Palghar Lynching: साधुओं के कत्ल और अरुंधति राय के जहर उगलने का मतलब समझिये
देश को नुकसान पहुंचाने में नकारात्मक शक्तियां हमेशा आगे रही हैं. ऐसे में पालघर (Palghar) में जिस तरह साधुओं (Sadhu) की हत्या हुई है कथित लेखिका अंरुधति राय (Arundhati Roy) जैसे लोगों को एक बार फिर देश को नीचा दिखाने का मौका दे दिया है.
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क्या इससे भी अधिक भी कोई दुर्भाग्यपूर्ण बात हो सकती है कि कोरोना (Coronavirus) जैसी जालिम महामारी से भी भारत एक साथ मिल कर लड़ नहीं पा रहा है. सरकार दिन-रात लड़ाई लड़ रही है. प्रधानमंत्री (Prime Minister) और ज्यादातर मुख्यमंत्री जी-जान की बाजी लगाये हुये हैं. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश (UP) के मुख्यमंत्री संकट की इस घड़ी में अपने पिता की अंत्येष्टि तक में नहीं जा रहे हैं. लेकिन, अब भी कुछ नीच शक्तियां बाज नहीं आ रही हैं. जरा देखिए कि महाराष्ट्र (Maharashtra) के पालघर (Palghar lynching) में दो साधुओं को और उनके ड्राइवर को भीड़ पीट-पीटकर मार देती है. उधर, अपनी भारत के खिलाफ नफरत को फिर से जाहिर करते हुए कथित लेखिका अंरुधति राय (Arundhati Roy) ने जर्मनी (Germany) की एक समाचार एजेंसी से कहती हैं कि सरकार कोरोना संकट का इस्तेमाल मुसलमानों (Muslims) के नरसंहार की रणनीति बनाने में कर रही है. वैसे तो वे भारत के पक्ष में न कभी कोई लेख लिखती हैं और न ही बयान देती हैं. वे एक ऐसी भारतीय हैं जो भारतीय नारी का कलंक हैं. वे वर्षों से भारत विरोधी ताकतों की गोद में खेल रही हैं. शायद देश विरोधी आचरण में ही उन्हें आनन्द की अनुभूति होती है और यह तो आम चर्चा है और सर्वविदित है कि मैडम के पास विदेशों से मोटा पैसा आता है जिससे वे अपना ऐश-मौज करती हैं और देश के विरुद्ध गालियां और देशद्रोहियों की खुलेआम प्रशंसा करती हैं.
पालघर मामले में जिस तरह साधुओं को पीट पीटकर मारा गया उसने पूरी मानवता को शर्मसार कर दिया है
अगर बात महाराष्ट्र में साधुओं के कत्ल की करें तो यह वास्तव में दिल दहलाने वाली घटना है. आसान नहीं है यह सोचना भी कि कोई इतना क्रूर, निर्दयी और हिंसक कैसे हो सकता है? कौन थी वो भीड़ जिसने जुना अखाड़े के दो निरपराध साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीटकर हत्या कर दी? भीड़ को न पुलिस का डर था न ही मारने वाले लोगों में इंसानों के प्रति कोई दया भावना. बूढ़े घायल साधुओं को जिस तरह से लोग लाठियों से पीट-पीटकर हत्या कर रहे थे वह इंसानों के वहशी बना दिये जाने की कहानी है.
साधुओं को पुलिस के सामने ही मारा जा रहा था. पुलिस तो अपनी जान बचाने के लिए पतली गली सी निकल गई. लेकिन जो कुछ घटा है वह एक सभ्य समाज के माथे पर कलंक है. साधुओं की हत्या के लिए अब लगभग 100 लोग पकड़े गए हैं. भीड़ के दंगे के तमाम मामलों में जब-जब भीड़ पकड़ी जाती है तो एक साथ छूट भी जाती है. बेहतर होगा कि राज्य प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि गुनहगारों को ऐसी कड़ी सजा मिले कि दोबारा ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.
