NRC विवाद: कोई कहीं नहीं जाएगा, सिर्फ वोट आएगा
ड्राफ्ट तैयार हो चुका है और बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है. मौजूदा ड्राफ्ट के मुताबिक 40 लाख लोग भारत के नागरिक नहीं हैं, जिसमें देश के पांचवे राष्ट्रपति रहे फखरुद्दीन अली अहमद भी शामिल हैं.
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जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति भी रफ्तार पकड़ती जा रही है. फिलहाल यहां बात हो रही है असम के नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन यानी एनआरसी की. ड्राफ्ट तैयार हो चुका है और बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर खदेड़ने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है. फिलहाल जो ड्राफ्ट बनाया गया है, उसके अनुसार 40 लाख लोग ऐसे हैं जो भारत के नागरिक नहीं हैं, जिसमें देश के पांचवे राष्ट्रपति रहे फखरुद्दीन अली अहमद भी शामिल हैं. यानी ये तो साफ है कि ड्राफ्ट बनाने में गलतियां हुई हैं. जरा सोचिए, देश का पूर्व राष्ट्रपति भी खुद को भारत का नागरिक साबित करने के लिए लाइन में लगेगा. अब अगर आपको लग रहा है कि वाकई बांग्लादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर खदेड़ा जाएगा, तो आप गलत सोच रहे हैं. किसी को कहीं भी नहीं भेजा जाएगा. ये सब सिर्फ 2019 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया जा रहा है. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि एनआरसी के बहाने वोटों का रजिस्टर बनाया जा रहा है.
कांग्रेस ने ही की है एनआरसी की शुरुआत
संसद में विपक्षी पार्टियों ने एनआरसी का पुरजोर विरोध किया. उसके जवाब में पहले तो अमित शाह ने संसद में अपनी बात कही और फिर बाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के भी अपना पक्ष रखा. शाह ने सीधे कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि आज जिस एनआरसी का विरोध कांग्रेस कर रही है वह उन्हीं की देन है. शाह ने बताया कि 14 अगस्त 1985 की रात 3 बजे असम एकॉर्ड साइन किया गया था और उस समय देश के पीएम राजीव गांधी थे. ये एनआरसी उसी एकॉर्ड की आत्मा है. कांग्रेस में हिम्मत नहीं थी कि वह बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकाल सके, क्योंकि वह वोट बैंक की राजनीति कर रहे थे. शाह ने तो ये भी कह दिया कि खुद इंदिरा गांधी भी 1971 में ये कह चुकी हैं कि बांग्लादेशियों को देश से बाहर निकाला जाना चाहिए. इस पर राहुल गांधी से सवाल भी किया कि क्या वह इंदिरा गांधी की बात भूल चुके हैं? खैर, यहां एक बात सोचने की जरूर है कि अमित शाह आज से 47 साल पुराने बयान की तुलना 21वीं सदी के डिजिटल इंडिया से कर रहे हैं, जो तार्किक नहीं है.
अमित शाह का राहुल गांधी पर निशाना लगाना तो ठीक है, लेकिन अगर ध्यान दिया जाए तो पता चलेगा कि भारतीय जनता पार्टी भी 2019 के मद्देनजर वोटों को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठा रही है. अगर असम की बात की जाए तो वहां बांग्लादेशी घुसपैठ वाकई एक बड़ा मुद्दा है, जिसे छेड़ने का सही समय यही है, क्योंकि अगले ही साल लोकसभा चुनाव हैं. 1980 के दशक में असम में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन भी हुआ था, जिसमें कहा गया था कि बाहर से असम में आए लोग उनके घर, नौकरियां और जमीन छीन रहे हैं. इसमें बहुत सारे लोगों की मौत भी हुई थी. जहां एक ओर इस मुद्दे को छेड़कर ड्राफ्ट बनाते हुए भाजपा ने ये जता दिया है कि उन्हें असम की जनता की बहुत परवाह है, वहीं विपक्ष के विरोध को उन्होंने घुसपैठियों से लगाव बता दिया है. अमित शाह ने कहा है कि राहुल गांधी और ममता बनर्जी समेत सभी विपक्षी दलों को ये साफ करना चाहिए कि वह किन घुसपैठियों को बचाने में लगे हुए हैं. ये कहकर अमित शाह ने विपक्ष की ओर जाने वाले वोटों को भी काटने की कोशिश की है.
दूर किया लोगों का कंफ्यूजन
एनआरसी पर चर्चा के दौरान लोगों में कुछ कंफ्यूजन भी फैल गए हैं. ममता बनर्जी ने कहा है कि अगर बंगाली बोलें कि बिहारी यहां नहीं रह सकते या बिहारी बोलें कि बंगाली हमारे यहां नहीं रह सकते तो एक तरह का गृह युद्ध हो जाएगा. अमित शाह ने ममता बनर्जी के इस बयान पर स्थिति साफ करते हुए कहा कि जो भारत का नागरिक है वह पूरे देश में कहीं भी जाकर रह सकता है, क्योंकि उसके पास वहां के कागज हैं, जहां वह रहता है. बांग्लादेश में रह रहे बाहर के लोगों से अगर उनके भारतीय होने का सबूत मांगा जाता है तो वह आसानी से देंगे. वे लोग घुसपैठियों की लिस्ट में शामिल नहीं होंगे.
इतना ही नहीं, शाह ने शरणार्थी और घुसपैठी में भी अंतर स्पष्ट किया. वह बोले कि जो लोग अपनी मान्यता, सम्मान और धर्म को बचाने के लिए एक देश से दूसरे देश जाता है वह शरणार्थी होता है. वहीं दूसरी ओर, जो सिर्फ पैसा कमाने और संसाधनों के दोहन के मकसद से अवैध रूप से दूसरे देश में जाता है तो वह घुसपैठिया होता है.
अमित शाह ने कहा कि वह हमेशा से बांग्लादेशी घुसपैठियों को गलत मानते रहे हैं. भले ही भाजपा सत्ता में रही हो या फिर विपक्ष में. वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर मौके के हिसाब से अपने बयान बदलते रहने का आरोप लगाया है. उन्होंने कांग्रेस और टीएमसी पर वोटबैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया है. जब से यह मुद्दा उठा है, तब से वोट बैंक की बात भी हो रही है. भले ही भाजपा कितना भी कहे कि वह वोट को ध्यान में रखकर कुछ नहीं कर रहे हैं, लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि एनआरसी के जरिए भाजपा असम में 2019 के चुनाव के लिए जमीन तैयार कर रही है.
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