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Updated: 10 फरवरी, 2022 07:29 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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वक्त के साथ सब कुछ बदलता जाता है. बहस के मुद्दे भी. चुनावों में तो ऐसे बदलाव ज्यादा ही तेज होते हैं - तभी तो लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने की जो शिद्दत पहले दिखायी दे रही थी, धीरे धीरे मामला लगता है ठंडा पड़ने लगा है.

अब तो यूपी चुनाव के लिए वोटिंग का दौर भी शुरू हो चुका है, लिहाजा न्याय दिलाने की जगह फोकस चुनावी वादों पर शिफ्ट हो गया है - और जिस केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) को मोदी मंत्रिमंडल से हटाये जाने को लेकर बवाल हो रहा था वो भी लगता है जैसे नरम पड़ गया हो.

बतौर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी रूटीन के सारे सरकारी कामकाज तो करते ही रहे हैं. बीच बीच में टेनी को चुनावी मंचों पर भी देखा गया, लेकिन फिर उनको हटा भी लिया गया. ऐसा एक बार अमित शाह की लखनऊ रैली में हुआ और फिर राजनाथ सिंह के सीतापुर के बूथ सम्मेलन में. ये तो सिर्फ वे वाकये हैं जिनकी तस्वीरें मीडिया में आयी थीं. जहां फोटो-ऑप की सूरत नहीं बनी, ऐसे भी तमाम वाकये हुए ही होंगे.

फिर भी एहतियात बरतते हुए बीजेपी ने अजय मिश्रा टेनी को स्टार प्रचारकों की सूची से बाहर रखा. वैसे ये कोई पैमाना तो हुआ नहीं - क्योंकि ऐसी लिस्ट में तो लोग वरुण गांधी और मेनका गांधी को भी खोज रहे थे. ये बात अलग है कि टेनी और वरुण-मेनका का मामला काफी अलग है, तभी तो किसानों को फॉर्च्यूनर से कुचलने के आरोपी बेटे के जेल में होने के बावजूद टेनी मंत्री बने हुए हैं - और बीजेपी का गांधी परिवार बाहर है.

यूपी चुनाव के पहले दौर की वोटिंग से ठीक पहले आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के इंटरव्यू लखीमपुर खीरी को लेकर भी सवाल किया गया है - और प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट का नाम लेकर जवाब दिया है, थोड़ा ध्यान दें तो पेगासस (Pegasus Row) पर भी सरकार के स्टैंड को लेकर तस्वीर साफ हो जा रही है.

टेनी पर टूटी मोदी की चुप्पी

ये संयोग ही है कि लखीमपुर खीरी हिंसा के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा मोनू की जमानत हाई कोर्ट ने मंजूर कर ली है - और यूपी में पहले चरण की वोटिंग चल रही है. वैसे लखीमपुर खीरी में चौथे चरण में यानी 23 फरवरी को मतदान होने हैं.

आशीष को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से जमानत मिली है. जमानत पर सुनवाई पहले ही पूरी हो चुकी थी - और अब रिहाई भी हो जाएगी.

narendra modiविधानसभा चुनाव की शुरुआत में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद और इंटरव्यू के जरिये करीब करीब सभी सवालों के जवाब दे दिये - अब विपक्ष के अगले सवाल का इंतजार रहेगा.

कोर्ट में दाखिल पांच हजार पन्नों की चार्जशीट में एसआईटी ने बताया है कि आशीष मिश्रा 3 अक्टूबर, 2021 को घटनास्थल पर ही मौजूद था. हिंसा में कुल आठ लोगों की मौत हुई थी, जिसमें आरोप है कि आशीष मिश्रा ने किसानों को कुचल दिया था.

घटना के बाद प्रियंका गांधी और राहुल गांधी पीड़ितों से मिलने वैसे ही पहुंचे थे जैसे हाथरस गैंगरेप की घटना और पीड़ित की मौत के बाद परिवार से मिलने. प्रियंका गांधी ने बनारस में पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए रैली भी की थी - और बाद में कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल इस सिलसिले में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मिला था.

