PM Modi: अंध भक्त कमी नहीं देखते और अंध विरोधियों को नहीं दिखतीं ख़ूबियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) का शुमार उन नेताओं में हैं जिनके जैसे समर्थक (Followers) हैं उतने ही प्रबल उनके आलोचक (Critics) हैं. वर्तमान परिदृश्य में देखें तो कोरोना वायरस लॉक डाउन (Coronavirus Lockdown) के इस दौर में आर्थिक पैकेज नहीं दिया तो अब तक पीएम का विरोध हो रहा था और अब जबकि दे दिया तो भी लोग उनका मजाक उड़ा रहे हैं.
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पत्रकारिता के गुरुओं ने बताया था कि जिस दिन तुम्हारे क़लम का संतुलन बिगड़ जाये उस दिन पत्रकारिता छोड़ किसी कंपनी के पीआरओ या पार्टी प्रवक्ता बन जाना. किंतु असंतुलित या एक तरफा पक्ष पर कलम चलाकर पत्रकारिता का बलात्कार मत करना. ये विश्लेषण ऐसे गुरुओं को समर्पित है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) जैसा लोकप्रिय नेता शायद दुनिया में कोई नहीं है. इनका विरोध भी इनकी ताकत है. क्योंकि विरोधी ही मोदी (PM Modi Critics) चाहत की ज्वाला को हवा देते रहते हैं. उनके दीवानों की दीवनगी की लिमिट क्रॉस हो गई है. नरेंद्र मोदी के समर्थक भी निराले है और विरोधी भी विरोध की हदें पार करते हैं. संकट के वक़्त कोरोना काल (Coronavirus pandemic) में भी मोदी विरोध और समर्थन सिर चढ़ कर बोल रहा है. कोविड 19 जैसी भयावह वैश्विक महामारी में सरकार से एक बड़े आर्थिक पैकेज की मांग को लेकर विरोधी प्रधानमंत्री को घेर रहे थे. और जब मोदी ने काफी बड़े आर्थिक पैकेज की घोषणा कर राहत दी तो भी विरोधी आहत हो गये. अब मज़ाक उड़ा रहे हैं. इतने गंभीर और चिंताजनक माहौल में राहत पैकेज को लेकर सोशल मीडिया में चुटकुले वायरल हो रहे हैं. पूछा जा रहा है कि बीस लाख करोड़ में कितने ज़ीरो होते हैं? प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी अपनाने की जरुरत पर बल दिया तो इसे भी नकारात्मक नज़रिये से देखने वालों की कमी नहीं है.
पीएम मोदी का शुमार उन नेताओं में है जिनके जैसे समर्थक हैं वैसे ही प्रबल उनके आलोचक हैं
दुनियाभर की तरह हमारा देश भी कोरोना की तमाम तकलीफों से ग़ुज़र रहा है. इस समय कोरोना काल की जो मुसीबतें खड़ी हैं उनमें लाखों-करोड़ों प्रवासी मज़दूरों के कष्टों की तस्वीरें दिल को दहलाने वाली हैं. लग रहा है कि कोरोना वायरस से हम मरें या ना मरें लेकिन असहाय, बेबस, भूखे-प्यासे, साधनहीन-वाहनहीन मेहनतकश गरीब मजदूर पैदल सफर की थकान और भूख-प्यास से ज़रूर मर जायेंगे. इनके मरने का सिलसिला शुरु भी हो चुका है. दुधमुंहे बच्चों और 80-90 बरस के बुजुर्ग पारिवारिक सदस्यों के साथ एक हजार से दो हजार किलोमीटर तक का सफर पैदल तय करने वाले प्रवासी मजदूरीं की अजब दास्तान है.
जिन शहरों को मजदूरों ने बनाया वो शहर इस बुरे वक्त में इन मेहनतकश गरीबों को रोटी देने को तैयार नहीं है. जिन सरकारों को अपने बहुमूल्य वोट से हुकुमतें दी उन्हीं हाकिमों ने ये नही सोचा कि ये गरीब बिना रोजगार और आमदनी के कैसे जिएंगे? लॉकडाउन लागू करते वक्त इनके अस्तित्व और मजबूरियों का किसी ने अहसास नहीं किया. लॉकडाउन तोड़कर आंधियों की तरह ये जब बिलबिला के सड़कों पर निकल पड़े. भूख प्यास में हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करने लगे.
