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Updated: 01 जुलाई, 2017 04:41 PM
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मंदसौर को लेकर सबको यही पता था किसानों के आंदोलन ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया था. सहारनपुर के मामले में भी सब लोग यही मान कर चल रहे थे कि वहां दलितों और ठाकुरों के बीच जातीय संघर्ष ने हिंसक रूप ले लिया था. अपडेट ये है कि दोनों ही मामलों में सरकारी रिपोर्ट अलग बात बता रही है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अनुसार न तो मंदसौर की हिंसा में किसान शामिल थे, न ही यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के मुताबिक सहारनपुर हिंसा किसी जातीय झगड़े की वजह से हुई. फिर क्या था ये सब?

मंदसौर/सहारनपुर अपडेट

दैनिक भास्कर के साथ इंटरव्यू में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 'मंदसौर में जो घटनाएं हुईं उसके पीछे किसान नहीं थे. वहां दूसरे तत्व थे. मंदसौर में हमने अफीम तस्करों के खिलाफ कार्रवाई की. उन्हें जेल भेजा. ऐसे तत्वों ने किसान आंदोलन में घुसकर उसे हिंसक बनाया.'

दूरदर्शन को दिये इंटरव्यू में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने सहारनपुर हिंसा के लिए खनन माफिया को जिम्मेदार ठहराया है. हालांकि, मुख्यमंत्री ने किसी का नाम नहीं लिया. माना जा रहा है कि स्थानीय प्रशासन की ओर से मिली रिपोर्ट के बाद योगी ने ये बात कही है. मुख्यमंत्री के मुताबिक सहारनपुर हिंसा में अवैध काम करने वाले शामिल थे और जब उन्हें रोका गया तो हिंसा हुई. मुख्यमंत्री के अनुसार हिंसा के लिए जिम्मेदार लोग ही भीम आर्मी के पीछे हैं.

mandsaurमंदसौर हिंसा के पीछे किसान नहीं!

वैसे सहारनपुर अवैध खनन का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के आदेश दे चुके हैं. सीबीआई अवैध खनन की जांच कर रही है. लगता है यूपी सरकार ने उन्हीं तारों को जोड़ने की कोशिश कर रही है.शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि बाकी शहरों और मंदसौर के हालात में फर्क है. इंटरव्यू में शिवराज बताते हैं, "वहां का किसान परिश्रमी है, लेकिन वहां पर अफीम का उत्पादन भी होता है. इस कारण कुछ साल पहले तक डोडा चूरा 120 रुपये किलो तक बिकता था. इसे खेत में जलाने के निर्देश दिए गए. इससे नशे के काम में लगे कुछ तत्वों को परेशानी हुई और वे किसानों के पीछे एक्टिव हो गए. इन्हीं ने आंदोलन को हिंसक रूप दिया."

अपडेट का इंतजार

अच्छी बात है. शिवराज सिंह चौहान और योगी आदित्यनाथ की बातें अपनी अपनी जगह सही हैं, लेकिन कुछ सवाल ऐसे हैं जिनके बारे में अपडेट का इंतजार है.

अगर मंदसौर में हुई हिंसा अफीम तस्करों ने कराई तो मुख्यमंत्री को उपवास करने की भला क्या जरूरत थी? किसानों की बात और थी, लेकिन अपराध पर काबू पाने का ये तरीका और इस जमाने में, हजम नहीं होता.

अपनी सरकार के सौ दिन पूरे होने पर इंटरव्यू में योगी आदित्यनाथ ने सहारनपुर के सवाल पर कहा, "प्रदेश के अफसरों की फैसले लेने की ताकत खत्म हो गई है. मूर्खतापूर्ण फैसले लेने पर हमने डीएम और एसएसपी को सस्पेंड कर दिया.''

ये भी बहुत अच्छी बात है. ऐसे एक्शन के लिए मुख्यमंत्री को अधिकार मिले हुए हैं. सही भी है सरकार कुछ और चाहती हो और अफसर कुछ और कर बैठें तो शासन की नीतियां तो लागू होने से रहीं. अच्छा किया नाप दिया.

लेकिन क्यों? जवाब भी जान लीजिए, ''एक पूर्व मुख्यमंत्री के जातीय हिंसा के वक्त सहारनपुर जाने से वहां हालात और बिगड़ गए थे. तब डीजीपी ने कहा कि डीएम-एसएसपी के मुताबिक वहां ऐसा कोई माहौल नहीं था.''

saharanpur violenceसहारनपुर हिंसा की वजह जातीय संघर्ष नहीं!

ऐसी बातों पर डीजीपी को तो डांट पड़नी ही थी, ''क्या मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं आप? जो हमेशा जातिवाद को बढ़ाते रहे, क्या वे वहां जाकर शांति का उपदेश दे सकते हैं. अगर उनका जाना इतना ही जरूरी था तो उन्हें दिल्ली से हेलिकॉप्टर से ले जाते.''

जब सहारनपुर में जातीय हिंसा के पीछे खनन माफिया थे तो मायावती के जाने से फर्क ही क्या पड़ता? वैसे भी मायावती का दलितों में कितना प्रभाव रह गया है? अगर इतना ही प्रभाव होता तो लगातार उन्हें दलित समुदाय नकारता क्यों?

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