अरुण जेटली-सुषमा स्वराज, तुरुप के ये इक्के नरेंद्र मोदी 2.0 को बहुत याद आएंगे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नई कैबिनेट में अरुण जेटली और सुषमा स्वराज नहीं हैं. इन दोनों ही नेताओं ने पीएम मोदी के पहले कार्यकाल को प्रभावशाली बनाया है, इस कारण इनके योगदान को न तो पार्टी और न ही स्वयं पीएम मोदी ही कभी भुला पाएंगे.
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2019 के लोकसभा चुनाव हुए. भाजपा और कांग्रेस के बीच में कांटे की टक्कर रही. शुरुआत में माना गया कि बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी जैसे जो मुद्दे कांग्रेस विशेषकर राहुल गांधी ने उठाए हैं उससे वो मोदी-शाह के विजय रथ को रोकने में कामयाब रहेंगे. चुनाव के बाद जो नतीजे आए वो हैरत में डालने वाले थे देश की जनता ने 2014 की तरह इस बार भी कांग्रेस कि नीतियों को सिरे से खारिज कर दिया और भाजपा को पिछली बार से भी अच्छा मैंडेट दिया. नतीजों के बाद, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री कार्यालय में धमाकेदार वापसी कर रहे हैं. उनके पास लोकसभा में एक बड़ा बहुमत है जबकि बात अगर विपक्ष की हो तो विपक्ष अस्त व्यस्त और कमजोर है जिस कारण नरेंद्र मोदी का दूसरा कार्यकाल अधिक शक्तिशाली प्रतीत हो रहा है.
यूं तो मोदी के इस नए कार्यकाल में सब कुछ अच्छा है. मगर इस बार मंत्रिमंडल में अरुण जेटली और सुषमा स्वराज का न होना, कहीं न कहें व्यथित करने वाला है. देश की आम जनता के बीच लोकप्रिय ये दोनों ही नेता स्वास्थ्य कारणों से इस बार मंत्रिमंडल से बाहर हैं. बात अगर जेटली की हो तो उन्हें मोदी का विश्वासपात्र माना जाता था.
अपने राजनीतिक जीवन में सुषमा स्वराज- अरुण जेटली के योगदान को पीएम मोदी कभी भुला नहीं पाएंगे
वहीं सुषमा विदेश में रहने वाले उन भारतीयों के लिए उम्मीद की किरण थी. जो जब भी परेशानी में होते एक ट्वीट कर देते और सुषमा उनकी मदद के लिए आगे आ जाती.कह सकते हैं इस बार के मंत्रिमंडल में इनका न होना, न सिर्फ पीएम मोदी को बल्कि देश की जनता तक को अखरेगा.
जब पीएम मोदी अपना पहला कार्यकाल संभल रहे थे तब जेटली वो पहले व्यक्ति थे जो उनके पास आए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जेटली का रिश्ता और सामंजस्य कैसा रहा है? इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि, जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे भी तब भी उनकी जेटली से खूब जमती थी.
पूर्व में ऐसे तमाम मौके आए हैं जब दोनों ने अहम मुद्दों पर सलाह मशवरा किया था. ज्ञात को कि जेटली केंद्रीय भाजपा नेताओं के उस पहले समूह में से थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए नेतृत्व की भूमिका निभाई थी. आपको बताते चलें कि अरुण जेटली का शुमार उन चुनिंदा व्यक्तियों में होता है जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसमें पार्टी के दिग्गज नेताओं जैसे लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को साइड लाइन होते देखा गया था.
पहली मोदी सरकार में जेटली के साथ, केंद्रीय मंत्रिमंडल का शक्ति समीकरण भी बदल गया. इससे पहले, केंद्रीय गृह मंत्री को नंबर 2 माना जाता था, लेकिन पिछले पांच वर्षों में, वित्त मंत्री के रूप में जेटली पूरी कैबिनेट में दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में उभरे. पीएम मोदी के लगभग सभी प्रमुख और व्यापक कार्यक्रमों जैसे जन धन योजना, आधार लिंकिंग, डिमनेटाइजेशन, माल और सेवा कर के रोलआउट, बेनामी संपत्ति कानून और दिवाला संहिता को वित्त मंत्रालय से कार्यान्वित किया गया था. हालांकि जेटली कानून मंत्री नहीं थे, लेकिन उन्होंने सभी बड़े मुद्दों पर मोदी सरकार को महत्वपूर्ण जानकारी दी ताकि वो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में भेज सके.
