रघुपति राघव भजन विवाद: आप फारुक अब्दुल्ला के तर्क से सहमत हैं या मेहबूबा मुफ्ती के?
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कश्मीर के जम्मू कश्मीर के स्कूलों में भजन-गायन का विरोध किया और अपनी कट्टरपंथी मानसिकता का परिचय दिया है. वहीं मामले पर जैसा रुख नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला का है वो भीषण गर्मी में बारिश की ठंडी बूंद की तरह है.
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2 अक्टूबर 2022 आने वाला वो दिन जब देश महात्मा गांधी की 153 वां जन्मदिन मनाएगा. महात्मा गांधी का जीवन कैसे हमारे लिए प्रेरणा है? आवाम को बताने के लिए जम्मू कश्मीर सरकार की ओर से स्कूली शिक्षा विभाग को एक सरकारी आदेश भेजा गया था. आदेश में गांधी जयंती के उपलक्ष्य में कराए जाने वाले कार्यक्रमों की फेहरिस्त थी. क्योंकि कश्मीर के स्कूलों में 6 सितंबर से लेकर 2 अक्टूबर तक हर दिन कोई ना कोई विशेष कार्यक्रम रखा गया है. इसी सिलसिले में 13 सितंबर वाले कॉलम में All Faith Prayer यानी सभी धर्मों में विश्वास रखने वाली प्रार्थना को बल दिया गया था. स्कूलों में बच्चों ने 'रघुपति राघव राजा राम, ईश्वर अल्लाह तेरो नाम' गाया. वाक़ई बापू का ये भजन न केवल सर्वधर्म समभाव को बल देता है बल्कि ये भी बताता है कि सामाजिक ताने बाने को बरक़रार रखने के लिए, आज के समय में ऐसी प्रार्थना गीतों की बहुत जरूरत है. लेकिन दुनिया का दस्तूर है, हर अच्छी बात हर किसी को अच्छी नहीं लगती. नफरत के बीज बोकर हिंदू मुस्लिम के बीच खाई बनाने वाली जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती जैसों को तो बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती.
बापू के भजन को मुद्दा बनाकर एक बार फिर महबूबा मुफ़्ती ने अपनी कट्टरपंथी मानसिकता का परिचय दिया है
महात्मा गांधी के लोकप्रिय भजन 'रघुपति राघव राजा राम' को मुद्दा बनाने वाली महबूबा ने भले ही एक बार फिर अपनी घृणित मानसिकता का परिचय दे दिया हो लेकिन मामले पर जो रुख पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला का रुख है उसने इस बात की तस्दीख कर दी है कि दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हकीकत को स्वीकार करने में गुरेज नहीं करते और जब मौका लगता है तो जायज बात को मजबूती देने के लिए जायज तर्कों का सहारा लेते हैं.अब सवाल जनता से है. रघुपति राघव भजन विवाद पर जनता फारुक अब्दुल्ला के तर्क से सहमत हैं या मेहबूबा मुफ्ती के?
दरअसल महबूबा मुफ़्ती ने अभी बीते दिनों एक वीडियो शेयर किया है. वीडियो को देखें और उसका गहनता से अवलोकन करें तो दिख रहा है कि स्कूल में बच्चे पूरी तन्मयता से महात्मा गांधी के लोकप्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम गाते नजर आ रहे थे. अपनी कट्टरपंथी मानसिकता के लिए मशहूर महबूबा मुफ्ती को इस भजन में 'मौका' दिखा. फिर क्या था अपनी नफरती बातों से उन्होंने केंद्र सरकार को आड़े हाथों ले लिया.
अपने ट्वीट में महबूबा ने लिखा कि धार्मिक नेताओं को जेल में डालकर, जामा मस्जिद को बंद कर और स्कूली बच्चों को हिंदू भजन गाने का निर्देश देकर कश्मीर में भारत सरकार का असली हिंदुत्व एजेंडा उजागर हो गया है.
Jailing religious scholars, shutting down Jama Masjid & directing school kids here to sing Hindu hymns exposes the real hindutva agenda of GOI in Kashmir. Refusing these rabid dictates invites PSA & UAPA. It is the cost that we are paying for this so called “Badalta J&K”. pic.twitter.com/NssOcDP4t6
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) September 19, 2022
यक़ीनन महबूबा की बात ग़लत थी जिसे सही किया जम्मू कश्मीर के ही पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ ने. महबूबा द्वारा लगाई गयी नफरत की आग पर अपने तर्कों का ठंडा पानी डालने की कोशिश की. विवाद के मद्देनजर अपना पक्ष रखते हुए फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने कहा है कि हम 2 नेशन थ्योरी में विश्वास नहीं करते थे. भारत सांप्रदायिक नहीं है और यह धर्मनिरपेक्ष है.. मैं भी भजन गाता हूं. अगर मैं भजन गाता हूं तो क्या ये गलत है? अगर हिन्दू अजमेर की दरगाह में जाता है तो क्या वह मुसलमान बन जाएगा?
चूंकि मेहबूबा ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे इसलिए उन आरोपों को खारिज करते हुए बीजेपी ने उन पर बिना तथ्यों के झूठ फैलाने का आरोप लगाया है. भाजपा कुछ कह ले लेकिन महबूबा मुफ़्ती को लेकर सच्चाई यही है कि उनका शुमार घाटी के उन नेताओं में है जिनका हथियार और राजनीति का आधार ही हिंदू मुस्लिम करना है.
सवाल ये है कि अगर इन कार्यक्रमों के माध्यम से कश्मीर के स्कूली बच्चों को बेहतर नागरिक बनने की प्रेरणा दी जा रही है तो इसमें बुराई क्या है? अगर महबूबा मुफ़्ती को परेशानी हुई है तो हमें इस बात को भी समझना होगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि महबूबा को ये लगना शुरू हो गया है कि अब नए जम्मू कश्मीर के परिदृश्य में उनकी दाल ज्यादा दिनों तक नहीं गलने वाली.
बहरहाल इस पूरे मामले में फारूक अब्दुल्ला का पक्ष जरूर आश्चर्य में डालता है. फ़ारूक़ अब्दुल्ला में जैसा बदलाव हुआ है वो स्वतः इस बात के संकेत दे देता है कि नया कश्मीर अब सच में विकास के पथ पर कंधे से कंधा मिलाकर चल रहा है.
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