यूपी चुनाव की तैयारी कर रही बीजेपी के लिए ये मामला आगे कुआं और पीछे खाई जैसा हो गया था. अजय मिश्रा टेनी को ब्राह्मण वोटों के मकसद से ही मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था - और हिंसा की घटना के बाद हटाये न जाने पर किसान नाराज हो रहे थे. विपक्ष जो मुद्दा बना रहा था, वो तो अलग ही है.

बीजेपी पूरी तरह लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर दबाव में रही है और बचाव का कोई रास्ता भी नजर नहीं आ रहा था. अजय मिश्रा टेनी अपने विभाग के काम तो करते रहे - और परदे के पीछे चुनावी गतिविधियों में भी शामिल होते ही रहे, लेकिन कुछ सार्वजनिक कार्यक्रम उनको विरोध की आशंका के चलते रद्द जरूर करने पड़े थे.

अब तो सवाल ये भी है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक चुप थे तो अब क्यों बोले? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि इंटरव्यू में सवाल पूछ लिये गये?

ऐसा तो नहीं लगता प्रधानमंत्री मोदी चाहते तो सवाल को टाल नहीं सकते थे. सवाल को इग्नोर करने के कई रास्ते मौजूद थे.

ये तो लगता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी चाहते थे कि वो लखीमपुर खीरी हिंसा में उनके कैबिनेट साथी अजय मिश्रा टेनी को लेकर उठते सवालों पर बयान दें.

क्या कहा है मोदी ने: मोदी के साथ इंटरव्यू में जो सवाल पूछा गया था वो सीधा नहीं था. क्योंकि सवाल अजय मिश्रा टेनी के मोदी कैबिनेट में बने रहने को लेकर नहीं पूछा गया था.

लखीमपुर खीरी हिंसा का नाम लेकर ये ध्यान दिलाने की कोशिश रही कि अजय मिश्रा टेनी अब भी बीजेपी के लिए जरूरी शख्सियत बने हुए हैं. ध्यान दिलाने की कोशिश हुई कि बीजेपी के साथ जो है, उसके सारे अपराध माफ हो जाते हैं - और ये सवाल भी समाजवादी पार्टी के आरोपों के जरिये पूछा गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर कहा है कि योगी आदित्यनाथ सरकार पूरे मामले में पारदर्शिता के साथ काम कर रही है - और ये सब सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में हो रहा है.

सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री बोले, 'मैं यही तो कहना चाहता हूं. सुप्रीम कोर्ट जो कमेटी बनाना चाहता था उस पर राज्य सरकार ने सहमति दी... जिस जज से जांच कराने की सुप्रीम कोर्ट की इच्छा थी, राज्य सरकार ने सहमति दी - राज्य सरकार पारदर्शिता के साथ काम कर रही है, तभी तो सुप्रीम कोर्ट की इच्छा के अनुसार सारे निर्णय करती है.'

मोदी को चुप्पी क्यों तोड़नी पड़ी: बड़ा सवाल ये है कि आखिरकार प्रधानमंत्री मोदी अब तक तो लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर अजय मिश्रा टेनी के मंत्रिमंडल में बने रहने को लेकर कुछ भी नहीं बोल रहे थे, फिर अचानक ऐसा क्या हुआ होगा कि वो बयान दे दिये?

दरअसल, पहले फेज का चुनाव उत्तर प्रदेश के उन इलाकों में हो रहे हैं जहां वोटर मुख्य तौर पर किसान हैं - और किसान लखीमपुर खीरी हिंसा केस में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को लेकर नाराज हैं

असल बात तो यही लगती है कि ऐसा करके प्रधानमंत्री मोदी ने सबके सामने अपनी बात रखने की कोशिश की है - और जैसे अब तक योगी आदित्यनाथ की बाकी चीजों के लिए तारीफ करते रहे हैं, यूपी के लिए UPYOGI बता चुके हैं, चाहे वो कोराना काल में योगी सरकार के कामकाज की बात हो या फिर कानून व्यवस्था के मामले में, मोदी ने एक और सर्टिफिकेट जारी कर दिया है कि योगी सरकार लखीमपुर खीरी मामले में भी पारदर्शिता के साथ काम कर रही है.

