पेट्रोल-डीजल कीमतों में तेजी और राहत का फर्क 'राहत' नहीं देता
कर्नाटक चुनाव में मतदान के तत्काल बाद से पेट्रोल की कीमतें 23 पैसे की दर से लगातार 16 दिन बढ़ीं, लेकिन जब राहत देने की बात आई तो सरकार 6 पैसे प्रतिदिन की दर से बूंद-बूंद राहत दे रही है.
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कुछ दिन पहले जिसे देखो वही मोदी सरकार की आलोचना करने में लगा हुआ था. वजह थी डीजल-पेट्रोल की बढ़ती हुई कीमतें. मोदी सरकार बढ़ती कीमतों के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को जिम्मेदार ठहरा रही थी. पिछले 6 दिनों से लगातार डीजल-पेट्रोल के दाम गिर रहे हैं और अब कोई भी सरकार की आलोचना नहीं कर रहा. देखा जाए तो मोदी सरकार ने सुर्खियों में आने का ये काफी अच्छा तरीका अपनाया है. जितनी तेजी से डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ी थीं, अब उनमें कटौती उसके मुकाबले बहुत ही कम हो रही है. वहीं दूसरी ओर कच्चे तेल की कीमतें गिरकर उस स्तर पर आ चुकी हैं, जहां 8 मई को थीं यानी करीब महीने भर पहले.
डीजल-पेट्रोल की कीमतों को ऐसे समझें
कर्नाटक चुनाव खत्म होने के बाद 14 मई से डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ना शुरू हुई थीं. ये कीमतें लगातार 16 दिनों तक यानी 29 मई तक बढ़ीं. अगर सिर्फ दिल्ली की बात की जाए तो इस दौरान डीजल 3.38 रुपए महंगा हुआ और पेट्रोल 3.80 रुपए बढ़ा. यानी अगर एवरेज निकाला जाए तो रोजाना डीजल करीब 21 पैसे प्रति लीटर के हिसाब से बढ़ा, जबकि पेट्रोल करीब 23 पैसे प्रति लीटर के हिसाब से बढ़ा.
अब 30 मई से लेकर 4 जून तक लगातार डीजल-पेट्रोल की कीमतों में गिरावट आई है. 29 मई को डीजल की कीमत 69.31 रुपए प्रति लीटर थी, जो 4 जून तक 68.97 रुपए पर पहुंच गई है. यानी इन 6 दिनों में कुल 34 पैसों की गिरावट आई. इसी दौरान पेट्रोल की कीमत में 47 पैसों की गिरावट दर्ज की गई. अब अगर गिरावट का एवरेज निकाला जाए तो डीजल रोजाना 5 पैसे सस्ता हो रहा है और पेट्रोल रोजाना करीब 8 पैसे सस्ता हुआ है.
डीजल और पेट्रोल की कीमतों की तुलना.
डेटा देखकर एक बात तो साफ हो जाती है कि डीजल-पेट्रोल के दामों में आई औसत गिरावट काफी कम है, जबकि इसकी कीमतों में बढ़ोत्तरी 3-4 गुना तेजी से हुई थी. ऊपर दिखाए गए चार्ज से आप आसानी से समझ सकते हैं.
कच्चे तेल का कैसा रहा हाल?
अब जरा कच्चे तेल के ग्राफ पर भी नजर डाल लीजिए. इसके ग्राफ को देखने से ही आप समझ जाएंगे कि डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ाकर सरकार ने कितनी कमाई की है और अब घटाने के नाम पर कैसे हमें गुमराह कर रही है. 2 मई को कच्चे तेल की कीमतें 72.89 डॉलर प्रति बैरल थीं, जिसके बाद इसमें तेजी आना शुरू हुई. 23 मई को कच्चे तेल ने 79.59 डॉलर प्रति बैरल का उच्चतम स्तर छुआ और फिर तेजी से गिरने लगा. अब 4 जून को कच्चे तेल की कीमत 76.35 डॉलर प्रति बैरल है, जो 8 मई के स्तर 76.29 डॉलर प्रति बैरल के बेहद करीब है.
कच्चे तेल की कीमत महीने भर में कैसे बढ़ी और गिरी.
आपको बता दें कि 8 मई को डीजल की कीमत 65.93 रुपए प्रति लीटर थी, जबकि पेट्रोल की कीमत 74.63 रुपए प्रति लीटर थी. इस तरह अगर देखा जाए तो डीजल-पेट्रोल की कीमतें में चुनाव के बाद से अभी तक जितनी बढ़ोत्तरी हुई है, वो सारी तो खत्म हो जानी चाहिए थी, क्योंकि कच्चा तेल तो काफी सस्ता हो चुका है. सरकार लगातार कच्चे तेल की दुहाई देकर ही अपना पल्ला झाड़ लिया करती थी, लेकिन चार्ट को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि 30 मई को कच्चे तेल की कीमतें काफी तेजी से बढ़ी थीं, लेकिन सरकार ने डीजल-पेट्रोल की कीमतें घटाई थीं. यानी कच्चे तेल की दुहाई देना भी गलत निकला. रोजाना चंद पैसों की कटौती से सिर्फ अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं, आम आदमी की हालत जस की तस बनी हुई है.
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