संसद सत्र तो हंगामेदार ही होगा - विपक्ष के पास कोई काम तो बचा नहीं!
17वीं लोक सभा का संसद सत्र में बजट के साथ ही मोदी सरकार 2.0 की कोशिश तीन तलाक बिल पास कराने की होगी. आम चुनाव बुरी तरह हार कर बिखरा विपक्ष और कुछ करे न करे, हंगामा तो उसका हक बनता ही है.
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17 जून को शुरू हो रहे संसद सत्र में मोदी सरकार 2.0 की कोशिश कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पास कराने की है - और पूर्ण बजट भी इसी दौरान पेश किया जाना है. चुनावों से पहले अंतरिम बजट पेश किया गया था. वो भी अरुण जेटली के बीमार होने से अतिरिक्त प्रभार के तौर पर वित्त मंत्रालय का काम देख रहे पीयूष गोयल ने पेश किया था. अरुण जेटली इस बार मोदी कैबनेट का हिस्सा नहीं हैं.
बजट भी इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन को पेश करना है. जितनी बहुमत के साथ बीजेपी सत्ता में जीत कर आयी है, उससे तो बजट में सख्त कदमों की संभावना हो सकती थी, लेकिन तीन राज्यों के लिए इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव ऐसा होने नहीं देंगे, मान कर चला जा सकता है. संसद सत्र के हंगामेदार होने के आसार से तो इंकार किया नहीं जा सकता, वैसे भी विपक्ष इतना सिमट और बिखर चुका है कि उसके वश में हंगामा, शोर और वॉकआउट के अलावा कुछ खास है भी नहीं.
हंगामा तो होना ही है - विपक्ष का हक जो है
17वीं लोक सभा के पहले सत्र के लिए एक दिन पहले 16 जून को सर्वदलीय बैठक बुलाई गयी और सत्ता पक्ष ने विपक्ष से अहम विधेयकों को पारित कराने के लिए सहयोग भी मांगा है.
देखना दिलचस्प होगा मोदी सरकार 2.0 को दूसरी बार नेता प्रतिपक्ष के अभाव में कितना सहयोग मिल पाता है. संसद को सुचारू रूप से चलाने में सहयोग के लिए संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कांग्रेस के सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद से उनके घर जाकर मुलाकात भी की थी. मुलाकात में प्रह्लाद जोशी के साथ उनके दो जूनियर मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और वी मुरलीधरन भी साथ थे.
अब सहयोग की बात अपनी जगह है और उसके हक और फितरत की बातें अपनी जगह - हर सत्र में हंगामा तो विपक्ष का जन्मसिद्ध अधिकार होता है और वो उसे लेकर ही रहता है. तेवर तो दिखने शुरू हो ही गये हैं.
आज तक से बातचीत में कांग्रेस नेता पीएल पुनिया कहते हैं, 'अभी तो समय है. वास्तव में लोकसभा में 20 जून से ही काम शुरू होगा. शुरू के तीन दिन तो नव निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाने और प्रशासनिक कामों को पूरा करने में लग जाएंगे.'
फिर पीएल पुनिया मुद्दे की बात पर आते हैं, 'मुझे विश्वास है कि विपक्षी दलों के नेता एक साथ आएंगे और लोकसभा में राष्ट्र हित के मुद्दों को उठाएंगे.' चुनावों में तो एकजुट हुए नहीं, शोर मचाने और हंगामे में तो साथ हो ही सकते हैं.
आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सासंद संजय सिंह भी करीब करीब वैसा ही इरादा रखते हैं, 'हमारी स्थिति भले ही एनडीए से कमजोर है लेकिन हम उसे इतना आसानी से नहीं जाने देंगे.' आम आदमी पार्टी के राज्य सभा में तीन सांसद हैं और लोक सभा में एक मात्र भगवंत मान पंजाब से दोबारा चुनाव जीते हैं. 2014 में AAP ने चार संसदीय सीटों पर जीत हासिल की थी.