प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद बीजेपी को जो नफा नुकसान होगा वो अलग बात है, लेकिन चुप्पी से ज्यादा खतरनाक हो सकती है, ऐसा लग रहा होगा. ऐसा करने से कम से कम जो मोदी या बीजेपी समर्थक कन्फ्यूज हो रहे होंगे - उनके लिए फैसला लेना आसान हो जाएगा.

एक बयान, कई सवालों का जवाब है: प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद ये तो साफ हो गया कि शुरू से ही अजय मिश्रा को लेकर मोदी या केंद्रीय मंत्री के सीनियर गृह मंत्री अमित शाह के दिमाग में स्टैंड साफ था. टेनी को मंत्रिमंडल से हटाने जैसी बात तो कभी हुई ही नहीं होगी - सिवा इसके कि कैसे पूरे मामले को हैंडल किया जाये.

सही भी है जब तक अदालत किसी को दोषी न मान ले तब तक तो वो नैसर्गिक न्याय की परिभाषा के मुताबिक बेकसूर ही होता है. वैसे भी लखीमपुर खीरी में जो अपराध हुआ है, खुद केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा उसमें शामिल तो हैं नहीं - जो मुख्य आरोपी है वो मंत्री का बेटा आशीष मिश्रा है.

बीजेपी नेतृत्व का भी यही मानना था, पहले आयी खबरों के मुताबिक, कि भला बेटे के गुनाह की सजा पिता को क्यों दी जानी चाहिये. ऊपर से टेनी के खिलाफ कोई भी एक्शन लिया जाना, एक तरीके से विपक्ष के हमलों के दबाव में घुटने टेकने जैसा ही होता.

देखा जाये तो यूपी चुनाव से पहले ही प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे सारे सवालों के जवाब दे दिये हैं - और एक बड़ा सवाल पेगासस को लेकर भी है. पेगासस के मामले को मोदी सरकार की तरफ से या फिर बीजेपी नेता मामले के सब-ज्यूडिस होना बताकर टाल जाते हैं.

विपक्ष के सड़क से संसद तक भारी शोर-शराबे के बाद भी पेगासस पर सत्ताधारी बीजेपी अब तक सुप्रीम कोर्ट में मामला होने का बता कर पल्ला झाड़ लेती रही. राहुल गांधी तो पेगासस को लेकर भी मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक ही रहे हैं - और ममता बनर्जी भी.

अब तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी साफ कर दिया कि जो चीज सुप्रीम कोर्ट में है या जिसकी जांच की निगरानी सबसे बड़ी अदालत कर रही है - उसमें पारदर्शिता की कोई कमी हो सकती है क्या?

पेगासस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार रहेगा

प्रधानमंत्री मोदी का स्टैंड लखीमपुर खीरी पर भी वैसे ही सामने आया है जैसे अयोध्या मामले को लेकर. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर तब संघ प्रमुख मोहन भागवत और हिंदू संगठनों सहित बीजेपी नेताओं की तरफ से केंद्र सरकार से कोई कानून बनाने की मांग हो रही थी, लेकिन इंटरव्यू के जरिये ही प्रधानमंत्री मोदी ने अपना रुख साफ कर दिया था.

1. अयोध्या मामले जैसा ही: 2019 के आम चुनाव से पहले ही 1 जनवरी को दिये इंटरव्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने साफ साफ कह दिया था कि वो अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे - और ये समझाने की कोशिश की कि फैसला आने से पहले वो कुछ भी नहीं करने वाले हैं.

मोदी का बयान आने के बाद हिंदू संगठनों, संघ और बीजेपी नेता शांत हो गये - और हो सकता है, एक वजह ये भी रही हो कि चुनाव से पहले वीएचपी ने अयोध्या मामला होल्ड कर लेने का फैसला किया. संघ और बीजेपी ने भी उसी को फॉलो किया - और चुनावों में बीजेपी की तरफ से राम मंदिर के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई.

