Pehlu Khan के हत्यारे तो कमजोर FIR लिखते समय ही बरी हो गए थे!
राजस्थान के अलवर में पहलू खान हत्याकांड मामले में एडीजे कोर्ट ने इस केस के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. 2017 में घटित हुए इस मामले में गौ रक्षकों की भीड़ ने पहलू खान की पीट-पीटकर मार डाला था. कोर्ट ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है.
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पहलू खान की मौत के मामले में अलवर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट जल्द ही अपना फैसला सुनाते हुए सातों आरोपियों को बरी कर दिया है. ज्ञात हो कि 1 अप्रैल 2017 को हरियाणा के मेवात निवासी पहलू खान जयपुर से दो गाय खरीदकर वापस अपने घर जा रहे थे. रास्ते में भीड़ ने न सिर्फ उनकी पिकअप गाड़ी को रुकवाया बल्कि पहलू खान और उसके बेटों के साथ मारपीट की. गंभीर हालात में पहलू को अस्पताल ले जाया गया जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हुई. मामले ने चर्चा पकड़ी तो पुलिस भी हरकत में आई और उसने तत्काल प्रभाव में कार्रवाई करते हुए नौ आरोपियों को गिरफ्तर किया जिसमें से 2 आरोपी नाबालिग हैं. मामला कोर्ट में था और इसपर फैसला आना था. शुरुआत में माना यही जा रहा था कि कोर्ट दोषियों पर सख्त से सख्त एक्शन लेगा मगर अलवर कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है.
पहलू खान मामले में कोर्ट ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है.
यदि पहलू खान की मौत के मामले का अवलोकन किया जाए तो मामले के अंतर्गत 2 एफआईआर दर्ज की थी. बात अगर पहली एफआईआर की हो तो इसमें पहलू खान की हत्या के मामले में 8 लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज हुई थी जबकि दूसरी एफआईआर में पहलू खान को बिना कलेक्टर की अनुमति के मवेशी ले जाने का दोषी पाया गया था.
क्या थी कहानी
बात 1 अप्रैल 2017 की है. जयपुर के पशु मेले से कुछ मवेशी खरीदने के बाद हरियाणा के डेयरी किसानों का एक छोटा समूह राजस्थान में जयपुर-दिल्ली राजमार्ग से होकर गुजर रहा था. इस समूह में पहलू खान और उनके बेटे इरशाद और आरिफ भी शामिल भी थे. जैसे ही ये लोग अलवर के पास से गुजरे इन्हें 200 गौ रक्षकों की भीड़ द्वारा घेर लिया गया. पहलू खान बार बार हत्यारों से जान बख्शने की अपील कर रहा था साग्थ ही उसने ये भी कहा कि वो ये गायें दुग्ध उत्पादन के लिए ले जा रहा था और उसका इरादा उन्हें मारने का नहीं है. अपने हत्यारों से पहलू खान ने गायों की खरीद फरोख्त के कागज तक दिखाने की बात की थी मगर वो लोग नहीं माने बाद में उन्होंने कागजात फाड़ दिए और पहलू को लाठी डंडों से बुरी तरह पीटा जिसकी वजह से पहलू को गंभीर चोट आई और इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई.
एफआईआर में कैसे घटना को कवर किया गया
घटना को लेकर पुलिस की मुस्तैदी हमें एफआईआर में ही दिखती है. अपनी मौत से पहले पहलू खान ने साफ तौर पर 6 लोगों ओम यादव, हुकुम चंद यादव, सुधीर यादव, जगमल यादव, नवीन शर्मा और राहुल सैनी की पहचान आपने हमलावरों के रूप में की थी. दिलचस्प बात ये है कि जो एफ आई आर पुलिस ने दर्ज की उसमें पुलिस ने इन 6 आरोपियों में से किसी का भी नाम नहीं डाला. साथ ही पुलिस ने अपनी 'जांच' के आधार पर ये भी कहा कि जिस वक़्त घटना हुई इनमें से कोई भी व्यक्ति क्राइम सीन पर मौजूद नहीं था. कह सकते हैं कि इस वर्चुअल क्लीन चिट ने सुनिश्चित किया कि पहलू के हमलावरों को उनके जघन्य अपराध के बावजूद जमानत मिल जाए.
