कर्नाटक ने बड़े गौर से सुना नेताओं का भाषण - अब सुनाएंगे 'मन की बात'
एक पत्रकार के सवाल पर अमित शाह का जवाब था, राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना उतनी ही है जितनी आपकी? फिर शाह ने कंफर्म भी किया - समझ गये ना मैं क्या कहना चाहता हूं. चुनाव प्रचार का लब्बोलुआब कुछ ऐसा ही रहा.
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है. 223 सीटों पर 12 मई को वोटिंग होगी. कर्नाटक में 224 सीटें हैं लेकिन एक बीजेपी उम्मीदवार की मौत के कारण वहां चुनाव रद्द हो गया है. वोटों की गिनती 15 मई को होगी.
130 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा
कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत का जादुई आंकड़ा 113 सीटों का है और मौजूदा विधानसभा में सत्ताधारी कांग्रेस के पास 122 सीटें हैं. कांग्रेस को शिकस्त देकर सत्ता हासिल करने को आतुर बीजेपी के खाते में फिलहाल 43 सीटें हैं, जबकि तीसरी ताकत जेडीएस के 37 विधायक हैं.
रोड शो में भीड़ से गदगद शाह
संभावना जतायी जा रही है कि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलकर त्रिशंकु विधानसभा हो सकती है. इंडिया टुडे सर्वे के अनुसार कांग्रेस को 90-101 सीटों से संतोष करना पड़ सकता है जबकि बीजेपी के 78 के बीच 86 सिमट जाने का अनुमान है. अगर किसी पर बहुत फर्क नहीं पड़ता दिख रहा तो वो है पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के जेडीएस को जिसे तीन सीटों का नुकसान हो सकता है और उसे 34 विधानसभा क्षेत्रों में विजय मिल सकती है.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सीएम कैंडिडेट बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में कर्नाटक में 130 से ज्यादा सीटें जीतने का दावा किया है. कांग्रेस नेता भी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अगुवाई में इस बार 150 तक सीटें जीतने की बातें करते रहे हैं. गुजरात चुनाव में शाह ने 182 में से 150 सीटें जीतने का दावा और लक्ष्य भी निर्धारित किया था. जब नतीजे आये तो मालूम हुआ बीजेपी सौ का आंकड़ा भी नहीं छू सकी. उसे 99 सीटों पर जीत हासिल हो पायी थी.
गुजरात गौरव महासम्मेलन में शाह ने कहा था, "हम तीन-चौथाई बहुमत से चुनाव जीतना चाहते हैं. जब मोदी मुख्यमंत्री थे, हमने 127 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अब जब वह प्रधानमंत्री बन गए हैं, तो यह आंकड़ा काफी छोटा लग रहा है."
गुजरात और कर्नाटक के हालात में बड़ा फर्क है. गुजरात में बीजेपी की सरकार थी और उसे सत्ता विरोधी फैक्टर की चुनौती भी झेलनी पड़ी थी - कर्नाटक में यही स्थिति कांग्रेस की है. देखना होगा, गुजरात में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी को बचा लिया - कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कर्नाटक में पार्टी को बचा पाते हैं या नहीं.
चुनाव प्रचार को लेकर अमित शाह ने बताया कि बीजेपी की ओर से 400 रैलियां की गयीं और खुद शाह ने 50 हजार किलोमीटर की यात्रा की. बाकी सब तो अपनी जगह रहा, लेकिन ट्रांसलेटर को लेकर कम से कम दो मौकों पर शाह की फजीहत हुई.
जब शाह बोले, "अरे राहुल बाबा आप मोदी जी से सवाल पूछ रहे हो?" ट्रांसलेशन करने वाली महिला ने कन्नड़ जो बोला उसमें शाह को एक शब्द समझ में आया - 'विश्वगुरु'. फौरन ही शाह ने पूछ भी लिया, "मैं कहां विश्वगुरु बोला हूं?" फिर शाह ने अपनी बात जोर देकर दोहरायी ताकि कहीं कोई गलत अर्थ न निकाला जाये.
इससे पहले भी एक रैली में तो इससे भी बड़ा झोल हो गया था. सिद्धारमैया सरकार को टारगेट करते हुए शाह बोले, "सिद्धारमैया सरकार कर्नाटक का विकास नहीं कर सकती. आप मोदी जी पर विश्वास करके येदियुरप्पा को वोट दीजिये. हम कर्नाटक को देश का नंबर वन राज्य बनाकर दिखाएंगे."
