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Updated: 15 मई, 2018 07:03 PM
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मोबाइल कंपनियों का डाटा पैक तो 28 दिन बाद भी खत्म नहीं हो पा रहा, पर बीजेपी का 'जिन्ना पैक' कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने से पहले ही लैप्स हो गया. तरस तो जिन्ना ब्रिगेड पर आती है जिसे नये काम के लिए अगले चुनाव तक बैठे बैठे इंतजार करना पड़ेगा.

यूपी के आंधी-तूफान की तरह आये जिन्ना विवाद की ताजा सुनामी में तो कुछ दूर तक सलमान खुर्शीद भी बहने लगे थे और बोल भी पड़े - 'हम हैं गुनहगार'. हालांकि, मौका मिलते ही राहुल गांधी ने आगाह भी कर दिया - 'बचाएंगे तो हम ही.'

बाकी बातें अपनी जगह हैं लेकिन ऐला लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र की कोई नयी छवि गढ़ी जा रही है. आगे चल कर जो भी हो

नयी छवि गढ़ने में लगे मोदी

कर्नाटक के करण आचार्य ने दोस्तों के कहने पर 2015 में एंग्री हनुमान की छवि उकेरी थी. तीन साल तक शांत पड़े रहने के बाद कर्नाटक चुनाव के दरम्यान जिन्ना पैक की तरह एंग्री हनुमान की छवि भी वायरल हो गयी. आधी सिंदूरी और आधी काले रंग की ये तस्वीर इतनी चर्चित हुई कि लोग स्टिकर के तौर पर लगाने लगे, फिर प्रधानमंत्री मोदी कैसे जाने देते. चाहे जिन्ना पैक हो चाहे एंग्री हनुमान काम तो एक जैसे ही कर रहे थे.

narendra modiमंदिर तो गये मगर, नेपाल में

मेंगलुरू की रैली में प्रधानमंत्री मोदी के दो शब्द करण की तारीफ में भी सुनने को मिले, 'मैं कलाकार करण आचार्य की प्रशंसा करना चाहता हूं. उनके बनाये हनुमान के चित्र ने देश के लोगों के दिलो-दिमाग पर असर डाला है. ये एक सराहनीय उपलब्धि है और ये उनकी कल्पनाशीलता और टैलंट को प्रकट करता है. ये मेंगलुरू के लिए गौरव की बात है.'

मोदी के कर्नाटक दौरे में एक बात हैरान करने वाली दिखी. पूरे कर्नाटक दौरे में मोदी न तो किसी मंदिर में गये न ही किसी मठ के महंथ का आशीर्वाद लिया. ये जिम्मा मोदी ने अमित शाह और योगी आदित्यनाथ पर छोड़ दिया था.

तो क्या मोदी कर्नाटक में कोई नया प्रयोग कर रहे थे? क्या कर्नाटक में गुजरात के मुकाबले धर्मनिरपेक्षता भी कोई हिडेन एजेंडा काम कर रहा था? राहुल गांधी तो गुजरात के मंदिरों की ही तरह कर्नाटक के मठों में घूमते रहे. गुजरात में जहां राहुल गांधी का दौरा मंदिरों तक ही सीमित रहा, कर्नाटक में वो दरगाह, गुरुद्वारा और चर्च भी घूमें.

मोदी मंदिर गये तो जरूर लेकिन भारत में नहीं नेपाल में. मोदी पशुपतिनाथ मंदिर में उसी दिन दर्शन पूजन किया जिस दिन कर्नाटक में लोग वोट डाल रहे थे. कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने इसे आचार संहिता का उल्लंघन भी करार दिया - और कहा कि इससे गलत ट्रेंड पड़ रहा है.

amit shahहिंदुत्व के प्रयोग...

कर्नाटक चुनाव से ये तो साफ हो गया है कि 2019 में बीजेपी का एजेंडा तो हिंदुत्व के इर्द गिर्द ही रहेगा. मगर, क्या मोदी किसी और लाइन पर काम कर रहे हैं? क्या मोदी की 2002 वाली गुजराती हिंदू नेता के उदार विकास-पुरुष जैसी कोई छवि गढ़ी जा रही है? वाजपेयी काल में लालकृष्ण आडवाणी की लौह पुरुष की छवि रही. वाजपेयी सरकार के जाने के बाद स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए आडवाणी की उदार नेता की छवि गढ़ी जा रही थी - हालांकि, उदारता की रफ्तार इतनी तेज होती गयी कि पाकिस्तान में जिन्ना की समाधि पर पहुंचते ही एक्सीडेंट हो गया.

तो क्या 2019 में भी इस तरह के प्रयोग देखने को मिल सकते हैं?

ट्विटर पर सिद्धारमैया के शार्प शूटर जरूर गदर मचाये रहे, लेकिन सारे के सारे नाकाम रहे. सिद्धारमैया ने योगी की कमजोर कड़ी पर जबरदस्त वार किया था - यूपी में तूफान से होने वाली मौतों को लेकर तो बैरंग ही लौटा दिया था. शायद तब तक देर हो चुकी थी.

योगी की यात्रा अधूरी जरूर रही लेकिन काम वो पूरा करके ही गये थे. योगी के हिसाब से देखें तो उन्हें आम के आम और गुठली के भी दाम मिल गये. कर्नाटक में वोट भी मिले और यूपी के लोगों ने मुसीबत की घड़ी में महाराजी को अपने करीब खड़ा पाया.

नकल कम, अक्ल ज्यादा जरूरी

गुजरात चुनाव के वक्त से ही राहुल गांधी को कई मौकों पर मोदी की नकल करते देखा गया. गुजरात में तो चल गया लेकिन कर्नाटक में मोदी ने स्ट्रैटेजी बदल ली. राहुल गांधी नहीं भांप पाये. राहुल गांधी गुजरात वाली स्टाइल में ही तकरीबन कर्नाटक में भी देखा गया. लगता है अभी राहुल गांधी को मोदी से बहुत कुछ सीखना होगा.

गुजरात और कर्नाटक दोनों ही जगह बीजेपी की कमान पूरी तरह अमित शाह के हाथों में रही. जबकि फर्क ये रहा कि गुजरात में बीजेपी सत्ता में रही और कर्नाटक में उसे सत्ता हासिल करनी रही. सत्ता हाथ में होने का एक फायदा ये जरूर होता है कि सरकारी मशीनरी आचार संहिता लागू होने से पहले तक हाथ में होती है. दूसरा पहलू ये है कि उसे सत्ता विरोधी फैक्टर को फेस करना पड़ता है. कर्नाटक में बीजेपी के लिए यही गुजरात से उल्टा रहा. फिर बीजेपी ने गुजरात में सत्ता बचा ली और कर्नाटक में हासिल कर ली.

rahul gandhiकर्नाटक में बदला मंदिर दर्शन का दायरा

कांग्रेस ने गुजरात में सत्ता विरोधी लहर का फायदा तो उठा लिया, लेकिन कर्नाटक में चूक गये. गुजरात और कर्नाटक के कांग्रेस के चुनाव प्रचार में एक और अंतर भी रहा. गुजरात में राहुल गांधी के साथ अशोक गहलोत के अलावा अहमद पटेल भी डटे रहे - और साथ में सैम पित्रोदा. कर्नाटक में शुरू से ही राहुल गांधी ने सारी चीजें सीएम सिद्धारमैया पर छोड़ दी थीं. बात इतनी बिगड़ गयी कि खुद सोनिया को मोर्चे में आना पड़ा.

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