सम्मेद शिखर विवाद: अब आदिवासी और जैन समाज आमने-सामने आ गए!
झारखंड स्थित सम्मेद शिखर पारसनाथ पहाड़ी का विवाद ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा. अब इस विवाद में आदिवासी समुदाय ने अपनी एंट्री कर अपना दावा ठोंका है. पारसनाथ पहाड़ी को लेकर जो गफलत मची है माना यही जा रहा है कि इसकी एक बड़ी वजह राजनीति भी है.
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झारखंड स्थित सम्मेद शिखर पारसनाथ पहाड़ी के विवाद में अब आदिवासी संगठन और स्थानीय लोग भी कूद पड़े हैं. आदिवासी संगठनों ने पहाड़ी को अपना धरोहर और पूज्य स्थान बताते हुए इसपर दावा ठोंका है. धरोहर को बचाने के आह्वान के साथ आगामी 10 जनवरी को यहां देश भर के आदिवासियों से जुटने की अपील की गई है. खास बात यह कि इन संगठनों की अगुवाई झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम कर रहे हैं. पहाड़ी के आस-पास के लगभग 50 गांवों के लोगों ने कहा है कि इसकी तराई में वे पीढ़ियों से रहते आए हैं और इसपर किसी खास समुदाय का अधिकार नहीं हो सकता. झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम सहित आदिवासी संगठनों के नेता नरेश मुर्मू, पीसी मुर्मू, अजय उरांव, सुशांतो मुखर्जी ने कहा कि जैन मुनि यहां तपस्या करने आए और यहां उनका निधन हो गया तो इसका अर्थ कतई नहीं कि यह पूरा पहाड़ जैन धर्मावलंबियों का हो गया. इस धरोहर को बचाने के लिए आगामी 10 जनवरी को यहां पूरे देश से आदिवासी जुटेंगे. दावा किया गया है कि इस दिन हजारों लोग पहुंचेंगे. इस मांग को लेकर 25 जनवरी को बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू गांव में भूख हड़ताल भी की जाएगी. हाल के महीनों में स्थानीय भाषाओं और मूलवासियों के अधिकारों को लेकर सैकड़ों जनसभाएं करने वाले युवा नेता जयराम महतो ने भी कहा है कि इस पहाड़ की तराई में रहने वाले हर व्यक्ति का इस पर अधिकार है. अगर स्थानीय लोगों को किसी भी तरह इस पहाड़ पर जाने से रोकने की कोशिश हुई तो जोरदार आंदोलन होगा.
पारसनाथ सम्मेद शिखर विवादहर बीतते दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है
गौरतलब है कि लगातार जारी विरोध के बाद अंततः केंद्र सरकार ने झारखंड में जैन समुदाय के धार्मिक स्थल ‘सम्मेद शिखरजी’ से संबंधित पारसनाथ पहाड़ी पर सभी प्रकार की पर्यटन गतिविधियों पर रोक लगा दी थी, वहीं झारखंड सरकार को इसकी शुचिता अक्षुण्ण रखने के लिए तत्काल सभी जरूरी कदम उठाने के निर्देश भी दे दिए. और आनन फानन में भिन्न जैन समूहों के प्रतिनिधियों ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद ज्ञापित कर दिया और कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनके सबसे पवित्र तीर्थ स्थल की पवित्रता बनी रहेगी.
उधर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन सोरेन केंद्र सरकार द्वारा श्रेय लेने और जैन समुदायों द्वारा सिर्फ मोदी सरकार को श्रेय देने की होड़ पर कैसे चुप रह सकते थे? सोरेन ने तुरंत खुलासा किया कि यह निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखने के बाद आया है. इस पत्र में जैन समुदाय के सबसे पवित्र स्थलों में से एक पारसनाथ पहाड़ी में पर्यटन को बढ़ावा देने के किसी भी कदम का समुदाय के सदस्यों द्वारा देशभर में विरोध किये जाने के मद्देनजर केंद्र से तत्कालीन भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की 2019 की पर्यावरण-पर्यटन गतिविधियों से संबंधित अधिसूचना पर ‘उचित निर्णय’ लेने का आग्रह किया गया था.
निःसंदेह जैन समूहों में व्यवहारिक कौशल का अभाव दिखा, उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री के सहयोग की भी अपेक्षा रखनी चाहिए थी और इसलिए झारखंड सरकार के पत्राचार के आलोक में हेमन सोरेन की मंशा की भी सराहना करनी चाहिए थी. फिर बीते 2 जनवरी को हेमंत सोरेन सरकार ने जैन समुदाय को क्षेत्र की पवित्रता बनाए रखने का आश्वासन भी दिया था और कहा था कि वह इस जगह को पर्यटन स्थल में बदलने के 2019 के प्रस्ताव को रद्द करने पर विचार कर रही है.और अब वो हो रहा है जिसकी कल्पना भी शायद किसी को नहीं हुई होगी.
आदिवासी भी मैदान में कूद पड़े हैं और उन्होंने इस इलाके पर अपना दावा जताया है तथा इसे जैनियों से मुक्त कराने की मांग की है. संथाल जनजाति के नेतृत्व वाले राज्य के आदिवासी समुदाय ने पारसनाथ पहाड़ी को ‘मरांग बुरु’ (पहाड़ी देवता या शक्ति का सर्वोच्च स्रोत) करार दिया है और उनकी मांग पर ध्यान न देने पर विद्रोह की चेतावनी दी है.
