कर्नाटक चुनाव के वो मुद्दे, जिन्हें न तो बीजेपी ही नकार पाई न ही कांग्रेस
कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर राज्य में पोलिंग हो चुकी है तो आइये एक नजर डालते हैं उन मुद्दों पर जिन्होंने किया और जो भविष्य में करते रहेंगे कर्नाटक की सम्पूर्ण राजनीति को प्रभावित.
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कर्नाटक में 224 में से 222 सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है. जल्द ही जनता के फैसले से इस बात का निर्धारण हो जाएगा कि कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस में से वो किसे मौका देगी ताकि वो दल सत्ता में आकर सत्ता सुख पाए. चुनाव से पहले कभी कावेरी जल विवाद, तो कभी हिंदी बनाम कन्नड़ चुनावों का मुद्दा रहा. जैसे-जैसे चुनाव करीब आए चुनावी मुद्दों ने पलटी मारी और हाल फिल्हाल में वो मुद्दा जिसने कर्नाटक चुनाव को लेकर उत्प्रेरक की भूमिका निभाई वो लिंगायत का मुद्दा रहा. लिंगायत समुदाय के लोग लम्बे समय से अपना एक अलग धर्म बनाने की मांग कर रहे थे.
यदि हम मुद्दों से भूगोल अलग करें और उसके बाद कर्नाटक राज्य का अवलोकन करें तो मिलता है कि कर्नाटक का शुमार भारत के उन कुछ चुनिन्दा राज्यों में है जहां भारी विविधता है. ये शायद कर्नाटक की विविधता ही है जिसके चलते यहां कई ऐसे मुद्दे देखने को मिले जिसे भारत का कोई अन्य राज्य प्रमुख मुद्दा मानने से ही इंकार कर दे.
कर्नाटक में पोलिंग हो चुकी है अब इन्तेजार इस बात का है कि राज्य की जनता किसे मौका देती है
चाहे कर्नाटक का तटीय क्षेत्र हो जो अपने में अरब सागर समेटे हुए हैं वहां संस्कृति के संरक्षण का मुद्दा हो या फिर मैसूर, जो कि कावेरी नदी का जन्मस्थान है और जहां कावेरी के पानी के बंटवारे को लेकर चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है वहां पानी का मुद्दा हो. ये कहना गलत न होगा कि कर्नाटक में ऐसे कई छोटे बड़े मुद्दे हैं जो यहां की पूरी राजनीति को प्रभावित करते हैं. यहां जहां एक तरफ वेस्टर्न घाट के घने जंगल अहम मुद्दा हैं तो वहीं दूसरी ओर हैदराबाद कर्नाटक का अर्ध शुष्क क्षेत्र भी हमेशा से ही लोगों के बीच चर्चा का केंद्र रहा है और इस पर भी खूब राजनीति हुई है.
बात अगर उत्तर-पश्चिम में बॉम्बे कर्नाटक के क्षेत्र की हो तो यहां भी जनता भाषा की दिक्कतों से परेशान हैं और यहां मची भाषा की दिक्कत ने भी काफी हद तक कर्नाटक की राजनीति में घमासान मचा रखा है. आइये एक बार फिर एक एक कर जानें इस चुनाव में क्या रहे कर्नाटक के अहम मुद्दे.
प्राचीन मैसूर क्षेत्र
इस क्षेत्र को जहां एक तरफ कावेरी के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है तो वहीं इसे सम्पूर्ण कर्नाटक में सांस्कृतिक रूप से ज्यादा धनी माना जाता है. बात अगर इस क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे की हो तो निश्चित तौर पर कावेरी जल का बंटवारा यहां हमेशा ही एक प्रमुख मुद्दा रहा है. ध्यान रहे कि कर्नाटक के इस क्षेत्र से कावेरी का पानी तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों और पुडुचेरी जैसे केंद्र शासित क्षेत्र को दिया जाता है. यहां कावेरी मुद्दा इसलिए भी है क्योंकि न सिर्फ कावेरी नदी कर्नाटक की लाइफ लाइन है बल्कि यहां के लोगों का नदी से भावनात्मक जुड़ाव भी है.
यहां कावेरी के पानी से जहां एक तरफ लोग कृषि करते हैं तो वहीं यहां के लोगों द्वारा इसका सेवन भी किया जा सकता है. कावेरी के अलावा बात अगर इस क्षेत्र के अन्य मुद्दों की हो तो यहां कॉफी और मसलों के बागान के लिए जंगलों की अवैध कटाई, मनुष्य-पशु संघर्ष, जंगल के बीच से रेलवे लाइन का निकलना सदैव एक प्रमुख मुद्दा रहा है.
आपको बताते चलें कि इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जब इन हिस्सों में रहने वाले वन्यजीव कार्यकर्ताओं की प्रशासन से इन मुद्दों पर तीखी झड़प हुई है. इसके अलावा टीपू सुल्तान भी इस क्षेत्र का एक अहम मुद्दा हैं. टीपू के बाद अगर कुछ यहां बचा तो उसे लिंगायत ने अपने कब्जे में ले लिया. आज इस क्षेत्र का एक अहम मुद्दा लिंगायत को एक नए धर्म के रूप में स्थापित करना है.
इंडिया टुडे - एक्सिस की टीम ने कर्नाटक चुनाव में हुए मतदान का बारीक परीक्षण करते हुए राज्य का कुछ ऐसी भावी नक्शा तैयार किया है.