सर्वदलीय बैठक तो एक रिवाज भर है...
लोक सभा में इस बार भी कोई पार्टी इतनी सीटें नहीं जीत पायी है जिसे नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल हो सके. कांग्रेस को इस बार महज आठ सीटें ज्यादा मिल पायी हैं - कांग्रेस के 52 सांसद चुन कर आये हैं. 2014 में ही कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गयी थी.
विपक्ष बिखरा जरूर है लेकिन हंगामा और वॉकआउट के लिए ये बातें कितना मायने रखती हैं. समाजवादी पार्टी का रूख देखना दिलचस्प होगा. पिछली बार तो तमाम मौकों पर मुलायम सिंह यादव को पूरे परिवार के साथ विपक्ष के सदन बहिष्कार के बाद भी बैठे ही देखा जाता रहा. मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने जीती तो इस बार भी पांच ही सीटें हैं - लेकिन परिवार के नाम पर इस बार सिर्फ पिता-पुत्र होंगे - मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव. डिंपल यादव और धर्मेंद्र यादव चुनाव हार गये हैं. मुलायम सिंह यादव तो वैसे भी अपनी शुभकामनाओं से नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनवा चुके हैं - और खुद भी आखिरी बार संसद पहुंच रहे हैं जैसा समाजवादी नेता ने मैनपुरी के लोगों से वोट मांगते वक्त कहा था.
और क्या कुछ होगा संसद सत्र में
लोक सभा में सत्र पहले दो दिनों में तो नये सांसदों के शपथ दिलाना और अध्यक्ष का चुनाव होगा. लोक सभा का स्पीकर कौन बनता है अभी साफ नहीं है. 16वीं लोक सभा की स्पीकर रहीं सुमित्रा महाजन ने तो चुनाव ही नहीं लड़ा. स्पीकर बनने की रेस में राधामोहन सिंह का नाम शुमार हो रहा है. पिछली सरकार में वो कृषि मंत्री थे, लेकिन इस बार कैबिनेट में नहीं शामिल किया गया है. सीनियर नेताओं में तो मेनका गांधी भी सुल्तानपुर से चुनाव जीत कर आयी हैं और वो भी कैबनेट से बाहर हैं.
20 जून को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अभिभाषण होगा, जिसमें मोदी सरकार 2.0 के आगे के एजेंडे और एक्शन प्लान की झलक देखी जा सकेगी. 4 जुलाई को आर्थिक सर्वेक्षण पेश होगा और फिर 5 जुलाई को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन पूर्ण बजट पेश करेंगी. 17 जून से शुरू होकर ये सत्र 26 जुलाई तक चलेगा.
मोदी सरकार का सबसे ज्यादा जोर तीन तलाक बिल पास कराने पर होगा. ये विधेयक लोक सभा से पास हो गया था लेकिन राज्य सभा में अटक गया था. तीन तलाक बिल को इसी हफ्ते कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद फिर से लोक सभा और राज्य सभा में पेश किया जाना है.
तीन तलाक बिल के अलावा नये सत्र में केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में आरक्षण बिल और आधार बिल में संशोधन जैसे अहम विधेयक आ सकते हैं, ऐसा माना जा रहा है.
बीजेपी के तीन प्रमुख सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और सुषमा स्वराज में से कोई भी सदन में नहीं नजर आएगा. आडवाणी और जोशी को तो बीजेपी ने टिकट ही नहीं दिया और सुषमा स्वराज ने पहले ही लोक सभा चुनाव लड़ने से मना कर रखा था.
नये सत्र में एक और चीज देखने को मिलेगी. बरसों बरस नजर आने वाले चेहरे नदारद होंगे. संसद के इस सत्र में कोई भी पूर्व प्रधानमंत्री नहीं होगा. 28 साल तक राज्य सभा के जरिये संसद पहुंचने वाले मनमोहन सिंह का कार्यकाल खत्म हो चुका है. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा तो लोक सभा का चुनाव ही हार गये थे.
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