और शत्रुघ्न सिन्हा बागी हो चुके हैं, इनका पत्ता साफ़ होना ही था.

ऐसे में कहा जा सकता है कि इस सीट समझौते के फॉर्मूले ने साफ कर दिया है कि बिहार के एनडीए में नीतीश कुमार ही 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़े भाई की भूमिका निभाने वाले हैं.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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