वहीं बात अगर शक्ति और उसके प्रदर्शन कि हो तो चाहे वो विमुद्रीकरण रहा हो या फिर जीएसटी और राफेल सौदा तमाम अहम मोर्चों पर जितने भी विवाद हुए, अरुण जेटली वो पहले व्यक्ति रहे हैं जो प्रधानमंत्री का बचाव करने और उनकी तरफ से मोर्चा लेने के लिए सबसे पहले सामने आए. क्योंकि राफेल बीते कुछ समय से लोगों की जुबान पर है. ऐसे में भले ही अरुण जेटली रक्षा मंत्री न रहे हों. मगर जैसे उन्होंने राफेल सौदे को लेकर सरकार का पक्ष रखा, ऐसे तमाम मौके आए जब उनकी कही बातों ने कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों को भारी मुसीबतों में डाला.
मोदी के मंत्रिमंडल में सुषमा स्वराज की अहमियत
बात अगर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल की हो तो विदेशी मामले एक महत्वपूर्ण क्षेत्र रहे थे. अपने पहले कार्यकाल में मोदी ने तकरीबन 90 देशों की यात्राएं की और विदेशियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित किया. अपनी यात्राओं में पीएम मोदी ने अन्य देशों को ब्रांड इंडिया के बारे में बताया और ये समझाने का प्रयास किया कि यदि वो भारत में निवेश करते हैं तो ये चीज दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्था के लिहाज से कितनी प्रभावी हो सकती है.
ऐसे में बात यदि सुषमा स्वराज की भूमिका की हो तो इस पूरी प्रक्रिया में सुषमा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. उन्होंन प्रत्येक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय और बहुपक्षीय चर्चा के लिए जमीन तैयार की, जो पीएम मोदी ने पिछले पांच वर्षों में आयोजित की. 2014 में मोदी के स्वयं के प्रवेश के बाद वो सुषमा स्वराज ही थीं जिन्होंने यूएन में कही अपनी बातों से सारे देश का दिल जीता. पीएम मोदी एक प्रभावशाली भाषण देना चाहते थे, लेकिन स्वराज ने जोर देकर कहा कि वह एक लिखित भाषण पढ़ें, ताकि संदेश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच खो न जाए.
शुरूआती समय में जिस हिसाब से सुषमा की लोकप्रियता थी कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा. लेकिन जैसे उन्होंने तमाम मामलों का निपटारा किया पहली बार विदेश मंत्रालय का वो चेहरा लोगों ने देखा जो जितना सौम्य था उतना ही मददगार भी था. कहा सकते हैं कि सुषमा विदेश में कहीं भी फंसे किसी भी भारतीय के लिए संकटमोचक थीं.
चाहे जरूरतमंदों को वीजा जारी करना हो. या फिर संकट में घिरे भारतीयों को मदद देकर राहत दिलाने जैसी मामूली बातें रहीं हों. सुषमा से जैसे उन मामलों में व्यक्तिगत रूचि ली, उसने कई मौकों पर विपक्ष तक का दिल जीता. माना जाता है कि ये सुषमा के ही प्रयास हैं जिनके चलते आज विदेश तक में बसने वाले भारतीयों के बीच पीएम मोदी लोकप्रिय हैं.
इस्लामिक देशों से अच्छे संबंध, मोदी की एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. कहा यहां तक जाता है कि, मुस्लिम देशों से मोदी के अच्छे सम्बन्ध होना, ये बताता है कि मोदी मुस्लिम विरोधी नहीं हैं. मुस्लिम देशों से जैसे भारत और पीएम मोदी के सम्बन्ध बने हैं उसका भी पूरा श्रेय सुषमा स्वराज को जाता है. पूर्व में कई मौके ऐसे आए हैं जब इन संबंधों को सुधारने में सुषमा ने निर्णायक भूमिका निभाई है.
आपको बताते चलें कि सुषमा के प्रयासों को उस समय एक नई पहचान मिली जब इन्हें इसी वर्ष मार्च में न सिर्फ इस्लामिक देशों के संगठन (OIC) के प्लेनरी कॉन्क्लेव में बुलाया गया. बल्कि सम्मानित भी किया गया. ध्यान रहे कि यह पहला मौका था जब भारत को ओआईसी द्वारा अपने सत्र में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था.
बहरहाल अब जबकि पीएम मोदी के दूसरे कार्यकाल में जेटली और सुषमा स्वराज नहीं हैं. तो कहा यही जा सकता है कि इन्हें इनके द्वारा किये गए कामों के कारण खूब याद किया जाएगा. इन दोनों ही नेताओं की जगह कौन लेता है इसका फैसला जल्द हो जाएगा. मगर जिस तरह इन दोनों ही नेताओं ने पीएम मोदी के पहले कार्यकाल को प्रभावशाली बनाया है, इनके योगदान को न तो पार्टी और न स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ही कभी भुला पाएंगे.
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