जम्मू-कश्मीर में भाजपा द्वारा गठबंधन तोड़ना कहीं मास्टर स्ट्रोक तो नहीं !
अगले लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम वक़्त बचा है ऐसे में पीडीपी से अलग होकर भाजपा ने अपने उन सहयोगियों को संदेश देने का प्रयास किया है जो हाल के दिनों में इससे नाराज चल रहे थे.
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2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से भाजपा ने 14 राज्यों में सरकार का गठन किया और अभी तक 20 राज्यों में इसकी सरकार थी, अपने बलबूते या फिर सहयोगियों के साथ. जम्मू-कश्मीर में सत्ता से बाहर होने के बाद इसकी संख्या 19 हो गई है. इस क्रम में भाजपा ने राज्यों में सहयोगियों को अपने साथ लेकर यह कारनामा किया. अभी तक तो ये हो रहा था कि इसके सहयोगी दल ही इससे किनारा कर रहे थे लेकिन ये पहली बार हुआ कि भाजपा जम्मू-कश्मीर में अपने सहयोगी पीडीपी के गठबंधन से बाहर हो गया. इसके पीछे भाजपा का तर्क चाहे जो हो लेकिन इसने 'मास्टर स्ट्रोक' तो खेल ही दिया है. साथ ही इसे 2019 के लोकसभा के चुनाव तैयारियों के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा है.
2019 के लिए भाजपा की रणनीति का हिस्सा था पीडीपी से अलग होना
जहां अगले लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम वक़्त बचा है ऐसे में पीडीपी से अलग होकर भाजपा ने अपने उन सहयोगियों को संदेश देने का प्रयास किया है जो हाल के दिनों में इससे नाराज चल रहे थे. हाल में ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह सभी नाराज चल रहे सहयोगी पार्टियों के नेताओं से मुलाकात कर उन्हें मनाने की कोशिशों में लगे हुए थे लेकिन अचानक भाजपा ने आक्रामक रूप अख्तियार कर लिया. अब भाजपा की इस चाल से नाराज सहयोगियों को भाजपा पर दबाव बनाना इतना आसान नहीं होगा.
शिवसेना: शिवसेना काफी समय से कुछ न कुछ कारणों से भाजपा से नाराज चल रही है. शिवसेना महाराष्ट्र और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सहयोगी है. बार-बार सेना धमकी भी देती रहती है कि वो गठबंधन से अलग हो जाएगी और अगला चुनाव भी अकेले लड़ेगी. अभी हाल में ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उद्धव ठाकरे से उनके आवास पर जाकर मुलाकात भी की थी, लेकिन अगले ही दिन शिवसेना ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की धमकी दे डाली. ऐसे में पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़ने का असर शिवसेना पर पड़ सकता है क्योंकि महाराष्ट्र में भाजपा के साथ चुनाव न लड़ने से शिवसेना को हमेशा नुक्सान ही हुआ है.
जदयू: बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ दोबारा गठबंधन तो किया है, लेकिन वो इसके साथ सहज नहीं हैं. जदयू ने हाल में ही कहा था कि बिहार में नीतीश बड़े भाई हैं और उन्हीं के नेतृत्व में ही बिहार में चुनाव लड़ा जाएगा. संदेश साफ था- भाजपा पर दबाव बनाना. लेकिन बदली हुई परिस्थिति में जदयू भी अपना रूख नरम करने पर मजबूर हो सकती है.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी: अब बात उत्तर प्रदेश की जहां सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर लगातार भाजपा पर आक्रामक रवैया अपनाये हुए हैं. वो उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में हार के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी दोषी ठहरा चुके हैं और हाल में ही सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव से मुलाकात की थी. अब राजभर के लिए भी संदेश हो सकता है क्योंकि भाजपा से गठबंधन से पूर्व वो एक भी सीट जीत नहीं पाए थे.
नरेंद्र मोदी की छवि पर होगा असर
मजबूत हो सकती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि
पीडीपी से अलग होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि भी मजबूत हो सकती है. भाजपा इसके द्वारा स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि वो राष्ट्रवाद से समझौता नहीं करेगी. इसके बाद अब ये भी तय है कि घाटी में चल रहा 'ऑपरेशन ऑल आउट' ज़ोर पकड़ेगा और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा इसे भुनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी. और जो सहयोगी दल इसे बेमेल गठबंधन की संज्ञा दे रहे थे उनको भाजपा करारा जवाब देने की स्थिति में होगी.
खैर, भाजपा अपने इस खेल में कितना स्कोर कर पाएगी इसका फाइनल नतीजा तो बाद में आएगा लेकिन इसके सहयोगियों के लिए एक मैसेज तो जरूर है.
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