अंतरराष्ट्रीय संथाल परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने यहां तक अपना दावा करते हुए कहा,'अगर सरकार मरांग बुरु को जैनियों के चंगुल से मुक्त करने में विफल रही तो पांच राज्यों में विद्रोह होगा. चाहते हैं कि सरकार दस्तावेजीकरण के आधार पर कदम उठाए. 1956 के राजपत्र में इसे ‘मरांग बुरु’ के रूप में उल्लेख किया गया है. जैन समुदाय अतीत में पारसनाथ के लिए कानूनी लड़ाई हार गया था. हम हर साल वैशाख में पूर्णिमा पर तीन दिनों के लिए यहां धार्मिक शिकार के लिए इकट्ठा होते हैं.'
सनद रहे प्रकृति पूजक समझे जाने वाले संथाल जनजाति देश के सबसे बड़े अनुसूचित जनजाति समुदाय में से एक है, जिसकी झारखंड, बिहार, ओडिशा, असम और पश्चिम बंगाल में अच्छी खासी आबादी है. मुर्मू ने दावा किया कि परिषद की संरक्षक स्वयं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और इसके अध्यक्ष असम के पूर्व सांसद पी मांझी हैं. एक अन्य आदिवासी संगठन ‘आदिवासी सेंगल अभियान’ (एएसए) ने भी यह आरोप लगाया कि जैनियों ने संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है.
इसके अध्यक्ष पूर्व सांसद सलखन मुर्मू ने चेतावनी दी कि अगर केंद्र और राज्य सरकार इस मुद्दे को हल करने तथा आदिवासियों के पक्ष में निर्णय देने में विफल रहे तो उनका समुदाय पूरे भारत में सड़कों पर उतरेगा. लगे हाथों किसी अन्य आदिवासी संगठन ने भी हो हल्ला मचाया है कि जैनियों ने संथालों के सर्वोच्च पूजा स्थल पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है. पारसनाथ मारंग गुरू बचाओ के तहत आंदोलन का ऐलान कर दिया गया है और कहा जा रहा है कि 'अगर 9 व 10 जनवरी तक झारखंडियों के पक्ष में वार्ता नहीं हुई तो 15 जनवरी को पारसनाथ को घेर लिया जाएगा. हर हाल में 15 जनवरी को मकर- संक्रांति मेला यहीं लगेगा.
लाखों लोग यहां आएंगे. जो भी उसे रोकने का कोशिश करेगा, इस अहिंसा की भूमि में उसे बख्शा नहीं जाएगा . 17 जनवरी को पांच प्रदेशों के 50 जिलों में धरना प्रदर्शन की तैयारी है. आंदोलन के तहत भारत बंद का ऐलान होगा.' कुल मिलाकर एकाएक ही अप्रत्याशित अनकही और अनचाही टकराव की स्थिति निर्मित कर दी गई हैं. वजहें क्या हो सकती है? क़यास ही लगाए जा सकते हैं. परंतु एक बात तो तय है फर्जी आवाजों के पीछे विशुद्ध राजनीति है. और सवाल बड़ा है क्या अब शांतप्रिय धर्मभीरु और फसादों से दूरी रखने वाला जैन समुदाय अब पहले की तरह भयमुक्त होकर सम्मेद शिखर जी की तीर्थयात्रा भी कर पायेगा?
पीरटांड प्रखंड के पूर्व प्रमुख सिकंदर हेम्ब्रम के मुताबिक मधुबन में लगभग 100 जैन मतदाता हैं. पूरा इलाका संथाल आदिवासी और दलितों का है. सम्मेद शिखर जाने के रास्ते में आदिवासियों के दो पूजा स्थल हैं, जिन्हें जाहेरथान के नाम से जाना जाता है. झारखंड बचाओ मोर्चा का कहना है कि सदियों से वहां आदिवासी रह रहे है और अपनी प्रथा से पूजा करते आ रहे हैं . आदिवासियों की पूजा पद्धति में बलि देना भी शामिल है. 10 किलोमीटर में जैनियों ने बलि देने से मना कर दिया है. शुरू से यह पहाड़ी आदिवासियों का रहा है और आदिवासियों में हर पर्व त्यौहार में बलि देने की प्रथा है.
आदिवासियों ने हमेशा जैनियों की मदद की है. जैन लोग 58 किलोमीटर में नग्न होकर परिक्रमा करते हैं उसका हमने कभी विरोध नहीं किया लेकिन हमारे पूजा पद्धति का विरोध क्यों? झारखंड बचाओ मोर्चा के अंतर्गत अपनी ही सरकार से जोएमएम विधायक लोबिन हेंब्रम ने मांग की है कि पारसनाथ पहाड़ी सिर्फ जैनियों का धर्मतीर्थ स्थल घोषित ना हो बल्कि आदिवासियों का भी मरांग बुरु धर्मस्थल घोषित हो. बिना अध्ययन किए मुख्यमंत्री ने कैसे लिख दिया यह जैन समुदाय का है! झारखंड बचाओ मोर्चा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को 25 जनवरी तक का अल्टीमेटम दिया हैं और कहा है कि अगर मांग पूरी नहीं हुई तो 30 जनवरी को उलीहातू में उपवास पर बैठेंगे.
2 जनवरी को भोगनाडीह में उपवास होगा. इससे पहले 10 जनवरी को पारसनाथ में आदिवासी समुदाय का महाजुटान होगा. झारखंड बचाओ मोर्चा ने कहा कि पारसनाथ हमेशा से आदिवासियों का मरांग बुरु धर्मस्थल रहा है. हमारे पास रिकॉर्ड है, 1956 के गैजेट के अनुसार पारसनाथ का नाम मरांग बुरु था. हम केंद्र और राज्य सरकार को आगाह करना चाहेंगे पहले पुराने दस्तावेज पढ़ ले फिर कुछ निर्णय ले. हम केंद्र सरकार को भी सचेत करना चाहेंगे जिस तरह से जैनियों ने अपना आंदोलन किया उससे भी बड़ा आंदोलन किया जाएगा.
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