मोदी ने 'माणिक' की मौजूदगी में त्रिपुरा को 'हीरा' पहनाया!
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि त्रिपुरा के लोग माणिक धारण किये हुए हैं इसलिए विकास नहीं हो रहा. लोगों ने मोदी की बात मान ली और हीरा पहन लिया - अब असर देखना बाकी है.
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त्रिपुरा को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने जब देश के अब तक के सारे प्रधानमंत्रियों को लपेटा तो अपने नेता को भी नहीं बख्शा. अमूमन कोई भी नेता जब विपक्ष को टारगेट करता है तो ऐसी बातों से परहेज करता है जो खुद की पार्टी के खिलाफ जाती हों. प्रधानमंत्री मोदी सबका साथ, सबका विकास की थ्योरी में विश्वास रखते हैं, इसलिए किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करते.
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देब के शपथग्रहण के मौके पर एक खास बात और भी देखने को मिली. बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार को बाइज्जत बुलाया, मंच पर बैठाया और फिर अच्छे से विदा भी किया.
हीरा और माणिक का साथ
त्रिपुरा में जो कुछ भी देखने को मिला, वैसा पिछले 25 साल में कभी नहीं हुआ था. माणिक सरकार मंच पर मौजूद तो थे, लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ उनकी आखों के सामने कोई और ले रहा था. गौर करने वाली एक दिलचस्प बात ये भी रही कि माणिक सरकार को जो सीट मिली थी उसके एक तरफ बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी बैठे थे और दूसरी तरफ मुरली मनोहर जोशी. बाकी दिनों में ये दोनों ही नेता बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल की शोभा बढ़ाते देखे जा सकते हैं.
हीरा के जमाने में माणिक
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने त्रिपुरा के लोगों को एक ज्योतिषीय सलाह भी दी थी. लोगों ने प्रधानमंत्री की वो सलाह मान ली और माणिक को उतार फेंका.
प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा था कि त्रिपुरा के लोगों ने लंबे समय से गलत रत्न धारण किया हुआ है और यही वजह रही कि सूबा अब तक पिछड़ा हुआ है. फिर मोदी ने लोगों को माणिक की जगह हीरा पहनने की सलाह थी. माणिक से मतलब माणिक सरकार से था, जबकि हीरा यानी HIRA.
हीरे का असर देखना बाकी है
मोदी ने कहा था, "माणिक से मुक्ति लेकर आपको अब HIRA पहनने की जरूरत है..."
फिर प्रधानमंत्री ने खुद ही अपने हीरे के बारे में विस्तार से बताया भी - "हीरे के H का अर्थ हाइवे, I का आईवे, R का रेलवे और A का अर्थ एयरवे है."
मोदी ने मंच पर पहुंचते ही माणिक सरकार से बात की - और शपथ ग्रहण के बाद उन्हें मंच से नीचे विदा करने भी गए. मोदी ने मुख्यमंत्री बिप्लव देब को गले भी लगाया.
वाजपेयी को भी नहीं बख्शा
त्रिपुरा के लोगों से खुद को कनेक्ट करते हुए मोदी ने कहा, "आजादी के बाद जितने प्रधानमंत्री नॉर्थ ईस्ट आये हैं, उससे कहीं ज्यादा... 25 से ज्यादा बार मैं नॉर्थ ईस्ट आया हूं.'' जाहिर है मोदी ने बीजेपी के ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी नहीं बख्शा. ये दूसरा मौका है जब मोदी ने त्रिपुरा में ऐसी बात कही और वाजपेयी उसकी जद में आ गये.
त्रिपुरा की 60 सीटों में से 59 पर चुनाव हुए थे. बाकी बची सीट पर 12 मार्च को चुनाव होना है और उम्मीदवार कोई और नहीं बल्कि त्रिपुरा के डिप्टी सीएम जिष्णु देबबर्मा हैं. देबबर्मा त्रिपुरा के शाही परिवार से आते हैं और जितनी आसानी से वो डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठे हैं उससे मुश्किल उन्हें चुनाव जीतना लग रहा है. अब चुनाव लड़ रहे हैं तो इलाके में घूमना तो पड़ेगा ही, सो वही कर रहे हैं.
बीजेपी ने देबबर्मा को डिप्टी सीएम बनाकर सियासी चाल चली है. दरअसल, बीजेपी की सहयोगी आईपीएफटी अपने नेता को डिप्टी सीएम बनाना चाहती थी. आईपीएफटी राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग कर रही थी, बीजेपी ने जनजातीय नेता को डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठा कर उसकी बोलती बंद कर दी. अब उसके खाते में सिर्फ दो मंत्री पद आ पाये हैं.
त्रिपुरा में पहली बार बीजेपी के सरकार बनने के मौके पर मोदी ने चुनाव की अहमियत भी समझायी, “हिंदुस्तान की राजनीति में कुछ चुनाव ऐसे है, जिनकी चर्चा लंबे वक्त तक होती रहती है. ये चुनाव राजनीति के पहलू को उजागर करते हैं. त्रिपुरा के चुनावों की इतिहास में चर्चा होती रहेगी - और लोग उसमें से कुछ न कुछ निकालते रहेंगे.”
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