अब चुप नही बैठेंगे नीतीश कुमार
पिछले साल महागठबंधन से नाता तोड़ कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने के फैसले की वजह से नीतीश कुमार की आलोचना और प्रशंसा दोनों हुई. लेकिन हाल में हुए दो उपचुनावों में हार से यह साफ हो गया है कि कहीं न कहीं रणनीति में चूक है.
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बिहार में नीतीश कुमार एनडीए का चेहरा होंगे. यह जनता दल यूनाइटेड की दो टूक है. इससे लगता है कि पार्टी अब उस झटके से उबर रही है, जो उन्होंने खुद लिया था. पिछले साल महागठबंधन से नाता तोड़ कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने के फैसले की वजह से नीतीश कुमार की आलोचना और प्रशंसा दोनों हुई. लेकिन हाल में हुए दो उपचुनावों में हार से यह साफ हो गया है कि कहीं न कहीं रणनीति में चूक है, इसलिए पार्टी अब फिर कमर कसने लगी है. 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी अपना हक लेना है. जदयू जिस उम्मीद के साथ बीजेपी की सरकार से मिली, वो पूरी नहीं हुई है. ऐसे में उसकी स्थिति ऐसी हो गई जैसे कोई लड़की परिवार को छोडकर प्रेमी के साथ जाए और प्रेमी उसे धोखा दे.
भ्रष्टाचार को लेकर नीतीश कुमार ने महागठबंधन सरकार से इसलिए नाता तोड़ा था कि बीजेपी के साथ मिलकर बिहार का विकास करेंगे. हांलाकि, नीतीश कुमार को पहला झटका तब लगा जब सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने से इनकार कर दिया. मंत्रिमंडल में उनकी पार्टी को जगह नहीं मिली. उसके बाद बाढ़ के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाढ़ग्रस्त इलाकों का दौरा किया और केवल 500 करोड़ की फौरी राहत दी. लोगों को लगा कि हो सकता है बाद में केन्द्र सरकार मदद करेगी. बिहार सरकार ने दिल खोल कर लोगों को राहत पहुंचाई और लगभग 7400 करोड़ का राहत का प्रस्ताव केन्द्र के पास भेजा, लेकिन मिले कुल 1700 करोड़. साफ है कि बिहार को लेकर केन्द्र की मंशा क्या है. यही वजह है कि नीतीश कुमार ने फिर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को तेज कर दी.
नीतीश कुमार अभी भी देश के उन गिने-चुने नेताओं में से है, जिनकी छवि अच्छी है. और अच्छी छवि की वजह से ही कई गलतियों के बाद भी जनता उन्हें मौका देती रही है. बीजेपी के साथ न जाने के 2013 के उनके प्रण को छोड दें तो बाकी वायदों को वो पूरा करने की पूरी कोशिश करते हैं. और यही उनकी छवि भी रही है. 12 साल से बिहार में उनका शासन है, लेकिन व्यवस्था का दोष कहें या फिर बिहार का दुर्भाग्य, जिस गति से प्रगति होनी चाहिए, उस गति से बिहार की प्रगति नहीं हुई है. अब लालू-राबड़ी के 15 साल का मुद्दा भी नहीं रहा. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए अपनी छवि के साथ-साथ बिहार को तेज गति से विकास कराने की बडी चुनौती है.
यानी नीतीश कुमार को अपनी टीम का विकेट बचाने के साथ-साथ रन गति को भी तेज करना होगा. नीतीश कुमार के लिए अपनी कुर्सी उतनी महत्वपूर्ण नहीं होनी चाहिए. 15 साल का शासन कम नहीं होता है, बल्कि उन्हें ऐसा करना चाहिए कि लोग उनके विकास के कामों को लेकर वर्षों तक याद करें और सम्मान में भी कोई कमी न हो. लेकिन ये होगा कैसे? बिना रोए तो मां भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती है. नीतीश कुमार में अभी भी दम है. अपने फैसले को लेकर वो भले ही कुछ दिनों से चुप हैं, लेकिन अब शायद ऐसा नहीं होगा.
जदयू की कोर कमेटी के इस फैसले से साफ है कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा होंगे. पार्टी ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है. पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार के फैसले को देखेंगे तो पता चलेगा कि चाहे वो केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे को गिरफ्तार करने का मामला हो या नोटबंदी पर सवाल उठाने की बात हो. ये तमाम बातें इशारा कर रही हैं कि हम आ तो गए हैं, लेकिन चैन से नही बैठेंगे.
7 जून को बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद पहली बार नीतीश कुमार एनडीए की बैठक कर रहे हैं. इस बैठक में काफी कुछ साफ होगा. नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री हैं, एनडीए ने उन्हें विधायक दल का नेता चुना है, तो निश्चित रूप से वो बिहार का चेहरा हैं. जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का राज था तब भी बिहार का चेहरा नीतीश कुमार ही थे. ऐसे में जदयू के नेताओं का मानना है कि उन्हें बिहार का चेहरा बनाने में बीजेपी को भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. नीतीश कुमार ने बिहार में हमेशा बीजेपी के बडे भाई की भूमिका निभाई है. पहले फेज में साढ़े आठ साल बीजेपी के साथ सरकार में रहते हुए नीतीश कुमार ही उनका चेहरा थे. लेकिन दूसरे फेज की शुरुआत में परिस्थितियां जरूर बदली हैं. बीजेपी की सीटें लोकसभा में तो बढ़ीं, लेकिन बिना चेहरे के वो 2015 का विधानसभा चुनाव हार गई.
दूसरे फेज में बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद नीतीश कुमार नतमस्तक जरूर दिखे, लेकिन अब शायद ऐसा नही होगा. बिहार की जनता इसे पसंद भी नहीं करती कि नीतीश कुमार नतमस्तक हों. जोकीहाट उपचुनाव की हार ने इसका संकेत दे दिया है. जोकीहाट में पिछले चार चुनावों में से तीन चुनाव नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर जीते, लेकिन ये बात पहले फेज की है. दूसरे फेज में वो बीजेपी के साथ रहते चुनाव हार गए. तो अब तैयार रहिए नीतीश कुमार चुप नहीं बैठेंगे.
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