मोदी-शाह की जोड़ी ने Friendship को 5 नए मायने दिए हैं
देश के बेहद महत्वपूर्ण पदों पर आसीन इन दोनों जन की व्यक्तिगत जिंदगी से ज्यादा इनकी प्रोफेशनल जिंदगी लोगों के सामने रहती है. और इसी प्रोफेशनल जिंदगी के जरिए कह सकते हैं कि मोदी और शाह की जोड़ी ने दोस्ती को नए मायने दिए हैं.
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फ्रेंडशिप का मतलब अगर दोस्तों के साथ खेलना, मस्ती करना, चीजें शेयर करना, दिल की बात कहना, संग घूमना-फिरना है तो जरा रुकिए, आपको अभी दोस्ती के मायने समझने की जरूरत है. क्योंकि दोस्ती इन चीजों से नहीं बनती. बल्कि दोस्ती उन आधारों पर टिकी होती है, जो किसी को दिखाई नहीं देते सिर्फ महसूस किए जा सकते हैं.
ऐसी दोस्ती को सफल करती है नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी. देश के बेहद महत्वपूर्ण पदों पर आसीन इन दोनों जन की व्यक्तिगत जिंदगी से ज्यादा इनकी प्रोफेशनल जिंदगी लोगों के सामने रहती है. और इसी प्रोफेशनल जिंदगी के जरिए कह सकते हैं कि मोदी और शाह की जोड़ी ने दोस्ती को नए मायने दिए हैं. इन दोनों की मजबूत दोस्ती के कुछ महत्वपूर्ण आधार हैं, जिनको आज जान लेते हैं.
सम्मान-
अमित शाह और मोदी 1987 से एक दूसरे के साथ हैं. यानी ये साथ 32 सालों का है. लेकिन इतने सालों के साथ के बावजूद भी दोनों के रिश्तों में एक तरह की अनौपचारिकता साफ दिखती है. इसे आप इनका professionalism भी कह सकते हैं. मोदी शाह से उम्र में भी बड़े हैं और कद में भी लेकिन दोस्त होने के नाते उनमें अनौपचारिकता नजर नहीं आती. बल्कि अमित शाह छोटे बनकर हमेशा मोदी का सम्मान करते ही दिखते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी से अमित शाह रोज नहीं मिलते लेकिन जब भी मिलते हैं बड़े ही औपचारिक तरीके से. अमित शाह प्रधानमंत्री मोदी की कार के बाहर स्वागत के लिए खड़े होते हैं. बहुत सम्मान के साथ अमित शाह प्रधानमंत्री मोदी के गले में अंगवस्त्र पहनाकर गुलदस्ते से उनकता स्वागत करते हैं. और शाह बिना किसी बदलाव के हमेशा ऐसा ही करते हैं. निजी जीवन में ये दोनों भले ही अनौपचारिक रहते हों लेकिन जब वो दुनिया के सामने होते हैं तो जीवन में अनुशासित और औपचारिक रहने का उदाहरण पेश करते हैं. मोदी के प्रति अमित शाह जो महसूस करते हैं वो उनके सम्मान में साफ दिखाई देता है.
मोदी का स्वागत अंगवस्त्र पहनाकर ही करते हैं अमित शाह
ऐसा ही सम्मान प्रधानमंत्री मोदी भी अमित शाह के प्रति रखते हैं, लेकिन अपने तरीके से प्रदर्शित करते हैं. 17वीं लोकसभा के चुनावी नतीजों से पहले भाजपा की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी भी उपस्थित थे, लेकिन उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब नहीं दिए. तब मोदी ने अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष के नाते सम्मान देते हुए कहा था- "मैं पार्टी का अनुशासित कार्यकर्ता हूं. जवाब अध्यक्षजी ही देंगे.'' इसपर भले ही प्रदानमंत्री की आलोचनाएं हुई थीं. लेकिन उन्होंने तब अपने तरह की दोस्ती निभाई और दोस्ती में सम्मान भी किया.
