तमाम तर्क-वितर्क के बावजूद शिवराज सिंह चौहान को नेता-प्रतिपक्ष बनाना ही होगा
कमलनाथ ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है. इसी के साथ कयास शुरू हो गए हैं विधानसभा में नेता-प्रतिपक्ष को लेकर. यूं तो इस पद पर सीधा दावा शिवराज सिंह चौहान का है, लेकिन संघ के हवाले से एक अन्य राय भी सामने आ रही है
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मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा को तगड़ा झटका लगने और कमलनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद अब सभी नजरें विपक्ष के नेता पर टिकी हैं. यूं तो अधिकतर लोग यही मान रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान ही विपक्ष के नेता बनेंगे, जिन्होंने 15 साल तक मध्य प्रदेश में सत्ता संभाली. लेकिन दूसरी ओर खबर आ रही है कि संघ शिवराज चौहान को विपक्ष का नेता नहीं बनाना चाहता है. बल्कि उसकी ओर से नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव जैसे नाम सामने रखे जा रहे हैं.
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता कम नहीं हुई है.
बातें, शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ काम कर रही हैं
- संघ का मानना है कि इन विधानसभा चुनावों में भाजपा ने बहुत ही खराब प्रदर्शन किया है, क्योंकि कार्यकर्ताओं का एक बड़ा हिस्सा नेतृत्व से नाराज था. यानी किन्हीं कारणों से वह शिवराज सिंह से खुश नहीं थे.
- ये भी माना जा रहा है कि अगर एक ब्राह्मण को विपक्ष का नेता बना दिया जाता है तो इससे उच्च जाति के मतदाताओं का गुस्सा शांत हो सकता है, जिन्होंने इस चुनाव में भाजपा का खेल बिगाड़ा है. प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर शिवराज सिंह चौहान ने बढ़-चढ़कर दलितों के लिए पैरवी की थी. इससे मध्यप्रदेश में भाजपा का पारंपरिक सवर्ण वोट बैंक उनसे नाराज हो गया था.
- संघ को लगता है कि शिवराज सिंह मतदाताओं से अच्छे से कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जरूरी है कि किसी ऐसे नेता को विपक्ष का नेतृत्व सौंपा जाए, जो मतदाताओं से अच्छी तरह जुड़ा रहने वाला और पूरी तरह से उन पर फोकस हो. संघ ऐसी रणनीति से लोकसभा चुनाव में शत प्रतिशत रिजल्ट पाना चाहता है.
बातें, जो शिवराज की ताकत हैं
- मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता कम नहीं हुई है. चुनाव नतीजे आने के बाद उन्होंने जिस गरिमामयी तरीके से बयान दिए हैं, उसे काफी सराहा गया है.
- शिवराज सिंह चौहान की हार के लिए बीजेपी के भीतर की अंदरुनी कलह को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन लोकसभा चुनाव में जाने से पहले पार्टी को यह भी बताना पड़ेगा कि उनके परिवार के भीतर सब ठीक है. और इसके लिए शिवराज सिंह चौहान की भूमिका से छेड़छाड़ उसके लिए रिस्की हो सकती है.
- मध्यप्रदेश में सवर्ण बनाम दलित के विवाद में भी लोगों ने आरोप बीजेपी सरकार पर लगाए थे, शिवराज सिंह चौहान पर नहीं.
- मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की राजनीति कभी जाति आधारित नहीं रही.
- यदि शिवराज सिंह चौहान को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाते हैं, तो उनके लिए फिलहाल बीजेपी के पास कोई प्लान नहीं है. न तो केंद्र सरकार में उन्हें मंत्री बनाने लायक कोई पद बचा है और न ही प्रदेश में कोई अन्य भूमिका है जिस पर शिवराज सिंह चौहान को पदासीन किया जा सके.
- जहां तक लोकसभा चुनाव 2019 का सवाल है, बीजेपी और संघ चाहें या न चाहें, उन्हें सूबे की चुनावी रणनीति में शिवराज सिंह चौहान को जगह देनी ही होगी.
शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश की जनता 'मामा' कहकर बुलाती है. देखा जाए तो उन्हें मामा कहना ही ये दिखाता है कि लोग उन्हें सिर्फ अपना नेता नहीं, बल्कि अपने परिवार का हिस्सा समझते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं में शिवराज सिंह चौहान को लेकर कुछ नाराजगी थी, जिसकी वजह से पार्टी को इस बार हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन इसका ये बिल्कुल मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि शिवराज सिंह से सभी नाराज हैं. वैसे भी, लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और ऐसे में शिवराज सिंह जैसे बड़े नेता को नाराज करना या उनके चाहने वालों को नाराज करना भाजपा को बहुत भारी पड़ सकता है.
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