उमर अब्दुल्ला ने जो वीडियो शेयर किया वो कश्मीर की राजनीति का असली चेहरा दिखाता है
यहां ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि हर राजनीतिक पार्टी अपने फायदे के लिए गठबंधन करती है. अभी भले आप इस बात पर यकीन ना करें, लेकिन जब जम्मू-कश्मीर में गठबंधन की सरकार का इतिहास जानेंगे तो यकीन हो जाएगा.
-
Total Shares
जम्मू-कश्मीर की सरकार गिर चुकी है और अब वहां राज्यपाल का शासन लागू कर दिया गया है. यहां भाजपा और पीडीपी के गठबंधन की सरकार थी, लेकिन मंगलवार को भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसकी वजह से पीडीपी अल्पमत में आ गई और महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इस पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक पुरानी फिल्म की छोटी सी क्लिप ट्वीट की है और लिखा है कि कुछ इसी तरह से भाजपा और पीडीपी ने एक-दूसरे से तलाक लिया है. उमर अब्दुल्ला का ये ट्वीट जम्मू-कश्मीर की राजनीति का असली चेहरा सामने लाता है. यहां ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि हर राजनीतिक पार्टी अपने फायदे के लिए गठबंधन करती है. अभी भले आप इस बात पर यकीन ना करें, लेकिन जब जम्मू-कश्मीर में गठबंधन की सरकार का इतिहास जानेंगे तो यकीन हो जाएगा. लेकिन पहले जान लीजिए उमर अब्दुल्ला के इस ट्वीट के बारे में.
उमर अब्दुल्ला ने लिखा है- पीडीपी और भाजपा राजनीतिक रणनीति के लिए ये फिल्म देख रही थी. इस तरह से दोनों ने एक-दूसरे से अलग होने की कहानी रची है. शानदार फिक्स मैच, बेहतरीन तरीके से लिखा गया, बस जनता बेवकूफ नहीं है ना ही बाकी के हम लोग.
The PDP & BJP have been watching Bollywood movies for political strategy. This is how they have crafted their “divorce”. Brilliant fixed match, scripted to perfection except the audience aren’t fools & neither are the rest of us ???? pic.twitter.com/82854aFHWM
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) June 20, 2018
इस फिल्म का है ये सीन
ये क्लिप 1977 की फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' का सीन है. फिल्म राजनीति पर एक व्यंग्य है, जिसे संजय गांधी को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था. आपातकाल के दौरान तो इस फिल्म को बैन भी कर दिया गया था. शबाना आजमी की इस फिल्म को अमृत नहाता ने प्रोड्यूस किया था, जो जनता पार्टी के एक सांसद थे. यहां तक कि इस फिल्म के प्रिंट जलाने को लेकर संजय गांधी ने करीब महीने भर तिहाड़ जेल में सजा भी काटी थी.
ऐसे चलती रही है जम्मू-कश्मीर की राजनीति
1947 में देश आजाद होने के बाद से अब तक जम्मू-कश्मीर में 5 बार गठबंधन की सरकार बन चुकी है और सिर्फ एक बार ही गठबंधन की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया है, जो कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार (2009-2015) थी.
पहला गठबंधन- सबसे पहला गठबंधन 1982 में हुआ था. शेख अब्दुल्ला की मौत के बाद फारूक अब्दुल्ला चुनाव में बहुमत से जीते, लेकिन कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के कुछ विधायकों को तोड़ दिया. इसके बाद दोनों के गठबंधन वाली सरकार बनी, जिसका नेतृत्व गुलाम अहमद शाह ने किया. हालांकि, हिंसक घटनाएं बढ़ने पर 12 मार्च 1986 को उस समय के राज्यपाल ने सरकार को निरस्त करते हुए राज्यपाल शासन लागू कर दिया.
दूसरा गठबंधन- 1987 में उसने नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. इसी दौरान राज्य में आतंकी गतिविधियां बहुत अधिक बढ़ गईं, जिसके फलस्वरूप करीब 3 लाख कश्मीरी पंड़ितों को विस्थापन करना पड़ा. नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस पार्टी का ये गठबंधन फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व में 1990 तक चला, जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस गठबंधन को निरस्त कर दिया और राज्य में 1996 तक राज्यपाल शासन लागू रहा.
तीसरा गठबंधन- 2002 में पीडीपी और कांग्रेस के बीच तीसरा गठबंधन हुआ. इसमें 2002 से 2005 तक मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री रहे और बाकी के समय में कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने सत्ता संभाली.
चौथा गठबंधन- 2008 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठबंधन हुआ. ये पहली बार था कि गठबंधन की सरकार ने 6 साल का कार्यकाल पूरा किया.
पांचवा गठबंधन- जब 2015 में चुनाव हुआ तो दो पूरी तरह से अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियों बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन हुआ. और अब इस गठबंधन को भाजपा ने तोड़ दिया.
अगर जम्मू-कश्मीर में गठबंधन की सरकार के इस इतिहास को गौर से देखें तो ये साफ हो जाता है कि सभी पार्टियां एक सी ही हैं. जो वीडियो उमर अब्दुल्ला ने जारी किया है, वो सभी पर एक जैसा लागू होता है. भले ही नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गठबंधन नहीं तोड़ा हो, लेकिन ऐसी पार्टियों के साथ गठबंधन जरूर किया, जो पहले ही गठबंधन तोड़ चुकी थीं. इतना ही नहीं, जब भी किसी पार्टी को मौका मिला तो उसने अपनी सरकार बना ली, ये भी नहीं देखा कि सामने वाली पार्टी कौन सी है. यानी कभी तो पीडीपी नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ हो गई तो कभी कांग्रेस के साथ. कांग्रेस का भी यही हाल है. उसे जब पीडीपी के साथ फायदा दिखा तो उसके साथ हो गई, जब नेशनल कॉन्फ्रेंस में फायदा दिखा तो उसके साथ हो गई. यानी पार्टियां भले ही कुछ भी कहती रहें, लेकिन चुनाव में मौका मिलते ही किसी के भी साथ गठबंधन को तैयार हो जाती हैं. पीडीपी और भाजपा जैसी पूरी तरह से अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियों का गठबंधन फायदे की राजनीति का सबसे ताजा उदाहरण है.
ये भी पढ़ें-
जम्मू-कश्मीर में भाजपा द्वारा गठबंधन तोड़ना कहीं मास्टर स्ट्रोक तो नहीं !
निरोगी काया ही नहीं पैसा भी देता है योग
रेहम को ज्ञान देने वाले पाकिस्तान में बेनजीर की तो सेक्स लाइफ ही खोल कर रख दी
आपकी राय