मोदी की जनसंख्या नीति इमरजेंसी की नसबंदी और चीन की वन चाइल्ड पॉलिसी से कितनी अलग?
अब तक 'छोटा परिवार, सुखी परिवार, माना जाता रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब छोटे परिवार को देशभक्त परिवार का तमगा दे डाला है. ऐसा करके मोदी ने बड़बोले बीजेपी नेताओं की हौसलाअफजाई तो की है - लेकिन 'सबका विश्वास' हासिल करना नाममुकिन होगा.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में 9 बार जनसंख्या शब्द का जिक्र किया. जनसंख्या से ज्यादा 10 बार महात्मा गांधी का नाम लिया और महिलाओं का जिक्र किया. जनसंख्या के नीचे प्लास्टिक को जगह मिली - 8 बार. ऐसे में जबकि पाकिस्तान और काले धन जैसे शब्दों का नाम तक न लिया, जनसंख्या का बार बार जिक्र कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित तौर पर बड़ा संकेत दिया है.
जिस हिसाब से देश की आबादी बढ़ रही है, समझा जाता है कि 2045 तक भारत जनसंख्या के मामले में चीन को भी पीछे छोड़ देगा. भारत में जनसंख्या नियंत्रण के लिए उपाय जरूर अपनाये जाते हैं लेकिन पहले की तरह उनको लेकर कोई खास पब्लिसिटी देखने को नहीं मिलती.
अब तक देश में 'छोटा परिवार, सुखी परिवार' का नारा लोकप्रिय रहा है, दो कदम और आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटे परिवार के कंसेप्ट को देशभक्ति से जोड़ दिया है.
आबादी को लेकर बीजेपी के कई बड़बोले नेताओं के बयानों में अक्सर मुस्लिम समुदाय ही रहा है - क्या प्रधानमंत्री मोदी कोई जनसंख्या नीति लाकर 'सबका विश्वास' हासिल कर सकते हैं?
छोटा परिवार सुखी ही नहीं देशभक्त भी होता है
ये ऐसा दौर है जब देश में राष्ट्रवाद का बोलबाला है. याद कीजिए जब छात्र नेता कन्हैया कुमार को JNU से गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया गया था - ऐसा लग रहा था जैसे कदम कदम पर लोग दो हिस्सों में बंट गये हैं - एक तरफ देशभक्त और दूसरी तरफ उनके साथ नहीं खड़े होने वाले. ऐसे लोगों को देशभक्त होने का दावा करने वाले लोग दूसरी छोर के लोगों को देशद्रोही करार दे रहे थे. आम चुनाव के दौरान भी सोशल मीडिया पर अक्सर ट्रोल कैंपेन का कीवर्ड देशभक्ति ही रहा.
ये बात इस वक्त इसलिए भी खासी प्रासंगिक हो जाती है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसंख्या को देशभक्ति का चोला ओढ़ा दिया है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'ये आने वाली पीढ़ी के लिए संकट पैदा करता है, छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है.' अब तक सरकारी परिवाल कल्याण कार्यक्रमों का स्लोगन रहा है - छोटा परिवार सुखी परिवार. प्रधानमंत्री मोदी ने अब इसमें देशभक्ति वैसे ही जोड़ दी है, जैसे 'सबका साथ, सबका विकास' में इस बार 'सबका विश्वास' जोड़ा है.
स्वतंत्रता दिवस पर मोदी के भाषण में चिंता वाली कुछ ही बातें रहीं. और जनसंख्या उनमें से एक रही. अपनी चिंता को मोदी ने कुछ इस तरह साझा किया, 'हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए अनेक संकट पैदा करता है... लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरुक वर्ग भी है जो इस बात को अच्छे से समझता है. ये वर्ग इससे होने वाली समस्याओं को समझते हुए अपने परिवार को सीमित रखता है. ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं. ये लोग एक तरह से देशभक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं.'
तो देश में जनसंख्या नीति भी आने वाली है
प्रधानमंत्री मोदी के विरोधी कई बार उनकी चुप्पी पर भी सवाल उठाते हैं खास कर बीजेपी के बयान बहादुर नेताओं पर. देश की जनसंख्या को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की ये बातें बीजेपी के बयानों पर उनकी खामोशी के राज से पर्दा भी हटा रही है.
कैसी होगी मोदी की जनसंख्या नीति?
अब तक बीजेपी में ऐसे कई नेता हैं जो बढ़ती आबादी पर काबू पाने के लिए रह रह कर एक से एक खतरनाक सलाह देते रहे हैं. ऐसी सलाहें होती तो हिंदुओं के लिए भी है, लेकिन निशाने पर अक्सर मुस्लिम समुदाय ही नजर आता है. ऐसे बीजेपी नेताओं की सलाहियत में हिंदू और मुस्लिम आबादी को बैलेंस करने की फिक्र नजर आती है - और ये बताने लगते हैं कि हिंदू महिलाओं को कितने बच्चे पैदा करने चाहिये.
और तो और RSS प्रमुख मोहन भागवत भी इस मामले में पीछे नहीं दिखते. अगस्त, 2016 में मोहन भागवत एक रैली के सिलसिले में आगरा में थे. तभी नवविवाहित हिंदू जोड़ों को लेकर एक आयोजन हुआ. इस दौरान लोगों को यूरोप और कई दूसरे मुल्कों में बढ़ती मुस्लिम आबादी से जुड़े वीडियो भी दिखाये गये - और फिर मोहन भागवत ने हिंदू परिवारों को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह दी थी.
आबादी रोकने को लेकर सबसे ज्यादा सख्ती उस वक्त देखने को मिली थी जब देश में इमरजेंसी लगी हुई थी. इमरजेंसी के दौरान जिन ज्यादतियों का जिक्र होता है - परिवार नियोजन भी उनमें से एक है. माना ये भी जाता है कि बाद में किसी भी सरकार ने जनसंख्या नीति को लेकर सख्ती बरतने की हिम्मत नहीं दिखायी - और परिवार कल्याण कार्यक्रम जैसे तैसे चलता रहा.
देखा जाये तो इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने आबादी को लेकर इस तरह चिंता जतायी है और इसी में किसी ठोस पहल के संकेत भी मिलते हैं. अब सवाल ये है कि मोदी सरकार 2.0 की जनसंख्या नीति कैसी होगी?
क्या मोदी सरकार की जनसंख्या नीति में भी इंदिरा गांधी के 'हम दो हमारे दो' वाले परिवार नियोजन को सख्ती (नसबंदी) से लागू किया जाना होगा? या फिर चीन की तरह कोई 'वन चाइल्ड पॉलिसी' जैसी जनसंख्या नीति हो सकती है? ये सब अभी सिर्फ संभावनाओं के बादलों के बीच घूम रहा है.
जिस हिसाब से सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, तीन तलाक बिल और Article 370 पर मोदी सरकार ने मन की बात की है, ऐसे कई मसले हैं जिनको लेकर कयास लगाये जा रहे हैं.
नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल हो जाने के बाद भी कुछ मुद्दों पर जेडीयू का विरोध कायम रहा - जैसे, तीन तलाक, धारा 370 और यूनिफॉर्म सिविल कोड. बहरहाल, ये भी बीते दिनों की बात लग रही है क्योंकि तीन तलाक बिल और धारा 370 मिसाल हैं.
तो क्या धारा 370 के खात्मे के बाद जनसंख्या नीति भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के साथ साथ लाई जाने वाली है - लेकिन ऐसा हुआ तो 'सबका साथ और सबका विकास' के साथ 'सबका विश्वास' कैसे हासिल होगा.
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