इस घटना की न्यायिक जांच होनी चाहिए. भीड़ द्वारा किये जाने वाले अन्याय को समर्थन देने से देश की न्याय व्यवस्था खत्म हो जाएगी. सोचने की बात है कि कुछ लोग चोर होने के शक पर किसी भी इंसान की कर हत्या कर देते हैं और चंद लोग इसे भीड प्रवृत्ति के तौर पर आंकने की कोशिश करके लिपा-पोती का प्रयास करते हैं? भीड़ भी तो कुछ इंसानों से ही निर्मित होती है. चोर अगर था सच में तो पकड़ कर पुलिस को सौंपा जा सकता था.
मुझे मेरे मुम्बई के पत्रकार मित्रों ने बताया कि यह घटना पिछले दस दिनों में तीसरी है. पहले शिवसेना से जुड़े दो डॉक्टर साहब को पीटा गया. उन्हें काफी देर तक बांधकर रखा था. बाद में कासा पुलिस थाना ने तीन घंटे की हुज्जत के बाद उन्हें छुड़ाया. फिर एक पुलिस पार्टी पर भी पिछले हफ्ते पथराव हुआ. तीन लोगों की पीट-पीट कर हत्या का मामला इतना सरल नहीं है जैसा कि कहा जा रहा है चोरों और फसल काटकर ले जाने वालों के आने का अफवाह था. अब बताइये कि मराठी भाषी डॉक्टर या पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी या सत्तर साल के गेरुआ वस्त्रधारी महात्मा चोर किस प्रकार से दिख रहे थे?
क्या साधुओं की हत्या मॉब लिंचिंग नहीं मानी जाएगी? क्या अब पुरस्कार वापसी गिरोह सरकार से वैसे ही सवाल करेगा जैसे उसने अखलाख या पहलू खान के मारे जाने पर किए थे? अखलाख की दिल्ली से सटे नोएडा में हत्या के बाद तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष गैंग के सदस्य मृतक अखलाक के घर पहुंचने लगे थे.
ये संवेदना कम और सियासत ज्यादा करते नजर आ रहे थे. उनमें राहुल गांधी भी थे। क्या अब वे साधुओं की हत्या के लिए अपनी कांग्रेस के समर्थन से बनी महाराष्ट्र सरकार को कसेंगे? महाराष्ट्र में आजकल शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार है. क्या इस घटना के बाद कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी महाराष्ट्र सरकार से समर्थन वापस लेंगी? अखलाक के घर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, असुदद्दीन ओवैसी, माकपा की वृंदा करात और तमाम अन्य नेता भी गए थे.
तब के केन्द्रीय मंत्री और नोएडा से सांसद महेश शर्मा ने अखलाख की हत्या पर कहा था 'यह हमारी संस्कृति पर धब्बा है और सभ्य समाज में इस तरह की घटनाओं का कोई स्थान नहीं है. अगर कोई कहता है कि यह पूर्व नियोजित था तो मैं इससे सहमत नहीं हूं.'
क्या अब महाराष्ट्र के सत्तासीन गठबंधन का कोई नेता मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से सवाल पूछेगा कि उनकी पुलिस के सामने साधू कैसे मार दिए गए? क्या कोई साहित्यकार साधुओं के कत्ल पर पुरस्कार वापस करेगा? यकीन मानिए कि इन तमाम सवालों के जवाब ‘ना’ में हैं. क्योंकि, साधू हिन्दू थे इसलिए उनके प्रति कोई संवेदना नहीं व्यक्त करेगा? यहां गहरे षड्यंत्र की बू आ रही है.
पता चला है पालघर जिले के जंगलों में बसे गांवों में आदिवासियों को ईसाई बनाने का धंधा जोरों से चल रहा है. एक व्यक्ति की क्रास पहनने की रिश्वत बीस से पचीस हजार है. करना कुछ नहीं है. क्रास पहन लो टाइटिल में कोई ईसाई नाम लगा लो और हर रविवार को चर्च में हाजिरी बना दो. बस. इस प्रकार एक गरीब परिवार को सवा-डेढ़ लाख मिल जाते हैं तो वे उनकी बात (अफवाह नहीं आदेश) क्यों न माने.