हैदराबाद कर्नाटक
बीदर, यदगीर, रायचूर, कोप्पल, कालबुर्गी, बल्लारी कर्नाटक के वो क्षेत्र हैं जो हैदराबाद से अलग होकर कर्नाटक में आए. बात अगर इस क्षेत्र में रह रहे लोगों के मुद्दों की हो तो राज्य के इस हिस्से की जनता सूखे की मार से त्रस्त है. ये सूखा ही है जिसके चलते राज्य का ये पूरा हिस्सा सामाजिक-आर्थिक रूप से लगातार पिछड़ेपन की मार सह रहा है. बताया जाता है कि इस हिस्से की गंभीरता को देखते हुए यहां कांग्रेस ने अवसर भुनाने का काम किया और नतीजे के तौर पर 2013 के विधानसभा चुनाव में उसे 40 में से 24 सीटें प्राप्त हुईं.
बात अगर इस हिस्से की हो तो सदैव ही पानी और धारा 371 (J) को लागू करना यहां की अहम मांग रहा है. यदि इस क्षेत्र की राजनीति को देखें तो यहां वही नेता या फिर वही दल सफल है जो इन मुद्दों पर लड़ाई लड़ता है और जनता को रिझाने का काम करता है. इसके अलावा जातिगत राजनीति भी यहां जीत हार का अहम पैमाना रही है.
बॉम्बे कर्नाटक
कर्नाटक के इस हिस्से में जहां कन्नड़ संस्कृति है तो वहीं यहां मराठी कल्चर की भी बहुतायत है. यहां जहां एक तरफ लोग मराठी बोलते हुए दिखेंगे तो वहीं इनकी बोलचाल में कन्नड़ भाषा का भी उतनी ही प्रचुरता के साथ इस्तेमाल किया जाता है. यहां के प्रमुख राजनीतिक दल महाराष्ट्र एकीकरण समिति ने लम्बे समय से बेलगवी को मुद्दा बना रखा है और मांग की जा रही है कि इसे महाराष्ट्र में जोड़ा जाए. बात अगर इस क्षेत्र की हो तो यहां महादेयी आंदोलन और लिंगायत बड़े मुद्दे के रूप में सामने आते हैं.
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि लिंगायत समुदाय के लोगों की एक बड़ी संख्या इन हिस्सों में वास करती है और जो इनका सामाजिक स्थिति है उसको देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि किसी भी पार्टी द्वारा इनको नकारना एक बड़ी भूल होगी. इसके अलावा यदि इस हिस्से के अन्य मुद्दों को देखें तो चाहे बेलागवी हो या फिर हुबली-धारवाड़, गडग-बागलकोट यहां महादायी या मंडवी नदी के पानी को लेकर भी भारी घमासान मचा हुआ है.
आपको बताते चलें कि महादायी के पानी के बंटवारे को लेकर कर्नाटक की गोवा से बहस कई मौकों पर होती आई है. इस चुनाव के मद्देनजर बात अगर जीत हार की हो तो यहां कांग्रेस को बढ़त तो मिलेगी मगर यहां से भाजपा निर्णायक भूमिका में नजर आएगी.
बताया जा रहा है कि तटीय क्षेत्रों से भाजपा को बड़ा फायदा मिल सकता है
तटीय और मालनड क्षेत्र
कर्नाटक के इस हिस्से की समस्याएं और मुद्दे अलग हैं. यहां 320 किलोमीटर का तट है जो दक्षिण कन्नड़ा, उडुपी और उत्तर कन्नड़ा क्षेत्र को जोड़ता है. बात यदि इस क्षेत्र की समस्याओं की हो तो यहां कभी मॉरल पुलिसिंग के नाम पर तो कभी गौ रक्षा और संस्कृति की दुहाई देकर तनाव उत्पन्न किया जाता है. बताया जाता है कि सम्पूर्ण कर्नाटक में ये एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां धर्म आधारित संघर्ष एक आम बात है. अब इन बातों से जाहिर है जो दल यहां इन्हीं मुद्दों को लेकर काम करेगा वही बाजी मारेगा.
चाहे विश्व हिन्दू परिषद् हो या फिर श्री राम सेना यहां अपना कब्ज़ा जमाए हुए है. अब इन बातों से साफ है कि जब यहां इस तरह के संगठन सक्रिय हों तो फिर चाहे वो विकास हो या फिर शिक्षा सारे मुद्दे दरकिनार हो जाते हैं और अंत में केवल हिन्दू-मुस्लिम बचता है. बात जहां हिन्दू मुस्लिम की आती है तो ये किसी से छुपा नहीं है कि इसमें हमेशा बाजी भाजपा ने मारी है. अतः हमारे लिए ये कहना गलत न होगा कि जब मुद्दे धर्म पर आधारित हों तो कर्नाटक का ये तटीय क्षेत्र भाजपा के लिए उम्मीद की आखिरी किरण है.
मठों का प्रभाव
तमाम मुद्दों के अलावा मठों का प्रभाव भी कर्नाटक की राजनीति में एक अहम स्थान रखता है. गौरतलब है कि बीते दिनों कर्नाटक चुनाव के मद्देनजर हम ऐसी कई तस्वीरें देख चुके हैं जिनमें चाहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हों या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही ने इन मठों का दौरा किया और यहां से आशीर्वाद लिया. इतना जानकार हमारे लिए ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि मुद्दा कर्नाटक में जो भी हो मगर हमेशा ही धर्म आधारित राजनीति यहां किसी भी दल के लिए विनिंग फैक्टर रहा है.
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