भरोसा:
ऐसा नहीं है कि सामान्य दोस्तों की तरह इन दोनों ने भी साथ में चाय-समोसे नहीं खाए होंगे. अमित शाह और मोदी की जिंदगी में भी एक रेस्त्रां था जहां वो साथ में चाय और जलेबी खाया करते थे. वहीं बातों बातों में अमित शाह ने प्रधानमंत्री पर भरोसा जताते हुए ये कहा था कि आप भाजपा का भविष्य हैं और एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. और ये भरोसा तब का है जब मोदी मुख्यमंत्री भी नहीं बने थे. अमित शाह ने मोदी पर भरोसा बनाए रखा और मोदी अमित शाह के भरोसे के साथ आगे बढ़ते गए. 2014 में मोदी देश के प्रधानमंत्री बने और 2019 में भी दोबारा कार्यकाल को दोहराया.
उतना ही भरोसा प्रधानमंत्री मोदी भी अमित शाह पर करते हैं. इतने सालों के साथ ने मोदी को एक दोस्त के रूप में अमित शाह मिले जिनपर वो आंख मूंदकर भरोसा कर सकते हैं. 2014 में सत्ता में आने से पहले की तैयारी में जितना भरोसा मोदी को खुदपर था उतना ही अमित शाह पर भी था. इसी भरोसे पर 2014 चुनाव के 10 महीने पहले शाह को उत्तर प्रदेश का भाजपा प्रभारी बनाया गया. तब प्रदेश में भाजपा की मात्र 10 लोक सभा सीटें ही थीं. ये शाह की रणनीति का ही कमाल था कि 16वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें हासिल कीं. प्रदेश में भाजपा की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत थी, जिसका श्रेय अमित शाह को ही गया. ये अमित शाह पर भरोसा ही था जिसके चलते उन्हें भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष पद दिया गया.
दोनों का एकदूसरे पर भरोसा ही जीत का कारण बना
कहते हैं कि अमित शाह खुद को चिपकू कहते हैं यानी अपने लक्ष्य से चिपक जाते हैं. वो अपने लक्ष्य पर डटे रहे और भाजपा को जीत मिलती गई. 2019 में एक बार फिर जीत हासिल हुई और अमित शाह को भारत का गृहमंत्री बनाया गया. भारत के सबसे संवेदनशील हिस्से कश्मीर की जिम्मेदारी अमित शाह के कंधों पर ही है, क्योंकि प्रधानमंत्री उनपर भरोसा करते हैं.
मर्यादा:
प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी खास इसलिए भी हैं क्योंकि इन दोनों के बीच कभी मतभेद नहीं दिखाई दिए. दोनों न कभी एक दूसरे की बात काटते हैं और न कभी एक दूसरे के रास्ते में आते हैं. यदि प्रधानमंत्री विदेश जाकर भाषण देते हैं तो आप कभी अमित शाह को विदेश जाकर भाषण देते नहीं सुनेंगे. प्रधानमंत्री उनके नेता हैं और अमित शाह जानते हैं कि वो क्या हैं और उनकी हद क्या है. अमित शाह के संबंध प्रधानमंत्री के साथ कितने ही दोस्ताना हों लेकिन रिश्तों की मर्यादा उन्होंने हमेशा रखी. इसलिए प्रधानमंत्री के सामने वो कभी खुद को महत्वपूर्ण नहीं दर्शाते, बल्कि हमेशा उनके आगे झुकते ही दिखाई देते हैं. राहुल गांधी ने भले ही प्रधानमंत्री को गले से लगा लिया हो, लेकिन कभी अमित शाह और मोदी को गले लगते नहीं देखा गया. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि गले लगकर ही प्यार दर्शाया जाता है. अमित शाह अपना प्यार और सम्मान मोदी के आदे झुककर दिखाते हैं.
