योगी की तो नहीं, लेकिन टिकैत बंधुओं की कुर्सी जरूर 'कोको' ले गई!
टिकैत बंधुओं के दबदबे वाले भारतीय किसान यूनियन (BKU) से अलग होकर असंतुष्ट गुट ने एक नया संगठन बना लिया है. दावा है कि ये अराजनीतिक संगठन केवल किसानों की समस्याओं को उठाएगा. जबकि, राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) और नरेश टिकैत (Naresh Tikait) यूपी चुनाव के दौरान खुलकर अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के पक्ष में खड़े हो गए थे.
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किसान नेता रहे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की पुण्यतिथि के मौके पर भारतीय किसान यूनियन में दोफाड़ हो चुका है. भारतीय किसान यूनियन के असंतुष्ट गुट ने भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के नाम से नया संगठन बना लिया है. टिकैत बंधुओं को किनारे लगाते हुए बनाए गए इस नए संगठन का आरोप है कि बाबा महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत किसानों के मुद्दों से दूर होकर अपनी राजनीति चमकाने में लग गए थे. वैसे, लंबे समय तक अराजनीतिक रहे भाकियू ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान भारतीय किसान यूनियन ने योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
भारतीय किसान यूनियन पर एकछत्र राज रखने वाले टिकैत बंधुओं ने भाजपा को वोट की चोट देने का ऐलान किया था. खुद को अराजनीतिक कहने वाले भारतीय किसान यूनियन के इन टिकैत बंधुओं ने खुलेआम समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के पक्ष में माहौल बनाया था. वैसे, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू हुए मतदान के दौरान भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने दावा किया था कि भाजपा के बहुत सारे वोट 'कोको' ले गई. खैर, अब संगठन में हुए दोफाड़ के बाद साफ हो गया कि योगी की तो नहीं, लेकिन टिकैत बंधुओं की कुर्सी जरूर 'कोको' ले गई.
किसान आंदोलन ने राकेश टिकैत और नरेश टिकैत को ख्वाबों को अतिआत्मविश्वास से लबरेज कर दिया था.
राजनीतिक लालसा ने पिटवाई टिकैत बंधुओं की भद्द
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाये गए कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से ज्यादा समय तक किसान आंदोलन चला था. हालांकि, कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही आंदोलन खत्म हो गया था. लेकिन, किसान आंदोलन का अघोषित चेहरा बन चुके राकेश टिकैत के मंसूबे इससे भी कहीं आगे के थे. किसान आंदोलन के दौरान ही राकेश टिकैत पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थन में किसानों को जुटाने के लिए गए थे. राकेश टिकैत की इस यात्रा की काफी चर्चा रही थी. और, ममता बनर्जी की जीत का श्रेय राकेश टिकैत को भी मिला था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो किसान आंदोलन के दौरान राकेश टिकैत ने हर उस राज्यों की यात्रा की, जहां चुनाव होने वाले थे. हर राज्य में राकेश टिकैत ने मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ जमकर बयानबाजी की. खैर, भाजपा को इससे कोई खास नुकसान नहीं हुआ.
वहीं, कृषि कानूनों वापस लिये जाने के बावजूद राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन के पक्ष में खुलेआम 'इशारा' करते नजर आए. दरअसल, भारतीय किसान यूनियन पर जाट समुदाय का दबदबा है. और, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट कई खापों में बंटे हुए हैं. और, इन्हीं खापों को अपना हथियार बनाकर राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने की हरसंभव कोशिश की. क्योंकि, टिकैत बंधुओं को भरोसा था कि योगी सरकार को हटाकर अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के गठबंधन वाली सरकार आने वाली है. और, ऐसा होने पर वह तमाम जाट खापों और देशभर में किसानों के एक निर्विरोध नेता के तौर पर स्थापित हो जाएंगे.
खैर, टिकैत बंधु पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को थोड़ा-बहुत नुकसान पहुंचाने में कामयाब रहे. लेकिन, उनकी इस हरकत ने भारतीय किसान यूनियन से जुड़ी अन्य बड़ी खापों के साथ दूरी को बढ़ा दिया. भारतीय किसान यूनियन जिसे महेंद्र सिंह टिकैत के जमाने से अराजनीतिक माना जाता था. उस किसान संगठन पर ही राजनीतिक होने के आरोप लगने लगे. यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान ही जब टिकैत बंधुओं ने 'जाट नेता' के नाम पर जयंत चौधरी के लिए लॉबिइंग करनी शुरू की. तो, कई खाप उनसे अलग नजर आईं. वहीं, गठवाला खाप से आने वाले बुढ़ाना के पूर्व भाजपा विधायक उमेश मलिक पर भाकियू के 'अतिउत्साही' कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए हमले ने इस खाप को भड़का दिया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो टिकैत बंधुओं पर जाट खापों को ही बांटने का खेल करने का आरोप लग गया था.
गठवाला खाप के संरक्षण में ही हुई 'बगावत'
मुजफ्फरनगर में होने वाली किसान महापंचायत में गठवाला खाप के राजेंद्र सिंह मलिक ने बुढ़ाना के पूर्व भाजपा विधायक उमेश मलिक पर हुए हमले को लेकर शामिल होने से मना कर दिया था. हालांकि, राकेश टिकैत और नरेश टिकैत के माफी मांगने पर राजेंद्र सिंह मलिक तैयार हो गए थे. लेकिन, यूपी चुनाव के दौरान उमेश मलिक को हराने के लिए टिकैत बंधुओं की लामबंदी ने गठवाला खाप को भड़का दिया. उमेश मलिक को हराने वाले राजपाल बालियान को भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने खुद ही आरएलडी का सिंबल दिया था. वैसे, भाजपा और मोदी सरकार से लेकर योगी सरकार के खिलाफ जहर उगल रहे राकेश टिकैत को आशंका थी कि अगर समाजवादी पार्टी और आरएलडी गठबंधन की सरकार नहीं आई, तो बगावत तय है. लेकिन, टिकैत बंधुओं ने रिस्क लिया. जिसका खामियाजा भारतीय किसान यूनियन में दोफाड़ के तौर पर सबके सामने है.
राकेश टिकैत लखीमपुर खीरी में हुईं भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या को भी जायज ठहराते नजर आए थे.
टिकैत बंधुओं के करियर को ले गई 'कोको'
संगठन टूटने के बाद राकेश टिकैत का कहना है कि लोग जाने के लिए स्वतंत्र हैं. पहले भी कई लोग बाहर जा चुके हैं. और, इन लोगों के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हालांकि, सच्चाई ये है कि भारतीय किसान यूनियन के इस असंतुष्ट गुट को मनाने के लिए राकेश टिकैत खुद लखनऊ में इस धड़े के प्रमुख नेता हरनाम सिंह के यहां पहुंचे थे. लेकिन, बात नहीं बन पाने पर बैरंग वापस लौट आए. राजेंद्र सिंह मलिक, राजेश सिंह चौहान, धर्मेंद्र मलिक जैसे तमाम नेताओं के असंतुष्ट धड़े के भारतीय किसान यूनियन को एक बड़ा झटका लगा है. जिससे उबरना टिकैत बंधुओं के लिए आसान नहीं होगा. क्योंकि, अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के साथ खड़ा करने के साथ ही किसानों के बीच उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लग गया था. और, अब किसान संगठन में दोफाड़ के बाद लग रहा है कि राकेश टिकैत और नरेश टिकैत के किसान नेता के तौर पर करियर को भी 'कोको' ले गई.
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