बात चूंकि एफआईआर की चल रही है तो ये बताना भी बेहद जरूरी है कि एफआईआर दर्ज करने में 9 घंटों से अधिक का समय लगा जबकि घटना स्थल से पुलिस स्टेशन महज 2 किलोमीटर की दूरी पर था. जब आलोचना हुई तो बाद में पुलिस ने भी इस बात को माना कि उन्हें घटना की जानकारी देरी से हुई और जैसे ही उन्हें सूचना मिली उन्होंने कार्रवाई की. बात आगे बढ़ाने से पहले बता दें कि पूरे मामले में ऐसे तमाम मौके आए जब पुलिस ने अपने बयान बदले.
गौरतलब है कि पुलिस ने इस बात को कहा था कि उन्हें घटना की जानकारी 2 अप्रैल की सुबह 3.54 मिनट पर हुई. ऐसे में वो पहलू को 1 अप्रैल की ही रात को कैसे अस्पताल ले गए ? कैसे पुलिस ने 1 अप्रैल को 11.50 मिनट पर स्टेटमेंट रिकॉर्ड किया क्योंकि घटना की जानकारी तो उसे 2 अप्रैल 2017 को सुबह 3.54 पर हुई . अगर कैलाश हॉस्पिटल जो बेहरोर पुलिस स्टेशन से महज 2. 9 किलोमीटर दूर था वहां तक घायल पहलू को ले जाने और अस्पताल की डायरी में एंट्री कराने में 4 घंटों से अधिक लगे.
मामले में IPC को किया गया नजरंदाज
घटना पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने गौ रक्षकों पर सेक्शन 147, 143, 323, 308, 379, 379 में धाराएं लगाई. अब यदि इन धाराओं पर गौर करें तो मिलता है कि ये बेहद ही हल्की धाराएं हैं. इसलिए अगर वाकई पुलिस इस मामले को लेकर गंभीर होती तो इसे 120-B (आपराधिक साजिश) बताया ये भी गया कि जिस वक़्त पहलू के साथ घटना को अंजाम दिया गया उस पर मौके पर लोग मौजूद थे और जो भी हुआ पूरी प्लानिंग के साथ हुआ. कहा ये भी जा रहा है कि अगर मामले को लेकर जरा भी गंभीर होती तो केस 308 की जगह 307 में दर्ज हुआ होता. साथ ही पुलिस गौ रक्षकों पर सबूत नष्ट करने का भी अभियोग दर्ज करती. यानी इस पूरे मामले में जो कार्य प्रणाली पुलिस की रही साफ था कि उसने IPC को नजरंदाज किया.
मेडिकल रिकॉर्ड में हेरफेर
पहलू खान की हत्या में जो बात सबसे ज्यादा विचलित करने वाली थी वो थी उसकी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट. पहलू का पोस्ट मार्टम कम्युनिटी हेल्थ सेंटर बहरोर के तीन डॉक्टर्स की टीम ने किया था. जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया था कि पहलू की मौत सदमे के चलते हुई थी और ये सदमा उन्हें उनकी चोटों के कारण लगा था. पुलिस ने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए अपनी जांच में कैलाश हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के शुरूआती बयानों को ही दिया किया और उन्हीं के मद्देनजर मामले की विवेचना की. मामला पुलिस ने कितना पेचीदा बनाया इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि पुलिस ने ये तक कह दिया था कि पहलू की मौत का कारण दिल का दौरा पड़ना था, इन बातों से ये भी साफ हो गया कि पुलिस शुरू से ही अपराधियों को संरक्षण दे रही थी और हर संभव कोशिश कर रही थी कि वो छूट जाएं.
बहरहाल अब जबकि फैसला आ चुका है और सातों आरोपी बरी हो गए हैं. एक बड़ा वर्ग है जो सामने आ गया है कि और कह रहा है कि इस फैसले ने कहीं न कहीं उन लोगों को बल दिया है जो गाय के नाम पर लगातार लोगों को मार रहे हैं और देश की शांति को प्रभावित करने का काम कर रहे हैं. बाक़ी सवाल जस का तस बना हुआ है कि आखिर कैसे हुई थी पहलू कि हत्या? या फिर ये हत्या नहीं बल्कि एक साधारण मौत थी जिसका इस्तेमाल बस वोटबैंक की राजनीति के लिए किया गया.
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