हिंदी से कन्नड़ में समझाते हुए ट्रांसलेटर ने तो कबाड़ा ही कर दिया, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब, दलित और पिछड़ों के लिए कुछ भी नहीं करेंगे. वो देश को बर्बाद कर देंगे. आप उन्हें वोट दीजिये."
कर्नाटक में कांग्रेस का क्या होगा?
गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी को कई बार स्ट्रीट फुड बड़े चाव से चखते देखा गया था. कर्नाटक चुनाव में भी ऐसे नजारे दिखे. बेंगलुरू के आइसक्रीम पार्लर में तो राहुल गांधी ने खूब तफरीह की - और फिर मिलने के वादे के साथ ही तस्वीरें भी ट्वीट की. कांग्रेस का तो नहीं मालूम लेकिन बेंगलुरू में आइसक्रीम पार्लर के अच्छे दिन तो अभी से आने शुरू हो गये होंगे.
This ice cream parlour in Bengaluru was a great place to end a long day on the campaign trail! The ice cream here is amazing and the staff friendly and helpful. I enjoyed meeting the owner and some of his customers. Look forward to being back soon! pic.twitter.com/WaqgPNp4cO
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 9, 2018
कांग्रेस के लिए कर्नाटक कितना महत्वपूर्ण है, इसे राहुल गांधी की प्राथमिकताओं से आसानी से समझा जा सकता है. गुजरात के ठीक बाद नॉर्थ ईस्ट की तीन विधानसभाओं के चुनाव हुए लेकिन राहुल गांधी ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखायी. बीजेपी नेतृत्व जहां त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड चुनावों में शिद्दत से लग रहा, कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं के भरोसे सब कुछ छोड़ रखा था. बीजेपी को मेहनता का पूरा फायदा भी मिला.
प्रधानमंत्री पद पर नजर...
जब राहुल गांधी अपनी ताजपोशी के साथ साथ कर्नाटक की रणनीति बना रहे थे तभी राजस्थान और मध्य प्रदेश से खुशखबरी भी मिली. कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश के उपचुनावों में बेहतरीन जीत हासिल की. उसके बाद ही राहुल गांधी ने दोनों राज्यों में नेताओं की गुटबाजी खत्म करने वाले फैसले भी लिये.
हिमाचल प्रदेश में तो प्रधानमंत्री मोदी ने जेल जाने वालों की सरकार कह कर निशाना बनाया था, कर्नाटक में राहुल और सोनिया गांधी को मोदी ने जमानत पर छूटे हुए लोगों के तौर पर भी पेश किया. करीब 14 साल बाद बीजेपी की ओर से एक बार फिर सोनिया गांधी के इटली मूल के होने का मुद्दा उठाया गया. मोदी ने राहुल गांधी को 15 मिनट तक हिंदी, अंग्रेजी या अपनी मां की मातृभाषा में बोलने की चुनौती दी - लेकिन जब राहुल ने पलटवार किया तो मोदी ने बहस को कामदार और नामदार में उलझा दिया. बाद में राहुल गांधी ने सोनिया गांधी का भी बचाव किया. राहुल ने कहा कि सोनिया ने देश के लिए बहुत कुछ सुना, सहा और त्याग भी किया है.
कर्नाटक में कांग्रेस का कितना कुछ दाव पर लगा है, इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि करीब दो साल के लंबे गैप के बाद सोनिया गांधी भी चुनाव मैदान में पहुंचीं. 2016 में सोनिया गांधी की वाराणसी में रोड शो के दौरान तबीयत खराब हो गयी थी जिसे बीच में ही छोड़ कर आना पड़ा. उसके बाद यूपी सहित पांच राज्यों के अलावा गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव हुए - और हाल में नॉर्थ ईस्ट में, लेकिन सोनिया कर्नाटक जरूर पहुंची. वैसे भी सोनिया पहली बार जब चुनाव मैदान में उतरी थीं तो दो में से एक कर्नाटक का बेल्लारी संसदीय क्षेत्र ही रहा.
राहुल गांधी की तरह कर्नाटक में सोनिया के भी निशाने पर मोदी ही रहे, "किसी ने भी ऐसा प्रधानमंत्री नहीं देखा होगा जो इतनी बात करता हो, लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर हमेशा शांत रहता हो. उन्होंने किसानों, गरीबों और मध्यम वर्ग के लिेए क्या किया?
सोनिया ने ये भी कहा कि मोदी एक एक्टर की तरह भाषण देते हैं - और अगर उनके भाषणों से लोगों का पेट भरता है तो वो और भी भाषण दें. बात तो सही है लेकिन सच तो ये भी है कि गरीबी मिटाने वाले भाषणों के बावजूद गरीबों की हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया.
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