ट्रेनों और ट्रकों के नीचे आकर मरने लगे तब सरकारों को होश आया. फिर कुछ बसों और ट्रेनों का इंतेजाम हुआ. राहत पैकेज की घोषणाएं होने लगीं. और फिर इन इंतेजामों पर भी गंदी सियासत का सिलसिला शुरु हो गया. मजदूरों की अनदेखी पर विरोधी मोदी को घेर रहे हैं. मजदूरों की तकलीफों की दुहाई दे रहे हैं. लेकिन ये जानकर आपको आश्चर्य होगा कि जिन मजदूरों के कष्टों को लेकर विरोधी मोदी को कोस रहे हैं ऐसे कुछ भूखे-प्यासे गरीब मज़दूरों के पैरों के छाले भी मोदी का गुणगान कर रहे हैं.
तमाम वीडियो में प्रवासी मजदूर अपने दुख-दर्द में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास जताते नज़र आ रहे हैं. एक्टिविस्ट और पत्रकार शुऐब ग़ाज़ी ने सड़क पर पद यात्रा करते भूखे-प्यासे परेशान गरीब मजदूरों से बात की. उनके कुछ वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं. उसमें एक वीडियो में एक प्रवासी मज़दूर तमाम तकलीफों में भी प्रधानमंत्री मोदी के कसीदे (प्रशंसा) बयां करता नजर आ रहा है.
वो कहता है कि मोदी का नेतृत्व ही कोरोना वायरस को हराने में कामयाब होता नजर आ रहा है. इस महामारी से लड़ाई को पूरे विश्व के परिदृश्य से देखिए तो भारत का रिपोर्ट कार्ड सबसे बेहतर है. दिलचस्प बात ये है कि खुद लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाला ये भोलाभाला मजबूर कहता है कि मोदी जी ने सही समय पर लॉकडाउन लागू नहीं करवाया होता तो भारत में भी इटली और चीन जैसे हालात होते.
आप परेशान मजदूर के इस संबोधन से उसकी मोदी भक्ति का अंदाजा लगा लीजिए. और ये भी महसूस कीजिए कि इस देश की आम गरीब जनता में देश के प्रधानमंत्री पर कितना विश्वास है. उधर अंध विरोध भी चरम पर है. प्रधानमंत्री ने बीस लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा के साथ राष्ट्र के नाम संदेश में आत्मनिर्भर बनने, स्वरोजगार और स्वदेशी अपनाने का आग्रह किया.
जिसके पीछे उनका गांधी और अल्पसंख्यक प्रेम भी छिपा था. क्योंकि स्वरोजगार और स्वदेशी अपने का पहला झंडा बलंद करने वाले राष्ट्रपिता महत्मा गांधी थे. फिर भी गांधीवादी होने का दावा करने वाले भाजपा सरकार विरोधी मोदी की स्वदेशी अपनाने की नसीहत की आलोचना कर रहे हैं. इसका उपहास कर रहे हैं.
ये बात भी गौर तलब है कि यदि देश में स्वरोजगार और स्वदेशी अपनाने की क्रांति आ जाये तो इसका लाभ मुस्लिम समाज को ज्यादा पंहुचेगा. क्योंकि इस समाज के लोग विदेशी कंपनिया या सरकारी नौकरियों में कम हैं. लखनऊ की चिकनकारी, आरी-जरदोजी, बनारस की बनारसी साड़ियों, मुरादाबाद की बर्तन नक्खाशी, अलीगढ़ के ताले, रामपुर की छुरियों, भदोही के कालीन. उत्पादन के काम में अस्सी प्रतिशत कारीगर, कामगार, शिल्पकार.. मुस्लिम समाज के हैं.
इन स्वदेशी कामों को बढ़ावा मिला तो पूरे देश के साथ मुस्लिम समाज को सार्वजनिक लाभ होगा. उनकी एहमियत और सम्मान बढ़ेगा. ये आत्मनिर्भर होकर सरकार के सहयोग से स्वदेशी प्रोडक्ट को आगे बढ़ायेंगे. गांधी और मोदी का सपना साकार करके सम्पन्नता की तरफ बढ़ेगे. दुर्भाग्य कि जिनकी तरक्की की मंशा से प्रधानमंत्री ने स्वदेशी और स्वरोजगार को आगे बढ़ाने का इरादा किया है वही अंध विरोध में मोदी की इस कोशिश का उपहास कर रहे हैं.
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