क्या सन्देश दे गया लोकसभा में लाया गया अविश्वास प्रस्ताव
2019 की राजनीतिक जंग के लिए विपक्षी खेमा नया दोस्त खोजने में फिलहाल नाकाम दिखा, वहीं सरकार ने ना सिर्फ अपने खेमे को टूटने से बचाया बल्कि पोस्ट-पोल अलायन्स के लिए भी उम्मीद जगाने में कामयाब रही.
-
Total Shares
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस ने साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों से जुड़े कई अहम संकेत दिए हैं. वैसे माना जा रहा था कि सरकार इसका इस्तेमाल अपने काम और अपनी उपलब्धियों के गुणगान के लिए करेगी तो वहीं विपक्ष अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को कठघरे में खड़ा करना चाहेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही. लेकिन इसके साथ ही कौन दल किस ओर खड़ा है या फिर कहें कि किस पलड़े में जायेगा ये भी साफ हो गया. बात अविश्वास प्रस्ताव के रिजल्ट की करें तो यह बुरी तरह विफल रहा, अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में जहां सिर्फ 126 वोट ही पड़े तो वहीं इसके खिलाफ 325 वोट पड़े.
अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल का भाषण सुनने लायक था
देखा जाए तो 2019 की राजनीतिक जंग के लिए विपक्षी खेमा नया दोस्त खोजने में फिलहाल नाकाम दिखा, वहीं सरकार ने ना सिर्फ अपने खेमे को टूटने से बचाया बल्कि पोस्ट-पोल अलायन्स के लिए भी उम्मीद जगाने में कामयाब रही और आने वाले दिनों में देश की राजनीति में इसका असर जरूर देखने को मिलेगा. ये तो पहले ही तय था कि लोकसभा में लाये गए अविश्वास प्रस्ताव के लिए विपक्ष के पास संख्या बल नहीं था ऐसे में हर किसी की नजर कांग्रेस और बीजेपी के खेमों की क्षमता आंकने पर थी.
एक्सपर्टस के साथ-साथ हर किसी की नजर इसपर अटकी थी कि कौन क्या कह रहा है और किधर खड़ा है, साथ ही कौन किस तरह का कदम उठा रहा है जैसे कि क्या कोई सदन से वॉक-आउट कर रहा है, बहस में हिस्सा लेने के बाद वोटिंग के समय वॉक-आउट कर रहा है या पहले ही. इस अविश्वास प्रस्ताव पर हर दल ने अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से कदम उठाया और क्षेत्रीय दलों ने खासकर अपने हित के हिसाब से अपने पत्ते खोले या कहें कि पत्ते छुपा लिए.
अविश्वास प्रस्ताव से भाजपा पर कोई फर्क नहीं पड़ा
लोकसभा में बीजेपी और कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी एआईएडीएमके ने विपक्ष का साथ नहीं दिया. वैसे भी ये माना जा रहा था कि वो एनडीए के साथ ही जाएगी क्योंकि हमने देखा है कि कैसे बीजेपी के साथ पहले भी उसके रिश्ते रहे हैं और अब भी प्रधानमंत्री एआईएडीएमके को अपने पाले में लाना चाहते हैं. संख्या की दृष्टि से लोकसभा में मौजूदा बड़ी पार्टियों में से एक बीजेडी ने भी अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया और वो बहस शुरू होते ही सदन से वॉक-आउट कर गयी. इसके अलावा तेलगु देसम पार्टी भी तटस्थ की भूमिका में नजर आयी जो सरकार के लिए अच्छी बात है.
कह सकते है कि बीजपी को झटका उसके सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना से लगा जिसने बहस में हिस्सा ना लेने का फैसला किया. वैसे इसकी उम्मीद पहले से ही थी क्योंकि शिवसेना अगला लोकसभा चुनाव भाजपा से अलग रहकर लड़ने की घोषणा पहले ही कर चुकी है और सरकार के खिलाफ वोट ना कर उसने एक तरह से तटस्थ रुख ही अपनाया है क्योंकि जहां तक सरकार पर हमले करने की बात है वो पहले भी ऐसा करती रही है.
अविश्वास प्रस्ताव के बाद इतना तो साफ हो गया है कि सरकार लोकसभा में अब भी पहले जितनी ही मजबूती से खड़ी है और अगर इसे हराना है तो इसके लिए विपक्ष को 2019 के चुनावों में जनता के पास जाना होगा.
ये भी पढ़ें-
अविश्वास प्रस्ताव पर मोदी ने तो अपना रिपोर्ट कार्ड ही दे डाला
राहुल गांधी के भाषण और फिर मोदी को झप्पी ने मैदान को घमासान बना दिया
5 गलतियां, जो साबित कर रही हैं कि राहुल गांधी अभी भी गंभीर नहीं हैं
आपकी राय