रिश्तों की मर्यादा का हमेशा ध्यान रखते हैं मोदी और शाह
लगाव:
जाहिर है ये लगाव ही होता है जो दो लोगों को साथ रखता है. इस लगाव का कारण दो दोस्तों का व्यक्तित्व होता है. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह का व्यक्तित्व करीब करीब एक जैसा ही दिखाई देता है. यानी दोनों एक दूसरे के अनुरूप हैं. अनुशासित और केंद्रित. ऐसे में लगाव होना स्वाभाविक है. इस लगाव को एक तस्वीर के माध्यम से समझा जा सकता है. 2019 में अहमदाबाद में रानिप पोलिंग बूथ पर प्रधानमंत्री मोदी वोट डालने के लिए पहुंचे थे. वहां अमित शाह अपने परिवार के साथ उनके स्वागत के लिए पहुंचे थे. प्रधानमंत्री मोदी ने अमित शाह की पोती को गोद में उठाया और बड़े प्यार से दुलारा था.
लगाव को महसूस किया जा सकता है
ईमानदारी:
जब बात सिद्धांतों और विचारधारा की आती है तो प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह दोनों बेहद मजबूत नजर आते हैं. दोनों के जीवन के कुछ नियम हैं, सिद्धांत हैं जिन्हें दोनों पूरी ईमानदारी से निभाते हैं. मामला चाहे हिंदुत्व का हो या फिर गाय, मामला चाहे देश का हो या विदेश का, अमित शाह और मोदी का स्टैंड हमेशा से क्लीयर रहा है. दोनों की कार्यशैली भी ऐसी है कि वो किसी को उंगली उठाने का मौका नहीं देते. 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' सिर्फ जुमला नहीं बल्कि इसपर काम करने में मोदी और शाह की जोड़ी हमेशा ईमानदार रही है. उतने ही ईमानदार दोनों को एकदूसरे के प्रति भी हैं. अमित शाह को जो काम सौंपा जाता है वो उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ अंजाम तक पहुंचाते हैं. पिछले कुछ साल इस बात के गवाह भी रहे हैं कि अमित शाह अपने काम को लेकर गंभीर ही नहीं ईमानदार भी हैं.
आजादी:
आजादी का मतलब यहां स्वतंत्रता से है. देखा जाए तो किसी भी रिश्ते में सांस लेने के लिए एक स्पेस होना जरूरी होता है. इसे आप स्वतंत्रता कह सकते हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अमित शाह को पूरी छूट दी हुई है कि वो अपने क्षेत्र में अपने हिसाब से काम करें. 2014 से पार्टी अध्यक्ष के तौर पर काम करते हुए अमित शाह को किसी भी उनके तौर-तरीकों के लिए रोका या टोका नहीं गया. अमित शाह ने देश भर में भाजपा की किस्तम बदल दी. चाहे वो भाजपा कार्यालयों का निर्माण कराना हो या फिर भाजपा कार्यकर्ताओं के कामकाज के तरीकों को बदलना हो. भाजपा कार्यकर्ताओं की मेहनत और अमित शाह के तरीके कितने सफल रहे ये चुनावों के नतीजों ने बता दिया. और अब जबकि अमित शाह कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले पर काम कर रहे हैं तो अमरनाथ यात्रा की जिम्मेदारी हो या फिर 35 ए की अमितशाह अपने तरीके से चीजों को व्यवस्थित करते दिखाई दे रहे हैं, जिनपर मोदी ने भरोसा भी दे रखा है और आजादी भी.
भले ही आप मोदी और शाह को हंसी-ठिठोली करते हुए न देखते हों. भले ही आप मोदी और शाह को हाथों में हाथ डाले न देखते हों. दोनों को hangout करते न देखते हों. लेकिन दोनों की पक्की दोस्ती सबको दिखाई देती है. और ये दोस्ती लोगों को ये सिखाती है कि दोस्ती सिर्फ दिखावे से नहीं निभती, इसे निभाने के लिए आधार का मजबूत होना जरूरी है.
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