लेकिन जैसे ही चुनाव बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, बीजेपी की तरफ से क्रेडिट लेने की होड़ शुरू हो गयी. तभी झारखंड में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे और अमित शाह ने रैलियों में लोगों को तरह तरह से समझा रहे थे कि कैसे मोदी सरकार की बदौलत अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है. मगर, न तो झारखंड और न ही उसके बाद हुए दिल्ली चुनाव में ही राम मंदिर के नाम पर बीजेपी को वोट मिल सका.

चूंकि पेगासस का मामला भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है - और अदालत ने एक जांच समिति भी बना दी है, लिहाजा लखीमपुर खीरी वाली लाइन पर ही पेगासस पर मोदी सरकार का स्टैंड लखीमपुर खीरी और अयोध्या मसले की तरह ही समझ लेना चाहिये.

2. सुप्रीम कोर्ट में पेगासस: वस्तुस्थिति तो यही है कि मोदी सरकार ने अब तक पेगासस की खरीद को लेकर न तो कुछ भी कबूल ही किया है - और न ही सीधे सीधे नकारा ही है. बस ये समझाने की कोशिश रही है कि सरकार का पेगासस से कोई वास्ता नहीं है - और इससे ज्यादा इसलिए नहीं बताया जाता क्योंकि संवदेनशील जानकारियां राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर शेयर नहीं की जा सकती हैं.

विपक्ष ने संसद में बहस की बार बार मांग की लेकिन सरकार ने पहले इनकार वाले लहजे में टाला - और बाद में तो मामला सब-ज्यूडिस हो गया और सटीक बहाना मिल गया.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की दलील को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट का कहना रहा, 'राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं का हवाला देकर सरकार को हर बार खुली छूट नहीं दी जा सकती...'

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट बेंच ने नागरिकों की निजता के अधिकारों की अहमियत का भी जिक्र किया है. अदालत का कहना था कि सरकार के पास अपना पक्ष रखने का भरपूर था समय मिला, लेकिन सिर्फ सीमित सफाई पेश की गयी. ऐसे में अदालत के पास याचिकाकर्ताओं की अपील मान लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

कोर्ट ने याचिका के जरिये जो कुछ समझा, वो ये कि - 'नागरिकों के मूल अधिकारों के हनन के आरोप लगे हैं. इसका एक डरावना असर हो सकता है. विदेशी एजेंसियों के शामिल होने के आरोप लगाए जा रहे हैं.'

3. और मीडिया पर ठीकरा फोड़ दिया: पेगासस को लेकर दिल्ली के साथ साथ पश्चिम बंगाल में भी काफी बवाल मचा. ममता बनर्जी को तो पेगासस ने मोदी सरकार पर हमले का मौका ही दे दिया. ममता बनर्जी सरकार ने तो एक आयोग भी बना डाला, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी जांच होने तक आयोग को जांच रोक देने की हिदायत दे दी.

चुनावों के दौरान पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष रहे सांसद दिलीप घोष ने ये कह कर सरकार का बचाव किया कि जब संसद सत्र शुरू होने का वक्त आता है विपक्ष की तरफ से सदन की कार्यवाही रोकने के लिए कोई न कोई मुद्दा खड़ा कर दिया जाता है.

पेगासस का मामला तब और भी तूल पकड़ लिया जब न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने पेगासस को एक रक्षा सौदे के तहत साल 2017 में इजराइल से खरीदा था - और हथियारों के दो अरब डॉलर के पैकेज में इसे लिया गया था.

और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह के पास तो हर मामले को नकारने का एक ही उपाय होता है - सारा कुछ मीडिया पर डाल दो. पत्रकारों को पहले प्रेस्टिट्यूट करार दे चुके वीके सिंह ने न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट पर भी वैसे ही रिएक्ट किया है - 'सुपारी मीडिया'.

ध्यान देने वाली एक और भी बात है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पंजाब दौरे में सुरक्षा में हुई चूक को लेकर भी अपनी बात रखी है. प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि वो इसलिए सुरक्षा के मुद्दे पर चुप रहे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट वो मामला भी गंभीरता से देख रहा है - और वो मानते हैं कि उनके बयान से जांच प्रभावित हो सकती है जो सही नहीं है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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