अब दो साधुओं की लिंचिंग की भारी कीमत तो मिलनी तय ही है. जिस इलाके में यह घटना हुई उस कासा थाना क्षेत्र के थानाध्यक्ष और उप-थानाध्यक्ष को निलम्बित करने की खानापूरी कर ली गई है. जिस विधानसभा क्षेत्र में यह घटना हुई वह क्षेत्र है डहाणू और वहां से विधायक हैं मार्क्सवादी कम्यूनिष्ट पार्टी की श्रीमान् बिनोद भिवा निकोले. इनकी गतिविधियों और घटना में संलिप्तता की जाँच होनी भी जरूरी है.
अभी से ही कई प्रगतिशील सेक्युलरवादी कहने लगे हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दोषियों को पकड़ ही लिया है. यानि इतने रोंगटे खड़े कर देने वाले कांड की लीपापोती भी शुरू हो गई है. कोरोना काल में मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोग, पुलिस, प्रशासन और अन्य जरूरी सेवाओं से जुड़े लोग सेवा में लगे हैं उससे लग रहा है कि ये वक्त भी गुजर ही जाएगा। पर न जाने कितनी कीमत वसूल कर ले जाएगा?
इसके साथ ही लिख लीजिए कि जो अंरुधति राय आरोप लगा रही है कि भारत सरकार कोरोना के नाम पर मुसलमानों पर जुल्मो-सितम कर रही है वह भी साधुओं के मारे जाने पर एक शब्द भी नहीं बोलेंगी. ऐसे छद्म धर्म निरपेक्षवादियों के एजेंडा को समझने की जरूरत है। वैसे कहने को तो अंरुधति राय अपने को मानवाधिकारवादी कहती हैं. पर उन्हें कश्मीर में पंडितों का कत्लेआम दिखाई नहीं दिया था.
हो सकता है कि वह उस कत्लेआम को सेक्युलर कत्लेआम मानती हों. इसलिए जो लोग अंरुधति राय से साधुओं के मारे जाने पर किसी संवेदना की उम्मीद कर रहे होंगें, वे गुस्ताखी माफ मुगालते में ही जी रहे हैं. देश में कई कोरोना योद्धा और दो पुलिस अधिकारी भी शहीद हो चुके हैं. पर राय ने उनके लिए एक शब्द भी संवेदना में नहीं बोला. वे सब हम सबको कोरोना से बचाने के लिए दिन-रात सड़कों पर हैं. लेकिन, अरुंधती को तो जमातियों को पकड़ने में जद्दोजहद करती पुलिस मुसलमानों पर अत्याचार करती दिखती है.
हैरानी की बात तो यह है कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोरोना को किसी जाति, समुदाय, धर्म या सीमा से जोड़ने के खिलाफ ट्वीट कर रहे हैं, तब अंरुधति राय भारत पर आरोपों की बौछार लगा रही है.एक बात जान लें कि अंरुधति राय हर दौर में मोदी सरकार का विरोध ही करती हैं. वह सिर्फ मौजूदा सरकार से ही नाराज नहीं हैं.
उन्हें देश का हर नेता जनता का दुशमन नजर आता है. भारत का शत्रु पाकिस्तान उन्हें संसार की महानतम हस्ती मानता है. क्योंकि, वे भारत को जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ती. कुछ साल पहले अरुंधति राय ने मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा शुरू किए अखबार ‘दि डान’ को दिए इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके पूर्ववर्ती डॉक्टर मनमोहन सिंह को भी पानी पी-पीकर कोसा था.
तो देश अब यह देख रहा है कि इन कठिन हालतों में भी कुछ नकारात्मकता से ग्रसित तत्व शर्मनाक कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं. इनकी निंदा भर कर देना भी शायद रेत में मुंह छिपा लेना ही होगा. एक बार कोरोना से ल़ड़ाई जीतने के बाद मोदी सरकार को उन शक्तियों से लड़ना होगा जो देश को दीमक की तरह से चाट रही हैं. किसी भी कीमत पर राष्ट्रद्रोहियों का समूल नाश होना ही चाहिये.
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