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Updated: 26 मई, 2017 01:22 PM
सुरभि सप्रू
सुरभि सप्रू
  @surbhi-sapru
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मुझे इस बात को सुनकर न तो गुस्सा आया न ही किसी प्रकार की हैरानी हुई. हां, मैं कश्मीरी पंडित हूं और मैं आतंकवादी हूं. शबनम लोन, मुझे अच्छा लग रहा है ये सुनकर. जो मैंने किया वो आपके लिए आतंक है तो, हां मैं आतंकवादी हूं. पर मेरे आतंक में एक फर्क है. मेरे आतंक में 26 साल से मेरा दबा हुआ मौन है और शायद मेरा ये मौन ही आज आप लोगों को काट रहा है. क्योंकि आपके लिए आतंकवादी वो है जो सहिष्णु है, जो चुप है, जो अकेला है.

शबनम लोन मैं आतंकवादी हूं क्योंकि मैंने किसी पर हाथ नहीं उठाया, पूरा कश्मीरी हिन्दू समाज ऐसे ही अपने घरों से भागता फिरता अपनी धरती को छोड़कर आया और अपने हक के लिए भी उस तरह से नहीं लड़ पाया जिस तरह से लड़ना चाहिए था. पर सच में आज अच्छा लगा कि किसी ने मुझे आतंकवादी कह दिया, आज लगा कि मेरा दबा हुआ मौन और मेरे कुचले हुए सवाल आपको चुभने लगे हैं.

kashmiri-pandits

अपने लोगों को कोसती हूं कि क्यों कभी तलवार नहीं उठाई, क्यों कभी चीखा नहीं, क्यों कभी आज़ादी के नारे नहीं लगाए. पर आज मन को एक सुकून सा मिल गया है कि मेरा मौन कांटा बनकर आपके कानों में चीख रहा है. शबनम लोन शायद आप ये भूल गईं कि जितने पंडित मारे गए थे, सबके लहू से बूंदें तो गिरी थीं और वो उसी मिटटी में गिरीं जिस मिटटी में वो जन्मे थे. ये लहू तो मिल गया था उसी मिटटी में उसे कैसे मिटाएंगी??

शबनम जी आपकी इंसानियत वाले इंसान एक कश्मीरी पंडित को उसके घर मारने आए थे, आपने तो रात में सोते हुए अपनी मां से कई कहानियां सुनी होंगी. एक कहानी और सुन लीजिये और तय करिएगा कि कौन आतंकवादी था और कौन इंसान. ये आपके इंसानियत वाले मुसलमान गंजू साहब के घर पहुंचे और गंजू साहब एक चावल के ड्रम में छुप गए पड़ोस की मुस्लिम औरत ने इस इंसानियत वाले इंसानों को गंजू साहब के बारे में बताया और वो उन्हें मारने के लिए पहुंच गए और गोलियों से उनको भून दिया. यही नहीं, उनकी बीवी को उस खून से रंगे चावल खाने पर मजबूर भी किया. और शबनम लोन ये कहानी नहीं सच्चाई है, एक ऐसी सच्चाई जिसे आप जैसे इंसानियत वाले लोग दबाने की पूरी कोशिश करते हैं. टीवी पर गौर से मेरी आंखें आपको देख रही थीं, मेरा मौन आपको कैसे जला रहा है, अच्छा लग रहा है आपको सुलगता हुआ देखकर.

shabnam loneशबनम लोनमैडम लोन जब तक कश्मीर का बहुसंख्यक समाज हाथ नहीं फैलाएगा तब तक पंडित समाज कैसे कश्मीर में आएगा. पहले तो टीवी पर आपको देखा फिर आज देखने को मिला कि कश्मीरी हिन्दुओं का कातिल उन्हें आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्यार  भरा न्योता भी दे रहा है. चश्मे वाले और दाड़ी वाले बिट्टा कराटे में फर्क इतना है कि वो पहले सीधा गोली पंडितों के सिर और छाती पर मारते थे और अब चश्मा पहनकर वो पंडितों को प्यार से न्योता देकर मारने का पूरा प्लान बना रहे होंगे. अपनी मां और अपने भाई तक को मारने वाला ये बिट्टा इंसान हैं या आतंकवादी ये आपको तय करना होगा मैडम लोन.    

पंडितों की तीसरी पीढ़ी जो अपनी ज़मीन पर कभी शायद पैर नहीं रख पाएगी पर शायद उनकी शांतिप्रिय छवि आपको चुभती रहेगी. आप गली की वो औरत हैं जो सिर्फ दूसरे के घर में घुसकर ज़बरदस्ती की खामियां निकालकर ये साबित करती रहती हैं कि मेरे घर से ज़्यादा अच्छी सफेदी किसी के घर में नहीं है, पर आपकी वकालत के काले कोट पर जो आपकी ज़बान से निकले अपशब्दों के धब्बे लग रहे हैं उन्हें आप धोना तो दूर देखना भी भूल जाती हैं.

बिट्टा कराटे की आज़ादी उसको उसकी मां और उसके भाई का कातिल भी बना सकती है अगर आप ऐसी आज़ादी की विचारधारा का हिस्सा हैं तो शबनम लोन क्या आपकी मां और आपके भाई को चौकस कर दें?   

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लेखक

सुरभि सप्रू सुरभि सप्रू @surbhi-sapru

पैरों में नृत्य, आँखों में स्वप्न,हाथों में तमन्ना (कलम),गले में संगीत,मस्तिष्क में शांति, ख़ुशी से भरा मन.. उत्सव सा मेरा जीवन- मेरा परिचय.. :)

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